Published on Sep 05, 2020 Updated 0 Hours ago

दोनों देश श्रीलंका पर 90 करोड़ डॉलर के भारत ऋण की भुगतान शर्तों को पुन: निर्धारित करने के लिए वार्ता कर रहे हैं.

इंजीनिज बोल्टन टर्मिनल में भारत की भूमिका की समीक्षा

बड़े—छोटे 30 श्रमिक संगठनों तथा श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी के सभी कर्मचारियों द्वारा हाल में आंदोलन के कारण भारत और जापान जैसे दो महत्वपूर्ण पड़ोसियों से श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंध बिगड़ने की नौबत आ सकती है. आंदोलनकारियों की मांग है कि कोलंबो बंदरगाह के पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) के निर्माण के लिए भारत और जापान के साथ त्रिपक्षीय ज्ञापन रद्द किया जाए. सेवानिवृत्त जेनरल आर एम दयारत्नायके एक दशक पहले युद्ध के बाद, सेनाध्यक्ष थे और अब श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी (एसएलपीए) के अध्यक्ष हैं. इनको राष्ट्रपति गोताबया राजपक्षे ने नियुक्त किया है. श्रमिक आंदोलन से इन पर उंगली उठ रही है.

ईसीटी प्रदर्शन अन्य विदेशी सत्ता से विदेशी पूंजी निवेश संबंधी समझौता करने पर सरकार के असमंजस जताते संकेतों के बीच में उत्पन्न हुए हैं. ईसीटी की तरह श्रीलंका में विकास परियोजनाओं में स्वैच्छिक अमेरिकी पूंजी निवेश के लिए ‘मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन'(एमसीसी) समझौता भी पिछली सिरीसेना-विक्रमसिंघे सरकार ने आरंभ किया था. जनसमर्थन राजपक्षे के पक्ष में साफ दिखने के बावजूद मंत्रिमंडल ने ईसीटी प्रस्ताव को मार्च 2019 में तथा एमसीसी समझौते को अक्टूबर 2019 में मंज़ूर कर दिया.

चुनाव पूर्व डांवाडोल मंत्रिमंडल के निर्णय के प्रति पांच अगस्त के संसदीय चुनाव के बाद नवनिर्वाचित सरकार कितनी पाबंद होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.

विपक्ष में रहते हुए एमसीसी समझौते का विरोध करने के बाद सत्तारूढ़ राजपक्षे बंधुओं ने इस विषय में निर्णय मंत्रिमंडलीय साथियों की सलाह पर छोड़ रखा है. चुनाव पूर्व डांवाडोल मंत्रिमंडल के निर्णय के प्रति पांच अगस्त के संसदीय चुनाव के बाद नवनिर्वाचित सरकार कितनी पाबंद होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. किसी मीडिया विश्लेषक ने एमसीसी के अंतर्गत कर्ज़ के बोझ की आंकलन विधि की पिछली राजपक्षे सरकार (2005-15) के दौरान कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना में चीन द्वारा पूंजी निवेश की शर्तों से तुलना करते हुए प्रश्न किया है. कोलंबो स्थित अमेरिकी दूतावास ने पिछले महीने बताया कि श्रीलंका सरकार ने चर्चा के बाद समझौते की ‘समीक्षा’ के लिए समय मांगा है.

मत्तला हवाई अड्डे के लिए मना किया

अपने ग्रामीण समर्थकों के बीच राष्ट्रपति के भाई महिंदा राजपक्षे ने कहा था कि उनकी सरकार के आग्रह पर भारत से उनके देश में मत्तला राजपक्षे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रबंधन के लिए संयुक्त उपक्रम पर बात नहीं करने का निर्णय किया है. वे जब राष्ट्रपति थे तभी चीन से महंगी दरों पर मिले कर्ज़ से दुनिया के इस सबसे ‘खाली’ हवाई अड्डे का निर्माण किया गया था. साल 2013 में चालू हुए इस हवाई अड्डे पर 2.10 करोड़ डॉलर की लागत आई थी.

महिंदा ने कहा, ”उन्होंने बंदरगाह तो बेच दिया मगर हवाई अड्डे को नहीं बेचा जा सका.”

यह उन्होंने पिछली सिरीसेना-विक्रमसिंघे सरकार द्वारा दक्षिणी कोने पर बने हम्बनटोटा बंदरगाह को 2017 में कर्ज़ की इक्विटी से अदला-बदली के तहत चीनी निवेशक को 99 साल की लीज पर सौंपे जाने के बारे में कहा था. उस समय आए समाचारों के अनुसार प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने तभी मत्तला हवाई अड्डे को लीज पर चलाने की पेशकश पर भारत सरकार से बातचीत की थी. उसका प्रयोजन एक तो परियोजना के वास्ते चीन से लिए गए कर्ज़ का भुगतान था दूसरे हम्बनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपने से नाराज़ भारत को मनाने का प्रयास भी था. भारत द्वारा मत्तला को प्रशिक्षण सुविधा के रूप में विकसित करने संबंधी बातों के बावजूद उस बारे में कोई निर्णय नहीं हो पाया.

अपनी प्रचार सभा में महिंदा राजपक्षे का दावा था कि फरवरी में प्रधानमंत्री के रूप में एकमात्र विदेश यात्रा के दौरान वे मत्तला हवाई अड्डे पर अपनी सरकार की स्थिति के प्रति भारत को मनाने में सफल हो गए थे.

अलबत्ता अपने इकलौते दौरे के बाद नई दिल्ली से वापस आने पर उनके भाई और राष्ट्रपति ने मत्तला हवाई अड्डे को खुद ही विकसित करने की घोषणा कर दी. राष्ट्रपति के अनुसार भारत से बातचीत के लिए उस विषय को विषय सूची में शामिल ही नहीं किया गया था.

मीडिया विश्लेषणों में मत्तला हवाई अड्डे का प्रस्ताव रद्द करने और त्रिपक्षीय ईसीटी ज्ञापन के प्रति श्रीलंका के ज़ाहिर असमंजस के पीछे चीन का हाथ माना जा रहा है. मत्तला हवाई अड्डा दरअसल चीन द्वारा नियंत्रित हंबनटोटा बंदरगाह से बहुत दूर नहीं है. ईसीटी संबंधी विस्तृत समझौते पर अंतिम निर्णय अभी बाकी है और उसे रद्द कराने का चीन के पास यह अंतिम अवसर है ताकि बीजिंग द्वारा वित्त पोषित कोलंबो पोर्ट सिटी पर उसका ‘विरोधात्मक’ प्रभाव न पड़े.

चीन का दबाव?

महिंदा राजपक्षे ने मत्तला हवाई अड्डे का उल्लेख अपनी जनसभा में किया और 70 करोड़ डॉलर की ईसीटी परियोजना के बारे में उन्होंने देश के तमिल मीडिया संपादकों को नाश्ते पर मुलाकात के दौरान कुछ समय पहले ही जानकारी दी. राजपक्षे ने कहा, ‘ईसीटी में भारत की भागीदारी के बारे में अंतिम निर्णय नहीं हुआ.’समाचारों के अनुसार उन्होंने कहा,’यह पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना एवं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुआ समझौता है.’ नाश्ते पर मुलाकात के दौरान त्रिपक्षीय समझौते में जापान की भागीदारी का जिक्र शायद किया ही नहीं गया.

सिल्वा एवं अन्य आलोचक भारत एवं जापान द्वारा भी ईसीटी में पूजी निवेश करने के प्रति चुप्पी साधे हैं. कर्ज़ में डूबे श्रीलंका के लिए अगले कुछ समय तो इस निवेश का पैसा चुकाने के लिए राशि जुटाना संभव नहीं होगा.

ईसीटी में भारत की भागीदारी का औपचारिक विरोध ‘वाम राष्ट्रवादी’ जेवीपी ने किया. भारत की भागीदारी को लगातार ‘बिक्री’ बताते हुए जेवीपी के महासचिव तिल्विन सिल्वा ने ने कहा, ” वे इसे केवल संचालन में भागीदारी बता रहे हैं (ईसीटी के). क्या हमारे यहां ऐसी नौबत आ गई कि हम अपने बंदरगाहों का प्रबंधन ही नहीं कर सकते? इसके बावजूद सिल्वा एवं अन्य आलोचक भारत एवं जापान द्वारा भी ईसीटी में पूजी निवेश करने के प्रति चुप्पी साधे हैं. कर्ज़ में डूबे श्रीलंका के लिए अगले कुछ समय तो इस निवेश का पैसा चुकाने के लिए राशि जुटाना संभव नहीं होगा.

राष्ट्रीय संपत्तियों की नीलामी

ऐसा भी नहीं है कि विकास परियोजनाओं में विदेशी भागीदारी के प्रति श्रीलंका की कथित ‘चिंता’ भारत एवं ईसीटी तक ही सीमित है. मंत्रिमंडल ने हाल में 76 कि.मी. लंबे कहथुदुवा-पेलमादुल्ला रूवनपुरा एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए पिछली सरकार द्वारा किए गए सभी विदेशी ठेके निरस्त कर दिए हैं. सरकार ने कहा है कि परियोजना पर अब स्थानीय वित्तीय संसाधनों एवं ठेकेदारों के माध्यम से काम किया जाएगा.

कुल मिलाकर देश में ‘राष्ट्रवादी’ राजनीतिक हित विदेशों को ‘राष्ट्रीय संपत्तियों को बेचने’ के कथित रूप में खिलाफ़ हैं. उन्होंने हम्बनटोटा तथा कोलंबो पोर्ट सिटी का काम चीन को सौंपने के लिए पिछली राजपक्षे सरकार की भी आलोचना की और हम्बनटोटा के कर्ज़ एवं इक्विटी की अदला-बदली करने के लिए उनके बाद आई सरकार को भी नहीं बख्शा. लेकिन उनका ज़्यादा विरोध चीन से नहीं बल्कि भारत एवं अन्य देशों के प्रति है. संयोग से बीजिंग, कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल का भी संचालक है. इस टर्मिनल से देश में कंटेनरों की कुल आवाजाही का 40 फीसद कारोबार चलता है.

पिछली राजपक्षे सरकार ने 35 वर्षीय बीओटी (‘बनाओ, चलाओ फिर दे जाओ’) समझौते के आधार पर सीएसीटी भी चीन को सौंपा था. उससे पहले 2010 में उनकी सरकार ने कोलंबो बंदरगाह विस्तार के फ़र्स्ट टर्मिनल/पहले टर्मिनल की पेशकश भी चीन को की थी जबकि उसका प्रबंधन एसएलपीए के ही हाथ में रहता. पैंतीस साल लंबे निर्माण काल में चीन के वहीं डटे रहने के प्रावधान के बावजूद न तो कोई सवाल पूछा गया और न ही ‘राष्ट्रीय संपत्ति’ का कोई मुद्दा बनाया गया जबकि इसमें हम्बनटोटा की तरह कर्ज़ की इक्विटी से संभावित अदला-बदली पर भी स्थिति अस्पष्ट थी. संयोग से एसएलपीए के कर्मचारियों ने हम्बनटोटा के अदला-बदली समझौते का विरोध किया था और तत्कालीन सरकार ने उन्हें दबाने के लिए नौसेना एवं पुलिस को तैनात किया. राजपक्षे ने भी अदला-बदली समझौते का विरोध किया मगर महिंदा के बेटे नमाल राजपक्षे ने तो मत्तला प्रस्ताव के विरूद्ध नज़दीकी हम्बनटोटा में भारतीय कॉन्सुलेट जनरल पर प्रदर्शन का नेतृत्व ही कर डाला. अंतत: उनके परिवार को उन्हें समझा कर शांत करना पड़ा.

पहली बार नहीं

ईसीटी का मुद्दा दरअसल स्थानीय विरोध झेलने वाली कोई पहली भारतीय परियोजना नहीं है. युद्धरत कोलंबो में राष्ट्रपति कार्यालय के बाहर प्रदर्शन के मद्देनजर महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति के रूप में मेहमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ कंप्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट यानी एकीकृत आर्थिक भागीदारी समझौते (सीईपीए)पर हस्ताक्षर कार्यक्रम रद्द कर दिया था. अपने कार्यकाल में ‘भारत मित्र'(?) उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने तो बाकायदा घौषणा कर दी कि श्रीलंका ‘सीईपीए पर कभी भी हस्ताक्षर नहीं करेगा’.

इससे पहले भी भारत द्वारा वित्त पोषित सामपुर ताप बिजली घर के निर्माण के लिए कोलंबो सरकार द्वारा पूर्वी प्रांत में आबादी वाला क्षेत्र चुनने के विरूद्ध पर्यावरणविद एवं स्थानीय तमिल आबादी भी विरोध कर चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण संबंधी मुकदमे में अदालत ने 2016 में इस घोषणा की ज़िम्मेदारी विक्रमसिंघे सरकार पर छोड़ दी थी कि वह सामपुर परियोजना के लिए भारतीय सार्वजनिक प्रतिष्ठान एनटीपीसी से किया गया करार रद्द कर रही है.

आलोचकों का दावा है कि ईसीटी के प्रस्ताव में एसएलपीए के कुल 51 फीसद बहुसंख्यक शेयरों में से 35 प्रतिशत पहले से ही जॉन कील्स के पास हैं और बाकी 49 प्रतिशत ही भारत एवं जापान के पास जाने वाले थे.

मीडिया प्रसारित समाचारों में ईसीटी के बारे में अलग कोण यह भी है कि भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी अडानी समूह द्वारा परियोजना को सिरे चढ़ाने के लिए जॉन कील्स से भागीदारी के लिए बातचीत की जा रही थी. आलोचकों का दावा है कि ईसीटी के प्रस्ताव में एसएलपीए के कुल 51 फीसद बहुसंख्यक शेयरों में से 35 प्रतिशत पहले से ही जॉन कील्स के पास हैं और बाकी 49 प्रतिशत ही भारत एवं जापान के पास जाने वाले थे.

श्रीलंका में ईसीटी के आलोचक बुनियादी ढांचा निर्माण संबंधी भारत की अन्य कंपनी जीएमआर के दशक के आरंभ में मालदीव में माले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकास परियोजना से जुड़ाव के बारे में भी बात कर रहे हैं. परियोजना के ठेके को यामीन के राष्ट्रपति काल (2013-18) में रद्द कर दिया गया क्योंकि इसे उनके प्रतिद्वंद्वी एवं पूर्ववर्ती मुहम्मद नशीद की सरकार ने जारी किया था. इस कार्रवाई के विरूद्ध सिंगापुर स्थित आर्बिट्रेशन कोर्ट यानी मध्यस्थता अदालत के आदेश पर मालदीव को 27 करोड़ डॉलर हरजाना जीएमआर को चुका कर अपने देश के लिए घाटा उठाना पड़ा था. श्रीलंका के लिए वैसा घाटा उठाना फिलहाल मुनासिब नहीं है.

विभेदी तर्क

चीन को हम्बनटोटा बंदरगाह का लंबी अवधि के लिए समूचा कब्जा एवं नियंत्रण सौंपने तथा ईसीटी में भारत की सीमित भागीदारी के प्रति श्रीलंका के विभेदी तर्कों ने भारत और चीन के प्रति उसके रूख तथा ‘राष्ट्रीय संपत्तियों की बिक्री’ संबंधी नज़रिए पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पिछले साल अपने चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने निर्वाचित होने पर अपनी ओर से हम्बनटोटा अदला-बदली समझौते पर नए सिरे से सौदेबाजी का वायदा किया था. अलबत्ता राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद उनका तर्क था कि उन्हें पता चला है कि यह ‘व्यावसायिक सौदा’ था इसलिए इसके बारे में कुछ भी नहीं किया जा सकता.

यह परिस्थितियां देश में ‘राष्ट्रीय सहमति’ की संभावना का संकेत कर रही हैं—क्योंकि भारत के कथित मित्र तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) तक ने ईसीटी पर कोई राय नहीं जताई.

श्रीलंका संबंधी पर्यवेक्षकों को भी यह बात सही प्रतीत होती है. प्रतिद्वंद्वी रानिल विक्रमसिंघे द्वारा 2015 में राष्ट्रपति चुनाव से पहले चीन के साथ कोलंबो पोर्ट सिटी सौदे को एकतरफा रद्द करने का वायदा किया गया था लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के तहत प्रधानमंत्री बनने पर उन्होंने सौदे को खारिज करने के बजाय संशोधित रूप में अपना लिया. यह परिस्थितियां देश में ‘राष्ट्रीय सहमति’ की संभावना का संकेत कर रही हैं—क्योंकि भारत के कथित मित्र तमिल नेशनल अलायंस (टीएनए) तक ने ईसीटी पर कोई राय नहीं जताई.

मीडिया की रोशनी से दूर दोनों देश 90 करोड़ डॉलर के भारतीय ऋण की शर्तों में संशोधन के लिए बातचीत कर रहे हैं. यह जानकारी प्रधानमंत्री महिंदा ने अपने भारत दौरे में ही दी. अर्थशास्त्री एवं पूर्व मंत्री हर्ष डी सिल्वा के अनुसार राष्ट्रपति गोतबया के शासन ने जनवरी से चालू माली साल के पहले चार महीने में ही लंका 1000 अरब रूपए का अतिरिक्त राष्ट्रीय कर्ज़ और चढ़ा लिया है जबकि उनके पूर्ववर्ती के पांच साल लंबे कार्यकाल में लंका 5700 अरब रूपए कर्ज़ हुआ था.

 सार्वजनिक जानकारियों के अनुसार देश पर अकेले कुल सकल बाहरी ऋण की राशि पिछली तिमाही के 5591.6 करोड़ डॉलर के मुकाबले 2020 की पहली तिमाही में 5044.8 करोड़ डॉलर है. वित्त वर्ष 2019 के अंत में जीडीपी की तुलना में देश पर कुल ऋण भारी भरकम 86.80 प्रतिशत आंका गया है.

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