Published on Jul 19, 2019 Updated 0 Hours ago

किसी भी डिजिटल स्कूल के विकास के लिए नई तकनीक के संसाधनों तक पहुंच बहुत अहम है, हालांकि, केवल तकनीक से कुछ नहीं होगा.

भारत की स्कूली शिक्षा को बेहतर करने में टेक्नोलॉजी की हो सकती है अहम् भूमिका

संवाद के नए माध्यमों के असरदार इस्तेमाल से हम अपने देश में पर्सनलाइज़्ड शिक्षा व्यवस्था का सिस्टम विकसित कर सकते हैं. इससे स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधरेगा और हमारी शिक्षा व्यवस्था बेहतर होगी.

शिक्षा व्यवस्था पर सालाना रिपोर्ट के मुताबिक़ हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में आठवीं क्लास के केवल 43.9 प्रतिशत बच्चे गुणा-भाग कर पाते हैं. और उनमें से केवल 72.8 फ़ीसद बच्चे ही दूसरी कक्षा के स्तर का साहित्य पढ़ पाते हैं.

देश में पढ़ाई-लिखाई के इतने बुरे स्तर को देखते हुए शिक्षा का स्तर सुधारने में नई तकनीक की मदद काफ़ी काम आ सकती है. किसी भी डिजिटल स्कूल के विकास के लिए नई तकनीक के संसाधनों तक पहुंच बहुत अहम है. हालांकि, केवल तकनीक से कुछ नहीं होगा. बच्चों को केवल लैपटॉप या कंप्यूटर दे देने भर से काम नहीं चलने वाला. इससे उनकी जानकारी नहीं बेहतर हो सकती. इसीलिए, हमें शिक्षा का स्तर सुधारने और छात्रों की जानकारी बेहतर करने के लिए तकनीक के साथ-साथ अध्यापन के दूसरे परंपरागत तरीक़ों में बदलाव पर भी ध्यान देना होगा.

इसके लिए सबसे लोकप्रिय मॉडल है SAMR  यानी सब्सीट्यूशन-ऑग्युमेंटेशन-मॉडिफ़िकेशन-रिडेफ़िनिशन. सब्सीट्यूशन यानी पढ़ाने के परंपरागत माध्यमों में बदलाव. जैसे चॉक और ब्लैकबोर्ड की जगह प्रोजेक्टर का इस्तेमाल. फिर बारी आती है, ऑग्युमेंटेशन यानी इस व्यवस्था के विस्तार की, जिसका मतलब है स्पेलिंग चेक करने वाले वर्ड प्रॉसेसर्स और सर्च इंजिन का इस्तेमाल. इस सुधार की तीसरी कड़ी है मॉडिफ़िकेशन, यानी सिलेबस को नए सिरे से तैयार करना. इसकी एक मिसाल गूगल क्लासरूम है. जिसमें बिना किसी काग़ज़ के छात्रों को पढ़ने का काम दिया जाता है. नया सिलेबस बनाया जाता है और फिर ग्रेड दिए जाते हैं. इस मॉडल की आख़िरी कड़ी है रिडेफ़िनिशन यानी छात्रों के पढ़ने के लिए नया टास्क तैयार करना. इसे बिना आईसीटी यानी इन्फॉर्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीस के बग़ैर पूरा नहीं किया जा सकता. क्योंकि इसमें गेम, ओपेन एजेुकेशन रिसोर्सेज़ और ऑनलाइन ट्यूशन सिस्टम विकसित करने की ज़रूरत होती है.

अगर हम छात्रों पर केंद्रित कोई शिक्षा व्यवस्था विकसित करना चाहते हैं, तो ऑनलाइन ट्यूटरिंग सिस्टम जैसे कि माइंडस्पार्क विकसित किया जा सकता है. जिसमें बच्चों को गणित के सबक़ पढ़ाने की ऑनलाइन व्यवस्था है.

अगर हम छात्रों पर केंद्रित कोई शिक्षा व्यवस्था विकसित करना चाहते हैं, तो ऑनलाइन ट्यूटरिंग सिस्टम जैसे कि माइंडस्पार्क विकसित किया जा सकता है. जिसमें बच्चों को गणित के सबक़ पढ़ाने की ऑनलाइन व्यवस्था है. ऐसे क़दमों से शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार देखने को मिल सकता है. छात्रों का ग्रेड भी बढ़ेगा.

कंप्यूटर की मदद से चलने वाला ऐसा ही एक प्रोग्राम गुजरात में शुरु किया गया था. जिसमें स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले नियमित सबक़ की जगह कंप्यूटर से पढ़ाई ने ली थी. 2008 में हुई एक रिसर्च में पता चला कि इस से पढ़ाई करने वाले छात्रों के नंबर बहुत कम आ रहे थे. साफ़ था कि केवल कंप्यूटर के इस्तेमाल से कुछ नहीं होने वाला. इसके बजाय शिक्षा का कार्यक्रम ऐसा हो, जिसमें छात्रों को अपनी रफ़्तार से अध्ययन करने दिया जाए, तो उसका सकारात्मक असर देखने को मिला. इसी तरह पेरू में हर छात्र को एक लैपटॉप देने का कार्यक्रम लागू किया गया. इससे स्कूलों में कंप्यूटर की तादाद और उसका अनुपात तो बढ़ गया. लेकिन, इससे गणित और भाषाओं में छात्रों के नंबरों में कोई सुधार नहीं आया. वहीं, दूसरी तरफ़ ऐसे ऐप जो छात्रों की सीखने की क्षमता के हिसाब से पढ़ने की सामग्री मुहैया कराते हैं, उनके इस्तेमाल के नतीजे बेहतर होने की काफ़ी संभावना है. इससे देश भर के लाखों बच्चों की शिक्षा का स्तर सुधारा जा सकता है.

लेकिन, इस व्यवस्था को लागू करने की सबसे बड़ी चुनौती है तकनीक की जानकारी का न होना. टाटा ट्रस्ट की एक रिसर्च के मुताबिक़, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के चार गांवों के सप्लीमेंट्री स्कूलों ने ये व्यवस्था लागू करने की कोशिश की थी. उन्होंने अध्यापकों को कंप्यूटर की जानकारी देने के लिए वर्कशॉप आयोजित कीं. उन्हें बताया गया कि वो ऐसे प्रोजेक्ट तैयार करें, जो उनके पहले से तय किए गए पाठ्यक्रम का ही हिस्सा लगे. इससे अध्यापकों को तकनीक को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद मिली. साथ ही उन्हें पूरे आत्मविश्वास से इसे चलाने का यक़ीन भी हुआ. ऐसी दूसरी वर्कशॉप में अध्यापकों ने उसी ऐप की मदद से दूसरे अध्यापकों को भी ट्रेनिंग दी और उन्हें इसका इस्तेमाल करना समझाया.

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च की 2017 की एक स्टडी के मुताबिक़ स्कूल के बाद छात्रों की मदद के लिए चलाए गए कार्यक्रमों की वजह से छठी से दसवीं कक्षा के छात्रों के गणित सीखने में दोगुने का इज़ाफ़ा हुआ.

छात्रों पर केंद्रित किसी शिक्षा व्यवस्था के तहत ऑनलाइन ट्यूशन क्लास जैसे माइंडस्पार्क का इस्तेमाल हो सकता है. माइंडस्पार्क सीखने का ऐसा प्रोग्राम है, जो छात्रों को गणित के सबक़ याद करने में मदद करता है. ऐसे क़दमों से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई बेहतर होती है. उनका ग्रेड भी सुधरता है. नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च की 2017 की एक स्टडी के मुताबिक़ स्कूल के बाद छात्रों की मदद के लिए चलाए गए कार्यक्रमों की वजह से छठी से दसवीं कक्षा के छात्रों के गणित सीखने में दोगुने का इज़ाफ़ा हुआ. वहीं हिंदी में उनका स्तर बाक़ी छात्रों के मुक़ाबले ढाई गुना बेहतर हो गया. आसान सवालों के जवाब देने में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई तो गणित के मुश्किल सवालों के जवाब देने में छात्रों ने 36 प्रतिशत तरक़्क़ी की. हिंदी में आसान सवालों के जवाब देने में छात्रों की प्रगति 7 फ़ीसद रही, तो मुश्किल सवालों के जवाब देने में छात्रों ने 19 परसेंट तरक़्क़ी की. इस स्टडी के मुताबिक़ जो कमज़ोर छात्र थे, उन्हें ऐसे ऑनलाइन ट्यूशन से ज़्यादा फ़ायदा हुआ. इसकी वजह शायद ये भी थी कि दूसरे छात्रों पर इतना ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया. उन्हें शिक्षा के इन नए माध्यमों से रूबरू नहीं कराया गया.

माइंडस्पार्क कार्यक्रम का इस्तेमाल करने का प्रति छात्र ख़र्च एक हज़ार रुपए आया था. इसमें बुनियादी ढांचे के विकास का ख़र्च और हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का ख़र्च भी शामिल है. एनबीईआर की स्टडी करने वालों का कहना है कि इसे बड़े पैमाने पर लागू करने से इसका प्रति छात्र ख़र्च घटकर शायद 150 रुपए ही रह जाए. हालांकि, इसमें किराया और दूसरी सुविधाएं शामिल नहीं होंगी. ये बहुत ही कम ख़र्च वाला तरीक़ा है. जबकि स्कूल हर छात्र पर 1500 रुपए ख़र्च करते हैं. ऐसी ट्यूशन की क्लास में पांचवीं और छठीं कक्षा के छात्र होते हैं. इसमें हर छात्र को तवज्जो दे पाना किसी भी टीचर के लिए संभव नहीं होता. उसकी ज़रूरतों के हिसाब से कोई भी टीचर मदद नहीं कर पाता. ऐसे में माइंडस्पार्क जैसे प्रोग्राम छात्रों की ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं.

इम्तिहान और दूसरी चीज़ों के फॉर्म और तारीख़ें आसानी से पता कर सकते थे. इससे छात्रों के लिए अपनी ज़रूरत की जानकारी हासिल करना बहुत आसान हो गया था. एक और सुझाव था कि क्लास में फ़ोन और लैपटॉप ले जाने की इजाज़त हो. छात्रों के मुताबिक़ लैपटॉप इस्तेमाल करने के कई फ़ायदे हैं. इससे वो तेज़ी से नोट बना सकते हैं. छात्र भविष्य में सुनने के लिए लेक्चर रिकॉर्ड भी कर सकते हैं.

हमारे स्कूलों में तकनीक के बेहतर इस्तेमाल के ये दो उदाहरण ही हमारी शिक्षा व्यवस्था के बेहतर करने के तरीक़े हो सकते हैं. ये रिडेफ़िनिशन स्तर के बाद है. सीखने की प्रक्रिया के दौरान दो छोटे मग़र बेहद अहम क़दम हैं, जो बहुत कारगर साबित हो सकते हैं. सबसे अच्छा तरीक़ा होगा लेक्चर की वीडियो रिकॉर्डिंग का. इन्हें हर छात्र को भेजा जाता है. इसके कई फ़ायदे हैं. जो छात्र खेल-कूद में लगे रहते हैं वो कई बार क्लास में नहीं जा पाते. उन्हें लेक्चर्स की वीडियो रिकॉर्डिंग से बहुत मदद मिल सकती है और 30 दिनों तक का पिछड़ा हुआ कोर्स वो घर में कवर कर सकते हैं. दूसरे छात्र भी लेक्चर की वीडियो रिकॉर्डिंग की मदद से अपनी पढ़ाई का रिवीज़न कर सकते हैं. घर पर उसे दोहरा सकते हैं, ताकि सबक़ अच्छे से याद हो जाए.

छात्रों से बात करते हुए मुझे उनसे स्कूल में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर कई सुझाव मिले. एक प्राथमिक सुझाव ये था कि अध्यापकों और छात्रों के बीच बातचीत को आसान और सरल बनाया जाए. इससे उनकी शंकाओं का समाधान आसान हो जाएगा. जो छात्र इम्तिहान की तैयारी कर रहे होते हैं, उनके लिए ये बहुत ही अहम है. मेरे अपने स्कूल में एक मोबाइल ऐप टेनो का इस्तेमाल टीचर्स और छात्रों के बीच संवाद के लिए किया जाता था. यहां टीचर रोज़ के असाइनमेंट भेज सकते थे. छात्रों को नोटिफ़िकेशन मिल जाते थे. और क्लास से जुड़ी अहम जानकारियां साझा हो जाती थीं. हमारे स्कूल में तो एक वेबसाइट भी थी, जिस में लॉग इन कर के छात्र अपनी हाज़िरी और अनुशासन से जुड़ी स्लिप देख सकते थे. इम्तिहान और दूसरी चीज़ों के फॉर्म और तारीख़ें आसानी से पता कर सकते थे. इससे छात्रों के लिए अपनी ज़रूरत की जानकारी हासिल करना बहुत आसान हो गया था. एक और सुझाव था कि क्लास में फ़ोन और लैपटॉप ले जाने की इजाज़त हो. छात्रों के मुताबिक़ लैपटॉप इस्तेमाल करने के कई फ़ायदे हैं. इससे वो तेज़ी से नोट बना सकते हैं. छात्र भविष्य में सुनने के लिए लेक्चर रिकॉर्ड भी कर सकते हैं. जिन बातों को वो समझ नहीं पाते हैं, उन्हें बाद में सुनकर समझने की कोशिश कर सकते हैं. वो भी पूरी क्लास में ख़लल डाले बग़ैर.

मुंबई के एक इंटरनेशनल स्कूल की छात्रा के मुताबिक़, उसके स्कूल में तकनीक का इस्तेमाल कर के छात्रों के लिए बहुत असरदार माहौल तैयार किया गया है. ताकि वो आसानी से ज़्यादा से ज़्यादा सबक़ सीख सकें. वो तकनीक की मदद से कई शैक्षणिक केंद्रों से संपर्क कर सकते हैं. ताकि तेज़ी से और मनोरंजक तरीक़े से पढ़ाई कर सकें. कई और निजी स्कूलों को भी ऐसे उपकरणों के इस्तेमाल पर ध्यान देना चाहिए. ताकि छात्र पढ़ाई के संसाधनों तक पहुंच बना सकें. ऐसा ही एक लोकप्रिय संसाधन खान एकेडमी मुहैया कराती है. जिसमें छात्रों को कई विषयों को मुफ़्त में पढ़ाया जाता है. इसके तहत अर्थशास्त्र, इतिहास, गणित और फ़िज़िक्स की पढ़ाई कराई जाती है. इसमें दसवीं और बारहवीं के छात्रों के लिए विशेष कोर्स भी हैं. इसका इस्तेमाल कर के छात्र वो सबक़ दोबारा याद कर सकते हैं, जिन्हें वो स्कूल में एक बार पढ़कर ठीक से समझ नहीं सके. फिर वो अगली कक्षा की तैयारी भी बेहतर तरीक़े से कर सकेंगे.

ऊपर बताए गए सुझाव स्कूलों में आगे चल कर लंबे समय की योजना के तहत तकनीक के इस्तेमाल को लेकर हैं. साथ ही इनमें से कुछ उपाय तो फ़ौरी तौर पर भी आज़माए जा सकते हैं. टीचर्स की ट्रेनिंग और तकनीक के बेहतर इस्तेमाल के कार्यक्रमों पर ज़ोर देकर छात्रों को पर्सनलाइज़्ड शिक्षा मुहैया कराई जा सकती है. इससे हमारे देश में पढ़ाई-लिखाई की प्रक्रिया और स्तर में ज़बरदस्त सुधार लाया जा सकता है.


लेखक ORF मुंबई में रिसर्च इंटर्न हैं.

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