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सऊदी अरब के लिए भारत विश्व की आठ बड़ी शक्तियों में से एक है, जिसके साथ वो अपने 'विज़न 2030' के तहत रणनीतिक साझेदारी करना चाहता है.
पिछले तीन साल में मोदी दूसरी बार सऊदी अरब गए हैं. साल 2016 में मोदी की पहली सऊदी यात्रा के दौरान सऊदी अरब के बादशाह सलमान ने उन्हें सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया था. सऊदी की दूसरी यात्रा में मोदी को फ़्यूचर इन्वेस्टमेंट इनीशिएटिव समिट में शामिल होने का मौक़ा मिला. इसे ‘दावोस इन द डेज़र्ट’ यानी रेगिस्तान में डावोस कहा जा रहा है.
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की अगुआई में ये समिट कराया जा रहा है. मोहम्मद बिन सलमान इसी साल फ़रवरी में भारत आए थे. भारत ने हाल ही में कश्मीर राज्य को संविधान की धारा 370 के तहत मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया है. पाकिस्तान इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहा है, ऐसे में मोदी की सऊदी अरब की यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. सऊदी अरब में मोदी ने भारत के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की जमकर वकालत की. मोदी ने कहा कि भारत तेल और गैस के आधारभूत संरचना में 2024 तक 100 अरब डॉलर ख़र्च करने की योजना बना रहा है.
इस पैसे से भारत तेल रिफ़ायनरी में सुविधाओं को और बेहतर बनाने की कोशिश करेगा. मोदी के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था को अगले पाँच वर्षों में दोगुनी करने का लक्ष्य है और इसके लिए ऊर्जा की ज़रूरतों में और इज़ाफ़ा होगा. मोदी ने निवेशकों को आश्वस्त किया कि ‘राजनीतिक स्थिरता, पूर्वानुमान योग्य नीति और विविधतापूर्ण बड़े बाज़ार के कारण आपका निवेश भारत में सबसे ज़्यादा लाभदायक होगा.’
भारत और सऊदी अरब का व्यापार पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ रहा है. लेकिन ये संबंध केवल ख़रीदार और विक्रेता वाला नहीं है. हालांकि ये भी सच है कि भारत और सऊदी अरब के व्यापारिक रिश्तों में ऊर्जा क्षेत्र ही सबसे महत्वपूर्ण है.
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत ने अगले कुछ वर्षों में आधारभूत ढांचे को मज़बूत करने के लिए 1.5 खरब डॉलर ख़र्च करने की योजना बनाई है. मोदी ने सऊदी की तेल कंपनी आरामको का उदाहरण देते हुए कहा कि आरामको महाराष्ट्र के रिफ़ायनरी प्रोजेक्ट में निवेश कर रही है जो कि एशिया की सबसे बड़ी रिफ़ायनरी कंपनी है और छह करोड़ टन तेल का उत्पादन करती है. भारत और सऊदी अरब का व्यापार पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ रहा है. लेकिन ये संबंध केवल ख़रीदार और विक्रेता वाला नहीं है. हालांकि ये भी सच है कि भारत और सऊदी अरब के व्यापारिक रिश्तों में ऊर्जा क्षेत्र ही सबसे महत्वपूर्ण है. इराक़ के बाद सऊदी अरब भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. सऊदी अरब अब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर बन गया है.
भारत और सऊदी अरब का रिश्ता धीरे-धीरे सामरिक होता जा रहा है जैसा कि मोदी ने रियाद में अपने भाषण में ख़ुद इसका ज़िक्र किया था.
दोनों देशों के बीच साल 2017-18 में 27.48 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. सऊदी अरब भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहा है. ये निवेश ऊर्जा, रिफ़ायनरी, पेट्रोकेमिकल्स, कृषि, और खनन के क्षेत्र में होगा. भारत और सऊदी अरब का रिश्ता धीरे-धीरे सामरिक होता जा रहा है जैसा कि मोदी ने रियाद में अपने भाषण में ख़ुद इसका ज़िक्र किया था. मोदी की सऊदी यात्रा के दौरान दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. पहला समझौता इंडियन स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड और सऊदी आरामको के बीच हुआ जिसके कारण सऊदी अरब कर्नाटक में तेल रिजर्व रखने का दूसरा प्लांट बनाने में अहम रोल अदा करेगा.दूसरा समझौता भारत के इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पश्चिमी एशिया यूनिट और सऊदी अरब की अल-जेरी कंपनी के बीच हुआ. मोदी ने इस दौरान इंडिया-सऊदी स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप काउंसिल के गठन की भी घोषणा की. इस काउंसिल में दोनों देशों का नेतृत्व शामिल होगा जो भारत को अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेगा.
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के भारत सरकार के फ़ैसले पर भी सऊदी की प्रक्रिया तुर्की और मलेशिया के उलट सकारात्मक रही.
सऊदी अरब में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या सबसे ज़्यादा है. वहां 26 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. पहले से उलट, भारत अब द्विपक्षीय बातचीत में दूसरे देशों में रह रहे अपने लोगों के मुद्दों और उनके फ़ायदों का पूरा इस्तेमाल करने में नहीं हिचकता है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब में भारतीय समुदाय की ‘कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता’ का ख़ास तौर से ज़िक्र किया और कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्ते मज़बूत होंगे. उन्होंने अपने भाषण के ज़रिए सऊदी में रह रहे भारतीयों तक पहुंचने की कोशिश की. पीएम मोदी ने कहा, “भारत आप पर गर्व करता है क्योंकि आपने सऊदी में अपनी जगह बनाई है. आपकी कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता ने हमारे द्विपक्षीय रिश्ते में मिठास लाने और इसे मज़बूत बनाने में मदद की है.” भारत जिस तरह सऊदी अरब से लगातार जुड़ा हुआ है, उसका फ़ायदा उसे राजनीतिक मोर्चे पर सऊदी की ओर से सकारात्मक रवैये के तौर पर मिला है. जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने के भारत सरकार के फ़ैसले पर भी सऊदी की प्रक्रिया तुर्की और मलेशिया के उलट सकारात्मक रही. सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर बढ़ते संकट को लेकर पाकिस्तान को चेताया था. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ख़ुद रियाद दौरा किया था. पाकिस्तान के सऊदी अरब के साथ पांरपरिक रिश्ते भी रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद सऊदी ने यह संकेत दिया कि वो कश्मीर मुद्दे पर भारत की चिंताओं और संवेदनशीलता को समझता है.
ये सारे फ़ैसले कहीं न कहीं ये इशारा भी करते हैं कि सऊदी अरब का आर्थिक मॉडल ख़तरे में हैं. सऊदी अरब को भारत जैसे सहयोगी देशों की ज़रूरत है. हमें इस पर ध्यान देना चाहिए कि अगस्त में अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के फ़ैसले के महज एक हफ़्ते के भीतर भारत ने सऊदी अरब में निवेश का ऐलान किया था. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) ने अपने ‘ऑयल-केमिकल’ कारोबार का 20 फ़ीसदी शेयर सऊदी अरब की कंपनी अरामको को बेचने का फ़ैसला किया था. इसकी क़ीमत 75 अरब डॉलर है और यह सऊदी अरब में होने वाला अब तक के सबसे बड़े विदेशी निवेशों (FDI) में से एक है. भारत और सऊदी अरब दोनों ही वैश्विक और क्षेत्रीय संकट के दौर में अपनी विदेश नीति और प्राथमिकताओं को नई परिभाषा दे रहे हैं. भारत के लिए सऊदी अरब और खाड़ी देश मध्य-पूर्व के प्रमुख आकर्षण बन रहे हैं. वहीं, सऊदी अरब के लिए भारत विश्व की आठ बड़ी शक्तियों में से एक है, जिसके साथ वो अपने ‘विज़न 2030’ के तहत रणनीतिक साझेदारी करना चाहता है. इसलिए अगर भारत और सऊदी अरब के रिश्तों में नई ऊर्जा आती दिख रही है तो इसे लेकर हैरान नहीं होना चाहिए.
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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...
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