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सिर्फ़ संबंध बहाली के एजेंडे पर आगे बढ़ने की कोशिश शायद ही साझेदारी के अस्तित्व को फिर से बहाल करने की ज़रूरत को पूरा करेगी.
पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए अपने चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप को “दुनिया में अमेरिका की साख़ का आत्मसमर्पण” कर देने का ज़िम्मेदार ठहराया. अब जबकि बाइडेन यूनाइटेड स्टेट्स के 46वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, ट्रांस-अटलांटिक साझेदारी के प्रति उनका नज़रिया “एक बार फिर अमेरिका को मुखिया वाली जगह दिलाने” के उनके वादे की बुनियाद होगा. हालांकि, शक्तिशाली यूरोप के विचार के विरोधी रहे ट्रंप की विदाई साझेदारी को नई मज़बूती नहीं देगी, क्योंकि बाधाएं स्पष्ट रूप से ट्रंप काल के मुद्दों और नए विवादों के कारण हो सकती हैं, या यह आशंका भी है कि बाइडेन संभवतः बराक ओबामा के काल के कुछ ग़लत कदमों को दोहरा सकते हैं.
हालांकि, बाइडेन व्यापार के मोर्चे पर ट्रंप के यूरोप को अमेरिका का “दुश्मन”, घोषित करने की बात छोड़ देंगे लेकिन लंबे समय से चले आ रहे विवादों (जैसे कि एयरबस और बोइंग के लिए सब्सिडी पर) को लेकर तनाव जारी रहने की उम्मीद है. बताने की ज़रूरत नहीं कि मतभेदों में संभावित बढ़ोत्तरी का कारण नए विवाद हो सकते हैं, जैसे कि यूरोप अमेरिकी दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगाने की तैयारी कर रहा है.
मतभेदों में संभावित बढ़ोत्तरी का कारण नए विवाद हो सकते हैं, जैसे कि यूरोप अमेरिकी दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगाने की तैयारी कर रहा है.
इसी तरह, सामूहिक सुरक्षा पर आने वाले ख़र्च के बंटवारे को लेकर अमेरिकी दानशीलता पर यूरोप की “मुफ़्तख़ोरी” जैसी बयानबाज़ियों को संभवतः बाइडेन शांत करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, नाटो के सदस्य-देशों के लिए अपने रक्षा खर्च को जीडीपी के 2% तक बढ़ाने का दबाव जारी रहेगा, जैसा कि 2014 में ओबामा-बाइडेन के दौर में लक्ष्य तय किया गया था.
ट्रांस-एटलांटिक मतभेद, जैसे कि ईरान को लेकर है, जो पूरी तरह से ओबामा-काल के ईरान परमाणु समझौते से ट्रंप के हटने से उभरा है, उसे लेकर ऐसी उम्मीद नहीं है कि बाइडेन इसे ट्रंप-पूर्व स्थिति में लाने में तेज़ी दिखाएंगे. दोबारा ट्रांस-एटलांटिक सहमति बनाने की कोशिश पर डील के विस्तार के लिए बाइडेन के “बातचीत को अंजाम तक पहुंचाने पर” ज़ोर देने या रिपब्लिकन, जो संभवतः अमेरिकी सीनेट को नियंत्रित करेंगे, द्वारा पेश की जाने वाली घरेलू बाधाओं से रुकावट आ सकती है.
ट्रांस-एटलांटिक मतभेद, जैसे कि ईरान को लेकर है, जो पूरी तरह से ओबामा-काल के ईरान परमाणु समझौते से ट्रंप के हटने से उभरा है, उसे लेकर ऐसी उम्मीद नहीं है कि बाइडेन इसे ट्रंप-पूर्व स्थिति में लाने में तेज़ी दिखाएंगे
अंत में, ओबामा प्रशासन के दौर में नाटो के दरवाज़े पर रूसी हरकतें बढ़ने से अमेरिकी विश्वसनीयता पर सवाल यूरोपीय लोगों को अक्सर परेशान करता था, जबकि वाशिंगटन “क्षेत्र में स्थिरता क़ायम रखने के लिए संघर्ष में सिर्फ़ बाहरी तौर पर शामिल हो सकता था.” इसलिए, बाइडेन के ज़रिये यूरोप एकजुट सुरक्षा की विश्वसनीय रणनीति के प्रति उनके रवैये को उत्सुकता से देखेगा. सीमाओं की सुरक्षा के साथ ऐसे ही सवाल बाइडेन के चीन के ख़िलाफ मज़बूती से खड़े होने की प्रतिबद्धता पर भी उठ सकते हैं जब यूरोपियन पुनर्स्थापना में “स्ट्रैटेजिक स्वायत्तता” की बात होगी.
बाइडेन के ज़रिये यूरोप एकजुट सुरक्षा की विश्वसनीय रणनीति के प्रति उनके रवैये को उत्सुकता से देखेगा. सीमाओं की सुरक्षा के साथ ऐसे ही सवाल बाइडेन के चीन के ख़िलाफ मज़बूती से खड़े होने की प्रतिबद्धता पर भी उठ सकते हैं
यूरोपियन यूनियन चीन को “सिस्टेमिक राइवल” (तंत्र के अंदर विरोधी) मानती है और चीनी निवेशकों द्वारा गलत मंशा से कंपनियों के अधिग्रहण के ख़िलाफ सुरक्षा के उपाय चाहते हैं. सिर्फ़ संबंध बहाली के एजेंडे पर अमल की कोशिश शायद ही पार्टनरशिप के अस्तित्व को फिर से बहाल करने की ज़रूरत को पूरा करेगी.
इस तरह हालांकि ट्रांस-एटलांटिक संबंध बाइडेन के लिए प्राथमिकता होंगे, लेकिन सिर्फ़ संबंध बहाली के एजेंडे पर आगे बढ़ना शायद ही साझेदारी के अस्तित्व के सवाल को हल कर पाएगा — बेहतर होगा कि तमाम मतभेदों और अमेरिका की विश्वसनीयता पर निरंतर खड़े होते सवाल का समाधान किया जाए.
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Kashish Parpiani is Senior Manager (Chairman’s Office), Reliance Industries Limited (RIL). He is a former Fellow, ORF, Mumbai. ...
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