Author : Akshay Rout

Published on Aug 04, 2023 Updated 0 Hours ago

दुनिया में तक़रीबन 2 अरब लोगों को पीने का साफ़ पानी मयस्सर नहीं है. नीति आयोग के मुताबिक भारत भी "भीषण जलसंकट का सामना कर रहा है.

अगर हम मानवीय जीवन में सुधार चाहते हैं तो हमारे लिये, स्वच्छ जल और साफ़-सफ़ाई पर निवेश करना ज़रूरी है!
अगर हम मानवीय जीवन में सुधार चाहते हैं तो हमारे लिये, स्वच्छ जल और साफ़-सफ़ाई पर निवेश करना ज़रूरी है!

ये लेख रायसीना एडिट 2022 सीरीज़ का हिस्सा है.


कोविड-19 महामारी ने हमें याद दिलाया है कि व्यक्तिगत स्वच्छता, साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था और पानी, मानव स्वास्थ्य से जुड़े रक्षा कवच के बेहद ज़रूरी हिस्से हैं. साथ ही ये बात भी ज़ाहिर हुई है कि वैश्विक स्तर पर इन तमाम क्षेत्रों में ज़रूरत के मुताबिक काम नहीं हो पाया है. जिनेवा स्थित सैनिटेशन एंड हाइजीन फ़ंड के एक आकलन के मुताबिक विश्व के 3.6 अरब लोगों की अब भी साफ़ सफ़ाई के सुरक्षित स्रोतों तक पहुंच नहीं बन पाई है. तीन में से एक शख़्स को हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हैं. मासिक धर्म से गुज़र रही 30 करोड़ महिलाओं और लड़कियों में से कइयों के पास उस दौरान स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़े आवश्यक साधन उपलब्ध नहीं होते. मानवीय स्वास्थ्य के सिलसिले में पानी, साफ़-सफ़ाई और व्यक्तिगत स्वच्छता (WASH) पर ज़रूरत के मुताबिक ध्यान नहीं दिया गया. बहरहाल, दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाले वायरस की बदौलत अब ये तमाम मसले केंद्र में आ गए हैं. 

जिनेवा स्थित सैनिटेशन एंड हाइजीन फ़ंड के एक आकलन के मुताबिक विश्व के 3.6 अरब लोगों की अब भी साफ़ सफ़ाई के सुरक्षित स्रोतों तक पहुंच नहीं बन पाई है. तीन में से एक शख़्स को हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हैं.

दरअसल, मानवीय जीवन की कुछ बुनियादी ज़रूरतें हैं- चाहे वो शौचालय हो, सुचारू रूप से पानी मुहैया कराने वाला नल हो, सैनिटरी पैड हो या स्कूली बच्चों के लिए हाथ धोने की सुविधा. इन ज़रूरतों को पूरा करने से जुड़ी ज़बरदस्त नाकामियों पर राज्यसत्ता की अंतरात्मा जागने से WASH जैसी पहल की शुरुआत होती है. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SDGs) तय किए हैं. इनमें “2030 तक सबके लिए पानी और साफ़-सफ़ाई की उपलब्धता और टिकाऊ प्रबंधन” (SDG 6) का लक्ष्य शामिल है. संयुक्त राष्ट्र ने इन लक्ष्यों को साकार करने के लिए पांच उत्प्रेरकों की पहचान की है. इनमें वित्त प्रबंधन पहले पायदान पर है. हाल के वर्षों में भारत ने WASH से जुड़े मुश्किल हालातों से निपटने के लिए दो विशाल अभियान शुरू किए हैं- स्वच्छ भारत मिशन (SBM) और जल जीवन मिशन (JJM). ये दोनों ही अभियान दुनिया के बाक़ी देशों के लिए सबक़ का काम कर सकते हैं. 

इंसानी बर्तावों में बदलाव लाने का मॉडल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों के हिसाब से और उनकी देखरेख में 2014 में चालू किया गया स्वच्छ भारत मिशन, अक्टूबर 2019 में शानदार ढंग से अपने अंजाम तक पहुंचा. उस मौक़े पर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने ख़ुद के खुले में शौच से मुक्त होने (ODF) का एलान किया. 2021 में स्वच्छ भारत मिशन के लिए बजट आवंटन को बढ़ाकर 1.5 लाख करोड़ रु कर दिया गया. साफ़-सफ़ाई की ज़रूरतों पर इतनी बड़ी रकम इससे पहले न तो भारत में और न ही किसी और देश में आवंटित की गई थी. सार्वजनिक वित्त, राजनीतिक नेतृत्व, सामरिक साझेदारियां और जनता की भागीदारी इस मिशन की कामयाबी के प्रमुख कारक रहे हैं. दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में ही अपने एक आकलन में बता दिया था कि स्वच्छ भारत मिशन की कामयाबी से 2014-19 के कालखंड में डायरिया के चलते होने वाली तीन लाख मौतों को टालना मुमकिन हो सकेगासंयुक्त राष्ट्र बाल कोष के एक और अध्ययन से ये नतीजा निकला कि खुले में शौच से मुक्त गांव के हरेक परिवार को स्वास्थ्य से जुड़े ख़र्चों में कमी और समय की बचत के चलते सालाना 50 हज़ार रु की बचत हो रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक और रिपोर्ट में SBM के आर्थिक फ़ायदों पर ज़ोर दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक इस अभियान से 75 लाख पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में ही अपने एक आकलन में बता दिया था कि स्वच्छ भारत मिशन की कामयाबी से 2014-19 के कालखंड में डायरिया के चलते होने वाली तीन लाख मौतों को टालना मुमकिन हो सकेगा. 

बहरहाल स्वच्छ भारत मिशन के नए चरण का एजेंडा पहले से कहीं पेचीदा है. इसके तहत  सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाने के लिए ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया है. मल गाद के प्रबंधन, प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने, गंदे पानी के ट्रीटमेंट और शहरी क्षेत्रों में कूड़े के स्रोतों को अलग-अलग करने से जुड़े कार्यों पर 1,41,678 करोड़ रु ख़र्च किए जाएंगे. इस पूरी क़वायद का सबसे अहम हिस्सा सर्कुलर इकोनॉमी (कचरे को संसाधनों में बदलना) से जुड़ा है. फ़रवरी 2022 में इंदौर में शहरी क्षेत्र के ठोस कचरे पर आधारित विशाल बायो-सीएनजी प्लांट की शुरुआत की गई थी. ग़ौरतलब है कि इंदौर को नियमित रूप से भारत के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा मिलता आ रहा है. 

SBM इंसानी बर्तावों में बदलाव लाने वाला कार्यक्रम साबित हुआ. इसकी बदौलत 60 करोड़ लोग खुले में शौच करने की बजाए स्वच्छ शौचालयों का उपयोग करने लगे हैं.  भले ही राज्यसत्ता ने तमाम प्रोत्साहनों के ज़रिए शौचालय तक पहुंच सुनिश्चित करवाई, लेकिन उनके उपयोग की शुरुआत, नई आदतों के निर्माण और उन्हें बढ़ावा देने की क़वायदों से ही हुई है. डालबर्ग के एक अध्ययन से संकेत मिलते हैं कि मिशन के तहत सूचना, शिक्षा और संचार से जुड़े प्रयासों पर विभिन्न एजेंसियों और भागीदारों द्वारा ख़र्च की गई रकम 22,000-26,000 करोड़ रु के बराबर रही थी. आगे चलकर भारत के 140 करोड़ लोगों का व्यवहार से जुड़ी एक और चुनौती से सामना हुआ. ये चुनौती थी- मास्क लगाना, सामाजिक दूरी बनाना और हाथ धोना. इस विकराल समस्या के दौरान भी क़ुदरती तौर पर स्वच्छ भारत का झंडा और बुलंद हुआ. 

 कोविड की मार झेल रहे दुनिया के देश पढ़ाई-लिखाई से जुड़े नुक़सानों को रोकने के लिए स्कूल खोले जाने को लेकर कशमकश में थे. ऐसे में ये आकलन सामने आया कि बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए साफ़ पानी, हाथ धोने की सुविधाएं और सुरक्षित शौचालयों की दरकार है.

कोविड की मार झेल रहे दुनिया के देश पढ़ाई-लिखाई से जुड़े नुक़सानों को रोकने के लिए स्कूल खोले जाने को लेकर कशमकश में थे. ऐसे में ये आकलन सामने आया कि बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए साफ़ पानी, हाथ धोने की सुविधाएं और सुरक्षित शौचालयों की दरकार है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में ताक़ीद की गई कि दुनिया में तक़रीबन 82 करोड़ बच्चों को स्कूलों में हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में उनके लिए कोविड-19 और दूसरे संक्रामक बीमारियों का ख़तरा और भी बढ़ जाता है. बहरहाल, कोविड-19 के दौर में भारत के 16 लाख स्कूलों के लिए स्वच्छ विद्यालय से जुड़ी परिसंपत्तियां (लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग और सुचारू शौचालय) बहुत फ़ायदेमंद साबित हुईं. इन सुविधाओं के साथ कोविड-19 से जुड़े व्यक्तिगत स्वच्छता उपायों को मिलाकर स्कूलों को दोबारा पटरी पर लाना मुमकिन हो गया. 25 करोड़ बच्चों को एक बार फिर स्कूल में वापस लाने के लिए एक सुरक्षित कैंपस तैयार करने में कामयाबी पा ली गई

हर जीवन के लिए जल

दुनिया में तक़रीबन 2 अरब लोगों को पीने का साफ़ पानी मयस्सर नहीं हैनीति आयोग के मुताबिक भारत भी “भीषण जलसंकट का सामना कर रहा है. आर्थिक वृद्धि, आजीविका, इंसानी बेहतरी और पर्यावरण के मोर्चे पर टिकाऊ तौर-तरीक़े इससे जुड़े ख़तरों की ज़द में हैं”. भारत में लगभग 60 करोड़ लोग किसी न किसी पैमाने पर जल संकट का सामना कर रहे हैं.

स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से जुड़ी इस विकराल समस्या से निपटने के लिए भारत में एक विशाल कार्यक्रम की शुरुआत हुई है. 2024 तक देश के 19 करोड़ ग्रामीण परिवारों के 95 करोड़ लोगों तक नल का कनेक्शन मुहैया कराने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर 3.6 लाख करोड़ रु ख़र्च किए जा रहे हैं. अगस्त 2019 में चालू जल जीवन मिशन से 6 करोड़ नए परिवारों तक नल से जल की सुविधा मुहैया कराई गई है. मार्च 2023 तक 10 करोड़ परिवार इसके दायरे में आ जाएंगे. 2.9 करोड़ शहरी परिवारों तक नल से जल मुहैया कराने के लिए अतिरिक्त 2.87 लाख करोड़ रु ख़र्च किए जा रहे हैं. परिवार की महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और बीमारियों की रोकथाम के लिए  स्वच्छ जल की अहमियत धीरे-धीरे सबको समझ में आ गई है. पर्यावरण और जलवायु संरक्षण के साथ-साथ टिकाऊ सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी साफ़ पानी की बेहद अहम भूमिका है.

परिवार की महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और बीमारियों की रोकथाम के लिए  स्वच्छ जल की अहमियत धीरे-धीरे सबको समझ में आ गई है. पर्यावरण और जलवायु संरक्षण के साथ-साथ टिकाऊ सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी साफ़ पानी की बेहद अहम भूमिका है.

अभी कुछ साल पहले तक भारत में स्वच्छ जल, साफ़-सफ़ाई और व्यक्तिगत स्वच्छता के क्षेत्र में ज़रूरत से काफ़ी कम निवेश होता था. ज़ाहिर है इस मसले पर पैदा हुई नई समझ भविष्य को लेकर नया भरोसा जगाती है. इन तमाम कार्यों के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी हुई है. वित्त आयोग ने 2021-26 के कालखंड में ग्रामीण स्थानीय निकायों को विशेष अनुदान के तौर पर 2,36,805 करोड़ रु की रकम आवंटित की है. इस कोष का तक़रीबन 60 प्रतिशत हिस्सा ख़ासतौर से पानी और स्वच्छता से जुड़ी बुनियादी सेवाओं के लिए रखा गया है. निश्चित रूप से इन मसलों पर वित्तीय रूप से दी जा रही तवज्जो से दीर्घकालिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर सामूहिक आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है.   

साझा क़िस्से और प्रेरक गतिविधियां 

2018 में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन आयोजित किया गया था. स्वच्छता से जुड़े मसलों से जूझ रहे देशों के लिए वो उम्मीदों भरा लम्हा साबित हुआ. सम्मेलन में शामिल क़रीब 70 देशों के 55 स्वच्छता मंत्रियों और 200 प्रतिनिधियों ने स्वच्छता के टिकाऊ तौर-तरीक़ों पर विचार विमर्श किया. सम्मेलन में WASH पर सार्वजनिक वित्त और समानांतर निवेश पर ज़ोर दिया गया. सम्मेलन में जुटे देशों और एजेंसियों ने दिल्ली घोषणापत्र के ज़रिए सबके लिए साफ़-सफ़ाई के सुरक्षित विकल्पों पर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. इसके बाद अफ़्रीका और एशिया के कई देशों ने WASH से जुड़े एजेंडे को स्वीकार किया है. नवंबर 2018 में नाइजीरिया ने WASH के क्षेत्र में आपातकालीन प्रावधानों का एलान करते हुए एक बड़ा अभियान छेड़ दिया. स्वच्छ नाइजीरिया, शौचालय का इस्तेमाल करें‘ मुहिम के तहत 2025 तक खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य रखा गया है.

भारत में हासिल तजुर्बे बताते हैं कि पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में विकराल समस्याओं से जूझ रहे देशों के लिए धीरे-धीरे और टुकड़ों में काम करना फ़ायदे का सौदा नहीं है. दरअसल, इसके लिए समयसीमा का सख़्ती से पालन और सार्वजनिक फ़ंड का बेबाक़ी से आवंटन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है.

भारत में हासिल तजुर्बे बताते हैं कि पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में विकराल समस्याओं से जूझ रहे देशों के लिए धीरे-धीरे और टुकड़ों में काम करना फ़ायदे का सौदा नहीं है. दरअसल, इसके लिए समयसीमा का सख़्ती से पालन और सार्वजनिक फ़ंड का बेबाक़ी से आवंटन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. इसके अलावा निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी और वैश्विक विकास भागीदारों की हिस्सेदारी भी समान रूप से अहम है. बहरहाल, स्वच्छ जल और साफ़-सफ़ाई से जुड़ी इन क़वायदों को हर व्यक्ति का सरोकार बनाने की ज़िम्मेदारी राज्यसत्ता की है. अगर दुनिया के देश एक अभियान की तरह इस काम को आगे बढ़ाते हैं तो हम एजेंडा 2030 से जुड़े लक्ष्यों के काफ़ी क़रीब होंगे.

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