पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत को तेज़ी से एक सक्षम और अपने पड़ोस से आगे बढ़कर व्यापक इंडो-पैसिफिक के क्षेत्र में भागीदारी के लिए तैयार देश के रूप में मान्यता मिली है. इस संदर्भ में भारत धीरे-धीरे दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ अपना सामरिक सहयोग मज़बूत कर रहा है. ‘समान विचार’ वाले देशों में भी इस बात की ज़रूरत महसूस की गई है कि इस क्षेत्र में गठबंधन बनाएं. सहयोग का स्वरूप चाहे कुछ भी हो लेकिन इनमें से कई गठबंधन का मक़सद चीन के विस्तारवादी असर को कम करना है. इस इलाक़े के समुद्र तटीय देशों में भी भागीदारी की इच्छा बढ़ रही है. जहां अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने पहले ही छोटी और बहुपक्षीय हिस्सेदारी के कई रास्ते खोल रखे हैं, वहां भारत नज़दीक के देश के रूप में इस इलाक़े में अपने संबंधों को गहरा करने के लिए सही ढंग से तैयार है.
हाल के वर्षों में फिलीपींस और भारत के बीच राजनयिक संबंधों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. दोनों देशों के बीच आर्थिक और ऊर्जा के मामले में सहयोग भी बढ़ा है. दोनों देशों की कंपनियों ने एक-दूसरे देश में निवेश किया है जैसे विप्रो, जीएमआर (भारत) और अयाला कॉर्पोरेशन (फिलीपींस) ने धातु, ऑटोमोबाइल, कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश किया है. 2020 में द्विपक्षीय रिश्तों में और मज़बूती आई है. व्यापार और निवेश पर भारत-फिलीपींस ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (जेडब्ल्यूजीटीआई) की 13वीं बैठक में दोनों देशों ने फ़ैसला लिया कि वो प्राथमिकता वाले व्यापार समझौते (पीटीए) की दिशा में काम करेंगे. इससे व्यापार बढ़ाने के लिए मूल्य और मात्रा– दोनों मामलों में टैक्स में कमी आएगी या टैक्स ख़त्म हो जाएंगे. इस समझौते के तहत फार्मास्युटिकल, आईटी और वित्तीय तकनीक पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक के दौरान फिलीपींस के समुद्री अधिकार क्षेत्र को लेकर जागरुकता बढ़ाने में मदद करने के लिए भारत ने तटीय निगरानी रडार सिस्टम की पेशकश की. दोनों देशों के मंत्री रक्षा, आतंकवाद विरोधी, संबंधित एजेंसियों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान और शिक्षा के क्षेत्र में संबंधों को विस्तार देने के लिए भी तैयार हुए. भारत ने फिलीपींस को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा में शामिल होने का न्योता भी दिया.
हाल के वर्षों में फिलीपींस और भारत के बीच राजनयिक संबंधों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. दोनों देशों के बीच आर्थिक और ऊर्जा के मामले में सहयोग भी बढ़ा है. दोनों देशों की कंपनियों ने एक-दूसरे देश में निवेश किया है
हाल की रिपोर्ट से इशारा मिलता है कि भारत और रूस साझा तौर पर विकसित ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल कई देशों को निर्यात करने की योजना बना रहे हैं. इन देशों में पहला नाम फिलीपींस का है. परीक्षण के चरणों को पूरा कर चुकी ये सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल रडार से बच निकलने की तकनीक से लैस है. इसकी रफ़्तार 2.8 मैक है और इसे दुनिया की सबसे तेज़ एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल माना जाता है. इसे समुद्र, हवा और ज़मीन से लॉन्च किया जा सकता है. ब्रह्मोस भारत और रूस के बीच एक प्रमुख ज्वाइंट वेंचर है जिसे 1998 में मिसाइल उत्पादन, विकास और निर्यात के लिए शुरू किया गया था. इसके निर्यात को लेकर फिलीपींस के साथ शुरुआती दौर की बातचीत पहले ही हो चुकी है जिसमें एक समझौते पर सहमति बनी थी जिसके तहत 2021 की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति दुतेर्ते के बीच शिखर वार्ता के दौरान मिसाइल की सप्लाई शुरू हो सकती है. दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे देशों ने भी मिसाइल हासिल करने में दिलचस्पी दिखाई है जिनमें थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और सिंगापुर शामिल हैं. इन देशों के अलावा अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, पूर्वी यूरोप और पश्चिम एशिया के देशों ने भी ब्रह्मोस में दिलचस्पी दिखाई है.
चीन को लेकर फिलीपिंस का नरम-गरम रुख़
ब्रह्मोस मिसाइल हासिल करने से फिलीपींस की रक्षा क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी होगी. ब्रह्मोस के ज़रिए फिलीपींस अपने तटों से अच्छी-ख़ासी दूरी पर हवा या ज़मीन पर किसी लक्ष्य पर हमला कर सकेगा. 500 किमी रेंज की क्षमता वाला ब्रह्मोस का दूसरा रूप 2024 तक तैयार हो जाने की उम्मीद है. इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि अपग्रेड किया हुआ रूप मौजूदा मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) के तहत निर्यात किया जा सकता है या नहीं लेकिन 290 किमी रेंज वाले रूप के निर्यात में कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए क्योंकि एमटीसीआर के तहत सिर्फ़ उन्हीं हथियारों की डिलीवरी पर प्रतिबंध है जो जनसंहार के हथियार (डब्ल्यूएमडी) के प्रसार में योगदान करते हैं और किसी भी तरह की बिक्री या तकनीक का हस्तांतरण संबंधित सदस्य देश के विवेक पर होगा.
इसके बावजूद, अक्सर तनाव से घिरे दक्षिण-पूर्व एशिया, जहां चीन के इरादों और उसकी वास्तविक पहुंच को लेकर शक है, के संदर्भ में मिसाइल की बिक्री एक बड़ा घटनाक्रम होगा. उदाहरण के लिए, दक्षिणी चीन सागर के हालात को लेकर फिलीपींस और तट पर बसे दूसरे देश अक्सर चीन के साथ विरोधी दावे में शामिल रहते हैं. राष्ट्रपति दुतेर्ते के कार्यकाल में फिलीपींस चीन को लेकर कभी नरम तो कभी गरम रहा है. उसकी साफ़-साफ़ स्थिति का पता लगाना मुश्किल है. एक तरफ़ जहां फिलीपींस अपनी प्रादेशिक चिंता और दक्षिणी चीन सागर में अपने दावे को लेकर चीन के ख़िलाफ़ मुखर रहा है, वहीं दूसरे मामलों पर उसने चीन के साथ सहयोग के इरादे का इशारा किया है. चीन आधिकारिक तौर पर तो समुद्र में स्थायित्व और विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे का भरोसा देता है लेकिन कई मौक़ों पर वो इस स्थिति के बिल्कुल विपरीत क़दम उठाता है. फिलीपींस को सुपरसोनिक मिसाइल की आपूर्ति से निश्चित तौर पर चीन नाराज़ होगा क्योंकि वो इस इलाक़े में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों में गहराई की कोशिशों के विरोध का कोई मौक़ा नहीं गंवाता. उसे लगता है कि इस इलाक़े के देशों के साथ किसी देश के संबंध अच्छे होंगे तो उसके लिए ख़तरा होगा. इससे पहले अप्रैल 2020 में ट्रंप प्रशासन ने दक्षिणी फिलीपींस में इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकियों से लड़ाई के लिए फिलीपींस को एक करोड़ 80 लाख अमेरिकी डॉलर की क़ीमत की मिसाइल देने का वादा किया था.
एक तरफ़ जहां फिलीपींस अपनी प्रादेशिक चिंता और दक्षिणी चीन सागर में अपने दावे को लेकर चीन के ख़िलाफ़ मुखर रहा है, वहीं दूसरे मामलों पर उसने चीन के साथ सहयोग के इरादे का इशारा किया है.
ब्रह्मोस मिसाइल पर समझौते का सबसे दिलचस्प पहलू शायद रूस की भूमिका है जो आम तौर पर चीन का सहयोगी है लेकिन वो भारत और चीन के बीच संतुलन बैठाने की भी कोशिश करता है. मिसाइल की बिक्री से रूस के बीमार रक्षा सेक्टर को भी जीवनदान मिलेगा. मिसाइल का साझा विकास और बाद में उसकी आपूर्ति शायद इस बात का भी सबूत है कि भारत के साथ सामरिक संबंध रूस के लिए कितना महत्वपूर्ण है. संयोग से रूस और फिलीपींस के बीच भी अच्छे संबंध हैं. रूस के द्वारा विकसित कोविड-19 की वैक्सीन के ट्रायल, उत्पादन और आपूर्ति को लेकर फिलीपींस और रूस साथ मिलकर काम करने वाले हैं. फिलीपींस की सबसे ज़्यादा आबादी कोरोना वायरस से प्रभावित है और वो वैक्सीन को लेकर चीन और रूस दोनों को लुभाने में लगा है.
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