Author : Javin Aryan

Published on Jan 27, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत और अमेरिका के बीच डीटीटीआई जैसी पहल का विफल होना, भारत के लिए सीधे तौर पर नकारात्मक नहीं होगा, लेकिन यह भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की असीम संभावनाओं और इस पहल की क्षमताओं को खो देने जैसा होगा.

भारत-अमरीका द्विपक्षीय रक्षा सहयोग (डीटीटीआई): कई समझौतों के बीच एक भुला दी गई ज़रूरी पहल

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासनिक काल में अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग की नींव पड़ी, जिसमें हाल ही में हुआ भारत-अमेरिका 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता भी शामिल है. इस पहल के चलते भारत और अमेरिका के बीच रक्षा गठबंधन, अपने उस बुनियादी रूप में साकार हुआ है जिसे हम आज देखते और समझते हैं. दोनों देशों के बीच इन संबंधों के मद्देनज़र जहां, बेका (BECA), कॉमकासा (COMCASA) और लेमोआ (LEMOA) जैसी पहल सामने आईं, जिन्हें हम दोनों देशों के रक्षा क्षेत्रों की महत्वपूर्ण अवधारणाओं और शब्द संकेतों के रूप में देखते हैं और जो इस रिश्ते के मज़बूत होने और आगे बढ़ने की बानगी पेश करती हैं, वहीं डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिशिएटिव, डीटीटीआई यानी भारत-अमरीका द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के तहत रक्षा प्रौद्येागिकी एवं व्‍यापार पहल (Defence Technology and Trade Initiative, DTTI) एक अपवाद बन कर हमारे सामने है. डीटीटीआई (DTTI) दोनों देशों के बीच सह-उत्पादन और सह-विकास के लिए रक्षा तकनीकों को साझा करने और उद्योगों में साझेदारी बनाने के अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है. अब देखना यह है कि अमेरिका के नए और 46 वें राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन के कामकाज संभालने के बाद क्या यह रुझान कुछ बदलेंगे?

इस पहल का मक़सद लाल फीताशाही को ख़त्म करना या कम से कम उसे मह्त्वपूर्ण गतिविधियों के आड़े न आने देना है. डीटीटीआई के माध्यम से यह काम, भारत और अमेरिका दोनों देशों के वरिष्ठ स्तर के प्रतिनिधियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता और बैठकों के ज़रिए किया जाता है. 

साल 2012 में बराक ओबामा के शासन काल में और अमेरिकी रक्षा सचिव, एश्टन.बी.कार्टर के लगातार जारी प्रयासों के बाद, अमल में लाई गई इस पहल का लक्ष्य था दो लोकतांत्रिक देशों के बीच, रक्षा क्षेत्र में विनिमार्ण को लेकर आपसी सहयोग स्थापित करना और इस क्षेत्र में आने वाली उन बाधाओं को खत्म करना जो दोनों देशों की अलग-अलग, “कार्यकारी संरचनाओं, अधिग्रहण मॉडल, और बजट प्रक्रियाओं,” के कारण सामने आती हैं. इस पहल का मक़सद लाल फीताशाही को ख़त्म करना या कम से कम उसे मह्त्वपूर्ण गतिविधियों के आड़े न आने देना है. डीटीटीआई के माध्यम से यह काम, भारत और अमेरिका दोनों देशों के वरिष्ठ स्तर के प्रतिनिधियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता और बैठकों के ज़रिए किया जाता है. भारतीय रक्षा मंत्रालय में, रक्षा विनिर्माण के सचिव और अमेरिका के रक्षा खरीद मामलों के उप मंत्री, जो अमेरिका में रक्षा उपकरणों की ख़रीद और उनके रखरखाव संबंधी महत्वपूर्ण फ़ैसलों के लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें डीटीटाई से सभी संबंधित गतिविधियों का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया है. इस पहल के तहत की जाने वाली बैठकों में सबसे ताज़ा बैठक 15 सितंबर 2020 को हुई और यह इस समूह की 10वीं बैठक थी.

इसके अलावा कई ऐसे सब-ग्रुप भी बनाए गए हैं जो रोज़मर्रा की गतिविधियों और विशेष प्रक्रियाओं का काम काज देखते हैं. इनमें डीटीटीआई इंटरएजेंसी टास्क फोर्स (DTTI Interagency Task Force) जो डीटीटीआई के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की देखरेख करता है, डीटीटीआई उद्योग सहयोग मंच (DTTI Industry Collaboration Forum) जो भारतीय और अमेरिकी रक्षा उद्योगों के बीच तकनीकी और औद्योगिक सहयोग स्थापित करने का काम करता है, और चारों सेवाओं पर आधारित एक संयुक्त कार्य दल शामिल है, जो मुख्य़ रूप से लैंड सिस्टम, नेवल सिस्टम, एयर सिस्टम और एयरक्राफ्ट कैरियर टेक्नोलॉजी को-ऑपरेशन के क्षेत्र में संवाद बनाने और गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखने का काम करता है.

कई योजनाएं हुईं फेल

हालांकि, कई ऐसी शुरुआती परियोजनाएं जिनकी पहचान डीटीटीआई (DTTI) के अंतर्गत ‘नई संभावनाओं की तलाश’ करने की मंशा से की गई थी, वह किसी भी रूप में अपने शुरुआती चरणों से आगे बढ़ने में विफल रही हैं, और इस के चलते कुछ दिनों बाद उन्हें पूरी तरह से खारिज कर दिया गया. इन परियोजनाओं में अगली पीढ़ी के मिनी रेवेन यूएवी (Raven Mini UAVs) यानी ऐसे मानव रहित उपकरण और वाहन शामिल हैं, जिन्हें भारतीय सेना ने तकनीकी दृष्टि से ख़राब होने के चलते खारिज कर दिया. इसके अलावा इन में सी-130 परिवहन विमान के लिए इस्तेमाल में आने वाली रोल-ऑन व रोल-ऑफ किट, मोबाइल इलेक्ट्रिक हाइब्रिड पावर सोर्स सिस्टम और रसायनों से बचाव वाली रक्षक किट शामिल हैं, जो जैव और परमाणु हमलों के दौरान काम आने के लक्ष्य से सुझाई गई थीं. इस पहल के अंतर्गत जेट इंजन प्रौद्योगिकी (jet engine technology) को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग, जिसका उपयोग भविष्य के स्वदेशी लड़ाकू विमानों के लिए किया जाना था, भी शामिल है जिसे इस लिए रद्द कर दिया गया गया क्योंकि अमेरिकी पक्ष ने तकनीकी जानकारी के हस्तांतरण संबंधी मुद्दे और निर्यात पर नियंत्रण में ढील नहीं दी. इस के बजाय, भारत को एक फाइटर जेट प्रोग्राम की पेशकश की गई जिसकी ख़रीद पर, प्रशिक्षण और रखरखाव की पूरी ज़िम्मेदारी लिए जाने का प्रस्ताव था. इस मायने में डीटीटीआई (DTTI) को एक ऐसे माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाना, जो महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों के संबंध में एकमात्र स्रोत से जुड़े अनुबंधों को फास्ट-ट्रैक करे, लेकिन जिसके अंतर्गत तकनीकी हस्तांतरण और रक्षा उत्पादन को लेकर सहयोग की भावना न हो, भारत के लिए हताशा का कारण रहा है.

डीटीटीआई (DTTI) भले ही अपने आप में निरंतर और व्यापक रूप से दो-तरफ़ा बातचीत का एक तंत्र है, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच हुए कई तरह के रक्षा समझौतों और इसके अंतर्गत दोनों देशों को दिए गए विशिष्ट स्थान, जो अब भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों को परिभाषित करता है, उसने इसके महत्व और इसकी क्षमता में बढ़ोत्तरी की है. 

डीटीटीआई (DTTI) भले ही अपने आप में निरंतर और व्यापक रूप से दो-तरफ़ा बातचीत का एक तंत्र है, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच हुए कई तरह के रक्षा समझौतों और इसके अंतर्गत दोनों देशों को दिए गए विशिष्ट स्थान, जो अब भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों को परिभाषित करता है, उसने इसके महत्व और इसकी क्षमता में बढ़ोत्तरी की है. साल 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, लेमोआ (Logistics Exchange Memorandum of Agreement, LEMOA) पर हस्ताक्षर, सितंबर 2018 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौते, कॉमकासा (Communications Compatibility and Security Agreement, COMCASA) पर हस्ताक्षर और अक्टूबर 2020 में बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट, बेका (Basic Exchange and Cooperation Agreement, BECA) पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद, भारतीय और अमेरिकी सेना के बीच ऐसी सभी काग़ज़ी कार्रवाई की औपचारिकता पूरी हो चुकी है, जो दोनों पक्षों के बीच तालमेल बैठाने और संचालन के परस्पर सहयोग के लिए ज़रूरी है.

इसके अलावा पांच सितंबर, 2015 को पेंटागन द्वारा “अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली नौकरशाही के माध्यम से डीटीटीआई प्रस्तावों को आगे बढ़ाने के लिए” एक इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल भी स्थापित किया गया था. इस पहल को लेकर नए सिरे से आई गतिशीलता के तहत इस सेल को एक बार फिर हरकत में लाया जा सकता था. इसके अलावा, जून 2016 में भारत को अमेरिका के ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ (Major Defence Partner, MDP) के रूप में मान्यता दी गई थी, एक ऐसी पहचान जो अपने आप में अद्वितीय है और भारत के लिए विशिष्ट है. इसके बाद अगस्त 2018 में भारत को रणनीतिक व्यापार अधिकरण-1 यानी एसटीए-1 (Strategic Trade Authority Tier 1, STA-1) का दर्जा मिला, जिसके बाद अमेरिकी कंपनियों को भारत को उन्नत दर्जे की दोहरे उपयोग वाली तकनीक व उत्पादों के निर्यात की अनुमति मिली. इन सभी घटनाक्रमों ने भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोगियों और नाटो सहयोगियों के समकक्ष बनाया है और उनकी बराबरी की महत्ता दी है.

इस मामले में मध्यम कालिक और दीर्घकालिक परियोजनाओं की कथित रूप से पहले ही पहचान कर ली गई थी, लेकिन वे अभी भी शुरुआती चरण से आगे नहीं बढ़ पाई हैं.

दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में इस तरह की बुनियाद पड़ने के बाद अब तक हुई प्रगति, जो स्टेटमेंट ऑफ इंटेंट (Statements of Intent) जारी करने और मानक संचालन प्रक्रिया, एसओपी (Standard Operating Procedures, SOPs) जारी करने तक ही सीमित रही है, उसे त्वरित बनाने और परियोजनाओं की पहचान और उनके विकास को आगे बढ़ाने की दिशा में तेज़ी से काम किया जाना ज़रूरी है. हालांकि, इस मामले में मध्यम कालिक और दीर्घकालिक परियोजनाओं की कथित रूप से पहले ही पहचान कर ली गई थी, लेकिन वे अभी भी शुरुआती चरण से आगे नहीं बढ़ पाई हैं. निकट अवधि की जिन परियोजनाओं की पहचान की गई है उनमें- हवा से मार करने वाले स्मॉल अनमैन्ड सिस्टम (Small Unmanned Systems), लाइट वेट स्माल आर्म्स टेक्नोलॉजी (Light Weight Small Arms Technology) यानी हल्के वज़न वाली रक्षा उपकरण तकनीकें और इंटेलिजेंस यानी ख़ुफ़िया सेवाओं, सर्विलांस यानी निगरानी व टारगेट एक्विजिशन एंड रिकॉइसेंस (Target Acquisition & Reconnaissance, ISTAR) यानी लक्ष्य के बारे में जानकारी हासिल करने और उसके हिसाब के हमले की रणनीति तय करने जैसी परियोजनाएं शामिल हैं. मध्यम अवधि की परियोजनाओं में- समुद्री डोमेन जागरूकता समाधान (Maritime Domain Awareness Solution), और विमान रखरखाव के लिए वर्चुअल व ऑगमेंटेड रिएलिटी (Virtual Augmented Mixed Reality for Aircraft Maintenance, VAMRAM) शामिल हैं. इसके अलावा दो दीर्घकालिक परियोजनाएं भी हैं- टेरेन शेपिंग ऑब्सटेकल (Terrain Shaping Obstacle), और काउंटर-यूएएस, रॉकेट, आर्टिलरी और मोर्टार (Counter-UAS, Rocket, Artillery & Mortar, CURAM) प्रणाली, जो भारतीय सेना के लिए हैं.

भारत-अमेरिका संबंधों के लिए अहम है डीटीटीआई

ऐसे में इन परियोजनाओं को अब तेज़ी से बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है, खासकर नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, डीएपी (Defence Acquisition Procedure-DAP) 2020 के मद्देऩजर. साल 2020 से लागू की गई नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया के सेक्शन 127 और 128 में भारत और किसी बाहरी देश के बीच सह-विकसित और सह-निर्मित उत्पादों/उपकरणों को शामिल करने के बारे में बात की गई है. डीटीटीआई (DTTI) के अंतर्गत होने वाली सभी गतिविधियां और कामकाज पूरी तरह से इन श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं. साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस समझौते के तहत जिन परियोजनाओं पर करार किया गया है वह व्यवहार्य हैं और भारत की अधिग्रहण योजनाओं में पूरी तरह से फिट होती हैं. यह वर्तमान परिदृश्य में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां भारत तकनीकी रूप से मंदी के दौर से जुड़र रहा है और एलओसी व एलएसी पर होने वाली तैनाती के चलते ज़रूरतें व हालात बदल गए हैं.

डीटीटीआई सरीख़ी पहल का विफल होना भारत के लिए सैन्य क्षमता की दृष्टि से नकारात्मक नहीं होगा, लेकिन यह भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की संभावनाओं और उनकी क्षमताओं को खोने जैसा होगा. 

इसके अलावा, डीटीटीआई (DTTI) के प्रमुख उद्देश्य जो- रक्षा व्यापार के लिए एक साझी प्रतिबद्धता, नौकरशाही से संबंधित बाधाओं को दूर करने, परस्पर सहयोग के ज़रिए प्रौद्योगिकी स्तर पर आदान प्रदान और मिलेजुले प्रयासों (collaborative technology exchange) को बढ़ावा देने, सहकारी अनुसंधान को मज़बूत बनाने, और रक्षा प्रणाली के सह-उत्पादन और सह-विकास को सक्षम बनाने सहित सेना के आधुनिकीकरण से जुड़ा है, उसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए और इस पर लगातार ज़ोर दिया जाना चाहिए. कुल मिलाकर डीटीटीआई सरीख़ी पहल का विफल होना भारत के लिए सैन्य क्षमता की दृष्टि से नकारात्मक नहीं होगा, लेकिन यह भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की संभावनाओं और उनकी क्षमताओं को खोने जैसा होगा.

कम समय में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी को बेहतर बनाने के लिए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन को कई तरह की चुनौतियों के बीच से अपना रास्ता चुनना होगा. भविष्य में रक्षा क्षेत्र में होने वाले किसी भी तरह के सह उत्पादन और अनुसंधान व विकास को सक्षम बनाने के लिए, भारत के रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र और खरीद नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए जाने की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेक्शंस एक्ट यानी काट्सा क़ानून और सैन्य उपकरणों और प्रौद्योगिकी को लेकर रूस पर भारत की निरंतर निर्भरता, जो अमेरिका सहित बाकी पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों के लिए साझा करना मुश्किल है इस दिशा में एक चुनौती रहेंगी.

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