Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 31, 2020 Updated 0 Hours ago

आज चीन जिस तरह पूरी दुनिया के ख़िलाफ़ आक्रामक हो रहा है, उससे वो विश्व व्यवस्था की उन बुनियादों को ही हिला रहा है, जिस पर दुनिया संचालित हो रही है. ऐसे दौर में भारत और यूरोपीय संघ, दोनों ही पक्षों का बहुत कुछ दांव पर लगा है.

भारत, यूरोपीय संघ और बदलती हुई विश्व व्यवस्था

पंद्रहवां भारत और यूरोपीय संघ का शिखर सम्मेलन आख़िरकार पंद्रह जुलाई को हो गया. ये शिखर सम्मेलन वीडियो कांफ्रेंस के ज़रिए हुआ था. जिसकी सह अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स माइकल व यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लेयेन ने मिलकर की. भारत और यूरोपीय संघ का ये शिखर सम्मेलन पहले मार्च महीने में ही होना प्रस्तावित था. लेकिन, कोविड-19 की महामारी के चलते इसे स्थगित करना पड़ा था.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच सामरिक साझेदारी, 1994 के भारत-यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के समझौते से निर्देशित होती है. यूरोपीय संघ, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 2019 में यूरोपीय संघ और भारत के बीच 80 अरब यूरो का कारोबार हुआ था. जो अमेरिका और चीन से भी अधिक है

इस समय पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से पैदा हुई चुनौतियों से जूझ रही है. इस मुश्किल वक़्त में भारत और यूरोपीय संघ के नेताओं के बीच वैश्विक सहयोग बढ़ाने और इंसानियत के सामने खड़ी चुनौतियों से मिल जुलकर निपटने पर सहमति बनी. ताकि बेशक़ीमती ज़िंदगियों को बचाया जा सके. इस महामारी के सामाजिक आर्थिक दुष्प्रभावों से स्वयं को सुरक्षित किया जा सके. और भविष्य में उत्पन्न होने वाली ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर तैयारी और क्षमताओं का विकास किया जा सके. आज जब अमेरिका अपनी अंदरूनी उलझनों का शिकार है और वो वैश्विक नेतृत्व की अपनी ज़िम्मेदारी से ख़ुद को पीछे कर रहा है. तो, इस कारण से दुनिया में राजनीतिक नेतृत्व की कमी का अभाव स्पष्ट रूप से झलक रहा है. ऐसे में भारत और यूरोपीय संघ ने मिलकर बहुपक्षीय व्यवस्था को और मज़बूत बनाने पर सहमति जताई है. दोनों ही पक्षों ने ये माना है कि आज अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुपक्षीयवाद की अधिक आवश्यकता है, इस बात पर उनका मज़बूत विश्वास है. जून में हुए बहुपक्षीयवाद के लिए गठबंधन (Alliance of Multilateralism) के वर्चुअल सम्मेलन में दोनों ही पक्षों ये बात पहले भी दोहराई थी.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच सामरिक साझेदारी, 1994 के भारत-यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के समझौते से निर्देशित होती है. यूरोपीय संघ, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 2019 में यूरोपीय संघ और भारत के बीच 80 अरब यूरो का कारोबार हुआ था. जो अमेरिका और चीन से भी अधिक है. यूरोपीय संसद की नवंबर 2019 की दक्षिण एशिया फैक्टशीट के अनुसार, ‘दोनों पक्षों के बीच वस्तुों का अनुमानित व्यापार 90 अरब यूरो था. इसमें भारत 2 अरब यूरो का सरप्लस व्यापार कर रहा था.’ यूरोपीय संघ, भारत के लिए निवेश का भी सबसे प्रमुख स्रोत है. यूरोपीय संघ से भारत में 76.7 अरब यूरो का आउटवार्ड स्टॉक इन्वेस्टमेंट किया गया है. तो, 11 अरब यूरो का इनवार्ड स्टॉक निवेश भी किया गया है. इस समय भारत को यूरोपीय संघ के जनरलाइज़्ड स्कीम ऑफ़ प्रेफ़रेंसेज़ (GSP) के तहत व्यापार का लाभ होता है. इसके अंतर्गत मानवाधिकारों और श्रमिक अधिकारों के तहत भारत को इकतरफ़ा व्यापारिक तरज़ीह यूरोपीय संघ से हासिल होती है. इस समय भारत में यूरोपीय संघ की छह हज़ार से ज़्यादा कंपनियां कारोबार कर रही हैं. इन कंपनियों के माध्यम से भारत में साठ लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोज़गार मिला हुआ है.

हालांकि, यूरोपीय संघ और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंध और निवेश के संबंध तब अटक गए, जब भारत ने यूरोपीय संघ के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिए वार्ता करने से इनकार कर दिया. ये बातचीत लंबे समय से स्थगित है. आधिकारिक रूप से इसे ब्रॉडबेस्ड, ट्रेड ऐंड इन्वेस्टमेंट एग्रीमेंट (BTIA) का नाम दिया गया है. दोनों पक्षों के बीच इस मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत 2007 में शुरू हो गई थी. 2016 में भारत ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के साथ मौजूदा समझौतों को नए सिरे से निर्धारित किया था. और इसके बाद उसने यूरोपीय संघ के सामने द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIT) का नया मॉडल प्रस्तुत किया था. यूरोपीय संघ ने भारत से इस नए मॉडल पर बातचीत करने से साफ़ इनकार कर दिया. इसके अलावा, यूरोपीय संघ और भारत, विश्व व्यापार संगठन में एक बेहद कटु व्यापारिक विवाद में भी उलझे हुए हैं. भारत ने सूचना और संचार तकनीक (ICT) की कुछ वस्तुओं पर आयात पर शुल्क को 7.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया था. जिसके बाद यूरोपीय संघ ने भारत के इस क़दम को विश्व व्यापार संगठन के विवाद निस्तारण संस्था में चुनौती दी है. केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने संकेत दिया है कि भारत, यूरोपीय संघ के साथ प्रेफ़रेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट (PTA) के लिए तैयार है.

आज ज़रूरत इस बात की है कि भारत और यूरोपीय संघ वास्तविक बहुपक्षीयवाद को बढ़ावा देने के लिए मिल जुलकर प्रयास करें. इससे एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण हो सकेगा, जो विश्व व्यापार संगठन के दायरे में और नियमों पर चलने वाली होगी.

भारत के लिए यूरोपीय संघ से आने वाले निवेश को तेज़ी से सुरक्षित करने की ज़रूरत है. क्योंकि कोविड-19 के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो गयी हैं और व्यापार, निर्माण और निर्यात में गिरावट आ रही है. इसके अलावा बहुत से देश अब मुक्त व्यापार के बजाय संरक्षणवादी व्यवस्था को तरज़ीह दे रहे हैं, ताकि वो अपने घरेलू उद्योग धंधों को वैश्विक स्तर पर प्रतिद्वंदिता से बचा सकें. इसीलिए, आज ज़रूरत इस बात की है कि भारत और यूरोपीय संघ वास्तविक बहुपक्षीयवाद को बढ़ावा देने के लिए मिल जुलकर प्रयास करें. इससे एक ऐसी विश्व व्यवस्था का निर्माण हो सकेगा, जो विश्व व्यापार संगठन के दायरे में और नियमों पर चलने वाली होगी. इस विषय में यूरोप और भारत के हित काफ़ी कुछ मिलते हैं.

जहां तक सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग की बात है, तो भारत और यूरोपीय संघ इस दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं. जिससे कि वो साझा हितों वाले इलाक़ों जैसे कि, हिंद महासागर में शांति और स्थिरता ला सकें. समुद्री व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा, यूरोपीय संघ और भारत, दोनों के लिए महत्वपूर्ण प्राथमिकता का विषय है. इसीलिए दोनों ही पक्ष आज सैन्य क्षेत्र में सहयोग का दायरा और बढ़ा रहे हैं. यूरोपीय देशों की सेनाओं के साथ भारत के संबंध और बेहतर हो रहे हैं. आने वाले समय में दोनों पक्षों के बीच ये सामरिक सहयोग बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है. ये दोनों पक्षों के उन साझा विचारों को लागू करने के लिए अहम है, जिसके तहत भारत और यूरोपीय संघ एक बहुपक्षीय व्यवस्था लागू करना चाहते हैं. इस विषय में दोनों पक्ष लंबे समय से बातचीत कर रहे हैं. आज भारत और यूरोपी संघ अपने अनुभव साझा कर रहे हैं. अपनी बेहतरीन व्यवस्थाओं को एक दूसरे से बांट रहे हैं. जिससे कि क्षमताओं का विकास हो रहा है. दोनों पक्ष आपस में खुफ़िया जानकारियां साझा कर रहे हैं. और आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियानों में भी भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग बढ़ा है.

भारत और यूरोपीय संघ, स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) को वर्ष 2030 तक हासिल करने के लिए कटिबद्ध हैं. दोनों ही पक्ष स्वच्छ ऊर्जा, कम ऊर्जा की खपत और जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ ठोस क़दम उठाने को लेकर भी सहमत हैं. इसकी मिसाल भारत और यूरोपीय संघ के बीच क्लीन एनर्जी ऐंड क्लाइमेट पार्टनरशिप (CECP) 2016 के रूप में हमारे सामने है. COP-25 समझौते से यूरोपीय संघ और भारत, दोनों को ही मिले जुले नतीजे प्राप्त हुए हैं. ऐसे में भारत और यूरोपीय संघ को चाहिए कि वो दुनियाभर में पेरिस जलवायु समझौते को पूरी ईमानदारी से लागू करने के लिए मिलकर प्रयास करें. इसके अलावा दोनों पक्षों को मिलकर रिन्यूएबल एनर्जी के संसाधनों के अधिक से अधिक इस्तेमाल को भी प्रोत्साहन देना चाहिए.  दोनों ही पक्ष मुक्त रूप से संसाधन उपलब्ध कराने की नीति के समर्थक हैं. इसके अलावा, यूरोपीय संघ और भारत का मानना है कि सूचना और आंकड़ों का बिना किसी बाधा के मुक्त रूप से प्रवाह होना चाहिए. जिससे कि सबका भला हो सके. इसके अतिरिक्त, भारत और यूरोपीय संघ के साझा एजेंडा फॉर एक्शन 2020 में बदलाव लाने की ज़रूरत है. ये एजेंडा 2016 में प्रस्तावित किया गया था. लेकिन, अब 2025 तक के लिए इसे नए एक्शन प्लान के अनुरूप ढाला जाना चाहिए. इस काम को साझा तौर पर प्राथमिकता के आधार पर अंजाम दिया जाना चाहिए. इससे भारत और यूरोपीय संघ के बीच सकारात्मक सामरिक साझेदारी मज़बूत हो सकेगी.

भारत और यूरोपीय संघ को चाहिए कि वो दुनियाभर में पेरिस जलवायु समझौते को पूरी ईमानदारी से लागू करने के लिए मिलकर प्रयास करें. इसके अलावा दोनों पक्षों को मिलकर रिन्यूएबल एनर्जी के संसाधनों के अधिक से अधिक इस्तेमाल को भी प्रोत्साहन देना चाहिए.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच ये शिखर वार्ता ऐसे समय पर हुई है, जब भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा हुआ है. वहीं, जून में यूरोपीय संघ और चीन के बीच हुए शिखर सम्मेलन में दोनों पक्षों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए थे. इस शिखर सम्मेलन के बाद यूरोपीय संघ और चीन एक साझा बयान जारी करने तक पर सहमत नहीं हो पाए थे. उस समय यूरोपीय संघ ने चीन के बारे में कहा था कि, ‘हमें ये मानना पड़ेगा कि न तो हमारे जीवन मूल्य एक जैसे हैं, न ही हमारी राजनीतिक व्यवस्थाएं एक जैसी हैं और न ही बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को लेकर हमारी नीतियों में कोई मेल है.’ कई दशकों तक भारत के बजाय चीन से संबंध को तरज़ीह देने के बाद अब यूरोपीय संघ को ये महसूस हो रहा है कि उसे भारत के साथ अपने संबंध और बेहतर करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. 2018 की भारत के बारे में यूरोपीय संघ की रणनीति भी इस बात को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है. इसमें कहा गया है कि यूरोपीय संघ विश्व स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका का स्वागत करता है. साथ ही हम ये भी साफ़ कर दे ना चाहते हैं कि हम भारत के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहते हैं, जिससे दुनिया में नियमों पर चलने वाली विश्व व्यवस्था का निर्माण हो सके.

भारत और यूरोपीय संघ के बीच 15 जुलाई को हुए शिखर सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि दोनों ही पक्ष मुक्त व्यापार समझौते के लिए अपने प्रयास जारी रखेंगे. और इस विषय में संबंधित मंत्री जल्द से जल्द मिलेंगे. इस शिखर सम्मेलन के दौरान व्यापार और निवेश के मुद्दे पर चर्चा को प्राथमिकता दी गई. प्रधानमंत्री मोदी ने इस शिखर सम्मेलन में दोनों पक्षों के बीच साझेदारी को लंबी अवधि के लिए बढ़ाने के दृष्टिकोण को अपनाने पर ज़ोर दिया.

ये शिखर सम्मेलन, भारत और यूरोपीय संघ, दोनों ही पक्षों के लिए एक ऐसा अवसर था जिसमें आपसी भागीदारी बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया. क्योंकि दोनों ही पक्षों के कई मूल्य जैसे कि लोकतंत्र, स्वतंत्रता और क़ानून के राज आपस में मेल खाते हैं. आज चीन जिस तरह पूरी दुनिया के ख़िलाफ़ आक्रामक हो रहा है, उससे वो विश्व व्यवस्था की उन बुनियादों को ही हिला रहा है, जिस पर दुनिया संचालित हो रही है. ऐसे दौर में भारत और यूरोपीय संघ, दोनों ही पक्षों का बहुत कुछ दांव पर लगा है.

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