Author : Samir Saran

Published on Mar 02, 2017 Updated 0 Hours ago

तीन वैश्विक नेताओं द्वारा रायसीना संवाद के दौरान दिए गए प्रमुख भाषणों ने भूमंडलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) पर उनके विचारों को स्पष्ट तरीके से दुनिया के सामने जाहिर किया।

रायसीना संवाद: भूमंडलीकरण, कट्टरपंथ व लोकलुभावनवाद पर चर्चा

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय एवं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित रायसीना संवाद(रायसीना डायलॉग) ने कई प्रकार से भौगोलिक राजनीतिक परिदृश्य में साल के ऐतिहासिक घटनाक्रमों की तस्वीर बयां कर दी। वर्ष 2017 के अभी 50 दिन भी नहीं गुजरे थे, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों की घटनाओं का आने वाले समय पर अमिट छाप पड़ना तय है। खासकर, रायसीना संवाद ने उदार अंतरराष्ट्रीयतावाद एवं उग्रवादी आंदोलनों, जिससे इसके समाप्त होने का खतरा पैदा हुआ, के बीच के संघर्ष को रेखांकित किया। तीन वैश्विक नेताओं द्वारा रायसीना संवाद के दौरान दिए गए प्रमुख भाषणों ने ग्लोबलाइजेशन पर उनके विचारों को स्पष्ट तरीके से दुनिया के सामने जाहिर किया। सबसे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘भूमंडलीकरण के फायदों’ पर मंडरा रहे खतरों के प्रति आगाह किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आर्थिक लाभ हासिल होना अब आसान नहीं रह गया है।” उन्होंने कारगर बहुपक्षवाद की बाधाओं का भी उद्धरण दिया। उनका संदेश प्रत्यक्ष और सरल था कि भूमंडलीकरण को नए उत्तराधिकारियों की आवश्यकता है जो 20वीं सदी की परियोजनाओं, व्यवस्थाओं एवं नियमों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें। निश्चित रूप से इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रों के एक ऐसे वर्ग के कंधों पर आ जाएगी जिन्हें हम अब ‘उभरती ताकतों’ के नाम से जानने लगे हैं।

भूमंडलीकरण को नए उत्तराधिकारियों की आवश्यकता है जो 20वीं सदी की परियोजनाओं, व्यवस्थाओं एवं नियमों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें। — नरेन्द्र मोदी

भूमंडलीकरण पर दूसरा दृष्टिकोण कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने प्रस्तुत किया जिन्होंने आज के अराजक समय में धर्म द्वारा निभाई जा रही भूमिका को रेखांकित किया। श्री हार्पर ने उस भूमिका पर गौर किया जो पोलैंड निवासी पोप जॉन पॉल द्वितीय ने पोलैंड में वामपंथ विरोधियों को सोवियत संघ के खिलाफ उनकी लड़ाई में “देश के बाहर एक कारगर नेतृत्व प्रदान करने में” निभाई। प्रधानमंत्री हार्पर एक धार्मिक नेता की क्षमता की ओर संकेत दे रहे थे जिनके पश्चिमी लोकाचार को मौन समर्थन ने आरोपित देशों के प्रति प्रतिरोध सुनिश्चित किया। इस संबंध में, धर्म इस्लामी राज्य के उदय से बहुत पहले अस्सी के दशक में विश्व राजनीति (सोवियत साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए) में लौट आया था। क्या आज धार्मिक भावनाओं द्वारा प्रेरित प्रवृतियां — चाहे आईएसआईएस जैसे आतंकवादी समूहों के उदय के द्वारा हो या — यूरोप में प्रवास के खिलाफ जवाबी आंदोलनों के द्वारा- देशों द्वारा प्रेरित भूमंडलीकरण परियोजना को शिकस्त दे सकती हैं?

क्या आज धार्मिक भावनाओं द्वारा प्रेरित प्रवृतियां देशों द्वारा प्रेरित भूमंडलीकरण परियोजना को शिकस्त दे सकती हैं?

और अंत में, ब्रिटेन के विदेश सचिव बोरिस जॉनसन ने ब्रेक्स्टि के पूर्ण बचाव को संतुलित करने के लिए ब्रिटेन के साथ वृहद आर्थिक सहयोग के लिए भूमंडलीकरण पर एक और विचार प्रस्तुत किया। ‘चयनात्मक’ या ‘अलग अलग’ भूमंडलीकरण, जिसकी सचिव जॉनसन ने रायसीना वार्ता के दौरान वकालत की, कई पश्चिमी देशों की अपने देश में ‘स्वदेशी प्रवृतियों’ को नरम बनाते हुए, अपने आर्थिक लाभ को संरक्षित करने की इच्छा को प्रतिबिंबित करता है।

हाल में संपन्न इस बैठक में दिए गए ये तीनों भाषण हमें आज के विश्व के बारे में क्या बताते हैं? पहली बात तो यह कि, वे स्वीकार करते हैं कि भूमंडलीकरण की एक खास धारा प्रवाहित हो चुकी है। यह 20वीं सदी में पश्चिमी नेतृत्व द्वारा प्रेरित भूमंडलीकरण था, जिसने दो विश्व युद्धों के बाद ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिए विचारों एवं संस्थानों को बढ़ावा दिया। उन संपर्कों को सृजित करने की तात्कालिकता एवं इच्छा अब ट्रान्स-अटलांटिक ब्रह्मांड में विद्यमान नहीं है, इसलिए आज के समय में चयनात्मक गैर-भूमंडलीकरण देखने में आ रहा है।

दूसरी बात यह कि नेताओं के भाषणों में इस बात को स्वीकृति मिलती है कि भूमंडलीकरण खुद अपनी सफलता का शिकार है। विशुद्ध हेगेलियन मत के अनुसार, यह —विचार अपने ‘वास्तविकीकरण’ के द्वारा नष्ट हो चुका है। भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्थाएं आज सूचना के मुक्त एवं तेज प्रवाह को बढ़ावा दे रही हैं, समुदायों, समाजों एवं लोगों को एक साथ ला रही हैं। ये जुड़े हुए नेटवर्क अब कोई एक समान नहीं रह गए हैं। वे विविध समूह हैं जिनमें अक्सर राजनीतिक, विरासत या बौद्धिक परंपराओं के पैमाने पर बहुत कम समानता होती है। इसके परिणामस्वरूप, वे बहुत जल्द अपने संबंधित मतभेदों को बहुत जल्द और सुस्पष्ट तरीके से भांपना शुरु कर देते है। इतना निश्चित है कि विश्व आज उतना ही धुव्रीकृत और विचारों में बंटा हुआ है जितना सूचना युग के पहले था। लेकिन ‘डिजिटल स्पेस’ ने दूरियां कम कर दी हैं और मतभेदों को गहरा बना दिया है।

‘डिजिटल स्पेस’ ने दूरियां कम कर दी हैं और मतभेदों को गहरा बना दिया है।

तीसरी बात, उनकी बातों से संकेत मिला कि भूमंडलीकरण को नए पथ प्रदर्शकों की तलाश है जो ताकत को प्रदर्शित करने में या स्थायित्व का उत्तरदायित्व लेने में सोवियत संघ या अमेरिका की तरह भले ही सक्षम न हों, लेकिन वे क्षेत्रीय रूप से अपनी मानदंड संबंधी जड़ों को जरूर संरक्षित करेंगे। ये पथ प्रदर्शक एशिया, अफ्रीका या लातिन अमेरिका से उभरेंगे। वे किसी एक भाषा से जुड़े नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक प्रणालियां मुक्त अभिव्यक्ति और व्यापार के प्रति एक समान प्रतिबद्धता जरूर साझा करेंगी। उनका उदय न तो सहज होगा और न ही, अपरिहार्य। भले ही आज अराजक शक्तियों को वैश्विक प्रणाली को अस्थिर बनाना आसान लगता है लेकिन इसके संरक्षक महसूस करेंगे कि जो अव्यवस्था वे अपने पीछे छोड गए हैं, उन्हें दुरुस्त करना कितना महंगा और मुश्किल है।

प्रधानमंत्री मोदी की रायसीना संवाद के दौरान विवेकपूर्ण टिप्पणी थी कि शीत युद्ध की जगह लेने वाली धूल अभी पूरी तरह बैठी नहीं है। संवाद के प्रमुख वक्ताओं में से एक रूस के सांसद व्याचेसलाव निकोनोव ने एक कदम आगे जाकर अपनी बात रखी कि, “हो सकता है कि हम विश्व में भले ही पहले स्थान की सैन्य ताकत न हों, लेकिन निश्चित रूप से हम (रूस) दूसरे स्थान पर भी नहीं हैं।” पश्चिमी शक्तियों का पारंपरिक नेतृत्व क्षेत्रीय नेतृत्व को रास्ता दे रहा है और यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि वे संरक्षकों के रूप में उभर कर सामने आएंगे या फिर ध्वंसकारियों के रूप में।

कुल मिला कर वार्ता के दौरान, श्री मोदी, श्री जॉनसन एवं श्री हार्पर के भाषणों से भूमंडलीकरण को मानकों के संदर्भ में वर्णित करने की उनकी इच्छा प्रतिबिंबित हुई। वाशिंगटन सर्वसहमति केवल मुक्त बाजारों से ही नहीं बल्कि निर्बाध अभिव्यक्ति और राजनीतिक असहमति से भी जुड़ी थी। उपरोक्त वर्णित सभी कारणों से ऐसे नियमों को बढ़ावा देने की गुंजाइश आज उल्लेखनीय रूप से कम हो गई है। चीन का उदय विचार आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए आज संभवतः सबसे बड़ी चुनौती पेश करता है। चीन ने अपनी बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को प्रायोजित करने के उद्वेश्य से क्षेत्रीय वित्तीय संरचनाओं की स्थापना के लिए व्यवहारगत ताकत और एकल महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाया है। इन पहलों में उन देशों के लिए किसी सम्मान की भावना नहीं दिखती जिन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था क्रम में सम्मानजनक समझा जाता रहा है।

वार्ता के दौरान, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भूमंडलीकरण परियोजना के सतत क्रियान्वयन के लिए इन नियमों के महत्व को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि, “केवल संबंधित देशों की संप्रभुता का सम्मान करके ही क्षेत्रीय संपर्क गलियारे संबंध अपने वायदों को पूरा कर पाएंगे और मतभेद तथा मनमुटाव से परहेज कर सकेंगे।”

तब यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वैश्विक उदार व्यवस्था का केवल एक ही वैध उत्तराधिकारी है और वह है भारत। केवल भारत ही उन आदर्शों के प्रति सच्चे रह कर, जो उन्हें प्रेरित करता है, क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक संपर्कों के विस्तार को आगे बढ़ा सकता है। रायसीना वार्ता अपने आप में एक उदाहरण था कि किस प्रकार दुनिया भर के अंतर्विरोधी विचारों एवं आवाजों को एक साथ लाकर भारत में एक वैश्विक मंच का विकास किया जा सकता है। इस प्रक्रिया का प्रबंध संचालक होने के नाते प्रधानमंत्री ने ऋग्वेद को उद्धृत करते हुए आह्वान किया, “महान विचारों को सभी दिशाओ से आने दो।” भूमंडलीकरण परियोजना का भविष्य घनिष्ठतापूर्वक भारत के आधुनिकीकरण और उदय से जुड़ा है। विचारों के बगैर कोई प्रगति नहीं हो सकती और इसके विपरीत, समृद्धि के बिना कोई भी नवपरिवर्तन नहीं हो सकता। दुनिया भर ने भारत पर दांव लगा रखा है और यही शायद आखिरी दांव भी है। क्योंकि आज के उथल पुथल भरे वक्त में भारत ही इन दोनों लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।

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