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छोटे से अंतराल में ही दृष्टिकोण में अचानक आए इस बदलाव की वजह क्या है?
कोविड-19 ने जापान की आर्थिक सोच और गतिविधियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. उसे टोक्यो ओलंपिक से हो सकने वाला फ़ायदा नहीं मिला जो एक घरेलू प्रोत्साहन पैकेज के रूप में देखा जा रहा था. 2.2 अरब डॉलर में से 20 करोड़ डॉलर का सपोर्टेड कारोबार चीन से आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस) को स्थानांतरित होना था. इस दृश्य में भारत कहीं नहीं था.
भारत में (अप्रैल 2020) जापानी कंपनियों पर जेट्रो (जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ) के एक सर्वे ने निराशाजनक आंकड़े पेश किए. इसके अनुसार कोविड-19 से पहले, 40% जापानी कंपनियां भारत में एफडीआई विस्तार करना चाहती थीं, लेकिन कोविड के बाद यह संख्या घट कर 6.9% रह गई थी. इसके नतीजे भारत सरकार के साथ भी साझा किए गए ताकि नकारात्मक भावनाओं को समझा सके. हालांकि, अगस्त 2020 तक व्यापार की भावना काफी बदल गई थी. जापान के आर्थिक, व्यापार और उद्योग मंत्री हिरोशी काजियामा ने 200 कंपनियों के भारत में निवेश के इरादे का संकेत दिया, बशर्ते कि हालात सही हों.
छोटे से अंतराल में ही दृष्टिकोण में अचानक आए इस बदलाव की वजह क्या है? शायद इसकी वजह टोक्यो सरकार की सोच है जो जापानी कारोबार को भारत को एक रणनीतिक साझीदार के रूप में देखने के लिए निर्देशित करती है चाहती है कि इसे जापान की वैल्यू चेन (उपयोगी श्रृंखला) में शामिल किया जाए. सितंबर में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वॉड (Quad) के रणनीतिक निवेश पैटर्न का विस्तार करने वाले क्षेत्रीय और वैश्विक वैल्यू चेन के निर्माण पर चर्चा होने की संभावना है. इसका सिद्धांत यह है कि अगर नई साझीदारी को सफल होना है तो भारत में स्थिर जापानी एफडीआई होना चाहिए.
अगस्त 2020 तक व्यापार की भावना काफी बदल गई थी. जापान के आर्थिक, व्यापार और उद्योग मंत्री हिरोशी काजियामा ने 200 कंपनियों के भारत में निवेश के इरादे का संकेत दिया, बशर्ते कि हालात सही हों.
भारत में जापानी कंपनियों पर कोविड-19 के असर को लेकर किए गए एक सर्वे (24-28 अप्रैल 2020) में भारत की 1441 कंपनियों में से 558 से प्रतिक्रिया ली गई. 82.3% ने व्यापार में रुकावट की सूचना दी; 76% की बिक्री में कमी आई जबकि 16% की बिक्री आधी घट गई; 56% को नक़दी प्रवाह की गंभीर समस्या हुई थी. 90% मैन्युफैक्चरर की आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावट आई, जबकि 80% का उत्पादन बंद हो गया. इस सेगमेंट ने तत्काल समाधान के लिए कदम उठाने की मांग की, जिस पर जापान ने मई में भारत सरकार के साथ चर्चा की थी.
सर्वे में निवेश की संभावना का जवाब देने वाली 547 कंपनियों में से 308 (56%) ने निराशाजनक जवाब दिया, जिसमें कहा गया था कि निवेश की कोई योजना नहीं है. 38 (6.9%) ने कोविड के बाद के परिदृश्य के मुताबिक नए निवेश की योजना बनाई. ये आंकड़े अप्रैल के थे. अब, ध्यान उन 201 कंपनियों (36%) पर है, जिनके पास भारत में निवेश के लिए कोविड-पूर्व की योजना थी. इन्हीं के माध्यम से बदलाव की तैयारी की जा रही है. 234 कंपनियों में से 88 (37%) ने नए निवेश का विकल्प चुना था, लेकिन 22 (9.4%) बिना देरी के आगे बढ़ने को तैयार थीं और 124 (53%) देरी की उम्मीद कर रही थीं, लेकिन उसके बाद आगे बढ़ने को तैयार थीं. इन रुझानों को अब रणनीतिक आधार पर भारत में जापानी एफडीआई के स्तर को बहाल करने के लिए तैयार किया जा रहा है. एक नए किए जा रहे सर्वे में ज़्यादा सकारात्मक रुझान दिखाने की संभावना है, और यह समझौते की ज़मीन तैयार करने वाला साबित हो सकता है जब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों का शिखर सम्मेलन होगा. कंपनियां एफडीआई योजनाओं को पुनर्जीवित कर रही हैं, लेकिन ये अब कोविड-पूर्व के अल्पकालिक इरादे के बजाय मध्यम और दीर्घकालिक होंगे. जापान का इरादा भारत में स्पेशल स्ट्रेटजिक ग्लोबल पार्टनरशिप के दृढ़ आधार के रूप में निवेश करने का है.
जापानी चिंता मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों से जुड़ी है जो निवेशकों का आधा हैं. लगता है कि भारत सरकार द्वारा इन पर सकारात्मक रूप से ध्यान दिया गया है. यह सोच में बदलाव पर असर डालेगा जो नए सर्वे में भी दिखेगा. ध्यान दिए गए मामलों में फैक्ट्रियों को फिर से खोलने के लिए श्रमिकों का अंतर-राज्यीय आवागमन है. इस पर ज़रूरी समन्वय के संतोषजनक नतीजे दिखाई दिए, जिसके कारण कई ऑटोमोबाइल प्लांट्स को फिर से शुरू किया जा सका. एक और समस्या जापानी प्रवासियों की वापसी थी. जापान यात्रा के लिए उत्सुक नहीं था क्योंकि जापान लौटने वाले भारतीय कोविड-19 की उच्चस्तरीय जोखिम जांच श्रेणी में आते थे. चूंकि यह दोतरफ़ा व्यवस्था है, इसलिए इसे टाल दिया गया.
एक नए किए जा रहे सर्वे में ज़्यादा सकारात्मक रुझान दिखाने की संभावना है, और यह समझौते की ज़मीन तैयार करने वाला साबित हो सकता है जब दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों का शिखर सम्मेलन होगा.
भारतीयों के लिए वंदे भारत की उड़ानों के साथ-साथ चार्टर उड़ानों की इजाज़त दी गई ताकि भारत में कामकाज फिर से शुरू किया जा सके. 32% कंपनियों ने अपने प्रवासी कर्मचारियों को वापस जापान भेज दिया था, जबकि 33.5% ने अपने सभी कर्मचारियों को यहीं रखा था. जापान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जेसीसीआई) द्वारा प्रबंध की गई उड़ानों ने इस मज़बूत भरोसे को मुमकिन बनाया. यह नए प्लांट और मशीनरी लगाने के लिए महत्वपूर्ण है, जो नए निवेश का सकारात्मक संकेत है. इसके साथ ही लॉकडाउन में ढील ने जापानियों की कई चिंताओं को दूर कर दिया.
अन्य मुद्दों में श्रम क़ानूनों में बदलाव, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और बड़ी कंपनियों द्वारा बकाया का भुगतान, जीएसटी और करों का जल्दी रिफंड और भारत में कंपनियों को, जिसका जापानी कंपनियां भी हिस्सा हैं, दी जाने वाली सुविधाओं पर अमल शामिल हैं,
एक लंबित मुद्दा नक़दी प्रवाह से संबंधित है. जापान में मूल कंपनियों के लिए देश में संचालन को मजबूत करने के लिए अभी नियम है कि वे फंड विदेश नहीं भेज सकतीं. हालांकि, अगर नया जोश बनाए रखना है, तो अधिकांश जापानी कंपनियों को अपनी मूल कंपनियों से फंड प्रवाह के माध्यम से पैसा लेने की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि कार्यशील पूंजी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत में कर्ज़ लेना महंगा पड़ता है. इसके लिए वे कार्यशील पूंजी पाने को एक्सटर्नल कॉमर्शियल बारोइंग (ईसीबी) नियमों में छूट मांगेंगी जिसकी अभी रिज़र्व बैक ऑफ इंडिया के नियम इजाज़त नहीं देते हैं. अगर वे इस छूट को हासिल कर लेती हैं, तो यह निवेश योजनाओं को आसान बना देगा.
आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की ख्वाहिश सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स का ज़्यादा उत्पादन करने की है. यह चीन से कुछ हद तक स्थानांतरण या प्रतिस्थापन चाहता है.
दिसंबर 2019 में एमईटीआई (मिनिस्ट्री ऑफ इकोनॉमी, ट्रेड एंड इंडस्ट्री) और डीआईपीपी (डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल एंड प्रमोशन) के बीच बनी भारत जापान औद्योगिक प्रतिस्पर्धा भागीदारी ने इस गर्मजोशी को अच्छी तरह बढ़ावा दिया है. उन्होंने विशिष्ट औद्योगिक क्षेत्रों की चुनौतियों और इनको कम करने के साधनों की पहचान की है. खासकर श्रम मानकों, क़ानूनों और प्रशिक्षण के मुद्दे को लेकर उनकी चिंताओं को एक साथ रखकर देखा गया. दूसरे देशों, मुख्य रूप से चीन से, घटिया नॉन-ओईएम कंपोनेंट्स के आयात पर रोक लगाकर ऑटो कंपोनेंट उद्योग बाज़ार के विस्तार का भी मुद्दा है, जो व्यापार को तेज़ी देने वाला हो सकता है. यह भारतीय कंपोनेंट्स की गुणवत्ता में सुधार कर एक्सपोर्ट वैल्यू चेन में शामिल होने के लिए उद्योग के बजाय बाज़ार को स्थानांतरित कर देगा. ऑटो कंपोनेंट्स के लिए क्षमता और मार्केट का विस्तार करने के लिए एसीएमए (ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) और जेट्रो इस पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं. नए आरवीसी (रीजनल वैल्यू चेन) को बढ़ावा देने के लिए आसियान से गुणवत्ता मानक प्रमाणन में सामंजस्य की कोशिश की जाएगी.
आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत की ख्वाहिश सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स का ज़्यादा उत्पादन करने की है. यह चीन से कुछ हद तक स्थानांतरण या प्रतिस्थापन चाहता है. जापानी कंपनियां श्रम मानकों और पानी के इस्तेमाल को लेकर पर्यावरण कानून से मुश्किल महसूस करती हैं. उन्हें इस क्षेत्र में वाटर रिसाइकिल और कामगारों के प्रशिक्षण में अधिक निवेश करने की ज़रूरत होगी, जिसके चलते उन्हें गुणवत्ता नियंत्रण और कानूनी रियायतों के लिए अलग-अलग ज़ोन की ज़रूरत हो सकती है.
फिलहाल भारत में एफ़डीआई अभी स्थानांतरण या चीन+1 रणनीति का पालन नहीं करेगा. ध्यान मौजूदा कंपनियों की एफडीआई योजनाओं को साकार करने पर है. अगर भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा में सुधार होता है तो आरवीसी (रीजनल वैल्यू चेन) और जीवीसी (ग्लोबल वैल्यू चेन) आसान हो जाएंगे. प्रस्तावित भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया वैल्यू चेन के विचार को प्रतिस्पर्धी मददगार कारकों की पहचान करने और भरोसेमंद सप्लाई बेस के लिए उन्हें बढ़ाने की ज़रूरत है. इसमें एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा का इम्तेहान होगा. बेहतर ऑटो कंपोनेंट, डिजिटल साझेदारी, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण, चिकित्सा उपकरण, लॉजिस्टिक्स और व्यापार सुविधा के लिए जापान के साथ द्विपक्षीय योजनाएं ऐसे आरवीसी में भारत की भूमिका का निर्धारण करने वाले कारक होंगे. गैर-घातक रक्षा उपकरण, एचएडीआर (ह्यूमैनटेरियन असिस्टेंस एंड डिज़ास्टर रिलीफ ) के लिए रडार प्रौद्योगिकी और रोबोटिक्स नए शुरुआती बिंदु हो सकते हैं. कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में आसियान मानकों के साथ सामंजस्य, और सामानों पर भारत आसियान एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) की समीक्षा आसियान को इस उपक्रम में शामिल करने में मदद कर सकती है, लेकिन भारत को इस बात से सावधान रहने की ज़रूरत है कि ऐसे आरवीसी का फ़ायदा सिर्फ़ आसियान को न चला जाए. भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया आरवीसी में, भारत को नए निवेश और इससे आने वाली प्रतिस्पर्धा का मुख्य लाभार्थी होना चाहिए.
जापान 1.5-2.5 अरब डॉलर के एफडीआई के लिए एक प्रस्तावित योजना की घोषणा कर सकता है. यह भारतीय अर्थव्यवस्था और किए गए सुधारों पर भरोसा जताने का इज़हार होगा.
जापान भारत में एफडीआई के विस्तार के साथ निर्यात बाज़ारों पर भी ध्यान केंद्रित करेगा. भारतीय बाज़ार के आकर्षण के बावजूद, जापानी कंपनियों की प्रकृति निर्यात करने की है और 1,441 कंपनियों में से 60% कंपनियां अपने उत्पाद का 50% तक निर्यात कर सालाना 2.5 अरब डॉलर कमाती हैं. इन निर्यातों का 50% हिस्सा दक्षिण एशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ मंगाते हैं जबकि आसियान 26% और जापान खुद 12% आयात करता है. भारत से जापानी कंपनियों का 6% निर्यात चीन को होता है. आसियान, अमरीका और यूरोपीय संघ निर्यात विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. अफ्रीका नया बाज़ार है जिसके लिए कई जापानी कंपनियां अफ्रीका में प्रवेश बढ़ाने के लिए भारत में उत्पादन केंद्र का विस्तार कर रही हैं. इस तरह भारत जापानी कंपनियों के लिए एक क्षेत्रीय या वैश्विक उत्पादन केंद्र बनेगा.
भारत में 2000-2019 के बीच जापानी निवेश 30.7 अरब डॉलर रहा है, जिसमें 2.9 अरब डॉलर 2019 में आया था. अब कोशिश यह है कि कोविड-19 के असर को पलट कर एफडीआई के ऐसे स्तरों पर लौटा जाए. जल्द ही, शायद अगले शिखर सम्मेलन तक, जापान 1.5-2.5 अरब डॉलर के एफडीआई के लिए एक प्रस्तावित योजना की घोषणा कर सकता है. यह भारतीय अर्थव्यवस्था और किए गए सुधारों पर भरोसा जताने का इज़हार होगा. जापान 64% अदायगी दर के साथ भारत में ऑफिसियल डेवलपमेंट असिस्टेंस या ओडीए (लगभग 4 अरब डॉलर) का सबसे बड़ा प्रदाता है. यह जापानी कंपनियों को विस्तार का अवसर प्रदान करता है. यही रफ़्तार अब एक रणनीतिक लक्ष्य के रूप में एफडीआई के लिए अपनाई गई है. जापान के लिए आर्थिक साझीदारी एक रणनीतिक साझेदारी का सबसे महत्वपूर्ण संकेत है.
अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कदम उठाना होगा. भारत चाहता है कि एफडीआई जापानी जीवीसी में भारत को शामिल करते हुए और मैन्युफैक्चरिंग पर केंद्रित हो. जापान जापानी उद्योग और वित्तीय शक्ति के बीच डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन (डीएक्स) संपर्क चाहता है और भारत के आईटी क्षेत्र जैसी वैश्विक बाजारों तक पहुंच चाहता है. राकुटेन भारतीय आईटी कंपनियों के साथ 5जी पर चर्चा कर रही है, जबकि सोजित्स कोल्ड चेन पर चर्चा कर रही है और स्टार्टअप्स में निवेश कर रही है. अगर भारत जापानी नेतृत्व वाले जीवीसी का हिस्सा होगा तो जापानी कंपनियां अपने एफडीआई की मात्रा को बढ़ाएंगी और भारतीय बाज़ार से बाहर भी प्रतिस्पर्धा के लिए टेक्नोलॉजी स्तर बढ़ाएंगी. ऐसे में दोनों हाथ में लड्डू वाली स्थिति है.
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Gurjit Singh has served as Indias ambassador to Germany Indonesia Ethiopia ASEAN and the African Union. He is the Chair of CII Task Force on ...
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