Author : Samir Saran

Published on Dec 16, 2021 Updated 0 Hours ago

रूसी राष्ट्रपति का नई दिल्ली का दौरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करना बेहद सांकेतिक और रणनीतिक है.

भारत-रूस संबंध: वैश्विक सियासत के नये युग में पुराने साझीदारों का एक-दूसरे पर भरोसा कायम

पिछले कुछ समय से यह दृष्टिकोण हावी होने लगा है कि नई दिल्ली और मॉस्को के बीच रणनीतिक खाई और चौड़ी हो रही है. यहां तक कि रूस और भारत के रणनीतिक समुदायों के बीच भी इसका कुछ समय से आकलन किया जाने लगा  है कि इस द्विपक्षीय साझेदारी की आख़िर क्या अहमियत रह गई है. भारत और रूस सम्मेलन के बीच यह लेख इस बात की पड़ताल करता है कि आख़िर वो कौन सी वजहें हैं जो रूस और भारत के बीच रिश्ते को मज़बूत बनाते हैं और दोनों देशों की साझेदारी बढ़ाने के लिए और क्या किया जाना चाहिए.

आने वाले दशकों में भारत का प्राथमिक लक्ष्य एशिया में चीन के बढ़ते वर्चस्व पर नकेल कसना है. एक बहुआयामी विश्व और वैसे ही एक बहुआयामी एशिया सभी के हित में है. रूस इसकी सराहना करेगा और कई वजहों से यह रूस की ज़रूरत भी है. 

इस बात को कहने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि दोनों देशों के बीच रिश्ते की प्रमुख वजह रणनीतिक साझेदारी की समृद्ध विरासत है. इसके साथ ही समसामयिक वैश्विक सियासत का मिजाज़ भी कुछ ऐसा है जिसमें दोनों ही – साउथ ब्लॉक और क्रेमलिन की भूमिका स्पष्ट है और दोनों ही इस व्यवस्था के साथ भी हैं.

 

आने वाले दशकों में भारत का लक्ष्य

आने वाले दशकों में भारत का प्राथमिक लक्ष्य एशिया में चीन के बढ़ते वर्चस्व पर नकेल कसना है. एक बहुआयामी विश्व और वैसे ही एक बहुआयामी एशिया सभी के हित में है. रूस इसकी सराहना करेगा और कई वजहों से यह रूस की ज़रूरत भी है. रूस के सियासी समीकरण के तहत वह अमेरिका को विफल करने के लिए उसे सबसे प्रमुख प्रतिस्पर्धा का नायक बनाने की कोशिश करेगा. रूस कभी भी चीन के पर कतरना नहीं चाहेगा ख़ास कर तब तक, जब तक कि चीन अमेरिकी प्रभावों को चुनौती देता रहेगा. ऐसे में बहुआयामी वैश्विक व्यवस्था को लेकर कई शक्तियों के मिलने की गुंजाइश बनी रहेगी और इसे लेकर बहुत कुछ देखा जाना बाकी रहेगा जबकि भारत और रूस इस बदलती व्यवस्था के हिसाब से अपनी-अपनी भूमिकाओं को सुनिश्चित करेंगे.

यह नाटकीय रूप से बदल सकता है अगर रूस इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए तैयार रहे कि वह बीजिंग में सम्राट के दरबार में एक कनिष्ठ पार्टनर के तौर पर चीन के प्रभाव को मानने के लिए तैयार हो जाए. भारत जानता है कि रूस के लिए ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है. भारत उम्मीद करता है कि रूस का वैश्विक दृष्टिकोण ऐसा हो जो अपने हितों की रक्षा के लिए दूसरों के साथ अलग विचार प्रकट करने में संकोच ना करे, फिर चाहे वह चीन की ही बात क्यों ना हो. यही वजह है कि नई दिल्ली इस रिश्ते के साथ-साथ और भी कई दूसरे क्षेत्रों में निवेश कर रहा है.

साल 2020 तक भारतीय फौज में रूसी हथियार और उपकरणों की हिस्सेदारी क़रीब 60 फ़ीसदी थी. हालांकि, भारत तेजी से सैन्य उपकरणों के लिए कई दूसरे देशों से संपर्क कर रहा है लेकिन रूस अभी भी भारत का मज़बूत साझेदार बना हुआ है 

पहला और सबसे बड़ा क्षेत्र रक्षा का है. साल 2020 तक भारतीय फौज में रूसी हथियार और उपकरणों की हिस्सेदारी क़रीब 60 फ़ीसदी थी. हालांकि, भारत तेजी से सैन्य उपकरणों के लिए कई दूसरे देशों से संपर्क कर रहा है लेकिन रूस अभी भी भारत का मज़बूत साझेदार बना हुआ है और इस हिस्सेदारी में ज़्यादा हिस्सा हथियारों के उपकरणों और उसके अपग्रेडेशन से जुड़ा है. इसके साथ ही कई नए वेंचर पर भी भारत और रूस के बीच बातचीत जारी है. इसमें एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम (जिसकी डिलीवरी इस साल तक होने लगेगी) को लेकर कॉन्ट्रैक्ट शामिल है. चार 1135.6 फ्रिगेट के सह-उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग, मेक इन इंडिया अभियान के तहत दुनिया के सबसे एडवांस्ड असॉल्ट राइफ़ल एके-203 की मैन्युफैक्चरिंग भी शामिल है. इसके साथ ही टी-90 टैंक्स, सुखोई-30 एमकेआई, मिग-29, मैंगो(MANGO) एम्युनिशन और वाशराड(VSHORAD) सिस्टम की डिलीवरी भी शामिल है. रूस दूसरे देशों के मुकाबले हथियार निर्माण क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से कहीं ज़्यादा जुड़ा हुआ है.

इसी तरह दोनों देशों के बीच युद्धाभ्यास की संख्या में भी तेजी आई है. रूस में भारत के राजदूत डी बी वेंकटेश वर्मा का कहना है कि दोनों देश कई रूपरेखा पर काम कर रहे हैं. लंबी दूरी के लिए सेना के जवानों के परिचालन और उनके ट्रांसपोर्टेशन इसमें शामिल हैं. आधुनिक जंग में ड्रोन तकनीक और साइबर हमले का क्या असर होगा इसे लेकर भी दोनों देश साझेदारी कर रहे हैं. यही नहीं दोनों देशों के बीच अवधारणा के स्तर पर भी समन्वय लगातार बढ़ता जा रहा है.

आधुनिक जंग में ड्रोन तकनीक और साइबर हमले का क्या असर होगा इसे लेकर भी दोनों देश साझेदारी कर रहे हैं. यही नहीं दोनों देशों के बीच अवधारणा के स्तर पर भी समन्वय लगातार बढ़ता जा रहा है.

दोनों देशों के बीच रिश्तों को मज़बूत करने का दूसरा अहम क्षेत्र ऊर्जा है. इसमें सिर्फ हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) ही नहीं शामिल है बल्कि परमाणु ऊर्जा भी शामिल हैं. भारत गैस रूस से आयात करता है लेकिन आने वाले दिनों में इसकी मात्रा में और बढोतरी होना तय है.  अगर कामयाब रहा तो वोस्तोक वार्ता के बाद भारत विश्व के सबसे बड़ी ऊर्जा प्रोजेक्ट का हिस्सा होगा. भारत का लक्ष्य आने वाले पांच सालों में रूस से तेल के आयात को मौजूदा 1 फ़ीसदी से 4 से 5 फ़ीसदी बढ़ाना है. इसके अतिरिक्त पेट्रोकेमिकल भी एक क्षेत्र है जिसे लेकर पारादीप क्रैकर प्लांट में रूसी निवेश और आर्कटिक में आईएनजी-2 को लेकर भारतीय निवेश की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.

अब जबकि भारत ने शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने का ऐलान किया है तो ऐसे में ग्रीन एनर्जी के स्रोतों की तरफ बढ़ना आवश्यक है. एक नया गैस टास्क फोर्स बनाया जा रहा है जिसमें रूस एक बड़ा हिस्सेदार होगा, हाइड्रोजन क्षेत्र के साथ-साथ इस क्षेत्र में भी अहम पार्टनर साबित होने वाला है.

अब जबकि भारत ने शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने का ऐलान किया है तो ऐसे में ग्रीन एनर्जी के स्रोतों की तरफ बढ़ना आवश्यक है. एक नया गैस टास्क फोर्स बनाया जा रहा है जिसमें रूस एक बड़ा हिस्सेदार होगा,

तीसरा अहम क्षेत्र उच्च तकनीक को लेकर है. दोनों देशों के बीच विज्ञान और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में एक ज्वाइंट कमिशन स्थापित करने का प्रस्ताव है. इसमें क्वान्टम, नैनोटेक्नोलॉजी, साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, स्पेस और बायो-टेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल , डिज़िटल फाइनेंस, रसायन और सेरामिक्स के क्षेत्र शामिल होंगे, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी को ऊंचाई पर ले जाएंगे.  ये सभी चौथी औद्योगिक क्रांति के महत्वपूर्ण  अंग हैं.

चौथा अहम क्षेत्र खाद्य सुरक्षा को लेकर है. रूस के सुदूर पूर्व में भारत ज़मीन को लीज़ पर लेने जा रहा है, जहां भारतीय श्रमिक इसमें खेती करेंगे जो उम्मीदों से भरा प्रोजेक्ट कहा जा सकता है.  रूस जनसंख्या के संकट से गुजर रहा है और वहां मानव संसाधन की भारी कमी है. रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में चीन ने हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन लीज़ पर ले रखी है और इन ज़मीनों पर चीन के किसान खेती कर रहे हैं. चीन के किसान यहां जो भी उत्पादन कर रहे हैं वह रूस के घरेलू बाज़ार में बेचा जा रहा है और इसका कुछ हिस्सा चीन को निर्यात किया जाता है.
इसी तरह की रणनीति भारत द्वारा भी अपनाई जा सकती है. सरकार इस संबंध में रूस के साथ समझौते को आगे बढ़ा सकती है और फिर इसे कैसे अमल में लाया जाएगा इसके लिए निजी क्षेत्र को ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है. चेन्नई-ब्लादिवोस्तोक मैरीटाइम कनेक्टिविटी कॉरिडोर ऐसे सहयोग को बढ़ावा देता है.

यह रणनीति दोनों देशों के लिए हितकारी होगी. भारत अपनी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में अपने कुदरती संसाधनों (ज़मीन, जल और बिजली) पर बोझ कम करेगा और अपने खेतिहर श्रमिकों के लिए मौका प्रदान करेगा. रूस के लिए चीन पर निर्भरता कम होगी जिससे मॉस्को के पास वो रणनीतिक मज़बूती होगी जो वो चाहता है.

रणनीतिक सवाल का ज़वाब

यहीं पर भारत को रणनीतिक सवाल का जवाब देना है. क्या यह रूस के विकास की कहानी में निवेश करने को इच्छुक है जैसा कि भारत ‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा को लेकर उत्साहित है ? रूस के सुदूर पूर्व इलाके की विकास यात्रा में निवेश और विशेषज्ञता के जरिए भारत को साझेदार बनने की आवश्यकता है और इस रिश्ते के लिए इससे मज़बूत बुनियाद और कुछ नहीं हो सकती है.

मौजूदा हालात में कुछ विवादित विषयों से आगे बढ़ने की तुरंत ज़रूरत है. इसमें पहला अफ़ग़ानिस्तान  है. 15 अगस्त 2021 तक भारत और रूस के बीच गंभीर असहमति थी, इसके साथ ही तालिबान को लेकर मॉस्को के साथ मतभेद रहा है. जबकि दोनों देश अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता चाहते हैं और आतंकवाद और ड्रग्स पर नकेल कसने की इच्छा रखते हैं लेकिन नई दिल्ली में इसे लेकर यह समझ है कि तालिबान से वार्ता करते-करते रूस तालिबान का वार्ताकार ही बन गया है. यह रूस को लेकर भरोसे का संकट पैदा करता है.

रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में चीन ने हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन लीज़ पर ले रखी है और इन ज़मीनों पर चीन के किसान खेती कर रहे हैं. चीन के किसान यहां जो भी उत्पादन कर रहे हैं वह रूस के घरेलू बाज़ार में बेचा जा रहा है और इसका कुछ हिस्सा चीन को निर्यात किया जाता है.

दूसरा मतभेद इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र को लेकर है. भरोसे की कमी की वजह से यह लगातार सुलगता जा रहा है. रूस, अमेरिका के चलते भारत पर भरोसा नहीं कर सकता है और भारत को यह लगता है कि रूस इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में वही मानता आ रहा है जो उसे चीन बताता है – यह एक बड़ी चुनौती है जिसे दोनों देशों के बीच चर्चा कर ख़त्म किया जाना चाहिए. दोनों देश एक दूसरे के बीच समन्वय प्रक्रिया के लिए ज़रूरी हैं, यह एक ऐसा समझौता है जो वर्षों से चला आ रहा है. रूस की ‘ग्रेटर यूरेशिया’ प्रोजेक्ट और इंडो-पैसिफ़िक एक दूसरे के साथ चलने वाली है और यह एक ही वजह से पैदा हुआ है. : यह नई राजनीतिक व्यवस्था और नई सियासी भूगोल की उपज है जो नए तरह के सहयोग और हितों पर आधारित समन्वय की ज़रूरत की ओर इशारा करता है. जैसा कि भारत और रूस आपसी सहयोग के नए अध्याय खोलने में जुटे हैं तो इनके बीच का सहयोग इस रिश्ते की गारंटी जैसी है.

कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन का भारत दौरा उनका दूसरा विदेश दौरा था. पहली बार वो इस साल की गर्मियों में जेनेवा गए थे जहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की थी. रूसी राष्ट्रपति का नई दिल्ली का दौरा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करना बेहद सांकेतिक और रणनीतिक है. यह इस बात का संकेत है कि राष्ट्रपति पुतिन इस बात को जानते हैं कि भारत उन्हें चीन के साथ बराबर की साझेदारी रखने देगा और भारत के लिए रूस रिश्तों का एक दरवाज़ा हमेशा खुला रखेगा.


यह लेख इकोनॉमिक टाइम्स की पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है.

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