Published on Jan 04, 2021 Updated 0 Hours ago

राजनीतिक अस्थिरता, नागरिक प्रशासन और सीपीईसी से जुड़ी परियोजनाओं में भी सुरक्षा एजेंसियों और फौज के बढ़ते दखल ने चीन को सीपीईसी के परिणामों के बारे में फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है.

पाकिस्तान – चीन ने सीपीईसी परियोजनाओं पर अचानक से विराम क्यों लगाया?

चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत आने वाली सबसे महत्वपूर्ण परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के रास्ते में पाकिस्तान में कई संकट देखने को मिल रहे हैं. इस परियोजना के अंतर्गत कार्यसूची के कुछ अहम बिंदुओं पर मतभेदों के कारण सीपीईसी की साझा समन्वय समिति (जेसीसी) की 10वीं अहम बैठक अप्रत्याशित रूप से टल गई. इसके चलते चीन ने सीपीईसी से जुड़े कुछ कामों को ठंडे बस्ते में डाल दिया.

सीपीईसी से जुड़ी परियोजनाओं पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था यही जेसीसी है. पाकिस्तान के योजना और विकास मंत्री और चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) के चेयरमैन इस समिति के सह-अध्यक्ष हैं. माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच औद्योगिक सहयोग को लेकर भविष्य की योजनाओं और सीपीईसी के तहत औद्योगिक पार्कों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) की स्थापना से जुड़े मुद्दों पर असहमति के चलते ये बैठक स्थगित करनी पड़ी.

सीपीईसी औद्योगिक सहयोग के परियोजना निदेशक आसिम अयूब के मुताबिक इस्लामाबाद स्थित बोर्ड ऑफ इनवेस्टमेंट (बीओआई) ने अप्रैल 2020 में ही प्रस्तावित औद्योगिक सहयोग का मसौदा पत्र भेज दिया था. मगर चीन की ओर से इस मसौदे पर कोई खास उत्साह नहीं दिखाया गया. चीनी अधिकारियों ने कार्यसूची में शामिल कुछ बातों को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालने की मांग करते हुए जेसीसी की बैठक में अड़ंगा डाल दिया. बहुप्रचारित सीपीईसी के काम में शुराआती चार सालों में तेज़ प्रगति देखने को मिली थी. लेकिन 2018 के बाद से जारी राजनीतिक उथल-पुथल, बलूचिस्तान और दूसरे इलाकों मे बढ़ती विद्रोही गतिविधियों, पाकिस्तान में व्याप्त भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी जैसी वजहों के चलते सीपीईसी से जुड़ी लगभग सभी परियोजनाओं की रफ्त़ार सुस्त पड़ गई.

राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार

बीजिंग सीपीईसी के ज़रिए पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे और ऊर्जा परियोजनाओं में करीब 62 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करना चाहता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का हमेशा से ये विचार रहा है कि इन निवेशों से पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक मज़बूती लाने में मदद मिलेगी और चीन को अपने घरेलू ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी.

चीनी अधिकारियों के मुताबिक, 2030 तक सीपीईसी से पाकिस्तान में करीब 23 लाख नौकरियां पैदा होने की संभावना है. इतना ही नहीं इस गलियारे से चीन को पश्चिमी एशिया से ईंधन के आयात और चीन से होने वाले निर्यातों के लिए एक वैकल्पिक रास्ता भी मिलेगा. ये गलियारा चीन के पश्चिमी प्रांतों को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से मिलाकर  महत्वपूर्ण सामुद्रिक मार्गों से जोड़ेगा. लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, नागरिक प्रशासन और यहां तक कि सीपीईसी से जुड़ी परियोजनाओं में भी सुरक्षा एजेंसियों और फौज के बढ़ते दखल ने चीन को सीपीईसी के परिणामों के बारे में फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है.

पिछले सात सालों में पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने सीपीईसी के मुद्दे को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुने जाने से पहले इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीके इंसाफ सीपीईसी की कटु आलोचक रही थी. आज पाकिस्तान में प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने सीपीईसी के मुद्दे को लपक लिया है और ये सारी पार्टियां मिलकर इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करने लगी हैं. इन विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के खिलाफ़ पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के नाम से एक साझा गठजोड़ बनाया है.

2018 में विश्व बैंक ने बीआरआई परियोजना में शामिल देशों को कर्ज़ की बढ़ती मुश्किलों, बुनियादी ढांचे के काम में बाधा, सामाजिक संकटों और भ्रष्टाचार के खतरों के बारे में आगाह किया था. सीपीईसी के बारे में विश्व बैंक द्वारा दी गई ये चेतावनियां मानो सच साबित हो गई हैं. ये परियोजना हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता और पाकिस्तान की सर्वशक्तिमान सेना के बढ़ते हस्तक्षेप का शिकार हो गई हैं. खासतौर से चुनावी गड़बड़ियों के आरोपों और विवादित तरीके से इमरान खान के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से ये दखलंदाज़ी और बढ़ गई है.

इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी सरकार वहां की फौज की हाथों की कठपुतली बनकर रह गई है. ये भी एक अजीब विडंबना ही है कि इमरान सरकार ने सीपीईसी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने तक से इनकार कर दिया है जबकि  उनकी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में प्रमुखता से ऐसी जांच कराए जाने की बात कही गई थी. पाकिस्तानी फौज के कई मौजूदा और रिटायर्ड अफसरों को सीपीईसी से जुड़ी परियोजनाओं में कई अहम पदों पर नियुक्त किया गया और उनपर परियोजना कोष में जमकर धांधली करने और अकूत दौलत जमा करने के आरोप लगते रहे हैं.

सीपीईसी प्राधिकरण के चेयरमैन और सेना के पूर्व अधिकारी ले. जन. आसिम सलीम बाजवा को प्रधानमंत्री की मीडिया मैनेजमेंट टीम की अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी भी दी गई. अगस्त 2020 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो आसिम बाजवा ने सीपीईसी प्राधिकरण के प्रमुख रहते भारी दौलत जमा की और अपनी पत्नी और भाई के साथ मिलकर विदेशों में बेहिसाब जायदाद इकट्ठा कर ली.

भारी विरोध के बावजूद बाजवा ने सीपीईसी प्राधिकरण के चेयरमैन का पद छोड़ने से इनकार कर दिया. हां, उन्होंने इमरान की मीडिया मैनेजमेंट टीम से ज़रूर इस्तीफा दे दिया. चीनी अधिकारियों का आकलन है कि सीपीईसी में किए जाने वाले कुल निवेश का करीब 80 फीसदी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है और संसाधनों की इस तरह की बर्बादी को रोक पाना बेहद मुश्किल है. और तो और चीन से निवेश के तौर पर भारी-भरकम रकम आने के बाद से निजी और सरकारी क्षेत्र की साझीदारी वाले क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया है. साथ ही निजीकरण के प्रयासों को खराब शासनव्यवस्था और सैनिक और असैनिक सत्ता प्रतिष्ठानों की आपसी खींचतान ने बुरी तरह से प्रभावित किया है. समय-समय पर चीन ने पाकिस्तान में फैले भ्रष्टाचार का फायदा उठाते हुए सामाजिक-आर्थिक मोर्चों पर पाकिस्तान और दूसरे सदस्य देशों की कमज़ोरियों का अपने हितों के लिए इस्तमाल किया है.

बढ़ती विद्रोही गतिविधियां

बढ़ते भ्रष्टाचार, नौकरियों को लेकर किए गए वादे पूरे न होने, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और चीन के बढ़ते प्रभाव- ये कुछ ऐसी वजहें हैं जिन्होंने बलूचिस्तान में सरकार-विरोधी विद्रोह को हवा दी है. यहां के लोग आर्थिक रूप से हाशिए पर आ गए हैं. बलूचिस्तान में सरकार के खिलाफ़ पनपे विद्रोह और उग्रवाद को कुचलने के लिए पाकिस्तान ने उन्हीं हथकंडो का सहारा लिया है जिनका इस्तेमाल चीन अपने शिनजियांग प्रांत में वीगर अल्पसंख्यकों के खिलाफ करता रहा है.

बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) ने चीन पर शोषण और अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाते हुए बलूचियों के लिए आज़ादी की अपनी मांग और तेज़ कर दी है. बीएलए ने चीन पर पाकिस्तान के साथ ‘अपराध में भागीदारी’ का आरोप लगाया है. पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में सुरक्षा व्यवस्था के बिगड़ते हाल से अपना पल्ला झाड़ लिया है और उल्टे नई दिल्ली पर पाकिस्तान में अस्थिरता फैलाने की साज़िश रचने और चीन के साथ आर्थिक भागीदारी बढ़ाने की उसकी कोशिशों में पलीता लगाने का आरोप लगाया है.

पाकिस्तानी फौज की रिपोर्ट के मुताबिक सीपीईसी के तहत चल रही चीनी विकास परियोजनाएं भारतीय एजेंसियों के निशाने पर हैं. यह भी कहा गया है कि भारतीय एजेंसियों ने इन परियोजनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए करीब 700 लोगों को ‘प्रायोजित’ किया है. पाकिस्तानी फौज के इन दावों के मद्देनज़र चीन अपने निवेश को लेकर और भी ज़्यादा चौकन्ना हो गया है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि- “ये मामला भविष्य में क्या करवट लेता है, इस पर बीजिंग की कड़ी नज़र रहेगी”.

इन तमाम वजहों ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को सीपीईसी से जुड़ी कुछ परियोजनाओं पर विराम लगाने को मजबूर कर दिया है. मिसाल के तौर पर एमएल-1 योजना को ले सकते हैं. 6 अगस्त 2020 को इमरान सरकार ने रेलवे सिस्टम को आधुनिक बनाकर ट्रेनों की गति को दोगुना करने के मकसद से 6.8 अरब अमेरिकी डॉलर वाली मेनलाइन-1 (एमएल-1) से जुड़ी योजना को मंज़ूरी दे दी. एमएल-1 परियोजना सीपीईसी की सबसे खर्चीली परियोजना है और इसमें खर्च होने वाली 90 फीसदी रकम चीनी मदद से जुटाई जानी है.

हालांकि चीन अभी एमएल-1 समझौते पर कामकाज को आगे नहीं बढ़ाना चाहता. कमोबेश यही हाल औद्योगिक सहयोग को लेकर भी है. पाकिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हुए चीन इस दिशा में आगे बढ़ने को लेकर सशंकित है. पाकिस्तान की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों और कोविड-19 से उपजे बदतर आर्थिक हालातों के चलते चीन और पाकिस्तान के बीच की मित्रता के रास्ते में आने वाले महीनों में और भी रोड़े आने तय हैं.


 यह लेख मूल रूप से ओआरएफ़ साउथ एशिया वीकली में प्रकाशित हो चुका है.

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