Author : K. V. Kesavan

Published on Dec 08, 2020 Updated 0 Hours ago

आबे की तरह सुगा भी मानते हैं कि स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की धारणा इस विशाल क्षेत्र में कुछ निश्चित पूर्व निर्धारित शर्तों को मान्यता देकर शांति, पारदर्शिता और सबको साथ लेकर चलने को बढ़ावा देगी.

जापान के पीएम योशिहिदे सुगा ने किया स्वतंत्र और मुक्त ‘इंडो-पैसिफिक’ का समर्थन

जापान के नये प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने 16 सितंबर को कामकाज संभाला. तब से स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक (FOIP) को मज़बूती प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं. शुरुआत में ही सुगा ने माना कि जहां तक जापान की विदेश नीति की बात है तो वो अपने पूर्ववर्ती शिंज़ो आबे के क़दमों पर चलेंगे क्योंकि विदेश मामलों में उनका अपना अनुभव बेहद सीमित है. सुगा को मालूम था कि आबे ने अमेरिका के साथ जापान के सुरक्षा गठजोड़ को विदेश नीति का मुख्य़ आधार बरकरार रखते हुए भारत, ऑस्ट्रेलिया और आसियान के देशों के साथ क़रीबी सामरिक साझेदारी को बढ़ावा दिया.

आबे, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से कुछ महीने पहले इस्तीफ़ा दिया था, उनकी तरह सुगा भी मानते हैं कि स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक की धारणा इस विशाल क्षेत्र में कुछ निश्चित पूर्व निर्धारित शर्तों को मान्यता देकर शांति, पारदर्शिता और सबको साथ लेकर चलने को बढ़ावा देगी. ये शर्तें हैं (ए) शांतिपूर्ण ढंग से प्रादेशिक या समुद्र तटीय विवाद का निपटारा (बी) प्रादेशिक यथास्थिति को ताक़त के दम पर बदलने के क़दमों से परहेज करना (सी) समुद्र तटीय सुरक्षा जैसे खुले समुद्र में फ्रीडम ऑफ नेविगेशन में वैश्विक स्तर पर तय नियमों का पालन करना और (डी) वैश्विक सार्वजनिक स्थलों के लिए सम्मान दिखाना. संक्षेप में, FOIP का मक़सद विशाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को खुला, सबको साथ लेकर चलने वाला और नियम आधारित सिस्टम को लेकर गहरे तौर पर प्रतिबद्धता सुनिश्चित करना है.

FOIP का मक़सद विशाल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को खुला, सबको साथ लेकर चलने वाला और नियम आधारित सिस्टम को लेकर गहरे तौर पर प्रतिबद्धता सुनिश्चित करना है. 

कामकाज संभालने के एक महीने के भीतर सुगा ने अपने पहले आधिकारिक दौरे में वियतनाम और इंडोनेशिया जाने का फ़ैसला किया. इसकी वजह ये थी कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आसियान का निर्णायक स्थान है और वियतनाम और इंडोनेशिया आसियान का नेतृत्व करने वाले देश हैं. वियतनाम आसियान समूह का मौजूदा अध्यक्ष है और उसने जापान के साथ नज़दीकी आर्थिक और सामरिक संबंध बनाए हैं. 1973 में जापान और वियतनाम के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद दोनों देशों ने अपने संबंधों को बढ़ाते हुए 2009 में सामरिक साझेदारी की.

यूरोपियन यूनियन के साथ व्यापार समझौता

वियतनाम की अर्थव्यवस्था काफ़ी मज़बूत बन गई है और वो अपनी बुनियाद को और व्यापक और विविध बना रहा है. हाल में यूरोपियन यूनियन के साथ एक व्यापार समझौता करने के बाद अब वो यूनाइटेड किंगडम के साथ भी ऐसा ही व्यापार समझौता करने जा रहा है. वियतनाम और जापान के बीच क़रीब 28 अरब अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार है और इस तरह जापान, वियतनाम का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जापान, वियतनाम में सबसे ज़्यादा निवेश करने वाले देशों में भी शामिल है. इसके अलावा जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) हासिल करने में भी वियतनाम बड़े देशों में से है. इस सहायता का फ़ायदा इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास समेत कई महत्वपूर्ण सेक्टर को हुआ है. हाल के वर्षों में ODA के चार्टर में फेरबदल के बाद जापान ने वियतनाम की समुद्री क्षमता को मज़बूत करने के लिए सामरिक मदद भी पहुंचाई है. दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में चीन के आक्रामक समुद्री व्यवहार को लेकर दोनों देशों की चिंताएं साझा हैं.

हाल के वर्षों में ODA के चार्टर में फेरबदल के बाद जापान ने वियतनाम की समुद्री क्षमता को मज़बूत करने के लिए सामरिक मदद भी पहुंचाई है. दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में चीन के आक्रामक समुद्री व्यवहार को लेकर दोनों देशों की चिंताएं साझा हैं. 

मौजूदा दौरे में सुगा और वियतनाम के प्रधानमंत्री न्यून शुअन फ़ूक ने इस बात पर ध्यान दिया कि अपनी द्विपक्षीय साझेदारी को कैसे स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए मज़बूत नींव बनाएं. वो इसे असलियत में बदलने के लिए अन्य उपायों के अलावा निम्नलिखित तीन क़दम उठाने के लिए सहमत हुए. पहला, दोनों सैद्धांतिक तौर पर इस बात के लिए सहमत हुए कि उचित नियंत्रण के तहत जापान के रक्षा उपकरणों और तकनीक के ट्रांसफर के लिए एक समझौते पर दस्तख़त करेंगे. जापान ने 10 से ज़्यादा देशों के साथ इसी तरह के समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इस समझौते के ज़रिये जापान पहले ही वियतनाम को उसके तटीय रक्षा के मक़सद कई गश्ती नाव दे चुका है.

दूसरा, दक्षिणी चीन सागर में शांति और व्यवस्था कायम रखने में दोनों नेताओं के साझा हित हैं. हालांकि, जापान दक्षिणी चीन सागर में प्रादेशिक विवाद का एक पक्ष नहीं है लेकिन अगर इस इलाक़े से गुज़रने वाले समुद्री रास्ते में कोई दुश्मन देश रुकावट डालता है तो जापान के आर्थिक और ऊर्जा हित गंभीर रूप से प्रभावित होंगे. सैन्य मक़सदों के लिए दक्षिणी चीन सागर में चीन के द्वारा कृत्रिम द्वीपों के निर्माण के ख़िलाफ़ जापान पहले ही बोल चुका है. जापान ने हमेशा चीन और आसियान के देशों- दोनों से अनुरोध किया है कि वो शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए दक्षिणी चीन सागर में मज़बूत आचार संहिता पर बातचीत तेज़ करें. वियतनाम दक्षिणी चीन सागर के प्रादेशिक विवाद में एक दावेदार है और उसने लगातार अपने संप्रभु समुद्र में चीन की घुसपैठ का सामना किया है जिसका नतीजा अक्सर हिंसक संघर्ष होता है. इंडो-पैसिफिक पर आसियान के दृष्टिकोण (AOIP) का स्वागत करते हुए सुगा ने कहा कि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए प्रयासरत AOIP और FOIP में “मूलभूत समानताएं” हैं. चूंकि चीन की समुद्री महत्वाकांक्षा का मुक़ाबला करने के लिए ट्रंप प्रशासन ने मज़बूत क़दम उठाए हैं, ऐसे में बहुत ज़्यादा तनाव पहले ही कायम हो चुका है.

वियतनाम दक्षिणी चीन सागर के प्रादेशिक विवाद में एक दावेदार है और उसने लगातार अपने संप्रभु समुद्र में चीन की घुसपैठ का सामना किया है जिसका नतीजा अक्सर हिंसक संघर्ष होता है. 

तीसरा, कोविड-19 फैलने के बाद चीन से सप्लाई चेन में बाधा की वजह से जापान को मेडिकल मास्क, गाउन और उपकरणों की बहुत ज़्यादा कमी का सामना करना पड़ा. जापान ने इससे सबक़ सीखा कि किसी एक देश पर बहुत ज़्यादा निर्भरता लंबे वक़्त के लिए राष्ट्रीय हित में नहीं होगा. इसलिए जापान ने फ़ैसला लिया कि वो चीन में काम कर रही अपनी कंपनियों को वापस घरेलू बाज़ार या आसियान के देशों में बसाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. अभी तक क़रीब 30 कंपनियों को वियतनाम और इंडोनेशिया समेत आसियान के देशों में जाने के लिए तय किया जा चुका है. ये कंपनियां भविष्य में जापान और आसियान के देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने में प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं.

जापानी पीएम का इंडोनेशिया दौरा

ज़्यादा आबादी और विशाल प्राकृतिक संसाधनों की वजह से इंडोनेशिया हमेशा से जापान की दक्षिण-पूर्व एशिया नीति में ख़ास स्थान रखता है.

वियतनाम के बाद सुगा इंडोनेशिया गए जो उनकी दूसरी और आख़िरी मंज़िल थी. ज़्यादा आबादी और विशाल प्राकृतिक संसाधनों की वजह से इंडोनेशिया हमेशा से जापान की दक्षिण-पूर्व एशिया नीति में ख़ास स्थान रखता है. 60 साल से ज़्यादा पुराना उनका राजनयिक सबंध अब परिपक्व साझेदारी में विकसित हो चुका है जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थायित्व में योगदान देता है. समुद्र तटीय देश होने की वजह से इंडो-पैसिफिक के समुद्र को स्वतंत्र, खुला और नियम आधारित बनाए रखने में दोनों देशों के आपसी हित हैं. दक्षिणी चीन सागर के किसी भी विवाद में इंडोनेशिया पक्ष नहीं है लेकिन उसने हमेशा ज़ोर डाला है कि ताक़त के दम पर मुद्दों के निपटारे की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए. जब दक्षिणी चीन सागर के किसी ख़ास द्वीप पर चीन दावा करता है, जो इंडोनेशिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मौजूद है, तो चीन के समुद्री हठ की तपिश इंडोनेशिया भी महसूस करता है.

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने सुगा का स्वागत किया और जापान-इंडोनेशिया साझेदारी को “दुनिया की बड़ी ताक़तों में तेज़ होती दुश्मनी के बीच ख़ास-तौर पर महत्वपूर्ण” माना. विडोडो नहीं चाहते हैं कि उनका देश अमेरिका-चीन के बीच तेज़ होते संघर्ष में शामिल हो. इसके विपरीत वो क्षेत्रीय मामलों में संतुलन कायम करने में बीच की ताक़तों जैसे जापान और इंडोनेशिया के लिए अवसर देखते हैं. इंडोनेशिया के रुख़ की तारीफ़ करते हुए सुगा ने वादा किया कि वो जापान की इंफ्रास्ट्रक्चर सहायता इंडोनेशिया तक पहुंचाना जारी रखेंगे. जापान की सहायता वाली ये परियोजनाएं शहरी परिवहन, बंदरगाह विकास और संचार समेत कई सेक्टर में हैं. दूसरा, इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा हालात में तेज़ी से बदलाव को देखते हुए दोनों देशों ने फ़ैसला लिया कि वो 2+2 फॉर्मेट में नई मंत्री स्तरीय बैठक करेंगे जहां दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री समय-समय पर मिलेंगे. जापान ने पहली बार आसियान के किसी देश के साथ इस तरह की व्यवस्था की है. इसमें कोई शक नहीं है कि नई 2+2 बैठक आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच सुरक्षा पर सहयोग को व्यापक करेगी. तीसरा, जापान एक समझौते पर दस्तख़त के लिए भी तैयार हुआ जिसके तहत जापान के रक्षा उपकरणों और तकनीक का ट्रांसफर होगा जो इंडोनेशिया को हथियारों की बिक्री को आसान बनाएगा.

सुगा का वियतनाम और इंडोनेशिया दौरा काफ़ी हद तक सफल रहा. लेकिन ये ध्यान देना भी ज़रूरी है कि उनके दौरे से क़रीब दो हफ़्ते पहले जापान की सरकार ने टोक्यो में दो महत्वपूर्ण बैठकों की मेज़बानी की. पहली बैठक 6 अक्टूबर को जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका की क्वॉड्रिलेटरल बैठक थी. दूसरी बैठक 7 अक्टूबर को भारत-जापान के विदेश मंत्रियों का सामरिक संवाद था. ये दोनों बैठकें भी भविष्य में FOIP के विकास के हिसाब से काफ़ी अहम हैं.

जापान की विदेश नीति में भारत के साथ साझेदारी अब एक महत्वपूर्ण तत्व बन गया है. विश्लेषक इस तथ्य की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं कि कामकाज संभालने के फ़ौरन बाद प्रधानमंत्री सुगा ने जब विदेशी मेहमानों का अभिवादन किया तो उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पहले भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन किया.

कुछ नया या उम्मीदों के उलट. जिन्होंने साझेदारी के विकास को देखा है वो जानते हैं कि इसमें लचीलापन बेहद ज़रूरी है और प्रधानमंत्री के बदलने से आसानी से साझेदारी का सिलसिला नहीं टूटता. यहां तक कि 2010 में लिबरल डेमोक्रेट की जगह डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्ता में आने के बाद भी साझेदारी में मूलभूत बदलाव नहीं हुआ. जापान की विदेश नीति में भारत के साथ साझेदारी अब एक महत्वपूर्ण तत्व बन गया है. विश्लेषक इस तथ्य की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं कि कामकाज संभालने के फ़ौरन बाद प्रधानमंत्री सुगा ने जब विदेशी मेहमानों का अभिवादन किया तो उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पहले भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन किया. हालांकि ये सांकेतिक भाव था लेकिन इसके बाद भी कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए जो आबे की विरासत को जारी रखने के लिए प्रधानमंत्री सुगा की उत्सुकता को दिखाते हैं.

इनमें पहला और सबसे बड़ा घटनाक्रम है 6 अक्टूबर को टोक्यो में तथाकथित क्वॉड्रिलेटरल देशों यानी जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत की बैठक. ये प्रधानमंत्री आबे ही थे जिन्होंने पहले 2007 और बाद में 2017 में चारों देशों को साझा मंच पर लाने की पहल की थी ताकि उनके साझा हितों को बढ़ावा दिया जा सके. इसका मक़सद ये सुनिश्चित करना था कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र किसी एक आधिपत्य जमाने वाली शक्ति के वर्चस्व से खुला, सबको साथ लेकर चलने वाला और स्वतंत्र रहे.

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