Author : Nisha Holla

Published on Aug 05, 2023 Updated 0 Hours ago

इस मकाम पर पहुंचने वाली ज़्यादातर कंपनियां एक ख़ास उत्पाद या सेवा के इर्द गिर्द मोर्चेबंदी करके छलांग लगाती हैं. या फिर वो बाज़ार में मौजूद किसी उत्पाद को और बेहतर बनाकर पेश करने की रणनीति के ज़रिए कामयाबी हासिल करती हैं

भारत में यूनिकॉर्न का सीढ़ी दर सीढ़ी विकास उसके इनोवेशन के इकोसिस्टम के उभार का संकेत है!
भारत में यूनिकॉर्न का सीढ़ी दर सीढ़ी विकास उसके इनोवेशन के इकोसिस्टम के उभार का संकेत है!

ये लेख हमारी—रायसीना फाइल्स 2022 सीरीज़ का एक हिस्सा है.


यूनिकॉर्न एक ऐसी स्टार्ट-अप कंपनी होती है, जिसका मूल्य एक अरब डॉलर या इससे ज़्यादा होता है. ये नाम बिल्कुल सटीक है. क्योंकि पौराणिक जीव की ही तरह किसी कंपनी के इतनी ज़बरदस्त कामयाबी हासिल करने की संभावना बहुत कम भले होती है, मगर असंभव क़तई नहीं. इस मकाम पर पहुंचने वाली ज़्यादातर कंपनियां एक ख़ास उत्पाद या सेवा के इर्द गिर्द मोर्चेबंदी करके छलांग लगाती हैं. या फिर वो बाज़ार में मौजूद किसी उत्पाद को और बेहतर बनाकर पेश करने की रणनीति के ज़रिए कामयाबी हासिल करती हैं. ये स्टार्ट या तो कोई नया बाज़ार खड़ा करके उसमें कामयाब होती हैं, या पहले से मौजूद बाज़ार में बेहतरीन सेवा या उत्पाद से सफल होती हैं और अपने प्रतिद्वंदियों को हटाकर शीर्ष पर पहुंच जाती हैं. किसी कंपनी के यूनिकॉर्न बनने के लिए उस इकोसिस्टम को शाबाशी दी जानी चाहिए, क्योंकि ये उस इकोसिस्टम की मज़बूती का सुबूत होता है. यही वजह है कि ऐसी ही कामयाबी का बार-बार दोहराया जाना किसी भी देश के स्टार्ट अप इकोसिस्टम की ताक़त का अहम संकेत माना जाता है.

यूनिकॉर्न एक ऐसी स्टार्ट-अप कंपनी होती है, जिसका मूल्य एक अरब डॉलर या इससे ज़्यादा होता है. ये नाम बिल्कुल सटीक है. क्योंकि पौराणिक जीव की ही तरह किसी कंपनी के इतनी ज़बरदस्त कामयाबी हासिल करने की संभावना बहुत कम भले होती है, मगर असंभव क़तई नहीं. 

भारत की पहली यूनिकॉर्न कंपनी मेकमाईट्रिप थी, जिसे 2010 में इस दर्जे तक पहुंचने में दस साल लग गए थे. [1] उसके बाद से भारत में कंपनियों के यूनिकॉर्न बनने की रफ़्तार काफ़ी तेज़ रही है. आज स्टार्ट-अप कंपनियां ये दर्जा हासिल करने में बहुत कम वक़्त ले रही हैं. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ आज भारत में 98 से 103 यूनिकॉर्न कंपनियां हैं; [a] उद्योग जगत के विश्लेषकों ने साल 2021 के अंत तक 85[2] से 90 [3]  यूनिकॉर्न कंपनियों की पहचान की थी. जबकि जनवरी से मार्च 2022 के बीच 13 कंपनियों ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल कर लिया. [4] चूंकि 73 ऐसी स्टार्ट अप कंपनियों की पहचान की गई है[5] , जो बहुत जल्द यूनिकॉर्न का मकाम हासिल कर लेंगी, तो इस इकोसिस्टम पर नजद़र रखने वालों का आकलन है कि वर्ष 2024-25 के दौरान भारत में 200 यूनिकॉर्न कंपनियां होंगी. [6]

यूनिकॉर्न के मामले में इस वक़्त भारत, अमेरिका की 487 और चीन की 301 के बाद दुनिया में तीसरी पायदान पर है. [7] भारत ने इस मामले में ब्रिटेन, इज़राइल, सिंगापुर, जर्मनी और अन्य देशों को बहुत पीछे छोड़ दिया है. इससे पहले 39 यूनिकॉर्न के साथ ब्रिटेन तीसरे नंबर पर था. वहीं, 53 यूनिकॉर्न के साथ इज़राइल, भारत के बाद चौथे स्थान पर है. [8]

स्टार्ट-अप कंपनियों की कामयाबी के लिहाज़ से भारत के लिए 2021 का साल बेहद निर्णायक साबित हुआ. ये बात भारत की यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या दोगुनी होने से साबित होती है. भारत की 90 (वर्ष 2021 के अंत तक) में से 46 यूनिकॉर्न ने तो 2021 में ही ये दर्जा हासिल किया. [9] इतनी तेज़ रफ़्तार हासिल करने वाला भारत इकलौता देश नहीं है. अमेरिका की 489 में से 254 कंपनियां 2021 में ही यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुईं. इसी तरह चीन की 301 में से ७४, इज़राइल की 53 में से 33 और ब्रिटेन की 39 में से 15 कंपनियां, 2021 में ही यूनिकॉर्न क्लब का हिस्सा बनीं. [10] महामारी के चलते लोगों के जीवन की उपयोगिता और रहन-सहन में आए अन-देखे बदलावों ने दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन बन चुकी स्टार्ट-अप कंपनियों की तरक़्क़ी को रफ़्तार दी है.

अगर कारोबार की भाषा में कहें तो, जैसे-जैसे तकनीकी समाधान मुख्यधारा में आए, तो भारत में इंटरनेट की उपलब्धता का बाज़ार (TAM) साल 2021 में बड़ी तेज़ी से बढ़ा और देश भर में ग्राहकों ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में डिजिटल प्लेटफॉर्म को अपनाया. वहीं भारत में कारोबार की मुख्यधारा ने अपनी गतिविधियों को मज़बूत किया और एक आत्मनिर्भर भारत की ओर क़दम बढ़ाने में सहोयग दिया. 

अगर कारोबार की भाषा में कहें तो, जैसे-जैसे तकनीकी समाधान मुख्यधारा में आए, तो भारत में इंटरनेट की उपलब्धता का बाज़ार (TAM) साल 2021 में बड़ी तेज़ी से बढ़ा और देश भर में ग्राहकों ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में डिजिटल प्लेटफॉर्म को अपनाया. वहीं भारत में कारोबार की मुख्यधारा ने अपनी गतिविधियों को मज़बूत किया और एक आत्मनिर्भर भारत की ओर क़दम बढ़ाने में सहोयग दिया. आज देश में 44 करोड़ मिलेनियल्स हैं. [11] ऐसे में इंटरनेट के ग्राहकों की संभावनाएं पिछले तमाम ‘आकलनों’ से कहीं ज़्यादा हैं. आज 83 करोड़ से ज़्यादा भारतीय इंटरनेट के उपभोक्ता हैं; [12] डेटा की सस्ती दरों पहुंच को बढ़ाया है, उपयोगी सेवा को आबादी के हर तबक़े तक पहुंचाया है और यही आर्थिक विकास के नए इंजन को आगे बढ़ा रहा है. 2021 का साल भारत के तकनीकी इकोसिस्टम के लिए सच में मील का पत्थर साबित हुआ है. इस एक साल के दौरान भारत की स्टार्ट-अप कंपनियों ने 1583 सौदों के ज़रिए 42 अरब डॉलर की पूंजी जुटाई. [13] ये साल बाज़ार से बाहर जाने, विलय और ख़रीद (M&A) और IPO का भी साल रहा है. इस साल तकनीक के कारोबार की दुनिया से बाहर जाने वालों के लिहाज़ से भी रिकॉर्ड बना और 17.4 अरब डॉलर की रक़म वापस की गई, जो 2020 में लौटाई गई रक़म (84.3 करोड़ डॉलर) से 20 गुना अधिक थी. [14] वर्ष 2021 में 11 स्टार्ट-अप कंपनियों ने अपने IPO के ज़रिए 7.3 अरब डॉलर की रक़म का जुगाड़ किया. [15] इनमें से ज़्यादातर में ख़ुदरा निवेशकों ने कई गुना ज़्यादा निवेश किया. भारत की सॉफ्टवेयर उत्पाद कंपनी फ्रेशवर्क्स ने ख़ुद को ज़ोरदार स्वागत के बीच अमेरिका के शेयर बाज़ार नैस्डैक में लिस्ट कराया; [16]  फ्रेशवर्क्स, 20 साल पहले लिस्ट हुई इन्फोसिस के बाद इस अमेरिकी शेयर बाज़ार में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी है.

शायद सबसे ज़्यादा दिलचस्प बात ये थी कि 2021 वो साल था जब तक़नीक और डिजिटल प्लेटफॉर्म भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने की मुख्यधारा में शामिल हो गए. इस बारे में उद्योग जगत की एक मज़ेदार कहानी ये है कि आज किस तरह भारत के नागरिक अपना नाश्ता, अपने पसंदीदा फूड डिलिवरी ऐप पर ऑर्डर कर सकते हैं और लंच से पहले किसी और तकनीकी कंपनी के ब्रोकरेज ऐप के ज़रिए उसी कंपनी के शेयर भी ख़रीद सकते हैं- ये एक ऐसी सुविधा है, जो अमेरिका की जनता के पास काफ़ी पहले से थी. [17] ख़ुदरा निवेशकों की बढ़ती भूख को बढ़ावा देते हुए, वर्ष 2022 और 2023 में 20 से ज़्यादा कंपनियों ने अपने IPO बाज़ार में उतारने की योजना बना रखी है. पिछले एक दशक के दौरान, ये प्रक्रिया तकनीकी स्टार्ट-अप के इकोसिस्टम को और मज़बूती देने का काम करती आई है. इसके चलते लाखों भारतीय नागरिक तरक़्क़ी में साझीदार बनते हैं और उन्हें निवेश पर रिटर्न के तौर पर बड़ी रक़म मिलती है, जिसे अगले दौर में बाज़ार में फिर से निवेश किए जाने की संभावता बहुत अधिक होती है.

इकोसिस्टम के विकास की ये तेज़ रफ़्तार- जो यूनिकॉर्न के लगातार रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बनने से ज़ाहिर होती है- ऐतिहासिक है. ये इस बात का संकेत है कि देश में स्टार्टअप के इकोसिस्टम ने बड़े स्तर पर उत्पादन की क्षमता विकसित कर ली है.

 

नॉलेज इकॉनमी में भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम ने बड़ा स्तर हासिल किया

 

21वीं सदी में भारत के विकास को नॉलेज इकॉनमी से रफ़्तार मिल रही है. कृषि और औद्योगिक अर्थव्यवस्था की ख़ूबी भौतिक संपत्ति रही है. हालांकि, ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था सूचना, इनोवेशन, मानवीय पूंजी, बौद्धिक संपदा, रिसर्च और विकास, वस्तुओं और सेवाओं को बढ़ाने के लिए नई ख़ूबियों पर केंद्रित निर्माण से ताक़त हासिल करती है. ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था की अगुवाई वाले युग में विकास की कामयाबी वाली रणनीति तकनीक, इंटरनेट, डेटा, नेटवर्क के असर और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी अन्य शक्तियों का इस्तेमाल बाज़ार में हिस्सेदारी, मौजूदा संस्थानों और तरीक़ों को बेदख़ल करने और कई गुना फ़ायदा हासिल करने के लिए करती है. आज दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत में स्टार्ट-अप कंपनियां ही नॉलेज इकॉनमी के उभार की अगुवाई कर रही हैं.

भारत की स्टार्ट अप कंपनियों ने साबित किया कि वो रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अभिन्न अंग बन चुकी हैं. पूंजी की कमी के बावजूद, बहुत सी स्टार्ट-अप कंपनियां, लॉकडाउन के दौरान बीमा और अन्य सुविधाएं देकर मज़बूती से अपने कर्मचारियों के साथ खड़ी रही थीं.

2014 से 2021 के बीच भारत की स्टार्ट-अप कंपनियों ने कुल मिलाकर 112 अरब डॉलर की रक़म जुटाई थी. [18] वहीं अनुमान बताते हैं कि 2022 के जनवरी से मार्च महीनों के बीच ही, 506 स्टार्ट-अप कंपनियां 11.8 अरब डॉलर की पूंजी जुटा चुकी हैं. ये वर्ष 2021 में इसी दौरान (JFM) निवेश की गई पूंजी से 186 प्रतिशत अधिक है. [19]  इसके लिए मददगार इकोसिस्टम भी क़दम-ताल मिलाकर चल रहा है; देश में 250 से अधिक गुणवत्ता को रफ़्तार देने वाले इनक्यूबेटर सिस्टम काम कर रहे हैं; और लगभग 500 संस्थागत और 2000 सक्रिय निवेशक हैं. [20]  बैंगलुरू, मुंबई और दिल्ली-NCR इनोवेशन के वैश्विक केंद्रों के तौर पर उभर रहे हैं.

आज 66,000 से ज़्यादा स्टार्ट अप [21]  और लगभग 100 यूनिकॉर्न के साथ भारत, दुनिया में स्टार्ट-अप का तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बन चुका है, जो सिर्फ़ अमेरिका और चीन से ही पीछे है. पूर्वानुमान ये संकेत देते हैं कि वर्ष 2025 तक भारत में एक लाख से ज़्यादा स्टार्ट अप कंपनियां होंगी जिनमें 35 लाख से अधिक लोग काम कर रहे होंगे और इनमें से 200 से ज़्यादा यूनिकॉर्न होंगी; जिनका कुल बाज़ार मूल्य एक ख़रब डॉलर के क़रीब होगा. [22]  जो कंपनियां आगे चलकर यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करेंगी और फिर ख़ुद को शेयर बाज़ार में लिस्ट करेंगी, उनका दायरा भी बढ़ रहा है.

2021 का निर्णायक मोड़ इस बात से आया कि महामारी के दौरान स्टार्ट-अप बेशक़ीमती हो गईं. अचानक ही ये कंपनियां सभी तरह की सेवाएं देने लगीं. फिर चाहे बिल जमा करना हो. दूसरे भुगतान हों, खाना या किराने के सामान की डिलवरी हो. फोन और वीडियो पर सलाह देना हो, दवाएं पहुंचानी हों, ऑक्सीजन और अन्य ज़रूरी सामान के लिए तालमेल करना हो, पढ़ाई, मनोरंजन, संचार, डिजिटल माध्यम से जानकारी का लाइव प्रसारण और अन्य बहुत सी सेवाएं. भारत की स्टार्ट अप कंपनियों ने साबित किया कि वो रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अभिन्न अंग बन चुकी हैं. पूंजी की कमी के बावजूद, बहुत सी स्टार्ट-अप कंपनियां, लॉकडाउन के दौरान बीमा और अन्य सुविधाएं देकर मज़बूती से अपने कर्मचारियों के साथ खड़ी रही थीं.

इन कंपनियों ने ज़िंदगी भर के लिए करोड़ों ग्राहक जुटा लिए हैं. इस उद्योग में शामिल लोग कहते हैं कि जल्द ही ऐसे भारतीय नागरिकों की तादाद 10 करोड़ से भी ज़्यादा होगी, जो डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के लिए पैसे देने को तैयार होंगे. इसका मतलब ये है कि बहुत सी और स्टार्ट-अप कंपनियां 10 करोड़ डॉलर से ज़्यादा राजस्व वाले कारोबार करेंगी और यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने की दावेदारी पेश करेंगी.

आज नागरिक उन स्टार्ट-अप और कंपनियों के शुक्रगुज़ार हैं, जिन्होंने उनकी ज़िंदगी के बेहद डरावने दौर में ज़रूरी सुविधाएं हासिल करने में मदद की. इसका नतीजा ये हुआ कि आज इन कंपनियों के पास वफ़ादार ग्राहक हैं. भारतीयों ने ये महसूस कर लिया है कि आज उनकी ज़िंदगी के बहुत से पहलू, तकनीक पर आधारित हैं. उनके बटुए की यथास्थिति और खपत का बर्ताव बुनियादी तौर पर बदल चुका है. भारत में इंटरनेट सेवा के लिए भुगतान करने वाले ग्राहकों की संख्या दो गुनी हो चुकी है और वो डिजिटल उत्पादों और सेवाओं का लाभ ले रही है. महामारी ने ये साबित कर दिया है कि भारत के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहर भी डिजिटल सेवाओं के लिए भुगतान करेंगे. [23]

महामारी के बाद, भारत में अब ज़्यादा ग्राहक ऐसे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं, वीडियो और ऑडियो मनोरंजन, शिक्षण तकनीक, वीडियो गेम और अन्य सेवाओं के लिए भुगतान करने को तैयार हैं. ये बदलाव, ग्राहकों के हर तबक़े और वर्ग में हो रहा है. फिर चाहे वो शहरी भारतीय हो, या छोटे क़स्बों में रहने वाली जनता. पहले सोचा जाता था कि पहली श्रेणी के शहरों में रहने वाली एक से दो करोड़ जनता ही सेवाओं के लिए भुगतान करेगी. मगर, महामारी के दौरान लोगों के बर्ताव में आए बदलाव ने इस सोच को ग़लत साबित कर दिया है. आज इंटरनेट के बाज़ार के विस्तार के साथ ही इन क्षेत्रों में सक्रिय बाज़ार की अग्रणी यूनिकॉर्न की संख्या में भी इज़ाफ़ा हो रहा है.

इन कंपनियों ने ज़िंदगी भर के लिए करोड़ों ग्राहक जुटा लिए हैं. इस उद्योग में शामिल लोग कहते हैं कि जल्द ही ऐसे भारतीय नागरिकों की तादाद 10 करोड़ से भी ज़्यादा होगी, जो डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के लिए पैसे देने को तैयार होंगे. [24] इसका मतलब ये है कि बहुत सी और स्टार्ट-अप कंपनियां 10 करोड़ डॉलर से ज़्यादा राजस्व वाले कारोबार करेंगी और यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने की दावेदारी पेश करेंगी. नाइका से ज़ोमैटो और लिशियस से मामाअर्थ तक, ग्राहकों के बीच कई स्टार्ट-अप कंपनियों के बड़ी जगह बना ली है. उनके ग्राहकों के विस्तार की काफ़ी संभावनाएं हैं, और अब ये कंपनियां यूनिकॉर्न से डेकाकॉर्न (10 अरब डॉलर मूल्य वाली स्टार्ट-अप) बनने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही हैं.

भारत के फिनटेक सेक्टर में वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने वाले दुनिया के सबसे क्रांतिकारी मॉडल सामने आ रहे हैं. ये कंपनियां भारतीय नागरिकों के कमाई, बचत, ख़र्च और ऑनलाइन लेन-देन करने के रवैये में बुनियादी बदलाव ला रही हैं. पॉलिसी बाज़ार, ऑक्सिज़ो, ओपेन, फोनपे, जुपिटर और भारतपे समेत कई अन्य कंपनियां आज तकनीक और डिजिटल पहुंच का फ़ायदा उठाते हुए ऐसे अनूठे प्लेटफॉर्म और उत्पाद तैयार कर रही हैं, जिससे वो बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर सकें और अपनी क़ीमत बढ़ा सकें. नई दौर के डिजिटल ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म जैसे कि ज़िरोधा और धन- जो म्यूचुअल फंड और संस्थागत निवेश के उत्पादों का वितरण करते हैं- के ज़रिए शेयर बाज़ार में निवेश की तादाद बढ़ने से रिकॉर्ड संख्या में ख़ुदरा निवेशक अपनी पूंजी इस तरह की संपत्ति में लगा रहे हैं.

भारत की 33 कंपनियों ने तो यूनिकॉर्न का दर्जा पांच साल से भी कम समय में हासिल कर लिया था. सबसे कम समय में यूनिकॉर्न बनने का रिकॉर्ड मेनसा ब्रांड के पास है, जो छह महीने में ही 1 अरब डॉलर मूल्यांकन वाली कंपनी बन गई थी.

उद्यमा वाली तकनीक भी एक नई क्रांति है, जो भारत में कारोबार करने के तरीक़े में इंक़लाबी बदलाव ला रही है. आज जब भारतीय कंपनियां विस्तार कर रही हैं, तो बहुत सी स्टार्ट अप कंपनियां SaaS (सेवा के तौर पर सॉफ्टवेयर) के प्लेटफॉर्म बना रही हैं, जिससे वो उद्योगों के स्तर पर अपने संगठन की गतिविधियों को सहारा दे सकें. इस मामले में भारत न केवल विदेशी उद्यमी तकनीकी कंपनियों पर निर्भर है, बल्कि ख़ास भारत की ज़रूरतों के हिसाब से कई देसी कंपनियां भी समाधान उपलब्ध करा रही हैं. फ्रेशवर्क्स, ज़ोहो, डार्विनबॉक्स, बिलडेस्क, उड़ान, इनमोबी और बेटरप्लेस जैसी कंपनियों ने न केवल देश के भीतर अपनी उपयोगिता साबित कर दी है, बल्कि इनमें से कई कंपनियां ऐसी हैं जो विश्व स्तर पर काम कर रही हैं, और जिनके ग्राहक दुनिया के अलग अलग क्षेत्रों में मौजूद हैं. आज भारतीय तकनीक की ख़रीद पहले के अनुमानों की तुलना में कहीं ज़्यादा व्यापक स्तर पर हो रही है.

अब ये तार्किक ही है कि इन क्षेत्रों- ई-कॉमर्स, और कंज्यूमर ब्रांड, उद्योगों से जुड़ी तकनीक और फिनटेक- के सेक्टर में सबसे ज़्यादा संख्या में यूनिकॉर्न और सूनिकॉर्न कंपनियां उभर रही हैं और इस सेक्टर का साझा मूल्यांकन भी बढ़ रहा है. तेज़ी से प्रगति करने वाले अन्य क्षेत्रों में शिक्षा की तकनीक, कृषि तकनीक, लॉजिस्टिक और डीप-टेक जैसे सेक्टर शामिल हैं. भारत की तेज़ी से बढ़ रही यूनिकॉर्न और सूनिकॉर्न ने इस बिना किसी शक के ये साबित कर दिया है कि भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम ने आज की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के विकास के मामले में व्यापक स्तर हासिल कर लिया है.

भारत के यूनिकॉर्न क्लब पर एक नज़र

उद्योग की तरह से बताया जा रहा है कि देश में साल 2021 के अंत तक 85 यूनिकॉर्न कंपनियां हो गई थीं, जिनकी साझा क़ीमत 283 अरब डॉलर लगाई गई थी. [25] इन कंपनियों ने मिलकर अब तक 75 अरब डॉलर की पूंजी जुटाई है.

भारत में पांच डेकाकॉर्न (10 अरब डॉलर मूल्य वाली) कंपनियां उभरकर सामने आई हैं- फ्लिपकार्ट, पेटीएम, BYJU’s, ओयो रूम्स [26] और स्विगी (जिसने जनवरी 2022 में ये दर्जा हासिल किया). [27] इन सभी कंपनियों ने अपनी रणनीति के तहत कई अन्य स्टार्ट अप कंपनियों का अधिग्रहण किया, जिससे कि वो अपने प्लेटफॉर्म और सेवाओं का विस्तार करती रहें. जहां पेटीएम ने नवंबर 2021 में अपने IPO के ज़रिए बाज़ार में प्रवेश किया था, वहीं अन्य चार कंपनियां वर्ष 2022 में अपना IPO लाने के अलग अलग चरणों में हैं.

क्षेत्रवार यूनिकॉर्न

यूनिकॉर्न और सूनीकॉर्न क्लब में फिनटेक और ई-कॉमर्स के सेक्टर में काम कर रही स्टार्ट अप कंपनियों का ही दबदबा है. वहीं उद्यमिता वाले सेक्टर में SaaS, ग्राहकों के बाज़ार वाले ब्रैंड, स्वास्थ्य की तकनीक और लॉजिस्टिक के क्षेत्र में भी बहुत ज़बरदस्त प्रगति देखने को मिल रही है.

Fig: भारत की यूनिकॉर्न का क्षेत्रवार ब्यौरा [28]

जिन 13 स्टार्ट अप कंपनियों ने 2022 के जनवरी, फरवरी और मार्च महीने में यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है, वो सबसे अधिक विविधता भरे क्षेत्रों से ताल्लुक़ रखती हैं. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजें, डेटा विश्लेषण, फिनटेक, SaaS और लॉजिस्टिक्स से लेकर शिक्षा की तकनीक, सोशल कॉमर्स और मार्केटप्लेस व गेमिंग तक शामिल हैं. [29]

यूनिकॉर्न बनने में लगने वाला समय

वर्ष 2021 तक किसी स्टार्ट-अप कंपनी के यूनिकॉर्न बनने में 7.8 वर्ष का समय लग रहा था. [30] इस मामले में निर्याणक मोड़ 2021 में आया, ये बात साबित हो चुकी है; 2020 के अंत तक किसी कंपनी के यूनिकॉर्न बनने में लगने वाला औसत समय 9.9 वर्ष था. 2021 में 46 कंपनियों ने रिकॉर्ड समय में यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया था. इस वजह से सिर्फ़ एक साल में स्टार्ट अप के यूनिकॉर्न बनने के औसत समय में दो साल की कमी आ गई. 2022 के पहले तीन महीनों में ही 13 कंपनियों के यूनिकॉर्न बनने के चलते, ये आकलन किया जा रहा है कि यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने की समय सीमा और भी घटकर 6.6 वर्ष ही रह जाएगी. [31]

यूनिकॉर्न कंपनियों के विकास की एक क़ुदरती राह IPO के ज़रिए बाज़ार में उतरना है, और 2021 का साल भारत की तकनीकी कंपनियों के IPO के लिहाज़ से रिकॉर्ड बनाने वाला साबित हुआ. 11 स्टार्ट-अप कंपनियां- ईज़माईट्रिप, फ्रेशवर्क्स, नज़ारा, नायिका, ज़ोमैटो, मैपमाईइंडिया, पॉलिसीबाज़ार, रेटगेन, फिनो, पेटीएम और कारट्रेड ने- 2021 में अपने IPO के ज़रिए 7.3 अरब डॉलर की रक़म जुटाई.

भारत की 33 कंपनियों ने तो यूनिकॉर्न का दर्जा पांच साल से भी कम समय में हासिल कर लिया था. सबसे कम समय में यूनिकॉर्न बनने का रिकॉर्ड मेनसा ब्रांड के पास है, जो छह महीने में ही 1 अरब डॉलर मूल्यांकन वाली कंपनी बन गई थी. [32] संस्थापक टीम की गुणवत्ता में इज़ाफ़ा होने, बेहद प्रशिक्षित तकनीकी प्रतिभाओं और इंटरनेट के बाज़ार तक पहुंच के विस्तार और इस सुविधा में आसानी के चलते, स्टार्ट अप के यूनिकॉर्न बनने की रफ़्तार तेज़ हुई है. ये इस बात का भी संकेत है कि भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में बुनियादी तौर पर बड़ा बदलाव आ गया है.

वो आज किस मकाम पर हैं?

इनोवेशन हमेशा समूह में होता है और भारतीय यूनिकॉर्न कंपनियां भी इसका अपवाद नहीं है. सबसे ज़्यादा 39 कंपनियों के साथ बैंगलुरू, यूनिकॉर्न के मामले में पहले स्थान पर है, जो शहर के तेज़ी से तरक़्क़ी करती स्टार्ट-अप संस्कृति की मिसाल है 2021 में भारत के स्टार्ट-अप सेक्टर में निवेश की गई कुल पूंजी का 51 फ़ीसद, अकेले बैंगलुरू में हुआ. [33] आज ये दुनिया के सातवें सबसे बड़े यूनिकॉर्न केंद्र के तौर पर उभरा है. बैंगलुरू आज अमेरिका और चीन के ज़्यादा मज़बूत इकोसिस्टम से होड़ लगा रहा है.

30 यूनिकॉर्न के साथ दिल्ली-NCR दूसरे नंबर पर और 18 यूनिकॉर्न के साथ मुंबई तीसरी पायदान पर है. [34] साल 2021 के अंत तक भारत की 90 प्रतिशत यूनिकॉर्न कंपनियां इन्हीं तीन शहरों में केंद्रित थीं और 2022 में इनमें इज़ाफ़ा ही हुआ है. अब ये हैरानी की बात नहीं है कि आज देश में सक्रिय सभी स्टार्ट-अप में से लगभग 67 प्रतिशत इन्हीं तीन शहरों से चल रही हैं. [35]  जल्द ही यूनिकॉर्न बनने की ओर अग्रसर ज़्यादातर स्टार्ट-अप भी मोटे तौर पर इन्हीं शहरों में मौजूद हैं, जिनमें से बेंगलुरू में 30, मुंबई में 17 और दिल्ली-NCR में 12 हैं. [36]

ये हौसला बढ़ाने वाली बात है कि भारत के बाक़ी क्षेत्रों में भी स्टार्ट-अप की गतिविधियां बढ़ रही हैं. चेन्नई और पुणे में 6-6 यूनिकॉर्न कंपनियां हैं, वहीं हैदराबाद में 2 यूनिकॉर्न हैं. 2021 में कारदेखो के यूनिकॉर्न बनने के साथ ही इस लिस्ट में जयपुर भी शामिल हो गया है. [37]

IPO के रास्ते

यूनिकॉर्न कंपनियों के विकास की एक क़ुदरती राह IPO के ज़रिए बाज़ार में उतरना है, और 2021 का साल भारत की तकनीकी कंपनियों के IPO के लिहाज़ से रिकॉर्ड बनाने वाला साबित हुआ. 11 स्टार्ट-अप कंपनियां- ईज़माईट्रिप, फ्रेशवर्क्स, नज़ारा, नायिका, ज़ोमैटो, मैपमाईइंडिया, पॉलिसीबाज़ार, रेटगेन, फिनो, पेटीएम और कारट्रेड ने- 2021 में अपने IPO के ज़रिए 7.3 अरब डॉलर की रक़म जुटाई. [38] फ्रेशवर्क्स भारत की पहली SaaS कंपनी बनी जिसने नैस्डैक में ख़ुद को लिस्ट कराया. वैसे तो इनमें से ज़्यादातर कंपनियों ने बाज़ार में उतरने से पहले ही यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल कर लिया था. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि नज़ारा और मैपमाईइंडिया तब यूनिकॉर्न के मकाम पर पहुंचीं, जब उन्होंने अपना IPO बाज़ार में उतार दिया था और अपने विकास पर ज़ोर लगा रही थीं. [39] इनमें से ज़्यादातर IPO का कई गुना ज़्यादा सब्सक्रिप्शन हुआ. जो इस बात का संकेत है कि ख़ुदरा भारतीय निवेशक भारत की विकास यात्रा में निवेश करके भागीदार बनने के इस अवसर का खुलकर स्वागत कर रहे हैं.

भारत के आत्मनिर्भरता वाली दूर-दृष्टि- जिसे अगर हम इस दशक के दौरान पांच ख़रब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनकर 10 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह में आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा से जोड़ दें- तो इसके लिए ज़रूरी आर्थिक विकास में तकनीक पर आधारी स्टार्ट-अप इकोसिस्टम की भूमिका बेशक़ीमती हो जाती है.

वर्ष 2022 और 2023 में 20 से ज़्यादा कंपनियों ने अपने IPO बाज़ार में लाने की अर्ज़ी दी है. इनमें से काफ़ी कंपनियां पहले ही यूनिकॉर्न बन चुकी हैं. इनमें  से कुछ कंपनियां, जैसे कि डेल्हिवरी, ओयो, फार्मईज़ी, मोबिक्विक, ओला, BJYU’s, पाइन लैब्स, फ्लिपकार्ट, स्विगी, फोनपे और बिगबास्केट तो ऐसे नाम हैं, जो घर घर में जाने जाते हैं, और अगले दो वर्षें में इनके IPO आने वाले हैं.

2021 में भारत के बाज़ार ने साबित किया है कि वो बहुत सक्षमता से काम करते हैं. दुनिया भर में तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम होने के बावजूद अमेरिका और चीन की तुलना में भारत तकनीकी कंपनियों के IPO के मामले में काफ़ी पीछे है. अमेरिका ने एक ऐसा कुशल इकोसिस्टम विकसित कर लिया है, जो हर साल सैकड़ों IPO लाने में सहयोग करता है. पिछले एक दशक के दौरान, चीन ने भी अपने बाज़ार के ढांचे को बख़ूबी स्थापित कर लिया है और वहां भी बड़ी संख्या में IPO लाने में मदद मिलती है. अब तक भारत इस मामले में पिछड़ रहा था. लेकिन, 2021 की घटनाओं ने साबित किया है कि अब यहां भी IPO की रफ़्तार बढ़ाने में सहयोग मिल रहा है.

विलय और अधिग्रहण के ज़रिए इकोसिस्टम का निर्माण

इकोसिस्टम में यूनिकॉर्न की तादाद बढ़ने का एक फ़ायदा ये होता है, वो अपने भी इकोसिस्टम बनाते हैं. अगर कारोबार ख़ूब तरक़्क़ी कर रहा है और कंपनी लगातार आगे बढ़ रही है, तो ज़ाहिर है कि वो आस-पास के बाज़ार में अपना विस्तार करेगी और इसके लिए विलय और अधिग्रहण के विकल्प भी आज़माएगी. भारत के स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में विलय और अधिग्रहण 2020 में 82 से ढाई गुना बढ़कर साल 2021 में 206 तक पहुंच गया था[40]– और इस गतिविधि में भारत की यूनिकॉर्न कंपनियों की बड़ी भूमिका रही थी.

नवंबर 2021 में मेंसा ब्रैंड का मूल्य 1.2 अरब डॉलर आंका गया था और ब्रैंड की तरफ़ से दिए जाने विकल्पों की ये सबसे अच्छी मिसाल है. कंपनी ने साल 2021 में सबसे ज़्यादा 12 अधिग्रहण का भी रिकॉर्ड बनाया था. 10 कंपनियों का अधिग्रहण करके BJYU’s इस मामले में दूसरे नंबर पर रही थी; वहीं, 8 कंपनियों का अधिग्रहण करके Upscalio ने इस मामले में तीसरा स्थान हासिल किया था. [41] ग्राहकों को नए और आकर्षक सेवाएं और उत्पाद देकर ये यूनिकॉर्न कंपनियां अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रही हैं.

चूंकि भारत में मांग और आपूर्ति दोनों ही को पूरे करने की समय सीमा बढ़ रही है, तो विलय और अधिग्रहण का ये सिलसिला और तेज़ होगा. 2022 के साल में ये पहले ही देखने को मिल रहा है. [42] नियमित रूप से विकास करने वाली ऐसी कंपनियों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जिनके पास छोटी कंपनियों का अधिग्रहण करने के लिए नक़द पूंजी भी उपलब्ध हो. ये स्टार्ट- अप कंपनियों के यूनिकॉर्न बनने की तेज़ रफ़्तार के रूप में दिख भी रहा है. बहुत सी कंपनियां एक ऐसे विशिष्ट  मूल्य बनाने वाले क्षेत्र में काम कर रही हैं, जिन्हें अधिग्रहण करना बड़ी कंपनियों के लिए अपना ख़ुद का वही उत्पाद तैयार करने से कहीं सस्ता पड़ रहा है. रिलायंस और टाटा द्वारा हाल ही में किए गए स्टार्ट अप के अधिग्रहण से साबित होता है कि ये क्षेत्र भी मज़बूती हासिल कर रहा है. [43]

भारत के आत्मनिर्भरता वाली दूर-दृष्टि- जिसे अगर हम इस दशक के दौरान पांच ख़रब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनकर 10 ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह में आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा से जोड़ दें- तो इसके लिए ज़रूरी आर्थिक विकास में तकनीक पर आधारी स्टार्ट-अप इकोसिस्टम की भूमिका बेशक़ीमती हो जाती है. कंपनियों के यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने की तेज़ रफ़्तार ये दिखाता है कि विकास को बढ़ावा देने वाला ये सेक्टर आर्थिक गतिविधियों को कई गुना अधिक ताक़त दे रहा है; इस इकोसिस्टम से बेहद मूल्यवान सामान और सेवाएं मिल रही हैं. नौकरी के बहुत से अवसर पैदा हो रहे हैं और भारतीय बाज़ार का इस तरह से विस्तार हो रहा है, जैसा आज से एक दशक पहले तक देखा ही नहीं गया था. नए दशक में हम तकनीक के मुख्यधारा से और गहरा संबंध स्थापित करते हुए देख सकते हैं.


[a] As of 25 March 2022. These include companies that have been acquired, bootstrapped (not venture funded), and listed on public markets. Two were subsequently devalued below US$1 billion after turning unicorn.

[1] “India Tech Unicorn Report 2021,” ORIOS Venture Partners.

[2] “2021 Year in Review,” Inc42 Media.

[3] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[4] Bhaswati Guha Majumder, “India’s Unicorn Boom Continues in 2022: 13 Recorded So far, May Touch 100 This Year,” News18, March 25, 2022.

[5] Nikhil Subramaniam, “Meet The Next Indian Unicorns: The 73 Startups In Inc42’s Soonicorn List This Year,” Inc42 Media, January 8, 2022.

[6] TV Mohandas Pai, “India-A Startups Nation,” 3one4 Capital.

[7] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[8] “2021 Was The Best Ever Year For Israeli Tech: $25 Billion Raised And A Record Number Of Unicorns And Mega Rounds,” Start-Up Nation Central, December 13, 2021.

[9] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[10] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[11] Priyam Sharma, “The rise of the Indian millennial,” The Times of India, September 6, 2021.

[12] Inc42 Media, “2021 Year in Review”

[13] “Indian Tech Startup Funding Report 2021,” Inc42 Media.

[14] “India PE, VC investments, exit deals at all-time high in 2021: report,” The Economic Time, February 2, 2022.

[15] Nikhil Subramaniam, “From Nazara To MapmyIndia: Indian Tech Startups Raised Over $7.3 Bn Through IPOs In 2021,” Inc42 Media, December 20, 2021.

[16] Alnoor Peermohamed and Dia Rekhi, “Freshworks lists on Nasdaq after billion-dollar IPO,” The Economic Times, September 23, 2021.

[17] Darlington Jose Hector, “2021 proved that tier 2, 3 towns will pay for entertainment, education and other services, says 3one4 Capital’s Pranav Pai,” Moneycontrol,  December 20, 2021.

[18] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[19] Jaspreet Kaur, “Most Active Investors In The Indian Startup Ecosystem In Q1 2022,” Inc42 Media, April 5, 2022.

[20] TV Mohandas Pai, “India- A Startups Nation”

[21] “The India Unicorn Landscape,” Invest India.

[22] TV Mohandas Pai, “India- A Startups Nation”

[23] Swarajya Staff, “Digital Payments Growing Rapidly In Tier-II, Tier-III Indian Cities: Razorpay Report,” Swarajya Magazine,  August 10, 2021.

[24] “More Indian consumers will pay for digital services, says 3One4 Capital’s Pai,” Rest of world, March 22, 2022.

[25] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[26] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[27] John Sarkar, “Swiggy raises $700 million at valuation of $11 billion,” The Times of India, Januray 25, 2022.

[28] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[29] Srishti Agarwal, “Here Are The 13 Indian Startups That Entered The Unicorn Club In 2022,” Inc42 Media, April 1, 2022.

[30] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[31] Agarwal, “Here Are The 13 Indian Startups That Entered The Unicorn Club In 2022”

[32] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[33] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[34] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[35] TV Mohandas Pai, “India- A Startups Nation”

[36] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[37] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[38] Subramaniam, “From Nazara To MapmyIndia: Indian Tech Startups Raised Over $7.3 Bn Through IPOs In 2021”

[39] ORIOS Venture Partners, “India Tech Unicorn Report 2021”

[40] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[41] Inc42 Media, “Indian Tech Startup Funding Report 2021”

[42] Gunja Sharan, “Enterprisetech Unicorn Gupshup Marks 2nd Acquisition Of 2022, Acquires AI Startup Active.Ai,” Inc42 Media,  April 5, 2022.

[43] Digbijay Mishra, “After BigBasket, Tata Digital acquires online pharmacy 1mg,” The Economic Times, June 11, 2021.

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