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आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में जीएसटी का गुणगान किया गया है और इससे हमें चार सबक मिले हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ नई खिड़कियों के जरिए भी रोशनी डाली गई है। विभिन्न तरह के वृद्धिशील अद्यतन आंकड़ों (डेटा) के बाद पेश किए गए एक स्मार्ट अध्याय से इस बारे में गहन एवं व्यापक विश्लेषण करना संभव हो पाया है कि आखिरकार किस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था को नई गति मिल रही है। भारत के लोगों में ‘बेटी के बजाय बेटे की प्रबल चाहत होने से लेकर कारोबार में आसानी के लिए अदालतों में न्याय जल्द दिलाने’ की जरूरत पर आंकड़े-आधारित तथ्य पेश करते हुए अरविंद सुब्रमण्यन के आर्थिक सर्वेक्षण में तरह-तरह के डेटा एवं ज्ञान को समाहित किया गया है। हालांकि, इसके साथ ही सर्वेक्षण को समकालीन और व्यावहारिक बनाए रखने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी गई है। चूंकि आर्थिक सर्वेक्षण को केंद्रीय बजट से सिर्फ दो दिन पहले पेश किया गया है, इसलिए इसका कोई खास जुड़ाव होने की संभावना नहीं है। हालांकि, इसमें आर्थिक विकास, महंगाई और निवेश को केंद्र में रखते हुए राजकोषीय संघवाद को सुसंगत बनाने से लेकर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में व्यापक बदलाव सुनिश्चित करने तक के विभिन्न क्षेत्रों में भावी विश्लेषण के लिए सूचनाओं का भंडार है। यह लेख देश की आजादी से लेकर अब तक के सबसे महत्वपूर्ण राजकोषीय सुधार यथा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू किए जाने पर केंद्रित है।
इस पर करीबी नजर रखने वालों की दृष्टि से यदि देखा जाए तो भारत के सबसे जटिल और सबसे बड़े आर्थिक सुधारों में से एक जीएसटी पर तथ्यों के बजाय विचार हावी हो गए हैं। अरविंद सुब्रमण्यन के आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में ठोस आंकड़ों के साथ तर्क की अटकलबाजियों और कठिन विश्लेषण के साथ राजनीति की सनक को रेखांकित किया गया है। एक पंक्ति में: जीएसटी की सफलता के शुरुआती लक्षणों पर अब कोई भी अपनी नजरें दौड़ा सकता है। अत: इसे ध्यान में रखते हुए भारत के सबसे बड़े संरचनात्मक सुधारों में से एक जीएसटी, जिसने केंद्र एवं सभी राज्यों के राजनीतिक दलों एवं विचारधाराओं को एकल मेज जीएसटी परिषद के अंतर्गत ला दिया, को लेकर जारी अंतहीन बहस अब समाप्त हो जानी चाहिए। हालांकि, जीएसटी की दरों और प्रक्रियाओं में क्रमिक परिवर्तनों का सिलसिला निश्चित रूप से आगे भी जारी रहेगा।
अप्रत्यक्ष कर अदा करने वालों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि जितनी बड़ी सियासी उपलब्धि है, उतनी ही बड़ी तकनीकी उपलब्धि भी है। सियासी दलों ने समुचित कानून बनाने यथा एक संवैधानिक संशोधन, संसद के चार अधिनियमों और 29 राज्यों में से प्रत्येक राज्य में इतने ही अधिनियमों तथा सभी सातों केंद्र शासित प्रदेशों में उपयुक्त अधिसूचनाएं जारी करने के लिए सकारात्मक विधायी माहौल बनाया। वहीं, जिस डिजिटल जीएसटी नेटवर्क पर समूचा ढांचा टिका हुआ है उससे जुड़ी प्रौद्योगिकी ने यह सुनिश्चित किया कि टैक्स रिसाव (लीकेज) की गुंजाइश अब शून्य यानी पूरी तरह खत्म होने की ओर अग्रसर हो जाए, जो स्थिति फिलहाल नहीं है। अत: विधायी एवं बुनियादी ढांचे के स्तर पर ज्यादातर कार्य पूरे हो चुके हैं और इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए इसमें केवल मामूली फेरबदल की ही आवश्यकता होगी। बारीकी से गौर करने पर यह पता चला है कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात ऐसे राज्य हैं जहां जीएसटी पंजीयन कराने वालों की संख्या सर्वाधिक है। वहीं, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पुरानी व्यवस्था की तुलना में कर पंजीयन कराने वालों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
अप्रत्यक्ष कर अदा करने वालों की संख्या में 50 प्रतिशत की वृद्धि जितनी बड़ी सियासी उपलब्धि है, उतनी ही बड़ी तकनीकी उपलब्धि भी है।
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि अन्य क्षेत्र से भी आश्चर्यजनक आंकड़े उभर कर सामने आए हैं। जीएसटी पंजीयन कराने वालों की संख्या 9.8 मिलियन के आंकड़े को छू गई है, जो पुरानी व्यवस्था की तुलना में केवल थोड़ी ही अधिक है। हालांकि, जब आप डेटा को अलग-अलग कर देंगे तो आप पाएंगे कि बड़ी संख्या में अप्रत्यक्ष करदाताओं को कई अप्रत्यक्ष करों (जीएसटी ने कुल मिलाकर 17 अप्रत्यक्ष करों का स्थान लिया है) के तहत पंजीकृत किया गया था जिसके परिणामस्वरूप इनकी गिनती दो बार एवं तीन बार हो गई थी। इस अतिरिक्त संख्या को बाहर कर देने पर हम पाते हैं कि㱀 जीएसटी पंजीयन कराने वालों की संख्या में 50 प्रतिशत से भी अधिक अथवा लगभग 3.4 मिलियन की वृद्धि दर्ज की गई है। इससे भी अधिक उत्साहवर्धक बात यह है कि जब हम स्वैच्छिक अनुपालन पर गौर करते हैं तो हमें पंजीयन कराने वाले ऐसे 1.7 मिलियन कारोबारियों के बारे में पता चलता है जो तय सीमा के दायरे में नहीं आते थे और उन्हें पंजीकरण कराने की आवश्यकता ही नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी मर्जी से ऐसा किया। यदि नकारात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो ऐसा प्रतीत होता है कि भय या प्रारंभिक अस्थिरता की वजह से ही ऐसा हुआ क्योंकि जीएसटी परिषद में प्रणाली अब जाकर स्थिर हुई है। हालांकि, सकारात्मक दृष्टि से गौर करने पर इसे आर्थिक विकास के आधार के रूप में देखा जा सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण में भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2018 में 6.75 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019 में 7-7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
जीएसटी प्रणाली के डिजिटल स्वरूप की बदौलत नए डेटा को दर्ज करना और फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट कर उसे सूचनाओं के विभिन्न व्यावहारिक अंशों में तब्दील करना संभव हो पाया है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि वैश्विक मैट्रिक्स पर अमेरिका, जर्मनी, ब्राजील या मेक्सिको की तुलना में कंपनियों का निर्यात संकेंद्रण भारत में बहुत कम है और इसी वजह से भारत एक कहीं अधिक ‘समतावादी’ निर्यातक बन गया है। ब्राजील, जर्मनी, मेक्सिको और अमेरिका के निर्यात में शीर्ष 1 प्रतिशत कंपनियों की हिस्सेदारी क्रमश: 72, 68, 67 और 55 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 38 प्रतिशत है। इसी तरह ब्राजील, जर्मनी, मेक्सिको और अमेरिका के निर्यात में शीर्ष 5 प्रतिशत कंपनियों की हिस्सेदारी क्रमश: 91, 86, 91 और 74 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 59 प्रतिशत है। अंत में, ब्राजील, जर्मनी, मेक्सिको और अमेरिका के निर्यात में शीर्ष 25 प्रतिशत कंपनियों की हिस्सेदारी क्रमश: 99, 98, 99 और 93 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 82 प्रतिशत है। पांच सबसे बड़े निर्यातक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना हैं, जिनकी हिस्सेदारी भारत के निर्यात में 70 प्रतिशत है। यह डेटा पहले उपलब्ध नहीं था: ‘भारत के इतिहास में पहली बार वस्तुओं और सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय निर्यात के राज्यवार वितरण को जानना संभव हो पाया है।’ इससे आगे चलकर उत्साहजनक विश्लेषणात्मक संभावनाओं को बल मिला है।
जीएसटी प्रणाली के डिजिटल स्वरूप की बदौलत नए डेटा को दर्ज करना और फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट कर उसे सूचनाओं के विभिन्न व्यावहारिक अंशों में तब्दील करना संभव हो पाया है।
इसके अलावा जीडीपी के अनुमानित 30-50 प्रतिशत, जैसा कि पिछले साल के सर्वेक्षण में बताया गया था, की तुलना में वस्तुओं एवं सेवाओं में भारत का अंतर-राज्य व्यापार वास्तव में अब कहीं अधिक हो गया है, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 60 प्रतिशत है। इससे साफ जाहिर है कि भारत द्वारा जीएसटी प्रणाली को अपनाने से एक अप्रत्याशित लाभ अपेक्षाकृत ज्यादा आंकड़ों के सामने आने और इन पर करीबी नजर रखने के रूप में हुआ है। हो सकता है कि यह संख्या पिछले साल भिन्न न रही हो, लेकिन इस बार उन्हें दर्ज (रिकॉर्ड) किया गया है। वास्तव में, जीडीपी की यह गायब कड़ी चालू वित्त वर्ष से ही जीडीपी वृद्धि दर में योगदान करना शुरू कर देगी। पांच सबसे बड़े निर्यातक राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। इसी तरह पांच सबसे बड़े आयातक राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात हैं। वहीं, आंतरिक व्यापार में सर्वाधिक अधिशेष वाले पांच राज्य गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु हैं।
सर्वोपरि बात यह है कि आर्थिक सर्वेक्षण में जीएसटी का गुणगान किया गया है और इससे हमें चार सबक मिलते हैं।
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Gautam Chikermane is Vice President at Observer Research Foundation, New Delhi. His areas of research are grand strategy, economics, and foreign policy. He speaks to ...
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