Author : Sameer Patil

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

मिलन जैसे बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास में भागीदारी करने से भारत की बढ़ती सॉफ्ट सैन्य शक्ति का असर और भी बढ़ जाता है.

रक्षा कूटनीति के क्षेत्र में भारत के बढ़ते क़दम और उसके पदचिन्ह!
रक्षा कूटनीति के क्षेत्र में भारत के बढ़ते क़दम और उसके पदचिन्ह!

भारतीय नौसेना ने हाल ही में विशाखापत्तनम में एक बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास ‘मिलन’ को पूरा किया है. ये पहली बार था जब अमेरिकी नौसेना के साथ-साथ दुनिया के 40 देशों की नौसेनाएं इस युद्धाभ्यास में शामिल हुई हैं. नौसैनिक अभ्यास ‘मिलन’ की शुरुआत 1995 से हुई थी. इस साल ये युद्धाभ्यास दो चरणों में किया गया- बंदरगाह वाला चरण (25-28 फ़रवरी) और समुद्री हिस्से (1-4 मार्च) वाला अभ्यास. इस अहम नौसैनिक अभ्यास ने न केवल भारतीय नौसेना को पेशेवर रिश्ते विकसित करने का मौक़ा दिया, बल्कि इसके ज़रिए भारत ने अपनी बढ़ती हुई नरम सैन्य शक्ति का भी प्रदर्शन किया.

मिलन युद्धाभ्यास में भागीदारों की बढ़ती संख्या और इस दौरान आज़माए जाने वाले दांव-पेंचों की बढ़ती जटिलता इस बात की मिसाल है कि दक्षिणी पूर्वी एशिया से पश्चिमी एशिया तक भारत की रक्षा कूटनीति का दायरा लगातार बढ रहा है. 

मिलन युद्धाभ्यास में भागीदारों की बढ़ती संख्या और इस दौरान आज़माए जाने वाले दांव-पेंचों की बढ़ती जटिलता इस बात की मिसाल है कि दक्षिणी पूर्वी एशिया से पश्चिमी एशिया तक भारत की रक्षा कूटनीति का दायरा लगातार बढ रहा है. इस कूटनीति में उन्नत नौसैनिक साझेदारी, बड़े सैन्य अभ्यास और रक्षा निर्यात बढ़ाने के लिए की जा रही कोशिशों में इज़ाफ़ा शामिल है. इसका नतीजा ये हुआ है कि भारतीय सेनाएं ने साझीदार देशों की सेनाओं के साथ मिलकर काम करने में सुधार ला रही हैं. नई साझेदारियां बना रही हैं और इनके भारत की कूटनीति को भी शक्ति मिल रही है.

दक्षिणी पूर्वी एशिया के साथ बढ़ते संबंध

भारत की रक्षा कूटनीति का दायरा बढ़ने की एक अहम वजह इस क्षेत्र और ख़ास तौर से दक्षिणी चीन सागर में में चीन की लगातार बढ़ती आक्रामक उपस्थिति है. हाल के वर्षों में भारत ने दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशों के साथ सहयोग बढाया है. ये देश भी चीन के साथ संतुलन बनाने और अपनी समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए भारत के साथ रक्षा संबंध का दायरा बढ़ाने को आतुर हैं.

अहम बात ये है कि दक्षिणी पूर्वी एशिया के अधिकतर देशों- इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, ब्रुनेई, सिंगापुर, कंबोडिया, थाईलैंड और म्यांमार- ने इस बार मिलन युद्धाभ्यास में शिरकत की थी. इन देशों में से सिंगापुर, थाईलैंड और इंडोनेशिया ही ऐसे तीन देश हैं, जो 1995 में पहले मिलन युद्धाभ्यास में शामिल हुए थे. भारतीय नौसेना ने इस क्षेत्र की नौसेनाओं के साथ बहुपक्षीय अभ्यास जैसे कि इंडोनेशिया की नौसेना के कोमोडो और अमेरिका के नेतृत्व वाले दक्षिणी पूर्वी एशिया सहयोग और प्रशिक्षण अभ्यास में शामिल होकर इस क्षेत्र के साथ संवाद को बढ़ाया है. भारत ये सहयोगी नज़रिया अपनाकर इसकी मदद से अपने रक्षा निर्यात को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है और चीन का मुक़ाबला भी कर रहा है. क्योंकि, चीन ने अपने रक्षा निर्यातों की मदद से ही इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई है.

रक्षा निर्यात

भारत ने हाल ही में फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलें बेचने का सौदा 37.5 करोड़ डॉलर में किया है. ये सौदा भारत के रक्षा उद्योग का हौसला बढ़ाने वाला है. ठेके के तहत भारत, फिलीपींस की नौसेना को मिसाइलों की तीन बैटरी देगा. इसके बाद भारत को और भी ठेका मिलने की संभावना है. वर्ष 2024 तक पांच अरब अमेरिकी डॉलर के रक्षा निर्यात के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत ने दक्षिणी पूर्वी एशिया और अफ्रीका में अपने हथियारों को बेचने के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. इन दोनों ही क्षेत्रों पर चीन की कंपनियों का दबदबा है. इन्हीं कोशिशों के चलते भारत का रक्षा निर्यात जो वर्ष 2018-19 में महज़ 1940.64 करोड़ रुपए था, वो 2018-19 में बढ़कर 10,745 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. हालांकि, भारत को इस दिशा में अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है.

Table 1: भारत का रक्षा निर्यात

साल  रक्षा निर्यात (करोड़ रुपयों में)
2014-15 1,940.64
2015-16 2,059.18
2016-17 1,521.91
2017-18 4,682.36
2018-19 10,745.77
2019-20 9,115.55
2020-21 8,434.84

स्रोत:रक्षा मंत्रालय, लोकसभा

घरेलू रक्षा उद्योग के ढांचे का विस्तार करने और निर्यात बढ़ाने के उपाय करने के साथ-साथ सरकार ने भारतीय दूतावासों में तैनात रक्षा प्रतिनिधियों की भूमिका भी मज़बूत की है. सरकार ने इन डिफेंस अताशे को पचास हज़ार डॉलर का सालाना बजट आवंटित करके उन्हें अपनी तैनाती वाले देशों के बाज़ार में भारत के रक्षा उपकरणों को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा, हथियारों की बिक्री बढ़ाने की उनकी कोशिशों को मज़बूती देने के लिए सरकार ने भारत में बने कई हथियारों, जैसे कि तेजस लड़ाकू विमान और अस्त्र मिसाइलों को दोस्ताना संबंध वाले देशों को बेचने का रास्ता साफ़ कर दिया है.

निर्यात से इतर, भारत ने अपने नज़दीकी पड़ोसी देशों को हथियार और औज़ार देकर उनकी नौसैनिक क्षमता का निर्माण करने में भी मदद की है. इनमें मॉरीशस (2015), श्रीलंका (2018), मालदीव (2019) और सेशेल्स (2021) को तटरक्षक निगरानी नौकाएं मुहैया कराना, और इसके साथ साथ सेशेल्स को दो डोर्नियर विमान (2013 और 2018) देना शामिल है.

निर्यात से इतर, भारत ने अपने नज़दीकी पड़ोसी देशों को हथियार और औज़ार देकर उनकी नौसैनिक क्षमता का निर्माण करने में भी मदद की है. इनमें मॉरीशस (2015), श्रीलंका (2018), मालदीव (2019) और सेशेल्स (2021) को तटरक्षक निगरानी नौकाएं मुहैया कराना, और इसके साथ साथ सेशेल्स को दो डोर्नियर विमान (2013 और 2018) देना शामिल है. हालांकि ये क़दम देखने में बहुत छोटे लगते हैं. लेकिन, ये क़दम उठाकर भारत को उम्मीद है कि वो इस क्षेत्र में संपूर्ण सुरक्षा प्रदाता की अपनी भूमिका को और मज़बूती दे सकेगा.

मानवीय सहायता

भारत की संपूर्ण सुरक्षा देने वाले देश की भूमिका का एक अहम पहलू उसकी इस क्षेत्र में मानवीय और आपदा राहत सहायता (HADR) के अभियान चलाने की क्षमता है. भारत लंबे समय से मानवीय और आपदा राहत सहायता के अभियान चलाने की अगुवाई करता रहा है. हमने इसकी मिसालें 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी, 2015 के नेपाल भूकंप और 2020 में मेडागास्कर में आई बाढ़ के दौरान देखी हैं. इसके अलावा, पिछले एक दशक के दौरान आईएनएस जलश्व जैसे परिवहन के जहाज़ और C17 परिवहन विमानों की  ख़रीद से भारतीय सेनाओं की ऐसे अभियान चलाने की क्षमता में और इज़ाफ़ा हो गया है.

इसके अलावा, अब चूंकि इस क्षेत्र में मौसम में भारी बदलाव के चलते ख़ास तौर से बंगाल की खाड़ी में प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बढ़ रही है, तो भारत साझीदार देशों के साथ मिलकर इनसे निपटने की अपनी व्यवस्था को बढ़ा रहा है. मानवीय और आपदा राहत सहायता के अभियान क्वाड के प्रमुख मुद्दों में हैं. हालांकि, भारत ने बिम्सटेक देशों (बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल ऐंड इकॉनमिक को-ऑपरेशन) के साथ मिलकर PANEX-21 जैसे अभ्यास किए हैं, जिससे कि महामारी जैसे हालात में आपातकालीन अभियान चलाए जा सकें.

भारत के पश्चिम में संबंधों का विकास

पश्चिमी एशिया के राजशाही शासकों के साथ भारत के रिश्ते लंबे समय से पाकिस्तान के साथ उनके संबंधों के चश्मे से देखे जाते रहे हैं. लेकिन, हाल के वर्षों में भारत ने पश्चिमी एशिया के देशों के साथ अपनी ख़ास तरह की भागीदारी विकसित करने की कोशिश की है. इन रिश्तों में रक्षा कूटनीति की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है. आज जब अब्राहम समझौतों और चीन के बढ़ते कद के चलते इस क्षेत्र में बहुत बड़े स्तर पर बदलाव देखा जा रहा है. ऐसे में भारत ने नौसैनिक संवाद बढ़ाकर इन देशों के साथ अपने रक्षा सहयोग का स्तर उठाया है. मिसाल के तौर पर अगस्त 2021 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (ज़ायद तलवार युद्धाभ्यास), बहरीन (समुद्री साझीदारी का अभ्यास) और सऊदी अरब (अल- मोहेद अल हिंदी अभ्यास) के साथ एक के बाद एक नौसैनिक अभ्यास किए थे. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत और सऊदी अरब के बीच ये पहला साझा नौसैनिक अभ्यास था. दोनों ही देशों के बीच पहली बार उच्च स्तर के सैन्य दौरे भी हुए हैं. भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल एम एम नरवणे ने दिसंबर 2020 में सऊदी अरब का दौरा किया था. वहीं सऊदी अरब की थल सेना के प्रमुख कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फहद बिन अब्दुल्ला मुहम्मद अल मुतैर, फरवरी 2022 में भारत के दौरे पर आए थे.

इस क्षेत्र में भारत के सैन्य संबंध बढ़ाने में ओमान ने एक अहम ठिकाने की भूमिका निभाई है. दोनों देशों की सेनाओं के बीच नियमित आदान-प्रदान के साथ साथ ओमान ने भारतीय नौसेना की मदद के लिए अपने दुक़्म बंदरगाह के दरवाज़े खोले हैं

इस क्षेत्र में भारत के सैन्य संबंध बढ़ाने में ओमान ने एक अहम ठिकाने की भूमिका निभाई है. दोनों देशों की सेनाओं के बीच नियमित आदान-प्रदान के साथ साथ ओमान ने भारतीय नौसेना की मदद के लिए अपने दुक़्म बंदरगाह के दरवाज़े खोले हैं. इससे, लंबे समय से समुद्री डकैती के शिकार रहे पश्चिमी हिंद महासागर में भारतीय नौसेना अपनी नियमित मौजूदगी बनाए रख पा रही है. वैसे तो हाल के वर्षों में समुद्री डकैती की घटनाएं कम हुई हैं. लेकिन, ड्रग्स की तस्करी और अवैध रूप से मछली के शिकार जैसी नई चुनौतियां उठ खड़ी हुई हैं, जिनसे निपटने के लिए समुद्र में नियमित रूप से निगरानी करनी ज़रूरी हो गई है.

अफ़ग़ानिस्तान की चुनौती का सामना

अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ ही भारत अपने साझीदार देशों के साथ मिलकर इस कोशिश में जुटा है कि अफ़ग़ानिस्तान के अस्थिर हालात से पैदा हुए ख़तरों से निपटा जा सके. जनवरी 2022 में भारत और मध्य एशिया के पहले शिखर सम्मेलन और नवंबर 2021 में हुए क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद का पूरा ज़ोर आतंकवाद का विस्तार और ड्रग्स की तस्करी रोकने पर था. इसके लिए भारत, मध्य एशिया के उन देशों के साथ साझा आतंकवाद निरोधक अभ्यास करने की संभावनाएं तलाश रहा है, जिनकी इसमें दिलचस्पी है. ऐसे अभ्यासों से संबंधित देशों को अपने सुरक्षा बलों को संभावित आतंकवादी हिंसा से निपटने के लिए तैयार करने में मदद मिलेगी. इसी बीच भारत ने अपने यहां की सैन्य अकादेमियों में ट्रेनिंग लेने वाले अफ़ग़ानिस्तान के 80 कैडेट को लेकर हमदर्दी दिखाई है. तालिबान राज आने के कारण ये कैडेट अपने देश नहीं लौट पा रहे हैं. ऐसे में भारत ने इन्हें अपने तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के तहत एक साल तक प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव दिया है.

निष्कर्ष

अफ़ग़ानिस्तान के बदले हुए हालात से पूरे क्षेत्र पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटते हुए भारत ने अपने रक्षा बलों की मदद से क्षेत्रीय कूटनीति को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया है. इन प्रयासों से भारत को लगातार सहयोग वाला संवाद करने में मदद मिल रही है और भारत पूरे क्षेत्र में साझेदारियां विकसित कर रहा है. इन साझेदारियों को टिकाऊ बनाने के लिए भारत को अपनी नौसैनिक, तलाश करने वाली और लॉजिस्टिक क्षमताओं के विकास में निवेश करना होगा.

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