Published on Jan 18, 2021 Updated 0 Hours ago

दुनियां भर में आई आर्थिक सुस्ती और सम्मेलन के वर्चुअल प्रारूप का नतीज़ा यह निकला कि जो देश हमेशा से ज़रूरतमंद देशों को वित्तीय मदद मुहैया कराते रहे उनकी सहयोग राशि में भारी कमी आ गई 

अफ़ग़ानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय मदद में कटौती के आसार: ‘गरीबी उन्मूलन’ पर विपरीत असर

साल 2020 में अफ़ग़ानिस्तान सम्मेलन जो एक मंत्रिस्तरीय कार्यक्रम था, जेनेवा में 23-24 नवंबर को आयोजित किया गया था जिसमें 66 देशों और 32 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भागीदारी की थी. इस सम्मेलन की सह-मेज़बानी का ज़िम्मा इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफ़ग़ानिस्तान, फ़िनलैंड सरकार और संयुक्त राष्ट्र संघ के कंधों पर थी. और इस सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ़ आत्मार कर रहे थे.

कोरोना महामारी के संकट के बीच यह सम्मेलन ऐसे वक़्त में हो रहा था जबकि दोहा में तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच शांति वार्ता को लेकर तमाम अनिश्चितताएं सिर उठाए खड़ी थी तो दूसरी ओर दुनियां भर में आई आर्थिक सुस्ती और सम्मेलन के वर्चुअल प्रारूप का नतीज़ा यह निकला कि जो देश हमेशा से ज़रूरतमंद देशों को वित्तीय मदद मुहैया कराते रहे उनकी सहयोग राशि में भारी कमी आ गई.

प्रमुख परिणाम

इस सम्मेलन के परिणामों में से एक तो यह था कि संपन्न देश वित्तीय मदद देंगे और एक नई वित्तीय सहायता के तरीक़े को ईज़ाद करेंगे. जो नई वित्तीय सहायता सामने आई उसमें दो दस्तावेज़ शामिल थे, अफ़ग़ानिस्तान पार्टनरशिप फ्रेमवर्क और नेशनल पीस एंड डेवलपमेंट फ्रेमवर्क ( जो व्यापक विकास लक्ष्यों को पाने का परिप्रेक्ष्य तैयार करता है ).

दरअसल, अफ़ग़ानिस्तान पार्टनरशिप फ्रेमवर्क एक ऐसा समझौता है जो उन बिंदुओं को रेखांकित करता है जिसके तहत कई मार्गदर्शक सिद्धांतों को ध्यान में रखकर वित्तीय मदद प्रदान किया जाता है और जिनपर सम्मेलन में सहमति बनी है. यह सिद्धांत तीन हिस्सों में बांटा गया है – शांति का निर्माण करना, जिसकी रूपरेखा में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को समावेश करना और महिलाओं, युवाओँ और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना अहम है.

इस संबंध में तैयार किए गए संवाद में मानवाधिकार और पलायन के मुद्दे को लेकर भी आवाज़ बुलंद करना शामिल है. इसके साथ ही इसमें यह भी शामिल है कि अफ़गान सरकार के साथ काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय किस तरीके से अनियमित पलायन पर अंकुश लगाएंगे और पलायन कर चुके लोगों की देश वापसी के विकल्पों को मज़बूत बनाएंगे. हालांकि यह दस्तावेज़ युद्ध के चलते दूसरे देशों में शरण लेने वाले शरणार्थियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को अपने में शामिल नहीं कर सका. इस लिहाज़ से सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने पलायन को लेकर और ज़्यादा मानवीय दृष्टिकोण अपनाए जाने का मौक़ा गंवा दिया.

इस संबंध में तैयार किए गए संवाद में मानवाधिकार और पलायन के मुद्दे को लेकर भी आवाज़ बुलंद करना शामिल है. इसके साथ ही इसमें यह भी शामिल है कि अफ़गान सरकार के साथ काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुदाय किस तरीके से अनियमित पलायन पर अंकुश लगाएंगे और पलायन कर चुके लोगों की देश वापसी के विकल्पों को मज़बूत बनाएंगे. 

दूसरे सिद्धांत में राज्य-निर्माण की बात आती है जिसके तहत प्रभावी, जवाबदेह और आत्मनिर्भर संस्थानों का निर्माण किया जाना शामिल है. दस्तावेज़ में जैसा कि उल्लेख किया गया है कि साल 2021 के लक्ष्यों में ’पर्याप्त संसाधनों के साथ भ्रष्टाचार विरोधी आयोग का कामकाज’ और भ्रष्टाचार के मामलों पर सत्यापित डेटा बनाम भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के आंकड़े शामिल हैं. सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधिमंडल ने भी अपनी चिंताओं का उल्लेख किया है कि कार्यपालिका को संविधान के तहत निहित संस्थाओं की जवाबदेही और भूमिका और ज़िम्मेदारियों का सम्मान करना चाहिए.

तीसरा और अंतिम सिद्धांत बाज़ार-निर्माण के बारे में बताता है जिसका लक्ष्य निजी क्षेत्र के ज़रिए ग़रीबी को कम करना है. इसका सामान्य उद्देश्य ग़रीबी स्तर से नीचे रह रहे लोगों की संख्या में कमी लाना और प्रति कामगार व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी करना है.

भ्रष्टाचार, ग़रीबी और हिंसा

आवाम की ग़रीबी अफ़ग़ान सरकार के लिए सबसे कठिन चुनौतियों में से एक है. कोरोना महामारी से पहले भी साल 2007 में ग़रीबी स्तर 34 फ़ीसदी से बढ़कर साल 2017 में 54.4 फ़ीसदी हो गई. विश्व बैंक की अनुमान की बात करें तो महामारी की वज़ह से यह 72 फ़ीसदी तक पहुंच सकती है. और इस दौरान वो लोग जिन्हें मानवीय सहायता की आवश्यकता होगी उनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है.

और तो और देश में बढ़ते ग़रीबी के स्तर के बीच बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ने विदेशी वित्तीय सहायता की सुलभ उपलब्धि पर भी एक तरह का रोक लगाने का काम किया है. सरकार 2017 में ब्रुसेल्स के सम्मेलन में जिन 63 प्रदेय और उप-प्रदेय उत्पादों पर सहमति बनी थी उसमें से महज़ 27 को ही पूरा कर पाई.

यह बयान ऐसे वक़्त में आया जब शांति वार्ता के बावज़ूद अफ़ग़ानिस्तान में नागरिकों के मौत का आंकड़ा बढ़ रहा था और हिंसा पर अंकुश नहीं था. नतीज़तन, साल 2019 में जिन लोगों को मानवीय मदद की ज़रूरत थी उनका आंकड़ा 9.4 मिलियन से बढ़कर साल 2020 में 14 मिलियन तक पहुंच गया

नवंबर महीने में सम्मेलन से ठीक पहले भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने एक स्वतंत्र भ्रष्टाचार-रोधी आयोग की स्थापना की थी जो लंबे समय से लंबित था. इस आयोग के सदस्यों ने सम्मेलन के उद्घाटन के ठीक एक दिन पहले शपथ ली थी. लेकिन सरकार के इस कदम की भारी आलोचना की गई क्योंकि ज़्यादातर सदस्यों का यह मानना था कि यह मदद करने वाले विदेशी मुल्क़ों को खुश करने के लिए जल्दबाज़ी में उठाया गया कदम था.

इसके बाद इस संदर्भ में एक संयुक्त समीक्षा के अनुरोध पर सहमति बनी कि इसे लेकर दो समीक्षाएं की जाएंगी. पहले साल 2021 में वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक होगी फिर साल 2022 में द्विवार्षिक मंत्री स्तर की बैठक होगी जिसका मक़सद अफ़ग़ानिस्तान में हो रहे बदलावों पर नज़र रखना होगा क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान इस दौरान एक परिवर्तनकारी दशक के अंत समय में खुद को पाएगा.

सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ़ देश की लड़ाई के बारे में बात की. उन्होंने तत्काल युद्ध विराम की अपील की और कहा कि तालिबान के साथ उनकी लड़ाई बरक़रार रहेगी.

यह बयान ऐसे वक़्त में आया जब शांति वार्ता के बावज़ूद अफ़ग़ानिस्तान में नागरिकों के मौत का आंकड़ा बढ़ रहा था और हिंसा पर अंकुश नहीं था. नतीज़तन, साल 2019 में जिन लोगों को मानवीय मदद की ज़रूरत थी उनका आंकड़ा 9.4 मिलियन से बढ़कर साल 2020 में 14 मिलियन तक पहुंच गया. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी फौरन बिना शर्त के संघर्ष विराम के लिए अपील की क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों ने ऐसी हिंसा का दौर लंबे समय से देखा था और इस संघर्ष की क़ीमत अफ़ग़ानी महिलाओं ने सबसे ज़्यादा चुकाया. हिंसा में मारे गए कुल लोगों में करीब 40 फ़ीसदी महिलाएं और बच्चे शामिल थे.

इसके बाद तालिबान को सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया था क्योंकि शांति वार्ता ज़मीन पर किसी तरह का कोई नतीज़ा देने में नाकाम रही. यूरोपीय संघ के राजदूत और प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख एंड्रियास वॉन ब्रांट की मानें तो तालिबान ने ख़ुद को दुनिया के सामने पेश करने का एक बड़ा मौक़ा गंवा दिया.

ज़बरदस्ती थोपे गए शर्त

इस बीच कोरोनो वायरस महामारी ने न केवल अफ़ग़ान की अर्थव्यवस्था बल्कि जो देश आर्थिक मदद दे रहे थे उन्हें भी बुरी तरह प्रभावित किया. विश्व बैंक ने अनुमान लगाया कि अफ़ग़ानिस्तान की अर्थव्यवस्था के पांच फ़ीसदी सिकुड़ने का जोख़िम है ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान को रफ़्तार पकड़ने में काफी वक़्त लग जाएगा. मौज़ूदा समय में अफ़ग़ानिस्तान का वार्षिक सार्वजनिक व्यय 11 बिलियन डॉलर है, जिसमें से केवल 2.5 बिलियन डॉलर घरेलू राजस्व पासपोर्ट शुल्क, सड़क के टोल, मोबाइल शुल्क और खनन राजस्व से पाया जाता है. साल दर साल लगातार घरेलू राजस्व में बढ़ोतरी के बावज़ूद अफ़ग़ानिस्तान आज भी अंतर्राष्ट्रीय सहायता के भरोसे सांस लेने पर मज़बूर है.

कनाडा जिसने साल 2016 में अफ़ग़ानिस्तान को साल 2021 तक हर वर्ष 115 मिलियन डॉलर देने की घोषणा कर चुका था उसने भी आने वाले तीन सालों के लिए इस राशि में कटौती कर अब 202.5 बिलियन डॉलर मदद देने की बात कही है.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने वर्ष 2002 और 2018 के बीच 72 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद अफ़ग़ानिस्तान को दी है जिससे कई विकासशील देशों की तुलना में अफ़ग़ानिस्तान विदेशी मदद पाने वाले देशों में सबसे अव्वल है. हालांकि एक सत्य यह भी है कि साल दर साल अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहायता राशि में कमी भी आई है क्योंकि जेनेवा सम्मेलन में यूएनडीपी के प्रोजेक्शन में यह बात सामने आई कि देश की आवश्यकता के मुकाबले 20 फ़ीसदी कम आर्थिक मदद मिल पाई. जेनेवा में प्राप्त कुल विदेशी सहायता 12-13 बिलियन डॉलर रही जो 2016 में ब्रुसेल्स सम्मेलन की तुलना में 2-3 बिलियन डॉलर कम ही थी.

अमेरिकी प्रतिनिधि, डेविड हेल ने बताया कि अमेरिका ने साल 2021 में नागरिकों की आर्थिक सहायता के लिए 600 मिलियन डॉलर का आवंटन किया है और इस राशि में से केवल 300 मिलियन डॉलर ही देने की बात है क्योंकि शेष राशि अमेरिका शांति वार्ता की सावधानीपूर्वक समीक्षा करने के बाद ही देगा. सम्मेलन से पहले भी आर्थिक मदद की राशि में कटौती की ख़बरें सामने आई हैं.

अमेरिका शुरूआत में तो आर्थिक मदद की पूरी राशि ही दे दिया करता था लेकिन पिछले चार वर्षों से अमेरिका ने अपने पारंपरिक स्टैंड में बदलाव किया है. अब जबकि आर्थिक मदद में कटौती और अपने सैनिकों की वापसी के साथ अमेरिका,अफ़ग़ानिस्तान से धीरे धीरे बाहर निकलने की नीति पर अग्रसर है तो सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले ज़्यादातर देश भी अफ़ग़ानिस्तान में दीर्घकालीन विकास के प्रति सुस्त दिखे.

ब्रिटेन भी अमेरिका की तरह ही अब सशर्त आर्थिक मदद देने का फ़ैसला कर चुका है और 207 मिलियन डॉलर देने की बात कही है लेकिन यह ब्रुसेल्स सम्मेलन में आवंटित किए गए आर्थिक मदद की तुलना में 8.3 फीसदी कम है. द फॉरेन, कॉमनवेल्थ डेवलपमेंट ऑफिस ने अपने एक बयान में कहा था कि साल 2021 के बाद अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद इस बात पर निर्भर करेगी कि वहां शांति प्रक्रिया, ग़रीबी उन्मूलन, क़ानून व्यवस्था. महिलाओं और अल्पसंख्यकों के हक़ की सुरक्षा और प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था का स्तर कैसा है. कनाडा जिसने साल 2016 में अफ़ग़ानिस्तान को साल 2021 तक हर वर्ष 115 मिलियन डॉलर देने की घोषणा कर चुका था उसने भी आने वाले तीन सालों के लिए इस राशि में कटौती कर अब 202.5 बिलियन डॉलर मदद देने की बात कही है.

दूसरे देशों की तरह ही जर्मनी, जापान और यूरोपीय संघ ने भी पहले की तरह ही अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक मदद देने के अपने संकल्प के साथ हैं. यूरोपीय संघ ने अगले चार वर्षों में 1.43 बिलियन डॉलर देने की घोषणा की है लेकिन इसके साथ शर्त भी रखा है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति और विकास के लिए लगातार अंतर्राष्ट्रीय मदद दी जाती रहे. जर्मनी ने 720 मिलियन डॉलर तो जापान ने 520 मिलियन डॉलर आर्थिक मदद देने की बात कही है. उत्तरी यूरोपीय देश जैसे नार्वे ने साल 2021 में 68.2 मिलियन डॉलर आर्थिक मदद देने की पेशकश की है.

भारत का योगदान

भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान में हाई इम्पैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट के चरण IV के सम्मेलन में घोषणा की, जिसका मक़सद 80 मिलियन डॉलर की ख़र्च से 100 से अधिक परियोजनाओं के लिए आर्थिक मदद जुटाना था. इसके साथ ही भारत ने क़ाबुल में दो मिलियन नागरिकों को पानी मुहैया करा सकने वाले शाहतूत डैम के निर्माण पर भी सहमति व्यक्त की.

दरअसल अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद राशि में कटौती की मुख्य वज़ह मुल्क़ के अंदर लगातार जारी हिंसा, भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी, और विकास के एजेंडे को ठीक से पूरा नहीं कर पाना है. इसके साथ ही जिन देशों ने अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक सहायता देने की बात की उन्होंने भी देश में कोई ऐसी नीति नहीं बनाई जिससे भ्रष्टाचार पर रोक लग सके और आवंटित राशि का प्रभावी तरीक़े से इस्तेमाल हो सके इसकी निगरानी की जा सके.

ज़ाहिर तौर पर अगर विकास के एजेंडे पूरे नहीं होते हैं तो उन पर कड़े प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है. इस बात को लेकर हैरानी होती है कि तालिबान को शांति वार्ता में जगह दिए जाने के बावज़ूद हर दिन मुल्क़ के अंदर निर्दोष नागरिकों पर हमला किया जा रहा है. 

ज़ाहिर तौर पर अगर विकास के एजेंडे पूरे नहीं होते हैं तो उन पर कड़े प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है. इस बात को लेकर हैरानी होती है कि तालिबान को शांति वार्ता में जगह दिए जाने के बावज़ूद हर दिन मुल्क़ के अंदर निर्दोष नागरिकों पर हमला किया जा रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे बेहद कम प्रांत हैं जहां नागरिक सुरक्षित हैं. यहां तक कि बामियान प्रांत जो दुनिया भर के पर्यटकों के लिए पसंदीदा जगह रहा है वहां भी 19 साल में पहली बार बम धमाके की ख़बर है.

पिछले कुछ दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में नाम मात्र की प्रगति हुई है जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मुल्क के अंदर जारी रक्तपात की घटनाओं से अब उकता सा गया है. विकास और शांति की जुगलबंदी तब मुमकिन है जबकि ज़मीन पर संघर्ष विराम लागू रह सके और दूसरे देश तभी यहां निवेश करेंगे जब उन्हें अफ़ग़ानिस्तान में आगे बढ़ने का मौका मिले.


यह लेख साउथ एशिया वीकली में प्रकाशित हो चुका है.

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