Published on Jan 28, 2022 Updated 0 Hours ago

पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्री का मालदीव, श्रीलंका और कॉमरोस दौरा दिखाता है कि हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की दिलचस्पी एक बार फिर बढ़ गई है.

हिंद महासागर क्षेत्र: भारत जो अब तक करता रहा है, चीन उसे ही बेहतर करना चाहता है

जो भारत करता है, चीन अब उसे बेहतर ढंग से करना चाहता है. अभी तक चीन आर्थिक नीतियों और तकनीकी सुधार के क्षेत्र में पश्चिमी देशों, मुख्य रूप से अमेरिका, की नक़ल तक सीमित रहा है. लेकिन अब वो हिंद महासागर क्षेत्र में छोटे द्विपीय देशों की परिषद का प्रस्ताव देकर हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत की नीति की नक़ल करना चाहता है. चीन ने ये क़दम भारत के विदेश मामलों के मंत्रालय (एमईए) के द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र की निगरानी के पुनर्गठन के कुछ वर्षों के बाद उठाया है. भारत ने पुनर्गठन के तहत पहले एक आईओआर डिवीज़न का गठन किया और बाद में उन पड़ोसियों को भी जोड़ा जो भारत के द्वीपीय क्षेत्र से बहुत दूर नहीं हैं.

भारतीय मीडिया की ख़बरों में और विश्लेषकों के द्वारा नये साल में वांग के पहले विदेशी दौरे में मालदीव और श्रीलंका के हिस्से को छोड़कर ज़्यादातर को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि कैसे पूर्वी अफ्रीका में वांग ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र के लिए चीन के एक विशेष दूत की नियुक्ति का ऐलान किया.

आज विदेश मंत्रालय का आईओआर डिवीज़न न केवल नज़दीक के पड़ोसियों जैसे मालदीव और श्रीलंका को देखता है बल्कि मॉरिशस और सेशेल्स जैसे मध्य दूरी के पड़ोसियों को भी. हाल के दिनों में तो आईओआर डिवीज़न लंबी दूरी के पड़ोसियों जैसे कॉमरोस, मेडागास्कर और फ्रेंच रियूनियन- ये सभी द्वीपीय देश हैं- को भी देखने लगा है. पिछले दिनों विदेश मंत्रालय ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को देखने के लिए भी एक अलग डिवीज़न का गठन किया है. पांच देशों की अपनी यात्रा के अंत में चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी ने श्रीलंका के विदेश मंत्री जी एल पीरिस के साथ अपनी मुलाक़ात में ‘हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के विकास के लिए एक मंच स्थापित करने का प्रस्ताव दिया’. इस प्रस्ताव का ज़िक्र वांग यी का दौरा ख़त्म होने के बाद बीजिंग में चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से जारी बयान में था. चीन के विदेश मंत्री अपने इस दौरे में कॉमरोस, मालदीव और श्रीलंका के अलावा इरीट्रिया और केन्या भी गए थे जो कि द्वीपीय देश नहीं हैं.

भारतीय मीडिया की ख़बरों में और विश्लेषकों के द्वारा नये साल में वांग के पहले विदेशी दौरे में मालदीव और श्रीलंका के हिस्से को छोड़कर ज़्यादातर को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि कैसे पूर्वी अफ्रीका में वांग ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र के लिए चीन के एक विशेष दूत की नियुक्ति का ऐलान किया. भारतीय मीडिया और विश्लेषकों ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि चीन के विदेश मंत्री के द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के पास के देशों के दौरे की शुरुआत कॉमरोस से हुई जिसे विदेश मंत्रालय के आईओआर डिवीज़न में बाद में जोड़ा गया था. इसी तरह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के नज़दीकी पड़ोसियों मालदीव और श्रीलंका पर मीडिया की रिपोर्ट पूरी तरह वहां की सरकारों के द्वारा आधिकारिक बयानों पर आधारित थी और इसमें चीन के विदेश मंत्री द्वारा श्रीलंका के विदेश मंत्री को दिए गए प्रस्ताव का ज़िक्र नहीं था. मालदीव में अगर चीन के विदेश मंत्री ने इसी तरह के प्रस्ताव पर चर्चा की थी तो चीन की तरफ़ से भी इसे प्रचारित नहीं किया गया था.

अगर राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह या विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं, ने कर्ज़ पुनर्गठन की मांग भी की तो ये ख़बर नहीं आई. इसके बदले ख़बरों में बताया गया कि चीन ने पांच समझौतों में एक समझौते- आर्थिक और तकनीकी सहयोग का समझौता- के तहत मालदीव को 968.2 मालदीवियन रूफिया की अनुदान सहायता देने का वादा किया. 

दो विकल्पों से ज़्यादा बड़ा

इस तरह से श्रीलंका के मीडिया ने विशेष ध्यान दिया कि किस तरह राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने वांग यी के साथ ‘दोस्ताना माहौल में बातचीत’ की और कर्ज़ को पुनर्गठित करने की मांग की. कर्ज़ के पुनर्गठन का मुद्दा श्रीलंका, वहां की सरकार और नेतृत्व के लिए बड़ी चिंता है क्योंकि श्रीलंका अभूतपूर्व विदेशी मुद्रा और आर्थिक संकट से घिरा हुआ है और इसकी वजह से राजनीतिक उथल-पुथल का ख़तरा है. चीन के विदेश मंत्री ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे से भी मुलाक़ात की और राजपक्षे के राष्ट्रपति कार्यकाल (2005-15) के दौरान की यादों को ताज़ा किया जब राजपक्षे ने छह बार चीन का दौरा किया था. इस दौरान पीएम महिंदा राजपक्षे ने चीन के विदेश मंत्री से अनुरोध किया कि वैश्विक महामारी के बाद अपने-अपने घरों में फंसे श्रीलंका के मेडिकल छात्रों को जल्द बुलाने में मदद करें.

मालदीव में स्थानीय मीडिया ने अपने विदेश मंत्रालय के बयान के हवाले से ख़बर दी कि दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक सहयोग के पांच समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जो ज़्यादातर सामाजिक बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं तक सीमित हैं. अगर राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह या विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं, ने कर्ज़ पुनर्गठन की मांग भी की तो ये ख़बर नहीं आई. इसके बदले ख़बरों में बताया गया कि चीन ने पांच समझौतों में एक समझौते- आर्थिक और तकनीकी सहयोग का समझौता- के तहत मालदीव को 968.2 मालदीवियन रूफिया की अनुदान सहायता देने का वादा किया. चीन के विदेश मंत्री के दौरे के बाद मालदीव में चीन की राजदूत एम्बेसडर वांग लिशिन ने वांग यी के माले दौरे के नतीजों के बारे में विस्तार से बताया. लिशिन ने वांग की मालदीव यात्रा को “एक महत्वपूर्ण दौरा, दो बड़े लक्ष्य, तीन महत्वपूर्ण संदेश, चार मुख्य दिशाएं और पांच सहयोग के दस्तावेज़” के रूप में बताया.

मौजूदा विदेशी मुद्रा और आर्थिक संकट में आईएमएफ को छोड़कर किसी भी स्रोत से सहायता हासिल करने के लिए श्रीलंका की बेचैनी सबको मालूम है. ये महत्वहीन है कि वांग यी ने स्पष्ट रूप से ये नहीं माना कि श्रीलंका की ये समस्या ज़्यादातर चीन के ‘कर्ज़ जाल’ की वजह से है. 

स्थानीय मीडिया को एक इंटरव्यू में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने कहा, “किसी ख़ास देश के ख़िलाफ़ जाना मालदीव के लिए बहुत लाभदायक नहीं हैं.” उन्होंने विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के ‘इंडिया आउट’ अभियान का हवाला देते हुए कहा, “मालदीव को एक ऐसी विदेश नीति चाहिए जो दो विकल्पों- जिसमें दूसरा विकल्प चीन है- को चुनने से व्यापक हो.” मालदीव के विदेश मंत्री ने उस वक़्त भी ऐसी ही भावनाएं व्यक्त की थी जब भारतीय उच्चायुक्त मुनु महावर ने उनसे शिष्टाचार भेंट की थी, जहां दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा हुई जिसमें भारत के फंड से चलाई जा रही परियोजनाओं की प्रगति भी शामिल हैं.

माले जाने के दौरान कॉमरोस की राजधानी मोरोनी में वहां के विदेश मंत्री धोईहीर धौलकमल के साथ मुलाक़ात में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने याद किया कि किस तरह कॉमरोस की आज़ादी के बाद चीन पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी और साथ ही 47 साल पहले राजनयिक संबंध भी स्थापित किए थे. चीन के दूतावास की तरफ़ से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार हिंद महासागर क्षेत्र के दूसरे देशों के दौरे की तरह कॉमरोस में भी वांग यी विकास पर सहयोग को लेकर बोले. इसके जवाब में कॉमरोस के विदेश मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि “कॉमरोस और चीन के बीच दोस्ती टिकाऊ और मज़बूत है, दोनों के बीच गहरा राजनीतिक परस्पर विश्वास है, अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्षेत्र में आर्थिक सहयोग और पारस्परिक समर्थन के लिए बेहतरीन स्थिति है.” कॉमरोस के विदेश मंत्री ने आगे ये भी कहा कि “उनके देश ने लगातार एक चीन की नीति का पालन किया है और ये स्थिति दृढ़ है.” आईओआर को लेकर भारतीय परिदृश्य से चीन के विदेश मंत्री का कॉमरोस दौरा उतना ही महत्वपूर्ण था जितना की मालदीव और श्रीलंका दौरा.

तीसरे देश का हस्तक्षेप

मालदीव और श्रीलंका- दोनों देशों में सरकार का स्वरूप कार्यकारी है. दोनों देशों की अपनी कार्य संबंधी विशेषताएं हैं. इसलिए मालदीव में वांग यी ने वहां के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत में मूलभूत मुद्दों पर ध्यान दिया. अगर उन्होंने राष्ट्रपति सोलिह के साथ कोई ख़ास या संवेदेनशील चर्चा की होती तो उसका सार्वजनिक ज़िक्र नहीं होता.

इसके विपरीत श्रीलंका में राष्ट्रपति गोटाबाया ने आधिकारिक स्तर की बातचीत में श्रीलंका के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. विदेश मंत्री पीरिस दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक में मौजूद थे. इसलिए ये स्पष्ट नहीं है कि वांग यी जो बात श्रीलंका के विदेश मंत्री पीरिस को कहने का दावा कर रहे हैं वो बात राष्ट्रपति के कानों तक भी पहुंची है या नहीं.

चीन के विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार श्रीलंका के नेताओं के साथ बातचीत में वांग यी ने कहा कि दोनों देशों के बीच नज़दीकी संबंधों में ‘किसी तीसरे देश को ‘हस्तक्षेप’ नहीं करना चाहिए’. साफ़ तौर पर इसका संदर्भ भारत को लेकर था लेकिन वांग के बयान का लहज़ा और तेवर किसी को पता नहीं है जिससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जाए कि आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर भविष्य में श्रीलंका की सहायता के लिए ये चीन की तरफ़ से पूर्व शर्त है. मौजूदा विदेशी मुद्रा और आर्थिक संकट में आईएमएफ को छोड़कर किसी भी स्रोत से सहायता हासिल करने के लिए श्रीलंका की बेचैनी सबको मालूम है. ये महत्वहीन है कि वांग यी ने स्पष्ट रूप से ये नहीं माना कि श्रीलंका की ये समस्या ज़्यादातर चीन के ‘कर्ज़ जाल’ की वजह से है. रूस के साथ मिलकर श्रीलंका के लिए चीन का राजनीतिक समर्थन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी-जेनेवा) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में बिना किसी शर्त के स्पष्ट रूप में आता है जहां दोनों देशों के पास वीटो की ताक़त है.

महत्वपूर्ण बात ये है कि वांग के दौरे में दो महीनों में दूसरी बार चीन ने श्रीलंका के साथ संबंधों में ‘तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप’ को लेकर चेतावनी दी है. दिसंबर 2021 में कोलंबो में स्थित चीन के दूतावास ने श्रीलंका के तमिल बहुल उत्तरी जाफना प्रायद्वीप के तीन द्वीपों में ‘तीसरे पक्ष’ से ‘सुरक्षा चिंता’ का ज़िक्र करके हाइब्रिड ऊर्जा प्लांट पर काम को रोकने का ट्वीट किया था. यहां भी संदर्भ भारत को लेकर था जो पाल्क स्ट्रेट के पार दक्षिणी तमिलनाडु के समुद्री तट के बेहद पास चीन के फंड से चल रही परियोजना को लेकर चिंतित था. वांग यी के दौरे को लेकर कोलंबो में स्थानीय मीडिया को जानकारी देते हुए चीन के राजदूत ची झेनहोंग ने इसी तरह का रुख़ अख्त़ियार करते हुए दोनों देशों के बीच एक प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) और एक व्यापक आर्थिक और तकनीकी रूप-रेखा सहयोग को लेकर रुकी हुई/देरी से बातचीत का ज़िक्र किया. राजदूत ने कहा, “इस बार स्टेट काउंसलर के दौरे में उनके और श्रीलंका की सरकार के बीच दोनों मुद्दों पर काफ़ी अच्छी चर्चा हुई.”

राजदूत झेनहोंग ने पूछा कि श्रीलंका ने एफटीए बातचीत को क्यों रोक दिया. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा, “हमारे बीच पहले ही छह दौर की बातचीत हो चुकी है. मैं श्रीलंका की सरकार से पूछना चाहता हूं कि बातचीत क्यों रोक दी गई. मुझे इसका पता नहीं.” उनके अनुसार, “अगर श्रीलंका इस समझौते पर सहमत होता है तो वो चीन के 1.4 अरब लोगों के बाज़ार तक अपने उत्पादों का निर्यात कर सकता है.” उन्होंने इस बात का ज़िक्र नहीं किया कि पिछली सरकार के दौरान शुरू हुई बातचीत एफटीए को लेकर चीन की तरफ़ से कुछ शर्तों की वजह से रुकी हुई है.

सुनियोजित ‘असफलता’?

हालांकि, इन सभी चीज़ों के लिए, जब वांग यी दौरा कर रहे थे, उस वक़्त सुनियोजित असफलता दिख रही थी. मालदीव में उन्होंने विपक्षी पीपीएम-पीएनसी नेता और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन से मुलाक़ात नहीं की जो वहां के उच्चतम न्यायालय के द्वारा उनके राष्ट्रपति कार्यकाल (2013-18) के दौरान एक मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बरी किए जाने के बाद जेल से बाहर हो गए हैं. मालदीव के नेताओं के बीच चीन के दोस्त के रूप में देखे जाने वाले यामीन अभी भी रिश्वतखोरी के दो और मामलों का सामना कर रहे हैं. उन मामलों में अपने ख़िलाफ़ अदालत का फ़ैसला आने पर वो एक बार फिर 2023 के आख़िर में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएंगे.

इसी तरह श्रीलंका में चीन के विदेश मंत्री ने तमिल बहुत उत्तरी इलाक़ों का दौरा करने की उम्मीद को झूठा साबित कर दिया. भारत के विरोधी देश के लिए इस तरह के दौरे का काफ़ी राजनीतिक, आर्थिक और अब रणनीतिक महत्व है. हाल के हफ़्तों में राजदूत झेनहोंग ने इस इलाक़े का दौरा किया है, वो नाव पर बैठकर भारत के साथ अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) के काफ़ी नज़दीक तक गए जिसकी वजह से भारत में भृकुटि भी तनी. जाफ़ना में राजदूत झेनहोंग ने परंपरा से बंधे हिंदू पुरुष की तरह धोती पहनकर और खुली छाती के साथ प्रसिद्ध नल्लूर कंडास्वामी मंदिर का भी दौरा किया था. उन्होंने प्रतिष्ठित जाफ़ना लाइब्रेरी में सामान बांटे जिसे 80 के दशक में सिंहला समुदाय से संबंध रखने वाले उपद्रवियों ने जला दिया था. राजदूत झेनहोंग ने स्थानीय मछुआरों को राहत पैकेज भी दिए जिनकी आजीविका भारत के उनके तमिल बंधुओं के द्वारा समुद्र की गहराई में मछली पकड़ने और अवैध शिकार के कारण प्रभावित हुई है.

तीसरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में जिस किसी की भी सरकार वहां के लोग बनाएंगे, उनके साथ चीन अपना संबंध बनाए रखेगा और उस वक़्त का इंतज़ार करेगा जब उसके दोस्त एक बार फिर सत्ता में आएंगे. मालदीव इसका एक उदाहरण है.

इन सभी गतिविधियों में चीन का सर्वव्यापी संदेश स्पष्ट था. तीसरी दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में जिस किसी की भी सरकार वहां के लोग बनाएंगे, उनके साथ चीन अपना संबंध बनाए रखेगा और उस वक़्त का इंतज़ार करेगा जब उसके दोस्त एक बार फिर सत्ता में आएंगे. मालदीव इसका एक उदाहरण है. इसी तरह चीन तीसरे देश के संबंध में, जैसे कि भारत, अपनी सामरिक चिढ़ पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देकर सत्ता पर काबिज अपने दोस्तों, इस मामले में श्रीलंका, को शर्मिंदा नहीं करना चाहता है. इस बार उसे श्रीलंका के द्वारा अभी और संभवत: बाद में विदेशी मुद्रा की मदद के एवज़ में भारत के साथ त्रिंकोमाली तेल टैंक कंपनी का समझौता पूरा करने की मंज़ूरी देनी पड़ेगी जिसमें पहले ही बहुत देरी हो चुकी है. शायद चीन के इस रुख़ में भारत के लिए भी सबक़ है.

दूसरी बातों में संकेत हैं कि चीन के विदेश मंत्री संभवत: मालदीव में राष्ट्रपति सोलिह के नेतृत्व को तोड़ नहीं सके और ये सोचने की कोई वजह नहीं है कि उन्होंने एक सीमा के आगे इसकी कोशिश भी की. चीन के विदेश मंत्री के श्रीलंका दौरे के बारे में माना जाता है कि चीन की एक कंपनी का बकाया पैसा देने को लेकर श्रीलंका के शुरुआती इनकार, क्योंकि जो ‘जैविक उर्वरक’ भेजी गई वो स्थानीय परिस्थितियों में नुक़सानदेह थी, के बारे में ताज़ा तनाव को दूर किया गया. जैसा कि बाद में पता चला, श्रीलंका ने वांग यी के दौरे से ठीक पहले एक स्थानीय अदालत की तरफ़ से भुगतान पर लगाई गई पाबंदी को वापस करवाकर चीन के आपूर्तिकर्ता को 6.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया. इसके बदले में चीन के दूतावास ने सार्वजनिक क्षेत्र के पीपुल्स बैंक का नाम अपनी ‘काली सूची’ से हटा लिया क्योंकि बैंक ने अदालत के आदेश का हवाला देकर उर्वरक आपूर्तिकर्ता के भुगतान को रोक दिया था.

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