Published on Jan 03, 2020 Updated 0 Hours ago

अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका अपनी बादशाहत बनाए रखना चाहता है. ताकि, भविष्य में रूस और चीन जैसे देश नई तकनीक हासिल भी कर लें, तो अमेरिका का मुक़ाबला न कर सकें.

जानें अमेरिका क्यों अंतरिक्ष में अपनी फौज का निर्माण करना चाहता हैं?

अमेरिका की ट्रंप सरकारने एक ऐसा कानून बनाया है, जिससे अमेरिका की एक नई सेना अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल (USSF) के गठन का रास्ता साफ़ हो गया है. अमेरिकी सैन्य और सामरिक समुदाय के साथ-साथ अमेरिकी संसद में काफ़ी दिनों तक चली परिचर्चा के बाद, गठित होने वाला अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल, अमेरिका का छठा सैन्य बल होगा. इस से पहले अमेरिकी थल सेना, वायु सेना, नौ सेना, मरीन कॉर्प्स और कोस्ट गार्ड्स के तौर पर अमेरिका के पास पांच सैन्य बल हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल, अमेरिका के एयर फ़ोर्स विभाग का ही हिस्सा होगा, ठीक उसी तरह जैसे अमेरिकी मरीन कॉर्प्स (USMC) अमेरिका के नौ सेना विभाग (USN) का हिस्सा है. अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल के लिए शुरुआत में केवल 4 करोड़ डॉलर का छोटा सा बजट रखा गया है. हालांकि, आने वाले महीनों और वर्षों में इस नई अमेरिकी सेना को विशाल फंडिंग मिलने की पूरी संभावना है, जो अरबों डॉलर तक पहुंच सकती है. अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल में शुरुआत में अमेरिकी वायु सेना के अधिकारियों के रखे जाने की संभावना है.

इस नए अमेरिकी सैन्य बल की स्थापना के सब से बड़े समर्थक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रहे हैं. ट्रंप का मानना है कि उन के देश की ये नई अंतरिक्ष सेना, अंतरिक्ष में किसी भी तरह के आक्रमणकारी को दूर रखेगी और सब से पहले अंतरिक्ष की फौज बना कर उन का देश इस क्षेत्र में लंबी छलांग लगा लेगा. ट्रंप ने तो ये भी कहा था कि, “हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को जो बड़े ख़तरे हैं, उन्हें देखते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका की बादशाहत क़ायम रहना अनिवार्य है.” इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान पूरी तरह से सही नहीं है. क्योंकि अमेरिकी अंतरिक्ष सेना का बुनियादी मक़सद किसी भी ख़तरे से बचाव करना होगा. इस सैन्य बल के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र को पूरी तरह से नियंत्रित करना मुमकिन नहीं होगा. इस की पहली वजह तो ये है कि अमेरिका के इस नए सैन्य बल को इस नज़रिए से स्थापित किया जा रहा है कि अमेरिका अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी दादागीरी क़ायम रख पाने में सक्षम है और वो ऐसा ही करेगा. क्योंकि अमेरिका के पास सब से बेहतरीन अंतरिक्ष की तकनीक है. और अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत कर के उन्हें अंजाम तक पहुंचाने का अमेरिका को सब से ज़्यादा लंबा तज़ुर्बा है. फिर चाहे वो सिविलियन मिशन हों या सैन्य मिशन.

अमेरिका के अंतरिक्ष सैन्य बल के लिए एक और काम होगा और वो ये कि अंतरिक्ष में मौजूद अमेरिकी संसाधनों की हिफ़ाज़त करना. और अगर कोई जंग अंतरिक्ष के क्षेत्र में फैलती है, तो फिर दुश्मन को पराजित करना भी अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल का मक़सद होगा.

लेकिन, अंतरिक्ष में दादागीरी क़ायम करने का अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का लक्ष्य हासिल करना नामुमकिन है. क्योंकि आज की तारीख़ में अंतरिक्ष में बहुत भीड़-भाड़ है. कई देश इस क्षेत्र में सक्रिय हैं. आज से दो दशक पहले ऐसे हालात नहीं थे. अंतरिक्ष के क्षेत्र में कोई ख़ास मुक़ाबला नहीं था. ऐसे में अमेरिका की बादशाहत को चुनौती देने वाला कोई नहीं था. अमेरिकी स्पेस कमांड (USSC) के महानिदेशक ब्रिगेडियर जनरल थॉमस की ही मिसाल लीजिए. ब्रिगेडियर जनरल थॉमस जेम्स ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका के तीन बुनियादी लक्ष्य बताए थे. इन में से जो सब से अहम था वो ये था कि किसी भी शक्ति से संघर्ष को अंतरिक्ष के क्षेत्र में फैलने से रोकना और अंतरिक्ष को जंग का मैदान बनाने से रोकना. ब्रिगेडियर जनरल थॉमस जेम्स का कहना था कि अगर कोई युद्ध अंतरिक्ष के मोर्चे पर लड़ा जाएगा, तो उस में कोई भी देश विजेता नहीं हो सकता. क्योंकि इस जंग से अंतरिक्ष में जो कचरा बिखरेगा वो सैकड़ों सालों तक वहीं पड़ा रहेगा. हालांकि, ब्रिगेडियर जेम्स ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका के दो और मक़सद भी गिनाए थे. वो भी अहम हैं और उन का ज़िक्र भी आवश्यक है. अमेरिका के अंतरिक्ष सैन्य बल के लिए एक और काम होगा और वो ये कि अंतरिक्ष में मौजूद अमेरिकी संसाधनों की हिफ़ाज़त करना. और अगर कोई जंग अंतरिक्ष के क्षेत्र में फैलती है, तो फिर दुश्मन को पराजित करना भी अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल का मक़सद होगा. हालांकि, ये ज़रूरी नहीं कि जंग में जीत अंतरिक्ष के क्षेत्र में ही हासिल की जाए. बल्कि ये जंग एक साथ कई मोर्चों पर लड़ी जाएगी. इन में से एक मोर्चा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम यानी EMS हो सकता है. जिस के तहत इलेक्ट्रॉनिक युद्ध होगा, जो साइबर दुनिया में होगा. हालांकि, साइबरस्पेस काफ़ी हद तक EMS पर ही निर्भर है.

बुनियादी तौर पर अमेरिका के इस क़दम का मक़सद दुश्मन को डराना है. क्योंकि अंतरिक्ष का माहौल ऐसा है कि उस पर जंग के बुनियादी उसूल लागू नहीं होते. वो कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे कोई एक देश नियंत्रित कर सके और उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर सके. ऐसा करना बेहद मुश्किल था. और अगर अंतरिक्ष के क्षेत्र में जंग छिड़ती भी है तो वहां मौजूद अपने संसाधनों की हिफ़ाज़त करना बहुत मुश्किल होगा. उन्हें नुक़सान से बचा पाना तो असंभव ही होगा. ऐसे में अगर किसी युद्ध का दायरा अंतरिक्ष तक फैला, तो तबाही आनी तय है. इस का पहला शिकार वो सुविधाएं होंगी, हम जिन के आदी हो चुके हैं. जैसे कि, सैटेलाइट टेलीविज़न, इंटरनेट, एटीएम से नक़दी निकालना और सामान्य नागरिकों और कारोबारियों के इस्तेमाल में आने वाली कई अन्य सुविधाएं. और इसके अलावा मानवता के सब से बड़े अनुसंधानों में से एक-अंतरिक्ष के अन्वेषण के तमाम अभियान तो पटरी से उतरने तय ही हैं.

इसीलिए, अमेरिका के नए अतंरिक्ष सैन्य बल का बुनियादी मक़सद, दुश्मन को किसी तरह के दुस्साहस से रोकना ही है. इसका अर्थ ये है कि स्पेस फ़ोर्स की ज़िम्मेदारी संभालने वाले अमेरिका के बड़े सैन्य अधिकारियों की तरफ़ से आने वाले बयान इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि अंतरिक्ष की सैन्य योजनाओं, मिशन और अभियानों की जो तैयारी हो रही है, वो असल में ऐसे किसी हालात को पैदा होने से रोकने के लिए ही है. ख़ासतौर से ऐसे युद्ध को होने से रोकना, जिस से अंतरिक्ष में कचरे का ढेर लगने से रोका जा सके. क्योंकि ऐसा हुआ तो अंतरिक्ष का क़रीबी और दूर का इलाक़ा इंसान के इस्तेमाल के लायक़ ही नहीं बचेगा.

जुलाई 2019 में भारत ने डिफेंस स्पेस एजेंसी की स्थापना का एलान किया था. इस एजेंसी का मक़सद अंतरिक्ष अभियानों की योजना बनाने से लेकर उन के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी उठाना है.

इसके बावजूद, ट्रंप का ये बयान कि अमेरिका अपने इस नए सैन्य बल की मदद से अंतरिक्ष में अपना प्रभुत्व क़ायम कर लेगा, काफ़ी हद तक वाजिब लगता है. इस की वजह ये नहीं है कि अमेरिकी अंतरिक्ष सैन्य बल वाक़ई में अंतरिक्ष में प्रभुत्व क़ायम करने में सक्षम है. बल्कि, प्रभुत्व पर ज़ोर का ये शोर इसलिए है, ताकि तकनीकी तौर पर अमेरिका अंतरिक्ष की रेस में अपनी बढ़त बनाए रखे. इस क्षेत्र में अपनी बराबरी के प्रतिद्वंदियों और संभावित प्रतिद्वंदियों से स्पेस रेस में काफ़ी आगे चलता रहे. इसके अलावा, ट्रंप के बयान से जो एक और बात ज़ाहिर नहीं होती है, लेकिन है बहुत अहम, वो ये है कि अमेरिका अंतरिक्ष में अपनी मौजूदा अगुवाई की स्थिति को लेकर गंभीर न हो, आलस्य न करे. और लगातार इस बात का प्रयास करता रहे कि नई नई तकनीक ईजाद कर के वो दूसरे देशों को चौंकाता रहे. क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि अंतरिक्ष में अमेरिका के प्रतिद्वंदी देश भी किसी न किसी स्तर पर अंतरिक्ष की नई तकनीक हासिल करने में जुटे हैं. और आने वाले समय में वो इन में से कुछ मोर्चों पर कामयाब भी हो सकते हैं. इन में से कुछ तकनीकें सैन्य क्षेत्र में काम आने वाली हो सकती हैं. अंतरिक्ष में अमेरिका के प्रमुख प्रतिद्वंदियों में चीन और रूस अहम हैं. कुल मिलाकर कहें, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमेरिका अपनी बादशाहत बनाए रखना चाहता है. ताकि, भविष्य में रूस और चीन जैसे देश नई तकनीक हासिल भी कर लें, तो अमेरिका का मुक़ाबला न कर सकें, या अमेरिका को पछाड़ न सकें. ख़ासतौर से ऐसी सैन्य तकनीक, जो मौजूदा और संभावित ख़तरों से निपटने में सक्षम हो. इसके अलावा अमेरिका अपने भविष्य के लक्ष्य हासिल करने में भी सतत प्रयास जारी रखना चाहता है. फिर वो चाहे अंतरिक्ष के तकनीकी क्षेत्र में हो, या फिर ऑपरेशन के स्तर पर. इसके अलावा, अमेरिका ये भी सुनिश्चित करना चाहता है कि ज़मीन से जुड़े अन्य अभियानों के लिए अंतरिक्ष के प्रयोग की भूमिका अहम बनी रहे.

अमेरिका को इस नए अंतरिक्ष सैन्य बल से होने वाले अन्य फ़ायदों में सैन्य बलों की संगठनात्मक क्षमता, अभियानों और सैनिकों के नियमितीकरण में मदद मिलेगी. जैसा कि अमेरिकी वायु सेना की मंत्री बारबरा बैरेट ने कहा कि, ‘अब समय आ गया है कि ऐसी टीम का गठन हो, जो अंतरिक्ष में ताकतों की स्थापना करने, उन्हें संगठित करने और उन्हें नए संसाधनों से लैस करे.’ बारबरा बैरेट की इसी बात में अमेरिका की अंतरिक्ष फ़ोर्स की तर्ज पर भारत को भी अंतरिक्ष सैन्य बल स्थापित करने की वजह साफ़ होती है. चूंकि भारत भी बड़ी तेज़ी से अंतरिक्ष में अपने अभियानों का दायरा बढ़ा रहा है, तो उसे अब अंतरिक्ष में सैन्य तकनीक के विस्तार पर भी ध्यान देना चाहिए. जुलाई 2019 में भारत ने डिफेंस स्पेस एजेंसी की स्थापना का एलान किया था. इस एजेंसी का मक़सद अंतरिक्ष अभियानों की योजना बनाने से लेकर उन के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी उठाना है. साथ ही इस एजेंसी को अंतरिक्ष तकनीक का सैन्य अभियानों में असरदार तरीक़े से इस्तेमाल करने के तरीक़ों को तलाशने का काम भी करना है. अभी ये सवाल ग़ैरवाजिब है कि क्या भारत को भी अंतरिक्ष सेना का गठन करना चाहिए? फिलहाल तो भारत को डीएसए के संचालन में ही और अनुभव हासिल करने की ज़रूरत है. जिस के तहत अंतरिक्ष से जुड़े तमाम संगठन मिल-जुल कर काम करने का अनुभव हासिल करेंगे. साथ ही अंतरिक्ष में भारत के संसाधनों को संगठित किया जाएगा. अगर हम अमेरिका के अंतरिक्ष सैन्य बल की बात करें, तो इस का अंतरिक्ष में प्रभुत्व क़ायम करने का लक्ष्य महज़ एक ख़्वाब है. कुछ एक लोगों को छोड़ दें, तो अमेरिका के अंतरिक्ष और सैन्य विशेषज्ञों में से ज़्यादातर को गंभीरता से इस बात का यक़ीन नहीं है कि अमेरिका केवल अंतरिक्ष सेना स्थापित कर के इस लक्ष्य को हासिल कर सकता है.

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