Author : Candice Vianna

Published on Feb 04, 2020 Updated 0 Hours ago

गणतंत्र दिवस के मौक़े पर ब्राज़ील के राष्ट्रपति की भारत यात्रा से इन दो विशाल देशों के नेताओं को अपनी दोस्ती और मज़बूत करने का नया मौक़ा मिलेगा.

नए दशक में ब्राज़ील और भारत के संबंध

जब 2019 का साल शुरू हुआ था, तब ब्राज़ील के विदेश मंत्री अर्नेस्टो अराउहो ने प्रण लिया था कि ब्राज़ील अपने जैसे मिज़ाज वाले देशों के साथ संबंध मज़बूत बनाएगा. ख़ास तौर से उन देशों के नेताओं के साथ, जिन के विचार ब्राज़ील के राष्ट्रपति जाइर बोल्सोनारो की विचारधारा से मिलते हैं. मसलन, इज़राइल, इटली, हंगरी, पोलैंड और ख़ास तौर से अमेरिका.

ब्राज़ील के विदेश मंत्री के इस एलान के एक बरस बाद आज हालात कुछ ऐसे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संबंध बेहतर बनाने के बोल्सोनारों के प्रयासों में अपनी ओर से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. आज भी अमेरिका और ब्राज़ील के बीच संबंध बेहतर बनाने से जुड़े बड़े फ़ैसलों वाले वादे हक़ीक़त से दूर हैं. मसलन, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्राज़ील के बीफ़ के लिए अमेरिका के द्वार खोलने का वादा नहीं पूरा किया है. बल्कि. ट्रंप ने तो उल्टे धमकी दी है कि वो ब्राज़ील से स्टील के आयात पर टैक्स बढ़ा देंगे. इस दौरान, इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू. घरेलू राजनीति में उलझे हैं. उन के ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे हैं. और एक साल के भीतर होने जा रहे तीसरे चुनाव में नेतान्याहू के सामने अपनी कुर्सी बचाने की चुनौती है. उधर, इटली में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी लीग और इस के उग्रपंथी नेता मैटियो साल्विनी की गठबंधन सरकार को इटली की सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया है. सितंबर महीने में साल्विनी के ख़िलाफ़ परस्पर विरोधी विचार वाले दल एकजुट हुए और उन्हें हटा कर सत्ता पर क़ाबिज़ हो गए.

ख़ुद ब्राज़ील के राष्ट्रपति जाइर बोल्सोनारो पिछले एक बरस में कई तरह के विवादों में घिरे रहे हैं. अमेज़न के जंगलों में लगी आग की वजह से पूरी दुनिया में बोल्सोनारो की काफ़ी बदनामी हुई. इस मुद्दे पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों से उन की बहस तो निजी आरोप लगाने के मुक़ाबले में तब्दील हो गई थी. जिस में फ्रांस के राष्ट्रपति की पत्नी तक को नहीं बख़्शा गया. अब साल 2020 का आग़ाज़ हुआ है, तो ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो को नए दोस्तों और साझीदारों की सख़्त तलब है. ऐसे मुश्किल वक़्त में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जाइर बोल्सोनारो को गणतंत्र दिवस समारोह में आने का न्यौता देना, बिल्कुल सही वक़्त पर उठाया गया क़दम है.

ब्राज़ील के राष्ट्रपति के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण मौक़ा है. वो इस न्यौते के सम्मान को समझते हैं और इस मौक़े पर अपनी भारत यात्रा को दोनों देशों के बीच सब से बड़ी द्विपक्षीय यात्रा में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं. बोल्सोनारों के साथ भारत के दौरे पर 6 राज्य मंत्री और क़रीब 70 कारोबारी नेता भी दिल्ली आए हैं.

सामरिक साझेदारी पर दोबारा नज़र डालने की ज़रूरत

भारत और ब्राज़ील क़ुदरती तौर पर ताक़तवर देश हैं. भारत, आबादी के लिहाज़ से दुनिया का दूसरा सब से बड़ा देश है. तो ब्राज़ील आबादी में छठवां बड़ा देश है. इसी तरह, भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में पांचवें नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो ब्राज़ील इस मामले में नौवें नंबर पर है. इस के अलावा, भारत और ब्राज़ील अपने अपने इलाक़े के प्रमुख देश हैं. तो विश्व मंच पर भी दोनों देशों की काफ़ी अहमियत है. हालांकि, दोनों देश जितने विशाल हैं, उतनी ही विकराल उन के सामने खड़ी चुनौतियां भी हैं. दोनों ही देशों की क़रीब 20 फ़ीसद आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे रहने को मजबूर है. दोनों ही देशों को अपने यहां सब के लिए बराबर और इंसाफ़ पसंद समाज बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करना है.

भारत और ब्राज़ील अपने संबंधों को और मज़बूती देने को कटिबद्ध हैं. 2006 में दोनों देशों ने आपसी संबंधों का दर्ज़ा बढ़ा कर इसे सामरिक साझेदारी किया था. उस वक़्त दोनों देशों ने ये सोचा था कि चूंकि भारत और ब्राज़ील विकासशील देशों के बीच तेज़ी से तरक़्क़ी करने वालों में से हैं. तो, दोनों देश आपस में मिल कर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में सुधार की अगुवाई कर सकते हैं. ताकि, वो अब तक विश्व व्यवस्था में हाशिए पर पड़े रहने वाले रोल से निजात पा सकें. और, दुनिया के बड़े फ़ैसले लेने वाले मंचों पर अमीर देशों के साथ बराबरी से बैठ सकें. नई वैश्विक व्यवस्था का ये साझा विज़न ही भारत और ब्राज़ील के अन्य विकासशील देशों के साथ मिल कर नए संगठन बनाने की प्रेरणा बना था. दोनों ही देश ब्रिक्स (BRICS), आईबीएसए (IBSA)और G-4 जैसे मंचों में साझीदार बने.

प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत की विदेश नीति ज़्यादा सक्रिय और आक्रामक हो गई है. भारत की कोशिश है कि वो ख़ुद को विश्व स्तर पर बड़े खिलाड़ी के दौर पर स्थापित करे. और इस के लिए वो अपनी आर्थिक और सामरिक ताक़त के अलावा सॉफ्ट पावर का भी इस्तेमाल कर रहा है

लेकिन, उस के बाद से दुनिया बहुत बदल चुकी है. आज विश्व की व्यवस्था में बड़े पैमाने पर तब्दीली आ रही है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले भारत और जाइर बोल्सोनारो के नेतृत्व वाले ब्राज़ील ने विश्व व्यवस्था को लेकर अलग-अलग नज़रिया विकसित किया है. और, आज दोनों ही देश बदली हुई परिस्थियों और चुनौतियों के हिसाब से अपने अपने लिए अलग रणनीतियां बना रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत की विदेश नीति ज़्यादा सक्रिय और आक्रामक हो गई है. भारत की कोशिश है कि वो ख़ुद को विश्व स्तर पर बड़े खिलाड़ी के दौर पर स्थापित करे. और इस के लिए वो अपनी आर्थिक और सामरिक ताक़त के अलावा सॉफ्ट पावर का भी इस्तेमाल कर रहा है. वहीं, बोल्सोनारो ने अलग ही रास्ता आख़्तियार किया है.

ब्राज़ील की सत्ता में एक वर्ष गुज़ारने के बाद राष्ट्रपति बोल्सोनारो की अगुवाई में ब्राज़ील की विदेश नीति बिल्कुल बदल चुकी है. वो अमेरिका के साथ एकतरफ़ा नज़कीदियां बढ़ा रहे हैं. और उन के विदेश मंत्री ने ‘भूमंडलीकरण’ के ख़िलाफ़ वैचारिक जंग छेड़ रखी है. वो ब्राज़ील को बुनियादी तौर पर पश्चिमी सभ्यता के अभिन्न अंग के तौर पर देखते हैं. आज ब्राज़ील के विदेश मंत्री को इस बात की ज़्यादा फ़िक्र है कि उन का देश पश्चिम की असल पहचान रहे रूढ़िवाद और ईसाइयत  को फिर से ज़िंदा करें. उन का ध्यान दुनिया के मौजूदा भौगोलिक-सामरिक समीकरणों को और संतुलित बनाने पर क़तई नहीं है.

ब्राज़ील की विश्व दृष्टि में भारत का स्थान क्या है?

अब तक बोल्सोनारो की अगुवाई वाली ब्राज़ील की सरकार एशिया को लेकर कोई सुसंगत रणनीति बनाने में नाकाम रही है. भारत की तो बात ही छोड़ दीजिए. हालांकि हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं कि भारतीय उप महाद्वीप के संदर्भ में ब्राज़ील की कूटनीति विचारधारा से ज़्यादा व्यवहारिकता पर आधारित होगी.

आज ब्राज़ील को विश्व स्तर पर नए दोस्तों की ज़रूरत है. और साथ ही साथ उन्हें ब्राज़ील की सुस्त अर्थव्यवस्था को नई रफ़्तार देने के लिए व्यापार और निवेश को भी बढ़ावा देने की ज़रूरत है. ताकि वो, अपने उदारवादी समर्थकों के लिए कारोबार की संभावनाओं का दायरा बढ़ा सकें. घरेलू मोर्चे पर बोल्सोनारो को अपने काम के ठोस नतीजे दिखाने होंगे. क्योंकि सत्ता में आने के एक साल के भीतर ही बोल्सोनारो की लोकप्रियता का ग्राफ़ तेज़ी से गिरा है. उन की लोकप्रियता की रेटिंग घट कर 30 फ़ीसद रह गई है. इन बातों को ध्यान में रखने पर, भारत के प्रधानमंत्री के लिए बोल्सोनारो को प्रभावित करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा.

भारत ने 175 गीगावाट बिजली पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों से बनाने का लक्ष्य रखा है. ब्राज़ील, इस लक्ष्य को हासिल करने में भारत की मदद कर सकता है. क्योंकि उस के पास बायो फ्यूल को सफलतापूर्वक बनाने का अच्छा ख़ासा तजुर्बा है. ब्राज़ील में दुनिया का सब से आधुनिक एथेनॉल कार्यक्रम भी सफलता से चलाया जा रहा है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ब्राज़ील एक ताक़तवर सहयोगी हो सकता है. ख़ास तौर पर भारत को ख़ुद को विश्व नेता के तौर पर स्थापित करने के प्रयासों में ब्राज़ील की अच्छी मदद मिल सकती है. ब्राज़ील, लैटिन अमेरिका की सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है और इस क्षेत्र में भारत का सब से बड़ा व्यापारिक साझीदार भी है. ऐसे में भारत में निर्मित उत्पादों के लिए ब्राज़ील एक बहुत बड़ा बाज़ार है. साथ ही ब्राज़ील, भारत के लैटिन अमेरिका में अपना असर बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार का भी काम कर सकता है. भारत ने 175 गीगावाट बिजली पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों से बनाने का लक्ष्य रखा है. ब्राज़ील, इस लक्ष्य को हासिल करने में भारत की मदद कर सकता है. क्योंकि उस के पास बायो फ्यूल को सफलतापूर्वक बनाने का अच्छा ख़ासा तजुर्बा है. ब्राज़ील में दुनिया का सब से आधुनिक एथेनॉल कार्यक्रम भी सफलता से चलाया जा रहा है.

आज दोनों ही देशों के नेताओं को इस बात का ख़ास तौर से ध्यान रखने की ज़रूरत है कि वो एक दूसरे की घरेलू नीतियों की आलोचना करने से बचें. फिर वो भले ही ब्राज़ील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो के पर्यावरण की अनदेखी करने का मसला हो, या फिर जम्मू-कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियां हों. दोनों नेताओं के बीच ये कोई मसला नहीं होना चाहिए. शीशे के घरों में रहने वाले, दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते. घरेलू राजनीति में दोनों ही नेता राष्ट्रवादी, परंपरावादी और लोकलुभावन नीतियों पर अमल करते हैं. फिर चाहे वो बोल्सोनारो की रूढ़िवादी राजनीति हो या फिर मोदी की हिंदुत्व वाली सियासत.

आज भारत और ब्राज़ील के नेताओं की विश्व दृष्टि भले ही अलग-अलग हो. लेकिन, इन दोनों ही देशों के बहुत से साझा हित हैं. बोल्सोनारो के भारत दौरे से इन साझा हितों को नया आयाम मिलेगा. इस की मदद से दोनों देश अपनी सामरिक साझेदारी को फिर से ज़िंदा कर सकेंगे. ब्राज़ील के राष्ट्रपति के भारत दौरे के बाद दोनों ही देश अपनी अपनी कूटनीति में एक दूसरे को ऊंची पायदान पर रखेंगे. इस के अलावा दोनों देशों के नेताओं के बीच वैचारिक और काम करने के अंदाज़ में समानता की वजह से भारत और ब्राज़ील पक्की दोस्ती की नई राह पर चलने की शुरुआत कर सकते हैं.

तो, हम बोल्सोनारो के भारत दौरे से क्या उम्मीद कर सकते हैं?

ब्राज़ील के राष्ट्रपति के चार दिन के भारत दौरे में हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि दोनों देश किसी एक्शन प्लान पर रज़ामंद हो सकते हैं. जिस के तहत दोनों देश आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए कई ठोस नीतियों पर अमल करेंगे, ताकि दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी और मज़बूत हो सके. दोनों देशों के बीच क़रीब 20 समझौतों पर भी दस्तख़त होने की उम्मीद है. इस में भारत और ब्राज़ील के सरकारी संगठनों और निजी कंपनियों के बीच होने वाले समझौते शामिल हैं. ये समझौते तमाम क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए हो सकते हैं. जैसे कि बायो-एनर्जी, साइबर सिक्योरिटी, संस्कृति, दोहरे कराधान, निवेश, स्वास्थ्य, दवाओं, विज्ञान और तकनीक, तेल और गैस जैसे सेक्टर.

इन में से सब से अहम समझौता होगा निवेश में सहयोग और इस के लिए सुविधाओं का विस्तार करना. कुछ वर्षों पहले भारत ने क़रीब 50 ऐसे द्विपक्षीय निवेश के समझौतों से किनारा किया है. उस के बाद से ये पहली बार होगा जब भारत द्विपक्षीय निवेश के ऐसे किसी समझौते पर दस्तख़त करेगा. एक नए मॉडल पर आधारित इस समझौते में निवेशक और सरकार के बीच विवाद के निपटारे की बात शामिल नहीं होगी. आम तौर पर पूंजी का निर्यात करने वाले विकसित देशों और ब्राज़ील व भारत जैसे विकासशील देशों के बीच द्विपक्षीय निवेशों के ऐसे समझौतों में ये बिंदु भी शामिल होता है. ब्राज़ील और भारत दोनों ही ये मानते हैं कि द्विपक्षीय निवेश के समझौतों में ऐसे विवाद के निपटारे में सरकार की स्थिति कमज़ोर होती है. इसलिए, भारत और ब्राज़ील, द्विपक्षीय निवेश के इस नए समझौते का मॉडल विकसित कर रहे हैं. जिस में दोनों ही देशों के निवेशकों के साथ सरकार के विवाद का निपटारा आपसी बातचीत से किया जाएगा. न कि किसी तीसरे अंतरराष्ट्रीय पक्ष के पास जाकर इसे निपटाया जाएगा. भारत और ब्राज़ील के संबधों में ये बहुत बड़ी प्रगति का द्योतक है. ख़ास तौर से ये बात ध्यान में रखने लायक़ है कि ब्राज़ील में भारत का सीधा विदेशी निवेश क़रीब 6 अरब डॉलर का है. जब कि भारत में ब्राज़ील का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश केवल एक अरब डॉलर का है.

ब्राज़ील के राष्ट्रपति के भारत दौरे से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के नए द्वार खुलने की संभावनाएं हैं. लेकिन, बड़ी चुनौती ये होगी कि दोनों देश आपसी सहयोग की यही रफ़्तार और धार बनाए रखें. ताकि 14 साल पहले हुई सामरिक साझेदारी आख़िरकार व्यापक और ठोस सहयोग में तब्दील हो सके

बोल्सोनारो के भारत दौरे में ब्राज़ील और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक नज़दीकी बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जाएगा. इस के लिए एक दिन की बिज़नेस फ़ोरम की मीटिंग रखी गई है. जिस में दोनों ही देशों के निजी सेक्टर की कंपनियां शामिल होंगी. ताकि दोनों ही देशों के बीच आपसी कारोबारी सहयोग की नई संभावनाओं को बढ़ावा दिया जा सके. आज भारत और ब्राज़ील के बीच कुल कारोबार क़रीब 7.6 अरब डॉलर का है. लेकिन, दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं के आकार को देखते हुए ये काफ़ी कम है. और ख़ास तौर से 2014 के उच्च कारोबारी स्तर यानी 11 अरब डॉलर से भी नीचे है. साथ ही साथ, जहां भारत से ब्राज़ील का निर्यात काफ़ी विविधता भरा है. वहीं ब्राज़ील से भारत को होने वाला निर्यात मुख्य तौर पर तेल, सोया ऑयल और चीनी तक ही सीमित है. दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ाने और इस में विविधता लाना, दोनों देशों की मुख्य चुनौतियों में से एक होगा. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के साथ ही साथ रक्षा के सेक्टर में भी इस का दायरा बढ़ाया जा सकता है. ख़ास तौर से ब्राज़ील के रक्षा उद्योग को ध्यान में रखते हुए हमें ये भी देखना चाहिए कि आज भारत दुनिया में सैन्य साजो-सामान का सब से बड़ा आयातक देश है.

और आख़िर में, जैव ईंधन के क्षेत्र में ये बात ज़ोर दे कर कहने वाली है कि ब्राज़ील का गन्ने पर आधारित एथेनॉल उद्योग भारत के काफ़ी काम आ सकता है. दोनों देश इस दिशा में सहयोग बढ़ाएंगे, तो साथ मिल कर ब्राज़ील की ये शिकायत भी दूर कर सकते हैं कि भारत अपने गन्ना किसानों को सब्सिडी देता है. ब्राज़ील ने इस बात को विश्व व्यापार संगठन में भी उठाया था.

हालांकि, ब्राज़ील के राष्ट्रपति के भारत दौरे से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के नए द्वार खुलने की संभावनाएं हैं. लेकिन, बड़ी चुनौती ये होगी कि दोनों देश आपसी सहयोग की यही रफ़्तार और धार बनाए रखें. ताकि 14 साल पहले हुई सामरिक साझेदारी आख़िरकार व्यापक और ठोस सहयोग में तब्दील हो सके. एक्शन प्लान को लागू करना और निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के द्विपक्षीय समझौतों पर अमल करने से द्विपक्षीय संबंधों में आगे चल कर बेहतरी आ सकती है. अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या दोनों देशों में वो इच्छाशक्ति होगी या नहीं, जिस की मदद से इस नई दोस्ती के बारे में किए गए वादों को आगे चल कर पूरा किया जा सके.

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