Published on Mar 02, 2019 Updated 0 Hours ago

युद्ध में, एक बार सेना के जरिए रजस् की ताकत लागू हो गई, तो पाकिस्तान की जीत के कोई आसार नहीं बचेंगे।

भारत के राजसिक रूपांतरण में मोदी

पाकिस्तान “हज़ारों जख्म देकर भारत को लहुलुहान करना चाहता है।” प्रश्न: क्या वह हजार जख्म पुलवामा ही है, जहां 14 फरवरी को हुए आत्मघाती हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल — सीआरपीएफ के लगभग 40 जवान अपनी जान गंवा बैठे? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वादा किया है, “हमारे बहादुर सुरक्षाकर्मियों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा।” प्रश्न: क्या 14 फरवरी शिशुपाल की तरह पाकिस्तान के पापों का घड़ा भरने के समान है? तीन साल पहले, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के पूर्व प्रमुख विक्रम सूद ने इस बात की वकालत की थी कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में “सज्जन” बनना छोड़ देना चाहिए। प्रश्न: क्या 14 फरवरी इस विचार के अंत का प्रतीक है कि भारत एक शांतिप्रिय, शांति फैलाने वाला देश है, जो कुचले जाने, अपमानित होने और मारे जाने को तैयार है?

समय, स्थान और परलोक की हद के पार, कुरुक्षेत्र के मैदान में शांति स्थापना की अनेक कोशिशों, जिनमें से हर एक कोशिश का विफल होना निश्चित था — के बाद श्रीकृष्ण ने तमस से ग्रसित और लड़ने की इच्छा न रखने वाले अर्जुन को सलाह दी थी कि जाओ और जाकर युद्ध करो। प्रश्न: क्या यह भारत की रजस् अवस्था है, ऐसे समय में, जब समूचे राष्ट्र की सामूहिक चेतना एकजुट है और उसने अपनी तामसिक अवस्था को त्याग दिया है तथा राजसिक भावना को अपना लिया है? क्या यह नया भारत है, जो हमारे सीआरपीएफ के लगभग 40 जवानों की राख और कब्र से उभर रहा है, लेकिन ऐसा महज प्रतिशोध लेने के लिए नहीं हो रहा है, बल्कि वास्तव में यह एक छोटी की राजसिक अभिव्यक्ति है, जो खुद को क्रोध के माध्यम से व्यक्त कर रही है?

रजस् एक ऐसी अवस्था हैजो कुछ घटित होने की प्रतीक्षा किए बगैर खुद आगे बढ़कर कदम उठाती है। यह व्यक्तियों के विकास पर लागू होती हैजैसे वे सामान्य रूप से ता​मसिक अवस्था से राजसिक अवस्था तक और सबसे आखिर में सात्विक अवस्था तक पहुंचते हैं।

तमस् के प्रभाव में आकर व्यक्ति और राष्ट्र विश्व-ऊर्जा के सामने घुटने टेक देते हैं, उनसे पराजित होते हैं,सताए जाते हैं, विवश होते है, जैसे तैसे खुद को बचाने का प्रयास करते हैं। श्री अरबिंदो लिखते हैं, “नियमित विचार और क्रिया की स्थापित व्यवस्था के गढ़ में खुद को शरण दिलाते हैं, जहां वे खुद को जंग से महफूज समझते हों।” दूसरी ओर, राजसिक व्यक्ति और देश — वध करने, जीतने, प्रभुत्व जमाने के​ लिए खुद को जंग में झोंक देते हैं या कुछ सात्विक गुणों की सहायता से “संघर्ष को अपने आप में बढ़ते आंतरिक प्रभुत्व, खुशी, शक्ति, अधिकार का साधन बना लेते हैं।” स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “तमस् एक प्रकार का अंधकार या निष्क्रियता की स्थिति है; रजस् सक्रियता है, आकर्षण या विकर्षण की तरह व्यक्त किया जाता है और सत्व दोनों के बीच संतुलन कायम करने वाले के समान है।” प्रत्येक व्यक्ति, पशु या पौधे में इन्हीं तीन गुणों का मिश्रण होता है।

हर वह भारतीय, जिसने भगवद् गीता का अध्ययन किया है, वह जानता है कि जहां तक व्यक्ति का प्रश्न है, उसके अस्तित्व का भेद स्पष्ट है लेकिन सामूहिक रूप में, यह सिद्धांत राष्ट्रों पर भी लागू होता है। सामूहिकता व्यक्तियों का आध्यात्मिक संग्रह है और जैसे-जैसे व्यक्तियों का विकास होता है, राष्ट्रों की भी आध्यात्मिक प्रगति होती है। मजबूत इच्छा​शक्ति से प्रेरित, भारत के रुपांतरण के फलस्वरूप उसका आध्यात्मिक पुनरुत्थान हो रहा है। आजादी के बाद से ही, भारत रजस् की राह पर अग्रसर है, जैसा कि उसकी संस्कृति या अर्थव्यवस्था में प्रतिबिम्बित हुआ है, इन दोनों ने विश्व को प्रभावित किया है और सम्मान बटोरा है। भारत के रजस् का गुमशुदा अंश, उसके भौतिक पक्ष में, उसकी रक्षा और सैन्य नीतियों में रहा है।

यहां, जनता की इच्छाशक्ति गायब रही है। जब लोग कहते हैं कि हमें पाकिस्तान से निपटने का गुर इस्राइल से सीखने की जरूरत है, तो वे भूल जाते हैं कि इस्राइल के नेताओं के पीछे, इस्राइल की जनता तथा जरूरत पड़ने पर व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को कुर्बान करने, तकलीफ भुगतने, प्राण देने की उसकी सामूहिक इच्छा शक्ति मौजूद है। इससे शत्रुओं से ​घिरे छोटे से देश का आक्रामक रजस् पैदा होता है और उसकी सहायता करता है। रजस् भारत से गायब रहा है। नेतृत्व को दोषी ठहराना आसान है; उनसे परे देखना नहीं।

उदाहरण ​के लिए, 24 दिसम्बर 1999 की कंधार विमान अपहरण घटना के दौरान यात्रियों के रिश्तेदारों के आंसु जल्द ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन की योजनाओं में परिवर्तित हो गए। कंचन गुप्ता लिखते हैं, “महिलाएं छाती पीट रही थीं और अपने कपड़े फाड़ रही थीं।” वाजपेयी ने आतंकवादियों की रिहाई की मांग कबूल ​कर ली, इन आतंकवादियों में से एक आतंकवादी मसूद अजहर था, जो जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक और सरगना हैं, जिसने 14 फरवरी को सीआरपीएफ के जवानों पर हुए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी ली है। गुप्ता ने एक रिश्तेदार के हवाले से लिखा है, “कश्मीर छोड़ दो, वे जो कुछ भी चाहते हैं, उन्हें सौंप दो, हमें कोई परवाह नहीं है।” स्पष्ट है कि भारत बलिदान के लिए तैयार न था। तमस् की जीत हुई।

कंधार, पाकिस्तान की एक अधूरी योजना थी, जिसमें आतंक को सरकार की नीति के तौर पर इस्तेमाल करते हुए भारत के खिलाफ काम किया जा रहा था। उससे भी एक दशक पहले, 8 दिसम्बर, 1989 में, प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार में मुफ्ती मोहम्मद सईद के बतौर गृह मंत्री शामिल होने के एक सप्ताह से भी कम अर्सा बाद, आतंकवादी अशफाक माजिद वानी ने उनकी 23 साल की बेटी रुबइया सईद को अगवा कर लिया था। कई दौर की बातचीत के बाद,रुबइया की आजादी की एवज में पांच आतंकवादियों को रिहा कर दिया गया था। विद कश्मीर के अनुसार, अपहर्ताओं के चंगुल में बीते रुबइया के इन 122 घंटों ने कश्मीर में आतंक के ​भविष्य की दिशा तय कर दी। “कश्मीरियों ने देखा कि पहली बार भारत घुटनों पर आ गया है।” इस बार, दमन का शिकार होने वाला कोई साधारण नागरिक नहीं, बल्कि खुद गृह मंत्री था। तमस् की जीत हुई।

अपनी ओर सेपाकिस्तान चालाकी से काम लेता आया है। 1947, 1965, 1971 और 1999 में चार युद्ध हारने के बाददेश को चलाने वाली उसकी सेना जानती है कि वह खुले युद्ध में भारत का मुकाबला नहीं कर सकती।

लिहाजा, भारतीय लोगों के तमस् की मजबूत समझ के आधार पर उसने आतंकवाद के एक ऐसे नेटवर्क का सृजन और पालन-पोषण किया, जो सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में कहर बरपा रहा है, देशों पर भीतर से वार कर रहा है, जिसने धर्म को जरिये की तरह इस्तेमाल किया है और 72 हूरों के मिलने के नाम पर उकसाया है। 13 दिसम्बर 2001 के भारतीय संसद पर हुए हमले से लेकर 26 नवम्बर 2008 के मुम्बई हमलों और 18 सितम्बर 2016 को उरी में भारतीय सेना के ब्रिगेड हैडक्वार्टर पर हुए हमलों तक इन सभी गतिविधियों के दौरान, विश्व समुदाय द्वारा भारत को पीछे हटने को कहा जाता रहा। पाकिस्तान सही रहा है। भारत के तमस् ने उसे और विश्व को इस बात की इजाजत दी कि वह हमारा शोषण करे, हमें मार डाले।

हमेशा से ऐसा नहीं था। पांच सहस्त्राब्दी पहले, महाभारत में श्रीकृष्ण ने अपने रिश्ते के भाई शिशुपाल को उसके सौ पाप माफ करने का वादा किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के दौरान जब शिशुपाल के सौ पाप पूरे हो गए और श्रीकृष्ण अपने वादे से मुक्त हो गए, तो सुदर्शन चक्र ने एक ही वार में शिशुपाल का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसका वध नैतिकता की हद में था, न्याय की जरूरत था और सबसे बढ़कर इसको आर्यवर्त की मंजूरी थी। वहां मौजूद ज्यादातर राजाओं ने एक शब्द तक नहीं कहा। कुछ अपना क्रोध पी गए और कुछ ने इस कार्य की सराहना की।

शिशुपाल की ही तरह चीन का समर्थन प्राप्त पाकिस्तानी सरकार के पापों का घड़ा भी भरने वाला है, तब भी उसे यकीन था कि भारत कोई कदम नहीं उठाएगा लेकिन अब, ऐसा लगता है कि श्रीकृष्ण की तरह भारत की भी कार्रवाई करने की घड़ी आन पहुंची है। इसके तीन कारण हैं। पहला, ऐसा पहली बार है, जब सदाचार की दुहाई देने वाले कुछ साधारण कुलीनों को छोड़कर देश भर के आम लोग बदला लेने के लिए सरकार के समर्थन में आ गए हैं; वे बलिदान के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं। दूसरा, ऐसा पहली बार है, जब चुनाव करीब होने के बावजूद, ज्यादातर विपक्षी दल सरकार के समर्थन में आ गए हैं और उन्होंने बदले की कार्रवाई के लिए उसे जरूरी राजनीतिक बल प्रदान कर दिया है — इससे रुख में परिवर्तन आता दिखाई दे रहा है — बड़े पैमाने पर लोगों का तमस् से रजस् में रूपांतरण हो रहा है।

और तीसरा कारण, सबसे बढ़कर भारत सैन्य रजस् को अपनाता दिखाई दे रहा है। वह लगातार शांति चाहता है — और यह एक अच्छा आदर्श है लेकिन पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों में, यही शांति दर्दनाक ढ़ंग से युद्ध के जबड़ों से जबरन खींचनी पड़ी है जिसके लिए, सबसे बढ़कर राजसिक बल का खुद को व्यक्त करना आवश्यक था। ऐसी दुनिया के आगे रिरियाने और अपील करने का समय अब समाप्त हो चुका है, जो हमारी गुहारों को नजरंदाज करती रही है। यहां तक कि दुनिया भी केवल राजसिक ताकतों की ही बात सुनती है, जैसा उसने अमेरिका में ट्विन टावर्स पर हुए हमले के बाद किया था और 2001 में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जंग छेड़ दी गई थी। द 9/11 रिपोर्ट: द नेशनल कमिशन ऑन टेररिस्ट अटैक्स अपोन द यूनाइटेड स्टेट्स में कहा गया है, “पाकिस्तान ने तालिबान को फलने-फूलने में सहायता दी है। इस बात का अहसास होने पर कि अपने हमें अपने बूते पर ही कदम उठाना होगा, हम अकेले हैं, जबकि वास्तविकता में वैश्विक ताकतें हमारी आर्थिक प्रगति में सम्मिलित होंगी, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ हमारे युद्ध में हमारी सहायता नहीं करेंगी, यह एक ऐसी हकीकत है, जिसके साथ जीने की कोशिश करना हमने सीख लिया है।

पुलवामा ने सबकुछ बदल डाला है। इस बात का अहसास होने पर कि कश्मीर घाटी के हमारे लोग आतंकवाद के असंयमित युद्ध के बड़े खेल का शिकार बनते आए हैंऐसा युद्ध जिसे लड़ने की यकीनन भारत को इच्छा नहीं हैउसमें हम बलिदान करने को तैयार हैं — यह भी हमारे देश के बढ़ते रजस् का भाग है।

निश्चित रूप से युद्ध में जीत होगी; लेकिन इससे शारीरिक, आर्थिक और मानसिक पीड़ा भी पहुंचेगी। यदि पाकिस्तान ने परमाणु​ विकल्प का इस्तेमाल कर लिया, तो भयानक तबाही होगी। हमारी प्रगति, समृद्धि, अर्थव्यवस्था, कल्याण कुछ वर्षों तक प्रभावित रहेंगे। पुलवामा के जरिए रजस् में हिंसक रूपांतरण ने हमें तैयार कर दिया है।

नुकसान पाकिस्तान को भी होगा। ऐसा नुकसान, जैसे पहले कभी नहीं हुआ : उसके सैनिकों, जनरलों का, उनके कॉर्नर प्लाट्स का, सेवानिवृत्ति के बाद की उनकी आराम की नौ​करियों का, उनकी अ​र्थव्यवस्था और उनके — आतंकवाद के बुनियादी ढ़ांचे का। भारत के तमस् से रजस् बल में परिवर्तित होते ही, यह रूपांतरण अपरिवर्तनीय होगा। यह हाफिज सईद या मसूद अजहर के मारे जाने से नहीं थमेगा, यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को पुन: प्राप्त कर लेने के बाद भी नहीं थमेगा, यह और आगे तक जाएगा। यह कल शुरू नहीं होगा या अगले साल समाप्त नहीं हो जाएगा। रजस् बल बरकरार रहेगा, यह मजबूत होता जाएगा, व्यापक होता जाएगा, ऊंचा उठेगा। यह चोट खाएगा, यह चोट पहुंचाएगा।

इसके बावजूद, भारत का रजस्, पाकिस्तान के उस रजस् से अलग होगा, जिसका नेतृत्व इस्लाम का नृशंस, प्रतिगामी संस्करण कर रहा है। अपने क्रांतिकारी पथ में, भारत में केवल ऐसी प्रेरणा का अभाव ही नहीं है, बल्कि वह ऐसी वहशी और असभ्य अवस्था चाहता भी नहीं है — इस हद तक, भारत का रजस् अनूठा होगा। भारत का राजसिक प्रतिशोध ठोस, कठोर और निर्णायक होगा। हम अपने सैनिकों पर इस बात का भरोसा कर सकते हैं कि वे सभ्य व्यवहार की सीमा नहीं लाघेंगे, हम कश्मीर में अपने सैनिकों को खुद पर ऐसा नियंत्रण रखते देखते आए हैं। और तो और बालाकोट बमबारी की मामूली घटना में भी, भारत ने यह सुनिश्चित करने का हरसंभव प्रयास किया कि इस कार्रवाई में कोई भी नागरिक हताहत न हो। बालाकोट ने शुरूआती शुद्धिकरण किया है, लेकिन यह सिर्फ शुरूआत भर है — भारत को दयाहीन बने रहने और फिर से तमस् की ओर न लौटने की जरूरत है। यदि कंधार, रुबइया सईद, संसद पर हमले, मुम्बई हमले तमस् थे, तो बालाकोट उसके रजस् की शुरूआत है।

अनेक सहस्त्राब्दियों पहले, ऋग्वेद में यही रजस् देखा गया था, जब 10 राजाओं ने तृत्सु — भारत की रियासत पर एक साथ हमला कर दिया था। इसके बाद हुए युद्ध में सम्राट सुदास ने उन दसों राजाओं को परास्त कर दिया था। इसी रजस् ने महाभारत में खुद को बार-बार व्यक्त किया था — उदाहरण कि लिए अर्जुन ने विराट में कौरवों को परास्त किया था या भीम ने अकेले ही 99 कौरवों का वध कर दिया था। यही रजस् 1660 में लहू से नहा गया था, जब बाजी प्रभु और उनके 300 सैनिकों ने शिवाजी की रक्षा के लिए 10,000 सैनिकों वाली सेना के साथ युद्ध किया था। इसी रजस् ने रानी लक्ष्मीबाई को लड़ने की ताकत दी थी, चंद्रशेखर आजाद की बंदूकों से भी यही बहा था, इसी ने खुद को भगत सिंह की दिलेरी में व्यक्त किया था। महात्मा गांधी इसी रजस् पर आरूढ़ हुए थे, सुभाष चंद्र बोस को इसी रजस् ने शक्ति दी थी।

वर्षों के विदेशी हमलों, पहले मुगलों और फिर ब्रिटिश द्वारा किए गए हमलों के बाद, भारत की आत्मा ने अपनी राजसिक आभा खोनी शुरू कर दी, वह कमजोर पड़कर या तो तमस् में परिवर्तित हो गई या सत्व में परिष्कृत हो गई। हमने विचारों, आर्थिक, सामाजिक बदलाव, सभ्यागत पहुंच, साहित्य के क्षेत्र में सत्व के उच्च विवेक तक जा पहुंचने की अभिलाषा की और वहां तक जा पहुंचे लेकिन सैन्य पक्ष की ओर, हमने कमजोरी, नीरसता, तमस् को अपना लिया। वरना यह कैसे मुमकिन है कि पाकिस्तान, जैसा देश जिसका जीडीपी भारत के जीडीपी का आठवां भाग है, वह इतनी मौतों को अंजाम दे, इतना ज्यादा कहर बरपाए, आतंकवाद का वैश्विक केंद्र बन जाए? हां, पाकिस्तान भी इस्लामिक आतंक की समस्या से निपट रहा है, लेकिन साथ ही, भारत भी तमस् द्वारा घिर जाने का दोषी है जो अब यह बदल रहा है।

राष्ट्रीय राजसिक बल का आचरण देश के नेताओं में रजस् भर देगा। नेता तीर के मुखाग्र जैसे होते हैं। यदि तीर का मुखाग्र कुंद होगा, तो जनता की इच्छा शक्ति, लाखों भावनाओं की ताकत, उत्साह का वेग और रजस् की शक्ति भी कुंद हो जाएगी, जैसा कि पिछले दशकों में पाकिस्तान से निपटते समय होता आया है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है — बालाकोट सिर्फ शुरूआत भर है, अब जबकि पाकिस्तान बदला लेने की तैयारी कर रहा है — हमें रुक कर इंतजार करना होगा और देखना होगा कि क्या भारत को तमस् से लम्बी छलांग लगाकर रजस् तक पहुंचता है या तमस् से पराजित हो जाता है और पाकिस्तान जैसे दुष्ट देश को भारत में आतंकवा​दी हत्याओं का एक नया दौर शुरू करने के लिए प्रेरित करता है।

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.