Published on Sep 19, 2018 Updated 0 Hours ago

भारत में शहरों को बनाने में कला और डिज़ाइन पर अब पहले से अधिक ज्यादा जोर दिया जा रहा है कैसे?

शहरों को सुंदर बनाने में मदद कर सकता है राष्ट्रीय शहरी कला एवं डिजाइन सूचकांक (यूएडीआई)

इस वर्ष अगस्त, 2018 में मुंबई कला, संगीत और संस्कृति आयोग (एमसीएएमसी) के गठन के साथ ही हमारे शहरों में शहरी कला और डिजाइन के समावेशन पर बहस अहम हो गयी है। यह आयोग दिल्ली शहरी कला आयोग (डीयूएसी) की तरह निर्धारित दायरे की सीमा में नहीं बंधा है और शहर में संस्कृति, संगीत और कला के संयोजन की संभावना पर भी विचार करता है।

डीयूएसी का गठन वर्ष 1974 में हुआ था। यह एक नीतिगत सलाहकार मंडल, नियामक निकाय और दिल्ली के अंतर्गत शहरी और पर्यावरणीय डिजाइन के सौंदर्य के संरक्षण, विकास और उसके देखरेख के लिए बना थिंक टैंक है। डीयूएसी किसी भी निर्माण कार्य या इंजीनियरिंग कार्यकलाप या विकास प्रस्ताव के संबंध में स्थानीय निकाय को सलाह और दिशानिर्देश मुहैया कराता है जो आकाशवृत्त (स्काइलाइन), आसपास के सौंदर्य या अन्य सार्वजनिक रमणीयता को प्रभावित करता है या प्रभावित कर सकता है। डीयूएसी ने पिछले चार दशकों में अपनी भूमिका निभाने की कोशिश की है और नयी दिल्ली के कई इलाकों में इसका प्रभाव भी देखा जा सकता है जहां सौंदर्य का ध्यान रखा गया है लेकिन बहुत कुछ किया जाना अभी बाकी है।

अगर हम ऐसे शहर विशेष कार्यक्रमों की शुरूआत कर रहे हैं तो इस दिशा में हमें राष्ट्रीय शहरी कला एवं डिजाइन कार्यक्रम के निर्धारण की जरूरत दिखती है जो भारत के शहरों में गर्व, सामाजिक मेलजोल और सामुदायिक समरसता को बढ़ावा दे सके।

नये शहरों की योजना बनाने या केन्द्र सरकार की योजनाओं के जरिये शहरों के नवीनीकरण के समय जिन विचारों पर चर्चा की जाती है वो आम तौर पर उत्पादकता बढ़ाने और लोगों के आवागमन को बेहतर बनाने के लिए बुनियादी ढांचे के विस्तार से संबंधित होती हैं। इस बात पर कोई जोर नहीं दिया जाता कि कोई विशेष मेट्रो लाइन कैसी नजर आयेगी और साइनेज के कला और सौंदर्य और सड़कों पर लगाये गये फर्नीचर पर भी कभी ध्यान नहीं दिया जाता। हम उन सामान्य बातों पर भी कभी ध्यान नहीं देते जैसे कि कचरा ढोने वाले ट्रकों को किस तरह अलग दिखना चाहिए और कैसे नागरिक शहरों में कला और संस्कृति के संरक्षण में शामिल हो सकते हैं।

इसके लिए हम एक शहरी कला और डिजाइन सूचकांक (यूएडीआई) के जरिये शहरी जीवन शैली के मानकीकरण पर विचार कर सकते हैं। इस तरह का सूचकांक शहरों की गुणवत्ता के मापन और उसके आकलन को सुनिश्चित करेगा जिससे वास्तविक बदलाव संभव हो पायेगा। इन सारे मानकों पर खरे उतरने वाले शहरों को किसी रचनात्मक परियोजना के लिए वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए जो शहर के जीवन स्तर के रंग रूप और गुणवत्ता को बढ़ाये।

ऐसे आयोग यूएडीआई गठन की पहल कर सकते हैं जिसे नीति आयोग या शहरी विकास मंत्रालय जैसे केन्द्रीय निकाय मान्यता दें और जो विभिन्न क्षेत्रों और राज्य की स्थितियों के मद्देनजर मानक और जरूरतें तय करे। किसी भी सार्वजनिक स्थान, निर्माण या परियोजना में सभी प्राधिकारों के लिए इन मानकों और जरूरतों का अनुपालन अनिवार्य किया जाये।

मापने योग्य संकेतकों वाले ये मानक सार्वजनिक भवन की सौंदर्य संबंधी जरूरतों का निर्धारण करेंगे, शहर में व्यापक सड़क डिजाइन तैयार करेंगे जो पूरे शहर में लागू होगा और खुली जगहों, धरोहर और ऐतिहासिक जिलों की जरूरतों का निर्धारण करेंगे।

ये संकेतक इतिहास, संगीत और संस्कृति जैसे अमूर्त कारकों को भी शामिल करेंगे जिसे ना सिर्फ संरक्षित किया जायेगा बल्कि शहरों में पड़ोसी इलाकों और समुदायों को भी जोड़ा जायेगा। साथ ही कला, इतिहास और संस्कृति से संबंधित गतिविधियों में स्कूल और कॉलेज को विद्यार्थियों को शामिल किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

सिंगापुर, मेक्सिको, न्यूयार्क और अन्य सफलतापूर्वक विकसित शहरों के उदाहरणों पर नजर डालें जहां उच्च जीवन स्तर, कला और डिजाइन क्षेत्रीय नियोजन का अभिन्न अंग है। नयी परियोजनाओं को शहरी डिजाइन के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए और नये विकसित इलाके सौंदर्य की दृष्टि से समृद्ध और सुंदर हों इसे सुनिश्चित करने के लिए धन भी आबंटित किया जाना चाहिए।

पायलट प्रोजेक्ट के रूप में भारत सरकार मुंबई महानगरीय क्षेत्र (एमएमआर) में यूएडीआई के उपयोग की पहल कर सकती है और इस तरह अन्य महानगरीय इलाकों में इसके उपयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि एमएमआर महाराष्ट्र का सर्वाधिक तीव्र गति से विकसित होने वाला क्षेत्र है जहां पहले से अवस्थित बृहन्नगर के अलावा दो बड़े शहर, नये स्मार्ट शहरी परियोजनाओं के साथ साथ व्यावसायिक केन्द्र और बहुद्देशीय कॉरिडोर बनाये जा रहे हैं। इन क्षेत्रों और परियोजनाओं में यूएडीआई की संकल्पना को शामिल करने और उसे साकार करने का सही समय है ताकि ज्यादा सामाजिक और समावेशी इलाके विकसित किये जा सकें, उनका जीर्णोद्धार किया जा सके और उनका संवर्द्धन किया जा सके।

मुंबई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकार (एमएमआरडीए) ने एमएमआर में कंजुरमर्ग, वसई-विरार, कल्याण, भिवंडी और कालवा के रूप में पांच ठिकानों की पहचान की है जहां बांद्रा कुर्ला परिसर की तर्ज पर व्यावसायिक केन्द्र विकसित किये जाने हैं। भिवंडी को बहुपयोगी केन्द्र के रूप में जबकि पास के कल्याण को उद्योग को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जायेगा। वसई-विरार के व्यावसायिक केन्द्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। इन केन्द्रों में वाणिज्यिक और आवासीय परिसर भी होंगे ताकि वॉक टू वर्क संस्कृति को लागू किया जा सके।

इसके अलावा एमएमआर में थाणे और नवी मुंबई में दो बड़े स्मार्ट सिटी की योजना बनाई गयी है। शहर और औद्योगिक विकास निगम (सीआईडीसीओ) ने नवी मुंबई के दक्षिणी भाग को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए 35,000 करोड़ रूपये का आबंटन किया है जबकि केन्द्र सरकार ने थाणे में स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए 700 करोड़ रूपये को मंजूरी दी है।

अगर महाराष्ट्र एमएमआर को भारत के अगले निवेश केन्द्र के रूप में स्थापित करने की तैयारी कर रहा है, साथ ही वहां कार्य-जीवन के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करने वाले नये इलाके विकसित करने की भी तैयारी की जा रही है तो वहां जीवन शैली सूचकांक को उच्च स्तर पर ले जाने का भी प्रयास करना होगा। ऐसा यूएडीआई के गठन के जरिये हो सकता है जो इसे सौंदर्य की दृष्टि से खूबसूरत बनाये और जहां समावेशी और जीवंत समुदाय विकसित हों।

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