Published on Mar 17, 2018 Updated 0 Hours ago

आतंकवादी हमले की स्थिति में भारत का जवाब क्या होना चाहिए इस पर लगता है की कम ही चर्चा हुई है, जबकि इसमें कोई शक नहीं था की ऐसे आतंकी हमले ज़रूर होंगे।

पकिस्तान को नहीं डरा पा रहा है इंडिया
स्रोत: प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया

नियंत्रण रेखा पर लगभग हर दिन सीमा के आरपार होने वाली गोलीबारी और कश्मीर में बार बार होने वाले आतंकवादी हमले इस बात का साफ़ संकेत हैं की पाकिस्तान पर भारत का कोई खौफ नहीं है। पाकिस्तान को रोकने के लिए भारत की निवारण नीति फेल हो गयी है। इसके कारण ढूँढना बहुत मुश्किल नहीं। नयी दिल्ली को तनाव हद से ज्यादा बढ़ जाने का डर है और भारत का ये डर पाकिस्तान अब इतनी अच्छी तरह जानता है की भारत की धमकियों से उसे डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं। तनाव न बढाने के डर से अक्सर क्रॉस बॉर्डर गोलीबारी का ही सहारा लेना पड़ता है। सीमा के आरपार गोलीबारी से पाकिस्तान को अब कोइ डर नहीं। इसके अलावा ऐसा लगता नहीं की भारत की रणनीति में कोई दिशा है, और ऐसी कोई वजह नहीं जिस से ये लगे की आने वाले दिनों में भारत की निवारण नीति में कोई बदलाव होगा।

२०१६ में भारत ने नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक की और इसकी पब्लिसिटी की तो कुछ उम्मीद बंधी थी की भारतीय नेतृत्व को आख़िरकार सख्त कार्यवाई से परहेज़ नहीं। लेकिन आज लगता है की सर्जिकल स्ट्राइक सिर्फ एक ही बार का दिखावा था जिसका कोई मतलब नहीं। नई दिल्ली को अभी भी तनाव बढ़ने से डर है। जब तक भारत पाकिस्तान को डरा नहीं पायेगा, उसके लिए पाकिस्तान को आतंक का समर्थन करने से रोक पाना मुश्किल होगा।


नई दिल्ली को अभी भी तनाव बढ़ने से डर है। जब तक भारत पाकिस्तान को डरा नहीं पायेगा, उसके लिए पाकिस्तान को आतंक का समर्थन करने से रोक पाना मुश्किल होगा।


सर्जिकल स्ट्राइक में कुछ नया नही था, भारतीय सेना ने ऐसे ऑपरेशन पहले भी किये हैं। ऐसी रिपोर्ट्स हैं की २०१६ में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक पहले के ऑपरेशन से ज्यादा बड़ी थी लेकिन इसका असल महत्त्व ये था की भारत सरकार ने इस बार इसका ऐलान किया। भारत ने इसके पहले किये गए सर्जिकल स्ट्राइक को तनाव या दर्जा ए हरारत न बढ़ने के डर से सार्वजनिक नहीं किया था। इसका तर्क ये दिया गया की अगर दुनिया के सामने पाकिस्तान का अपमान न किया जाए तो शायद वो पलटवार से परहेज़ करेगा। भारतीय नेताओं का ये आंकलन था की इस तरह के हमलों से पाकिस्तान को सन्देश मिलेगा लेकिन साथ ही दोनों मुल्कों के बीच स्थिति ज्यादा बिगड़ेगी भी नहीं। लेकिन इसी आंकलन का भारत को नुकसान उठाना पड़ा। पाकिस्तान ने ये हमले बर्दाश्त कर लिए, उसकी सेना को इसका अंदाजा था। इसलिए इन हमलों के बावजूद पाकिस्तान ने सीमा पार से कश्मीर में हमले जारी रखे।

क्या भारत की तरफ से पाकिस्तान के चुने हुए ठिकानो पर हमला करना यानी सर्जिकल स्ट्राइक भारत की नयी रणनीति दिखता है या ये सिर्फ एक ऐसा अपवाद था जिसे पाकिस्तान नज़रंदाज़ कर सकता है। बिलकुल ऐसा ही हुआ ,पाकिस्तान इस से बिलकुल नहीं घबराया। बल्कि इस से इनकार करता रहा की भारत ने उस पर हमला किया। हमले की जानकारी सार्वजनिक करना इस बात का संकेत तो लगा की भारत ने अब रिश्ते और बिगड़ जाने से डरना बंद कर दिया है, लेकिन एक बार किया ये हमला इस इशारे के लिए काफी नहीं था। इस के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए हर बार पलटवार करने की। ये साफ़ था की पाकितान भारत की इस नयी इच्छाशक्ति का जल्द इम्तेहान लेगा। और पाकिस्तान ने ऐसा ही किया, सीमा के आर पार गोलीबारी और पहले से ज्यादा आतंकी हमले। भारत इस का सख्त जवाब देंने में नाकाम रहा और पाकिस्तान ये समझ गया की भारत की रणनीती में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

भारत ने न सिर्फ सख्त जवाब नहीं दिया बल्कि इस बार का जवाब पहले से कहीं ज्यादा नर्म था, सिर्फ सीमा के आरपार गोलीबारी। पाकिस्तान को रोकने के लिए ये नीति बेतुकी थी। पाकिस्तान को आतंकवाद से रोकने के लिए ये ज़रूरी है की उसे भारत की तरफ से सख्त कार्यवाई का डर हो। कोई सख्त सजा का डर हो. ये डर सीमा के आरपार गोलीबारी से तो नहीं पैदा किया जा सकता। इसके दो कारण है। पहला इस गोलीबारी से होने वाला नुक्सान बहुत सीमित होता है. कुछ बंकर उड़ा देना या कुछ सैनिक और नागरिकों को मार देना कोई ऐसी सजा नहीं जिसके लिए पाकिस्तानी सेना तैयार नहीं।

दुसरे सरहद के आरपार हो रही गोलीबारी का जवाब पाकिस्तान भी भारतीय सेना और नागरिकों को नुकसान पहुंचा कर आसानी से दे सकता है। इस लिए इसका डर दिखाना बेवकूफी है। हाल ही में भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा की सैनिकों को एक पाकिस्तानी गोली का जवाब अनगिनत गोलियों से देने को कहा गया है। क्या इस बयां से हम ये मन कर चलें की अब तक भारतीय सेना सीमा पर हो रही गोलीबारी का जवाब नहीं दे रही थी। दरअसल हमें पता है की ये सच नहीं। दूसरी बात ये की पाकिस्तान भी हर गोली का जवाब अनगिनत गोलियों से दे सकता है। जवाबी कार्यवाई या मुनासिब सजा क्या हो ये इस बात से तय होना चाहिए की दोनों देश एक दुसरे पर क्या सजा थोप सकते हैं। पाकिस्तान की पलटवार की क्षमता से साफ़ है की भारत के लिए ये नीति कारगर नहीं होगी।


दुसरे सरहद के आरपार हो रही गोलीबारी का जवाब पाकिस्तान भी भारतीय सेना और नागरिकों को नुकसान पहुंचा कर आसानी से दे सकता है। इस लिए इसका डर दिखाना बेवकूफी है।


जो लोग इस रणनीति के पक्षधर हैं वो कह रहे हैं की इसे थोडा वक़्त देना चाहिए, ये ज़रूर कारगर होगी। भारतीय सेना की नोर्दर्न कमांड के एक पूर्व आर्मी जनरल का एक बयान हाल ही में ख़बरों में था जिसमें उन्होंने कहा: “भारत पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाने में कामयाब रहा है। इसे एक साल और देना चाहिए और फिर देखिये की क्या पाकिस्तानी सेना इसे झेल पाती है।” लेकिन ऐसी उम्मीद लगाना सही नहीं है। ऐसी कोई वजह लगती नहीं जिस से पाकिस्तान ऐसी छोटे हमलों से लम्बे समय में झुक जाए,बलि ये तो पाकिस्तान पर तत्काल प्रभाव से दबाव बनाने के लिए भी काफी नहीं हैं। ये रणनीति जितनी लम्बी खिंचेगी उतना ही इन सजाओं का असर कम होता जाएगा।

युद्ध के परंपरागत तरीकों से दुश्मन को ये समझाना मुश्किल होता है की आपके पास इस से ज्यादा नुकसान पहुँचाने की क्षमता है। जबकि शत्रु के इरादों और हमलों को रोकने की परमाणु कार्यवाई ज्यादा असरदार होती है। परंपरागत कार्यवाई या टकराव में दुश्मन की ताक़त को दोनों ही देश अक्सर ग़लत आंकते हैं। ख़ास कर के अगर ये ऐसे आतंकवाद को रोकने का मामला है जिसे सरकार का समर्थन है तो ये मामला और भी उलझ जाता है। किसी आतंकी गुट के मुकाबले किसी देश को डराना या उस पर दबाव बना पाना फिर भी आसान है।

भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा की पाकिस्तान को इन हमलों की कीमत चुकानी होगी, लेकिन ये बयान अक्सर ही खोखले साबित हुए हैं, क्यूंकि पाकिस्तान की हरकतों के बाद भी ऐसा दिखा नहीं की पाकिस्तान को कोई कीमत चुकानी पड़ी हो। यहाँ नेताओं ने पहले भी ऐसी चेतावनी दी है लेकिन उसके बाद कोई कार्यवाई नहीं की गयी। ऐसे में सवाल उठता है की क्या पाकिस्तान के पास डरने की कोई वजह है। अगर भारत में तनाव बढ़ने का डर ज्यादा है तो साफ़ है की भारत पाकिस्तान में ऐसा खौफ पैदा करने में नाकाम रहेगा जिस से पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ आये।


ऐसे बहुत कम संकेत हैं जिस से ये लगे की भारतीय नेताओं ने इस पर विचार किया है की सैन्य शक्ति का इस्तेमाल कैसे करना है, किस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किया है और क्या भारतीय सेना को इसकी कोई दिशा दी गयी है।


सबसे बड़ी बात ये की ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता है की भारतीय राजनीति में इस पर विचार किया गया है की सैन्य शक्ति का पाकिस्तान के खिलाफ किस तरह इस्तेमाल करना है, न ही भारतीय सेना को हमारी लीडरशिप ने कोई दिशा दी है। पूर्व रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने क्रॉस बॉर्डर हमले पर भारत के जवाब पर सवाल पूछे जाने पर कहा था की सेना को जैसा उचित लगेगा वो वैसे क़दम उठाएगी। वो क्या फैसला लेंगे और क्या करेंगे ये हम उन पर छोड़ते हैं, सेना तय करती है की उन्हें क्या करना है इसमें कोई शक नहीं की किसी जवाबी कार्यवाई में सेना का ही मुख्या भूमिका होगी लेकिन इस जवाब से ये भी साफ़ था की पोलिटिकल नेतृत्व की तरफ से सेना को कोई दिशा नहीं दी जा रही। सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना में अंदरूनी स्तर पर ये बातचीत हो रही थी की उरी जैसे हमले की सूरत में क्या जवाब देना चाहिए ये चर्चा हमले के पहले नहीं हमले के बाद हो रही थी।

आतंकवादी हमले की स्थिति में भारत का जवाब क्या होना चाहिए इस पर लगता है की कम ही चर्चा हुई है, जबकि इसमें कोई शक नहीं था की ऐसे आतंकी हमले ज़रूर होंगे। और अगर चर्चा हुई भी होगी तो इस पर कोई विचार नहीं किया गया की जवाब जैसे दिया जाएगा, किस स्तर पर दिया जाएगा, इसके लिए क्या हथियार इस्तेमाल हो पायेंगे।

इस में कोई शक नहीं की पाकिस्तान प्रायोजक और आतंकी हमले होंगे, लेकिन भारत का जवाब क्या होगा इसमें भी कोई शक नहीं: तीखे सख्त बयां और सीमा के आरपार गोलीबारी पाकिस्तान कोई इन दोनों का कोई डर नहीं।

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