Author : K. Yhome

Published on Sep 07, 2020 Updated 0 Hours ago

अब जबकि जातीय दल ““गठबंधन बना रहे हैं और मजबूत हो रहे हैं”, सवाल भविष्य के गर्भ में छिपा है कि क्या 2020 के आम चुनाव से म्यांमार की चुनावी राजनीति में एक नई शुरुआत होगी

म्यांमार के आगामी आम चुनाव और जातीय दलों की भूमिका

म्यांमार के चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते घोषणा की है कि 6 नवंबर 2020 को आम चुनाव होंगे- यह 2010 में राजनीतिक सुधार शुरू किए जाने के बाद तीसरे चुनाव होंगे. क़रीब 90 राजनीतिक दलों द्वारा केंद्रीय संसद के दोनों सदनों और राज्य/क्षेत्रीय विधायिका की कुल 1,171 सीटों के लिए चुनाव लड़ने की संभावना है.

नवंबर के चुनावों के बाद एनएलडी और यूएसडीपी के दो सबसे बड़े दल बने रहने की संभावना है, लेकन कुछ हलकों में कहा जा रहा है कि इनमें से किसी को भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं मिलेंगी

आगामी चुनाव को लेकर चर्चाओं में अब तक सारा ध्यान दो प्रमुख राजनीतिक दलों पर रहा है– सत्तारूढ़ नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) और विपक्षी यूनियन सॉलिडारिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी (यूएसडीपी). इनके इर्द-गिर्द ही मुख्य प्रश्न है कि क्या एनएलडी सत्ता में बने रहने में कामयाब होगी या फिर सेना समर्थित यूएसडीपी सत्ता में वापसी करने में कामयाब होगी. नवंबर के चुनावों के बाद एनएलडी और यूएसडीपी के दो सबसे बड़े दल बने रहने की संभावना है, लेकन कुछ हलकों में कहा जा रहा है कि इनमें से किसी को भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं मिलेंगी और ऐसे में यह तय करने में कि म्यांमार में अगली सरकार कौन बनाएगा, छोटे राजनीतिक और जातीय दलों के अवसर बढ़ जाते हैं.

छोटे राजनीतिक और नस्ल-आधारित दलों के लिए चुनाव को अपने पक्ष में करने में तीन कारक महत्वपूर्ण हैं. सबसे पहला, इसके लिए एनएलडी और यूएसडीपी का प्रदर्शन ज्यादा ज़िम्मेदार होगा. दूसरा, नई पार्टियों और गठबंधनों का उभरना और ये दोनों प्रमुख पार्टियों के प्रदर्शन को कितना प्रभावित करते हैं और अंतिम, नस्ल आधारित पार्टियों की चुनावी रणनीति.

दिसंबर में हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में नरसंहार के आरोपों पर अग्रिम मोर्चे से देश का बचाव करने में एनएलडी नेता और स्टेट काउंसलर (राष्ट्र प्रमुख) आंग सान सू ची ने अग्रणी भूमिका निभाई थी, जिससे बामर आबादी के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी है, जो कि देश की आबादी का लगभग 70 फ़ीसद हैं.

एनएलडी पार्टी को भरोसा है कि आगामी चुनाव वही जीतेगी, हालांकि पार्टी के नेता मानते हैं कि वह 2015 की ज़बरदस्त जीत को दोहरा नहीं पाएंगे. बताया जाता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मोनइवा आंग शिन ने कहा है कि एनएलडी 2015 जैसी ही चुनावी जीत हासिल करेगी. 2015 के आम चुनाव में एनएलडी ने केंद्रीय संसद के दोनों सदनों की 498 सीटों के लिए हुए चुनाव (कुल 664 सीटों में से 25 फ़ीसद सेना के लिए आरक्षित हैं) में धमाकेदार तरीके से 390 सीटें जीतीं थीं.

एनएलडी खुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में पेश कर सत्ता में आई, जो दशकों पुराने जातीय  सशस्त्र संघर्षों का समाधान निकालेगी. अब इसका कार्यकाल पूरा होने के करीब है, लेकिन कई जातीय क्षेत्रों में अंतहीन संघर्ष से शांति दूर की कौड़ी है और इसका शुरू किया 21वीं सदी का पेंगलोंग शांति सम्मेलन निष्क्रिय हो गया है. इसके अलावा, सत्तारूढ़ पार्टी संविधान में संशोधन करने में नाकाम रही है और इसकी आर्थिक नीतियों और कामकाज से लोगों की ऊंची अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं.

पीपुल्स पार्टी का गठन अगस्त 2018 में उन छात्र नेताओं द्वारा किया गया था जिन्होंने 1988 के छात्र विद्रोह में हिस्सा लिया था, जबकि यूपीपीए को इस साल फरवरी में नौ राजनीतिक दलों द्वारा ““सामूहिक शक्ति” के माध्यम से बदलाव लाने के इरादे से लांच किया गया था.

इस साल जनवरी और मार्च के बीच, सू ची लगभग एक दर्जन प्रांतीय शहरों का दौरा कर चुकी हैं, जिनमें से कई जातीय अल्पसंख्यक क्षेत्र थे. हाल ही में, एक वरिष्ठ पार्टी नेता ज़ाव माइंट मौंग ने कहा है कि जातीय आबादी वाले राज्यों में एनएलडी “अपनी पार्टी के उम्मीदवार तराई इलाके [समझें बामर समुदाय] से नहीं … [बल्कि] … जातीय समूह से उतारेगी.” यह एनएलडी की जातीय समूहों की आबादी वाले राज्यों में पकड़ मज़बूत बनाने की कोशिश हो सकती है, साथ ही चुनाव के बाद पैदा होने वाले हालात में जातीय दलों के साथ अपने विकल्पों को खुला रखने का कदम भी हो सकता है.

हाल के सालों में पीपुल्स पार्टी  और यूनाइटेड पॉलिटिकल पार्टीज़ अलायंस (यूपीपीए) जैसे नए दलों और राजनीतिक गठबंधनों का बनना एनएलडी के समर्थक-आधार को विभाजित कर सकता है. पीपुल्स पार्टी का गठन अगस्त 2018 में उन छात्र नेताओं द्वारा किया गया था जिन्होंने 1988 के छात्र विद्रोह में हिस्सा लिया था, जबकि यूपीपीए को इस साल फरवरी में नौ राजनीतिक दलों द्वारा ““सामूहिक शक्ति” के माध्यम से बदलाव लाने के इरादे से लांच किया गया था.

दूसरी तरफ़, नए राजनीतिक दलों के उभार से विपक्षी यूएसडीपी की संभावनाओं को झटका लग सकता हैं क्योंकि वे सेना समर्थकों को विभाजित कर सकते हैं. दो नए राजनीतिक दलों का गठन पूर्व जनरल द्वारा किया गया है जो यूएसडीपी बनाने में सहायक थे. फरवरी 2019 में सेना के पूर्व जनरल श्वे मान, जिन्हें 2015 में यूएसडीपी के प्रमुख पद से हटा दिया गया था, ने एक नई पार्टी का गठन किया जिसका नाम यूनियन बेटरमेंट पार्टी है. एक महीने बाद, एक और पूर्व जनरल सोइ मौंग, जो कि पूर्व वरिष्ठ जनरल थान श्वे के करीबी विश्वासपात्र थे, ने डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ नेशनल पॉलिटिक्स का गठन किया.

ऐसा लगता है कि पिछले चुनावों से सबसे बड़ा सबक जो जातीय दलों ने सीखा है, वह है वोटों के बंटवारे से बचना होगा. इसीलिए कई जातीय दलों का पहले ही विलय कर लिया गया है जैसे कि काचिन स्टेट पीपुल्स पार्टी, करेन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, चिन नेशनल लीग, कायाह स्टेट  डेमोक्रेटिक पार्टी और मॉन यूनिटी पार्टी. नई पार्टियों ने “गठबंधन सरकार बनाने के लिए दूसरे जातीय दलों के साथ [एक उद्देश्य से] गठबंधन करने पर सहमति जताई है.”

ऐसा पहली बार नहीं है जब जातीय दल चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. 2015 के आम चुनाव में, एनएलडी की शानदार जीत और जातीय दलों के विभाजन ने सुनिश्चित किया था कि ऐसा अवसर न आए. अब जबकि जातीय दल ““गठबंधन बना रहे हैं और मजबूत हो रहे हैं”, सवाल भविष्य के गर्भ में छिपा है कि क्या 2020 के आम चुनाव से म्यांमार की चुनावी राजनीति में एक नई शुरुआत होगी?

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