Author : Siddhant Kishore

Published on Aug 10, 2023 Updated 0 Hours ago

अफ़ग़ानिस्तान को लेकर पाकिस्तान का रणनीतिक आकलन उल्टा पड़ गया है. इसने उसे दक्षिण एशियाई भूराजनीति की जटिलताओं में उलझा दिया है.

तालिबान की पसंद – एक अस्थिर पाकिस्तान; कैसे उल्टा पड़ गया पाकिस्तान का अफ़ग़ानिस्तान दाँव?
तालिबान की पसंद – एक अस्थिर पाकिस्तान; कैसे उल्टा पड़ गया पाकिस्तान का अफ़ग़ानिस्तान दाँव?

कभी क़रीबी सहयोगी रहे अफ़ग़ान तालिबान और पाकिस्तानी राज्य के रिश्ते अभी बिल्कुल तली में पहुंच चुके हैं. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी क़ब्ज़े का पाकिस्तान में खूब जश्न मना, पर हाल में जो घटनाएं हुई हैं वो बताती हैं कि उनके रिश्ते के समीकरण बदल चुके हैं. काबुल के पतन के बाद से, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) – एक आतंकी संगठन जिसकी जड़ें अफ़ग़ान तालिबान में हैं – द्वारा पाकिस्तान सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर हमले बढ़ गये हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अफ़ग़ान राजधानी पर तालिबान के क़ब्ज़े ने टीटीपी जैसे अन्य आतंकी गुटों को पूरी डूरंड लाइन पर अपनी स्थिति दोबारा मज़बूत करने का मौक़ा दिया है. लगभग 2700 किलोमीटर लंबी डूरंड लाइन का मुद्दा इस पूरे क्षेत्र में पश्तून राष्ट्रवादियों के बीच विवाद की जड़ रहा है. इसके अलावा, इस्लामिक स्टेट की अफ़ग़ान शाखा, इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएसकेपी) से एक नये ख़तरे का आकलन भी पाकिस्तान करता है, जिसने अब इस क्षेत्र में असैनिक (सिविलियन) आबादी को निशाना बनाकर अपनी गतिविधियां तेज़ कर दी हैं. पाकिस्तान अतीत के अपने रणनीतिक चुनावों के साथ अब ख़ुद को एक दुविधा में पाता है.

कभी क़रीबी सहयोगी रहे अफ़ग़ान तालिबान और पाकिस्तानी राज्य के रिश्ते अभी बिल्कुल तली में पहुंच चुके हैं. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी क़ब्ज़े का पाकिस्तान में खूब जश्न मना, पर हाल में जो घटनाएं हुई हैं वो बताती हैं कि उनके रिश्ते के समीकरण बदल चुके हैं.

पाकिस्तान के घर तक पहुंचा आतंक

पाकिस्तान पिछले कई महीनों से तालिबान पर लगातार दबाव डाल रहा है कि वह अफ़ग़ानी ज़मीन से काम कर रहे टीटीपी के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करे. बिल्कुल अभूतपूर्व ढंग से, पाकिस्तान ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमला किया जिसमें औरतों व बच्चों समेत 47 ज़िंदगियां चली गयीं. पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक़, ये हमले टीटीपी से बढ़ते ख़तरे और उससे निपटने में तालिबान की अक्षमता की प्रतिक्रिया में थे. यह तालिबान के लिए भारी झटके और हैरत के रूप में सामने आया. उसने इस्लामाबाद के राजदूत को तलब किया और मामले को तूल देते हुए संयुक्त राष्ट्र के सामने उठाया. पाकिस्तान से इस तरह की प्रतिक्रिया, क्षेत्र के उसके सबसे भरोसेमंद सहयोगी तालिबान से पेश आने के उसके ढंग में बड़े बदलाव को रेखांकित करती है. दूसरी तरफ़, अफ़ग़ान तालिबान की तर्ज़ पर पाकिस्तान पर क़ब्ज़ा करने का लक्ष्य रखने वाले टीटीपी ने इन हवाई हमलों की निंदा की और अपने कैडरों को पाकिस्तान के भीतर सैन्य हमले बढ़ाने के लिए एकजुट किया. ‘ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़्ब’ के बाद से पाकिस्तान में टीटीपी की समस्या लगभग नियंत्रित थी. इस ऑपरेशन ने आतंकी संगठन की कमर तोड़ दी थी और उसे अफ़ग़ानिस्तान में काफ़ी अंदर धकेल दिया था. लेकिन यह समीकरण अब बदला हुआ दिखता है. टीटीपी पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठानों पर बड़े-स्तर के समन्वित हमलों को अंजाम देने की स्थिति में है. टीटीपी कैडर वज़ीरिस्तान के क़बीलाई इलाक़ों में गहरे तक घुसे हुए हैं, जबकि नेतृत्व इस क्षेत्र में अभयदान के साथ कमान संभालता दिखता है.

टीटीपी, जो अफ़ग़ान तालिबान के साथ वैचारिक और मौलिक रूप से जुड़ा हुआ है, पूरे क़बीलाई क्षेत्र में जन भावनाओं को अपने साथ करने के लिए डूरंड लाइन के मुद्दे का एक राजनीतिक औज़ार के बतौर इस्तेमाल करता है, जिससे बड़ी संख्या में उसके कैडरों को फ़ायदा पहुंचता है.

समस्या को बढ़ाने वाला एक और कारक डूरंड लाइन मुद्दा है. बहुत सालों तक पश्तून राष्ट्रवादियों ने लाइन के दोनों तरफ़ लोगों की मुक्त आवाजाही की पैरवी की है और 2700 किलोमीटर लंबी सीमा को मज़बूती से ख़ारिज किया है. टीटीपी, जो अफ़ग़ान तालिबान के साथ वैचारिक और मौलिक रूप से जुड़ा हुआ है, पूरे क़बीलाई क्षेत्र में जन भावनाओं को अपने साथ करने के लिए डूरंड लाइन के मुद्दे का एक राजनीतिक औज़ार के बतौर इस्तेमाल करता है, जिससे बड़ी संख्या में उसके कैडरों को फ़ायदा पहुंचता है. फ़िलहाल पाकिस्तान एक बड़ी सुरक्षा चुनौती का सामना कर रहा है, क्योंकि इन क्षेत्रों में विभिन्न आतंकी प्रशिक्षण शिविर और लांचिंग पैड मौजूद हैं, जो पाकिस्तान की सरज़मीनी संप्रभुता के लिए सीधा ख़तरा पेश कर रहे हैं. इस स्थिति ने पाकिस्तान को टीटीपी के ठिकानों पर जवाबी-हमला बढ़ाने के लिए उकसाया है. दक्षिण और उत्तर वज़ीरिस्तान में रात्रिकालीन धावे बढ़े हैं. नेतृत्व को निशाना बनाकर अभियान चलाते हुए, पाकिस्तान का लक्ष्य क्षेत्र में यथास्थिति बहाल करना है.

रणनीतिक जीत का गलत आकलन

काबुल के पतन के बाद, रावलपिंडी जनरल हेडक्वॉर्टर (पाकिस्तानी सेना मुख्यालय) को पूर्व आईएसआई प्रमुख के नेतृत्व में एक शीर्ष-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल काबुल भेजने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं हुई. इसका मक़सद क्षेत्र में भारत जैसे अन्य भूमिकाधारकों को यह साफ़ संदेश भेजना भी था कि काबुल का रास्ता इस्लामाबाद से होकर जाता है. दो दशक लंबे संघर्ष के बाद अगस्त 2021 में जो हुआ, उसका जश्न पाकिस्तान ने अपनी रणनीतिक जीत की तरह मनाया. हालांकि, इस्लामाबाद-रावलपिंडी का गठजोड़ इसके बाद के परिदृश्यों को सोच पाने में विफल रहा. इस्लामाबाद की अफ़ग़ान नीति में मौजूद ये ख़ामियां अब सीमा पर चल रही झड़पों के रूप में नजर आयीं. इसके अलावा, तालिबान के काबुल पर क़ब्ज़े ने कई अन्य आतंकी संगठनों को पुन: संगठित होने और नये कलेवर के साथ पूरे पैमाने पर हमलों को अंजाम देने का हौसला दिया है. तालिबान ने अलक़ायदा से नाता तोड़ने का जो भरोसा दिया है, वह अब भी सवालों के घेरे में है. और, क़बीलाई इलाक़ों में अशासित जगहें अनगिनत आतंकी पनाहगाहों के लिए ज़िम्मेदार हैं. इन आतंकी संगठनों ने आवाजाही संबंधी चुनौतियां कम होने से अभियान में अधिकतम आसानी हासिल की है.

काबुल के लिए हैंडबुक तैयार करते समय, पाकिस्तान इस पहलू पर ग़ौर करने में विफल रहा कि कैसे उसके अपने रणनीतिक चुनाव लंबे समय में उलटे पड़ सकते हैं. बाज़ी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जा रही है.

इस क्षेत्र में एक नये खिलाड़ी आईएसकेपी, जिसकी जड़ें उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में हैं, ने भी पाकिस्तान पर हमला करना जारी रखा है. पाकिस्तान की असैनिक आबादी, ख़ासकर नस्ली और मजहबी अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले अब तक के सर्वोच्च स्तर पर हैं. काबुल के लिए हैंडबुक तैयार करते समय, पाकिस्तान इस पहलू पर ग़ौर करने में विफल रहा कि कैसे उसके अपने रणनीतिक चुनाव लंबे समय में उलटे पड़ सकते हैं. बाज़ी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जा रही है. पश्चिम का सैन्य कवच कब का हट चुका है, और पाकिस्तान ख़ुद को पूरे दक्षिण एशिया के सबसे बड़े खेल की भूराजनीति की जटिलताओं में अलग-थलग और फंसा हुआ पा रहा है. 

भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव

ख़ोश्त और कुनार में हवाई हमलों ने पूरे डूरंड लाइन क्षेत्र में बहुत ज़रूरी जन भावना को आकर्षित किया है. पाकिस्तानी अधिकारियों ने हमलों से हुए नुक़सान को न स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है. पाकिस्तान इस क़वायद के ज़रिये तालिबान को संदेश भेजना चाहता है कि काबुल को अब भी रावलपिंडी नियंत्रित करता है. तालिबान, जो अब पाकिस्तान की बेड़ियों से आज़ाद होना चाहता है, पाकिस्तान को अपने भीतर ही व्यस्त रखने के लिए हर संभव दांव आज़माने की कोशिश करेगा और इस मक़सद को पूरा करने के लिए टीटीपी सबसे बढ़िया ज़रिया है. एक अस्थिर पाकिस्तान में तालिबान का सर्वश्रेष्ठ हित है, क्योंकि यह उन्हें इस्लामाबाद की नज़रों से दूर रखेगा और शासन करने वाली ‘शूराओं’ को नेतृत्वकारी पहलक़दमियां लेने देगा.

ये घटनाक्रम एक ऐसे वक़्त में सामने आये हैं जब अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक संकट और मानवीय विपदा से गुज़रते हुए लगभग नौ महीने हो चुके हैं. पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है. हितधारकों के बीच लगातार टकरावों और असहमति के कारण व्यापार मार्ग एवं सप्लाई चेन प्रबंधन बाधित है. इस्लामाबाद, जो हालिया राजनीतिक संकट से अब भी उबर ही रहा है, तालिबान से दृढ़तापूर्वक दोबारा कहना चाहता है कि उन्हें पाकिस्तान की घटनाओं से अति उत्साह में नहीं आना चाहिए या फ़ैसलों में पूर्ण स्वायत्तता इख़्तियार नहीं करनी चाहिए. पश्चिम के परिदृश्य से बाहर होने के मद्देनज़र, पाकिस्तान को इस संघर्ष में बढ़त दिखायी देती है, भले ही उसे अपनी ज़मीन पर जोख़िम का सामना करना पड़ रहा हो.

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