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जब तक हम विदेशी कंपनियों के अनुकूल देश में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं करेंगे, तब तक हम बहुत अधिक निवेश की उम्मीद नहीं कर सकते हैं.
बड़े पर स्तर आत्मनिर्भरता की पहल को बढ़ावा देना आज की जरूरत है. कोरोना महामारी के कारण दुनियाभर में जैसी स्थितियां पैदा हो गयी हैं, उस लिहाज से आज अधिकतर देश बाहर से अधिक अंदर की तरफ झांक रहे हैं. अमेरिका, चीन और ब्रिटेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश आयात से ज्यादा देश में तैयार चीजों पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं. वर्तमान दौर में, चूंकि अन्य देश भी आयात को कम करने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में हम अपने देश में निर्यात को बहुत अधिक बढ़ा सकते हैं, ऐसा संभव नहीं है.
ऐसे में हमारे पास एक ही विकल्प बचता है कि आत्मनिर्भरता की पहल को बढ़ावा देने के लिए हमें आयात को कम करना होगा. भारत की अधिक जनसंख्या भी बाजार के नज़रिये से एक सकारात्मक पहलू है. देश के भीतर ही बड़ी संख्या में उपभोक्ता उपलब्ध हैं और हम चीजों को बेच कर अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं. यह आत्मनिर्भर भारत की ओर एक अच्छी कोशिश हो सकती है. इसके लिए हमें एक निश्चित समय सीमा में दूरदर्शी सोच के साथ सबसे पहले विनिर्माण के स्तर को बढ़ाना होगा.
देश में सामान की ख़पत के लिए लोगों के पास पैसा होना भी जरूरी है. अभी बहुत से लोगों के पास आय नहीं है क्योंकि उनके पास रोज़गार नहीं है. सरकार के पास भी इतने संसाधन नहीं हैं कि वह सभी को सालाना लाखों का पैकेज देकर रोज़गार उपलब्ध करा सके. इसलिए वर्तमान में हमें छोटे पैमाने पर रोज़गार पैदा करना होगा. अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में छोटे व मझोले उद्यमों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है. हालांकि, यह क्षेत्र भी सभी लोगों को गुणवत्तापूर्ण रोज़गार उपलब्ध नहीं करा सकता, लेकिन यह बेरोजगारी से बेहतर है.
सही मायने में यदि हम आयात कम करना चाहते हैं, तो हमें ऐसे क्षेत्रों को चुनना होगा, जिनमें हम अधिक आयात कर रहे हैं, जैसे कि मशीनरी. हमें इनके उत्पादन के लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगानी होंगी ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके.
इस दिशा में सरकार की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है कि वह लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कैसी योजनाएं लाती है. बड़े-बड़े उद्योगपतियों पर सरकार का नियंत्रण बहुत कम है, इसलिए सरकार उनसे रोज़गार सृजन की उम्मीद नहीं कर सकती. इसलिए लघु एवं मध्यम उद्योगों की ओर ही ध्यान देना पड़ेगा. कोरोना काल में बहुत से छोटे उद्योग बंद हो गये हैं. सरकार को इन्हें फिर से जीवंत करने के लिए उन तक पैसा पहुंचाना होगा.
बीते दिनों घोषित पैकेज में कुछ अच्छे उपाय घोषित हुए हैं, पर आगे ऐसी और पहलों की जरूरत होगी. आत्मनिर्भरता की पहल को बढ़ावा देने के लिए कहा जा रहा है कि हम बड़े स्तर पर निर्यात करेंगे और आयात को कम कर देंगे, परंतु वाकई में ऐसा संभव नहीं है. भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है, इसलिए ऐसा नहीं है कि भारत जब भी चाहे किसी भी देश से आयात और निर्यात को अपनी इच्छानुसार एकदम बंद कर सकता है.
सही मायने में यदि हम आयात कम करना चाहते हैं, तो हमें ऐसे क्षेत्रों को चुनना होगा, जिनमें हम अधिक आयात कर रहे हैं, जैसे कि मशीनरी. हमें इनके उत्पादन के लिए बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां लगानी होंगी ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके.
अभी यदि बाहर से कोई हमारे देश में फैक्ट्री लगाना चाहता है, तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे भी कुछ हद तक रोज़गार बढ़ेगा. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि विदेशी कंपनियां भारत में फैक्ट्री क्यों लगाना चाहेंगी? इसका अधिकतर उत्तर यही दिया जाता है कि भारत में श्रम लागत बहुत कम है.
आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अभी हमें अपने आंतरिक संसाधनों को ही मज़बूती प्रदान करनी होगी. हमें शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में व्यय करना होगा.
लेकिन दुनियाभर में देखा जा रहा है कि आने वाले पांच-दस सालों में श्रम लागत एक प्रमुख कारक नहीं रह जायेगा. इसका सबसे बड़ा कारण है ‘ऑटोमेशन’. श्रम के क्षेत्र में ‘ऑटोमेशन’ बढ़ जाने के बाद 100 लोगों का काम 5-10 लोग ही कर लेंगे. सस्ते श्रम के क्षेत्र में बांग्लादेश, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देश भी सस्ता श्रम उपलब्ध करा रहे हैं. इसलिए सस्ता श्रम भारत में विदेशी कंपनियों को बुलाने के लिए काफी नहीं होगा.
आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अभी हमें अपने आंतरिक संसाधनों को ही मज़बूती प्रदान करनी होगी. हमें शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में व्यय करना होगा. अभी हमारे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में हमारे पास जो पैसा आ रहा है, वह अधिकतर ऑनलाइन क्षेत्र में ही आया है, जैसे- गूगल, फेसबुक तथा अमेजन ने भारतीय बाजार में पैसा लगाने की घोषणा की है.
बाकी बीच-बीच में फैक्ट्रियां लगने की खबरें आती रहती है, परंतु इसके कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिले हैं. महामारी थमने के बाद ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि कुछ कंपनियां भारत में निवेश करेंगी. अभी हमें सबसे पहले अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना होगा. जब तक हम विदेशी कंपनियों के अनुकूल देश में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं करेंगे, तब तक हम बहुत अधिक निवेश की उम्मीद नहीं कर सकते हैं.
अभी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के दो फायदे हैं- पहला, आप विदेशी कंपनियों को एक ढांचा तैयार कर दे रहे हैं और दूसरा, कंपनियां आने से देश में रोज़गार बढ़ेगा और लोगों के पास पैसा पहुंचेगा. आय होने के बाद वे चीजें खरीदेंगे और इससे अर्थव्यवस्था में तेजी आयेगी. सरकार को इस दिशा में अपने वादों और दावों को अमल में लाने के लिए तुरंत पहलकदमी करने की जरूरत है क्योंकि महामारी की वजह से देश में और वैश्विक स्तर पर आर्थिकी और बाजार के स्वरूप में तेजी से बदलाव होंगे.
यह लेख मूल रूप से प्रभात खबर में प्रकाशित हो चुका है.
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Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...
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