Published on Sep 18, 2020 Updated 0 Hours ago

मोदी सरकार अंतरिक्ष में सैन्य प्रतिस्पर्धा को भारत की अंतरिक्ष क्षमता बढ़ाने के अवसर के तौर पर ज़रूर देखे.

भारत के लिए उसके अंतरिक्ष हथियार क्षमता का है स्थायी महत्व

15 जुलाई 2020 को रूस के एंटी-सैटेलाइट (ASAT) टेस्ट, जो विनाशकारी टेस्ट नहीं था, ने एक बार फिर काइनेटिक एनर्जी वेपन (KEW) के महत्व को बताया है. रूस के को-ऑर्बिटल टेस्ट में सैटेलाइट का इस्तेमाल किया गया था. रूस के अंतरिक्ष हथियार विकास कार्यक्रम में को-ऑर्बिटल हथियार सिस्टम का लंबा इतिहास रहा है. वास्तव में उनका इतिहास 1960 के दशक की शुरुआत तक जाता है. यूनाइटेड स्टेट्स स्पेस कमांड (USSC) की तरफ़ से जारी एक बयान के मुताबिक़ रूस के इन-ऑर्बिट स्पेसक्राफ्ट कॉसमॉस 2453 से एक चीज़ छोड़ी गई थी जिससे साफ़ पता चलता है कि रूस ने को-ऑर्बिटल एंटी-सैटेलाइट टेस्ट किया है. रूस के टेस्ट को लेकर अमेरिकी आपत्ति पर ध्यान दिए बिना भारत के लिए इस टेस्ट से सीखने लायक महत्वपूर्ण बातें हैं, ख़ासतौर पर अंतरिक्ष में चीन की बढ़ती क्षमता और अगर हम चीन की अंतरिक्ष सैन्य शक्ति का कमज़ोरी से जवाब देंगे तो उसके नतीजे को देखते हुए.

अतिरिक्त KEW क्षमता में निवेश चीन की तरफ़ से दीर्घकालीन रक्षा से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए ख़ासतौर पर भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. चीन के साथ मौजूदा सीमा संकट भारत के अंतरिक्ष हथियार कार्यक्रम को और  ज़्यादा महत्व देने की ज़रूरत को बताता है.

भारत को अतिरिक्त KEW टेस्ट की ज़रूरत होगी. एक लेखक ने व्यापक विश्लेषण में समुद्र और हवा से लॉन्च होने वाले KEW की ज़रूरत बताई थी. लेकिन ये प्रमुख रूप से ज़मीन से अंतरिक्ष KEW सिस्टम और डाइरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) पर केंद्रित था. भारत को KEW और डाइरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) या साइबर और इलेक्ट्रॉनिक वेपन के साथ को-ऑर्बिटल KEW भी हासिल करना चाहिए. रूस का टेस्ट ये भी बताता है कि को-ऑर्बिटल KEW भी अहम है. अतिरिक्त KEW क्षमता में निवेश चीन की तरफ़ से दीर्घकालीन रक्षा से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए ख़ासतौर पर भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. चीन के साथ मौजूदा सीमा संकट भारत के अंतरिक्ष हथियार कार्यक्रम को और  ज़्यादा महत्व देने की ज़रूरत को बताता है. इसकी सामान्य वजह ये है कि भारत के पास अंतरिक्ष हथियार होना चीन के ख़िलाफ़ ज़मीन, समुद्र या हवा में किसी भी तरह के संभावित सैन्य अभियान के लिए अहम है. माना जाता है कि चीन ने को-ऑर्बिटल टेस्ट करने के लिए ज़रूरी तकनीक विकसित कर ली है. मिसाल के तौर पर, 2008 में चीन के BX-1 माइक्रोसैटेलाइट ने अपने मूल सैटेलाइट के नज़दीक चक्कर लगाते हुए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के 45 किलोमीटर के भीतर एक युद्धाभ्यास को अंजाम दिया था. BX-1 ने निश्चित तौर पर को-ऑर्बिटल एंटी-सैटेलाइट टेस्ट की क्षमता हासिल नहीं की थी लेकिन इससे संकेत मिला कि चीन के पास को-ऑर्बिटल काइनेटिक टेस्ट की छिपी हुई क्षमता है और वो अंतरिक्ष में किसी भी विरोधी के ख़िलाफ़ निशाना साध सकता है.

भारत को निश्चित रूप से उस चीज़ से परहेज़ करना चाहिए जैसा कि भारत के एक प्रमुख अंतरिक्ष विश्लेषक ने भारत के मार्च 2019 के KEW टेस्ट को लेकर टिप्पणी की थी: “अभी तक अंतरिक्ष में भारत का हित अपनी अंतरिक्ष की क्षमताओं के ज़रिए टोह लेने, नेवीगेशन और संचार में था. लेकिन चीन का एंटी सैटेलाइट टेस्ट भारत की नीतियों को अंतरिक्ष में भारत की क्षमता बढ़ाने की तरफ़ ले जाएगा. क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर चीन की इस धमकी को लेकर जताई गई चिंता को दूर करने के लिए भारत के पास सबसे अच्छा विकल्प होगा कि वो निरस्त्रीकरण और हथियार नियंत्रण के रास्ते को अपनाए.”

एशिया में शक्ति संतुलन में योगदान देने के लिए अंतरिक्ष सैन्य शक्ति भारत के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे देखते हुए को-ऑर्बिटल KEW के साथ-साथ DEW, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक हथियार में निवेश करना ज़रूरी है.

ये बयान सही निष्कर्ष नहीं है. भारत ने सिर्फ़ एक KEW टेस्ट किया है और वो चीन के ग़ैर-विनाशकारी ज़मीन से अंतरिक्ष KEW टेस्ट के मामले में भी कहीं नहीं ठहरता, अंतरिक्ष में निशाना साधने के मामले में चीन के KEW, DEW, इलेक्ट्रॉनिक और साइबर हथियार क्षमता को तो छोड़ दीजिए. चीन की तरफ़ से अंतरिक्ष तकनीक की क्षमता में व्यापक विकास को देखते हुए हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण के रास्ते पर भारत का चलना बिना सोचा-समझा क़दम होगा. चीन के मौजूदा अंतरिक्ष हथियार कार्यक्रम का लगातार जवाब देने की ज़रूरत है. अंतरिक्ष क्षमता बढ़ाने पर रोक से लगेगा कि हम समर्पण कर रहे हैं जो कि चीन की मौजूदा आक्रामकता, जिसका ख़ामियाज़ा भारत भुगत रहा है, को देखते हुए पूरी तरह ग़ैर-ज़रूरी है. बहुत जल्द चीन अपने अंतरिक्ष हथियार कार्यक्रम के ख़िलाफ़ भारत के कमज़ोर जवाब का फ़ायदा उठाते हुए और आक्रामक हो जाएगा. चीन इसे भारत की कमज़ोरी समझेगा और भारत को न सिर्फ़ ज़मीन पर बल्कि अंतरिक्ष में भी चीन की घुसपैठ का सामान करना पड़ेगा. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बयान दिया कि भारत और चीन के लिए ज़रूरी है कि वो कुछ “संतुलन” हासिल करें हालांकि उन्होंने ये पूरी तरह नहीं बताया कि इसका क्या मतलब होगा. लेकिन हिंद-प्रशांत में अगर संतुलन या शक्ति संतुलन हासिल करना है तो सैन्य शक्ति महत्वपूर्ण है. अंतरिक्ष सैन्य क्षमता का महत्व टोह लेने, नेवीगेशन या संचार से बढ़कर अंतरिक्ष हथियार तक हो चुका है और संतुलन हासिल करने में ये महत्वपूर्ण होगा. चीन के ख़िलाफ़ होने पर भारत जैसे देश के लिए अंतरिक्ष में हथियारों की तैनात को नज़रअंदाज़ करना असावधानी होगी. इसलिए एशिया में शक्ति संतुलन में योगदान देने के लिए अंतरिक्ष सैन्य शक्ति भारत के लिए महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे देखते हुए को-ऑर्बिटल KEW के साथ-साथ DEW, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक हथियार में निवेश करना ज़रूरी है. अगर भारत चीन या किसी दूसरे दुश्मन के स्पेसक्राफ्ट के ख़िलाफ़ आक्रामक अंतरिक्ष हथियार से ख़ुद को वंचित करता है तो भारत नुक़सान की हालत में रहेगा. ऐसी स्थिति में भारत चीन की अंतरिक्ष क्षमता के साथ-साथ उसकी इमैजरी इंटेलिजेंस (IMINT), कम्युनिकेशन (COMMINT), इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस (ELINT) और सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) सैटेलाइट की दया पर रहेगा. वास्तव में इस तरह की दलीलें हैरान करने वाली हैं जिसके मुताबिक़ भारत को संयम बरतना चाहिए, निरस्त्रीकरण और हथियार नियंत्रण की कोशिश करनी चाहिए वो भी तब जब चीन बड़ी-बड़ी बातें बनाने के अलावा कोई महत्वपूर्ण कोशिश नहीं कर रहा.

रूस के को-ऑर्बिटल टेस्ट ने अंतरिक्ष को हथियार मुक्त करने की फ़रियाद के बावजूद अंतरिक्ष के हथियार की अहमियत को बताया है. मोदी सरकार अंतरिक्ष में सैन्य प्रतिस्पर्धा को भारत की अंतरिक्ष क्षमता बढ़ाने के अवसर के तौर पर ज़रूर देखे. इससे भारत को बड़ी अंतरिक्ष सैन्य शक्ति बनने में मदद मिलेगी और हिंद-प्रशांत में चीन का दबदबा कम होगा. दूसरी तरफ़ अगर भारत इस मौक़े से चूकेगा और अंतरिक्ष हथियार का टेस्ट करने, इकट्ठा करने और तैनाती में गैर-ज़रूरी संयम बरतेगा तो निश्चित रूप से चीन का वर्चस्व स्थापित होगा.

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