Author : UDAYVIR AHUJA

Published on Dec 28, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया में सबसे कामयाब और कम लागत वाला है. हालांकि इसके बावजूद वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा सिर्फ़ 2 प्रतिशत है. 

भारत की अंतरिक्ष क्रांति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने 11 अक्टूबर 2021 को नई दिल्ली (New Delhi) में भारतीय अंतरिक्ष संघ (Indian Space Association, ISpA) का उद्घाटन किया.  दरअसल प्रधानमंत्री मोदी भारत को विश्व में अंतरिक्ष के क्षेत्र (World Space Sector) का अगुवा देश बनाना चाहते हैं. उनकी इसी परिकल्पना को साकार करने के इरादे से इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई है. ISpA का मकसद अंतरिक्ष के क्षेत्र की अत्याधुनिक तकनीक और निवेश को भारत में आकर्षित करने के साथ-साथ उसके लिए ज़रूरी नीतिगत ढांचा खड़ा करना है. ISpA के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि “आज़ादी के इन 75 सालों में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत सरकार और सरकारी संस्थाओं का ही वर्चस्व रहा है. निश्चित रूप से भारत के वैज्ञानिकों ने इन दशकों में कामयाबी के नए-नए झंडे गाड़े हैं, लेकिन आज ज़रूरत इस बात की है कि प्रतिभा पर किसी तरह की बंदिश न हो. चाहे वो प्रतिभा सार्वजनिक क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की.”

भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रहों (IRS) से हासिल सभी प्रकार के आंकड़ों पर सिर्फ़ भारत सरकार का हक़ होगा.

बहरहाल, अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका के विस्तार की दिशा में मोदी सरकार की ओर से उठाया गया ये सबसे ताज़ा क़दम है. पिछले काफ़ी समय से मौजूदा सरकार के एजेंडे में अंतरिक्ष के क्षेत्र में उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने की बात शामिल रही है. इसके पीछे कई जायज़ और मुनासिब वजहें हैं. निश्चित रूप से भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया में सबसे कामयाब और कम लागत वाला है. हालांकि इसके बावजूद वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत का हिस्सा सिर्फ़ 2 प्रतिशत है. इसकी दो अहम वजहें हैं: दरअसल भारत में अंतरिक्ष के क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाए गए क़ानूनों का अभाव है. दूसरा, अंतरिक्ष से जुड़ी तमाम गतिविधियों पर प्रभावी रूप से इसरो का  ही एकाधिकार रहा है.

फ़िलहाल अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की गतिविधियां राष्ट्रीय स्तर की 2 नीतियों और मुट्ठी भर अंतरराष्ट्रीय संधियों से संचालित होती हैं. 2 राष्ट्रीय नीतियों में उपग्रह संचार नीति (SATCOM) और रिमोट सेंसिंग डेटा पॉलिसी (RSDP) शामिल हैं. SATCOM नीति 1997 में सामने आई थी. देश में अंतरिक्ष क्षेत्र और उपग्रह संचार उद्योग के विकास के मकसद से ये नीति बनाई गई थी. वर्ष 2000 में भारत सरकार ने 1997 की नीति को अमल में लाने से जुड़े कई नियम-क़ायदे सामने रखे थे. RSDP 2001 में प्रस्तुत की गई थी और 2011 में भारत सरकार ने इसमें संशोधन किया था. RSDP में सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग से जुड़े आंकड़ों के देश में और राज्यों के बीच वितरण के स्पष्ट दिशानिर्देश दिए गए हैं. नीति में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रहों (IRS) से हासिल सभी प्रकार के आंकड़ों पर सिर्फ़ भारत सरकार का हक़ होगा. निजी क्षेत्र केवल नोडल एजेंसी के ज़रिए इससे जुड़ा लाइसेंस हासिल कर सकता है.

भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष गतिविधि नियमन तंत्र के गठन की बात भी कही गई है. इस व्यवस्था का मकसद “स्थापित लक्ष्यों, कार्यों और सिद्धांतों के साथ एक अंतरिक्ष गतिविधि योजना तैयार करना है. 

दरअसल हमारे देश में अभी हाल तक अंतरिक्ष को घरेलू मसले की बजाए एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे के तौर पर देखा जाता था. लिहाज़ा आंतरिक स्तर पर अंतरिक्ष से जुड़े क़ानून की ज़रूरत ही नहीं समझी गई. इसके अलावा निजी क्षेत्र ने भी अभी हाल ही में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में दिलचस्पी लेना शुरू किया है. अंतरिक्ष के क्षेत्र में निवेश करने और बड़ी भूमिका निभाने का निजी क्षेत्र का इरादा पिछले कुछ अर्से से ही सामने आया है. दरअसल अब निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियों की वाणिज्यिक क्षमताओं का पता चल गया है. इसरो ने भी हाल ही में कई साहसी और कामयाब मिशन पूरे किए हैं. इनमें 2019 का चंद्रयान-2 और 2014 का मिशन मंगलयान शामिल हैं. इसरो के इन मिशनों ने घरेलू अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी और बढ़ा दी है.

अंतरिक्ष गतिविधियां विधेयक

2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही मोदी सरकार ने घरेलू अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार और उसमें निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने से जुड़ी क़वायदों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. 2017 में इसरो ने अंतरिक्ष गतिविधियां विधेयक  का मसौदा पेश किया था. प्रस्तावित विधेयक का मकसद भारत के अंतरिक्ष सेक्टर में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ावा देना और उनके लिए ज़रूरी नियम-क़ायदे बनाना था.

2017 में पेश विधेयक के मसौदे में एक बुनियादी क़ानूनी ढांचा सामने रखा गया है. इसके तहत भारत सरकार द्वारा एक नियामक तंत्र गठित करने और उसको ज़रूरी नियम-क़ायदे बनाने और उनका पालन सुनिश्चित कराने के ज़रूरी अधिकार देने की बात कही गई है. इतना ही नहीं विधेयक में घरेलू अंतरिक्ष क़ानून के दायरे में आने वाले व्यक्तियों और वस्तुओं का भी विवरण दिया गया है. साथ ही भारत सरकार द्वारा अंतरिक्ष गतिविधि नियमन तंत्र के गठन की बात भी कही गई है. इस व्यवस्था का मकसद “स्थापित लक्ष्यों, कार्यों और सिद्धांतों के साथ एक अंतरिक्ष गतिविधि योजना तैयार करना है. साथ ही अंतरिक्ष सेक्टर और अंतरिक्ष से जुड़े बुनियादी ढांचे और टेक्नोलॉजी के ज़मीनी हिस्से का समग्र विकास कर देश की वाणिज्यिक और आर्थिक ज़रूरतें पूरी करना भी इसका प्रमुख लक्ष्य है.”

 2020 में इसरो ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (NSTP) भी सामने रखी है. इसके तहत निजी उद्यमों को नियामक आवश्यकताओं के ज़रिए सहारा, बढ़ावा और दिशानिर्देश मुहैया कराए जाते हैं.  

इस मसौदे का सबसे अहम हिस्सा निजी संस्थाओं को अंतरिक्ष से जुड़ी वाणिज्यिक गतिविधियों के लाइसेंस देने और उनके नियमन की प्रक्रिया से जुड़ा है.  भारत द्वारा दस्तख़त किए गए किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि के हिसाब से इस तरह के लाइसेंस जारी करने की बात कही गई है. इसमें भारत सरकार को “पूर्व घोषित तौर-तरीक़ों से प्रत्यक्ष या किसी एजेंसी के ज़रिए कॉरपोरेट या दूसरे सांगठनिक ढांचों में वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों के संचालन के लिए मंज़ूरी मुहैया कराने या उन गतिविधियों की शुरुआत या संचालन कराने” के निर्देश दिए गए हैं. इसके मायने ये हैं कि जब ये बिल पास हो जाएगा तब निजी क्षेत्र को सरकारी मंज़ूरी और निगरानी के दायरे में रॉकेट लॉन्च करने या वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों के संचालन का अधिकार मिल जाएगा. जोखिम साझा करने से जुड़ी व्यवस्था के प्रावधान भी इस मसौदे में शामिल किए गए हैं. इसके ज़रिए किसी लाइसेंसधारी संस्था की अंतरिक्ष गतिविधियों से किसी तरह का नुकसान सामने आने पर भारत सरकार उसकी देनदारी और ज़िम्मेदारी का निर्धारण कर सकेगी.

चूंकि क़ुदरती तौर पर अंतरिक्ष से जुड़े वाणिज्यिक क्रियाकलाप बेहद जोख़िम भरे और भारी-भरकम निवेश की ज़रूरत वाले कार्यक्रम है. ऐसे में स्पष्टता के साथ तैयार किया गया घरेलू अंतरिक्ष बिल इस उद्योग में निवेश को बढ़ावा देने में कारगर साबित होगा. मसौदा विधेयक का मुख्य लक्ष्य भी यही है. इसके अलावा ये मसौदा एक घरेलू वैधानिक तंत्र  की स्थापना के ज़रिए भारत की ज़िम्मेदारियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को भी पूरा करता है. जैसा कि भारत सरकार के एक कैबिनेट मंत्री ने स्पष्ट किया है, ये विधेयक फ़िलहाल “विचाराधीन” है और इसे अभी संसद में पेश किया जाना बाक़ी है.

निश्चित रूप  से विधेयक के पीछे की सोच और इरादा सराहनीय है. हालांकि इसके कुछ प्रावधानों से कुछ समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. मसौदा विधेयक के एक खंड में कहा गया है कि “इस विधेयक के  तहत अच्छे इरादों और पूरे विश्वास के साथ अंतरिक्ष से  जुड़ी किसी गतिविधि को पूरा किए जाने के मामले में केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा, अभियोग या कोई दूसरी वैधानिक  कार्यवाही नहीं की जा  सकती.” दरअसल ये खंड भारतीय संविधान के बुनियादी उसूल के ख़िलाफ़ है. ऐसे में इसकी वैधानिकता (न्यायिक समीक्षा) को लेकर ही सवाल खड़े होते हैं. इसके अलावा बिल में नियामक प्रावधानों को लेकर बेहद सख़्त रुख़ अपनाया गया है. इनके तहत संबंधित पक्षों पर कई तरह के नियम और शर्तें थोपी गई हैं. उनके लिए बाध्यकारी निर्देश दिए गए हैं. साथ ही संबंधित पक्षों के क्रियाकलापों को लेकर कई तरह की अनिवार्य जांच-पड़ताल किए जाने की  बात कही गई है. इसके अलावा लाइसेंसिंग को लेकर भी भारी-भरकम व्यवस्था की गई है. उम्मीद की जा रही है कि निकट भविष्य में  ही सरकार इस बिल का अंतिम मसौदा सामने रखेगी. अगर अंतिम मसौदे में इन प्रावधानों को हटाया  नहीं गया तो इस विधेयक के बुनियादी मकसदों पर ही पानी फिर सकता है.

2020 में इसरो ने राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिवहन नीति (NSTP) भी सामने रखी है. इसके तहत निजी उद्यमों को नियामक आवश्यकताओं के ज़रिए सहारा, बढ़ावा और दिशानिर्देश मुहैया कराए जाते हैं. NSTP निजी क्षेत्र से जुड़े संगठनों को भारत में और भारत से बाहर रॉकेट लॉन्च से जुड़े साइट्स स्थापित करने और उनका संचालन करने के लिए अधिकृत करता है. इसके लिए निजी क्षेत्र को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACE) की ओर से हरी झंडी दिखाई जाती है. आगे इस नीति में इसरो को हरित अंतरिक्ष तकनीकी (जैसे हरित ईंधन और फिर से इस्तेमाल होने वाले रॉकेट) पर ध्यान देने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी उद्यमों को बढ़ावा देने की बात भारत सरकार के एजेंडे में प्रमुखता से शामिल है. लिहाज़ा इस नीति के ज़रिए ये भरोसा दिलाया गया है कि IN-SPACe निजी क्षेत्र को अपने क्रियाकलापों के लिए एक समान अवसर मुहैया कराएगा.

मौजूदा वक़्त में अंतरिक्ष को मद्देनज़र रखकर बनाई गई नीतियों के पूरक के तौर पर भारत सरकार ने IN-SPACe और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) जैसे उपक्रम शुरू किए हैं. IN-SPACe भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत एक स्वतंत्र संगठन है. इसका इकलौता मकसद अंतरिक्ष से जुड़ी अर्थव्यवस्था की पेचीदगियों  के मद्देनज़र निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना, आगे बढ़ाना और ज़रूरी मदद मुहैया कराना है. जैसा कि ऊपर बताया गया है भारत या भारत के बाहर किसी निजी संस्था द्वारा कक्षा में स्थापित करने से जुड़ी किसी क़वायद के सिलसिले में IN-SPACe नोडल अथॉरिटी की तरह काम करेगा. इसके अलावा ग़ैर-सरकारी निजी उद्यमों (NGPE) द्वारा अंतरिक्ष विभाग के अधिकार-क्षेत्र में आने वाली सुविधाओं का उपयोग किए जाने के दौरान भी यही संस्था नोडल  एजेंसी के तौर पर काम करेगी.

दूसरी ओर NSIL पूरी तरह से भारत सरकार के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है. ये इसरो की मार्केटिंग शाखा के तौर पर काम करेगी. इसरो द्वारा विकसित की गई टेक्नोलॉजी की निजी ग्राहकों तक मार्केटिंग करने की ज़िम्मेदारी इसी के कंधों पर होगी. ये दोनों ही संस्थाएं बुनियादी ढांचा और तकनीकी जानकारियां मुहैया करवाकर ग़ैर-सरकारी निजी उद्यमों को अंतरिक्ष के क्षेत्र में स्थापित होने में मदद करेंगी.

निष्कर्ष

अंतरिक्ष क्षेत्र को व्यापक तौर पर निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए खोलने को लेकर मोदी सरकार का एजेंडा माकूल वक़्त पर सामने आया है. बैंक ऑफ़ अमेरिका की इकाई Merrill Lynch का आकलन है कि 2050 तक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार तक़रीबन 5 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो जाएगा. ग़ैर-सरकारी निजी उद्यमों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोले जाने के फ़ायदे दुनिया में साफ़-साफ़ देखे जा सकते हैं. ख़ासतौर से अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी में दुनिया की अगुवाई करने वाले अमेरिका की मिसाल से ये बात शीशे की तरह साफ़ हो जाती है. अभी हाल ही में एलन मस्क के SpaceX के भारी-भरकम मूल्यांकन (100 अरब अमेरिकी डॉलर) से ये बात ज़ाहिर हो जाती है. Morgan Stanley के आकलन के मुताबिक वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार फ़िलहाल 350 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है जो 2040 तक बढ़कर 1 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो जाएगा. छोटे-छोटे ग्रहों की पड़ताल, पृथ्वी की निगरानी, अंतरिक्ष से जुड़ा पर्यटन, उपग्रहों का प्रक्षेपण, गहरे अंतरिक्ष की खोज और सैटेलाइट इंटरनेट जैसी गतिविधियां अंतरिक्ष से जुड़ी इस नई अर्थव्यवस्था के प्रमुख वाहक होंगे.

बहरहाल भारत सरकार द्वारा इस दिशा में अब तक उठाए गए क़दम सकारात्मक रहे हैं. निजी समुदाय की ओर से इनकी काफ़ी सराहना की गई है. मोदी सरकार लगातार भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को नोडल अथॉरिटी की निगरानी में वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए खोलने पर ज़ोर देती आ रही है. ISpA का गठन इस बात का जीता-जागता प्रमाण है. इसके साथ ही भारती एयरटेल, लार्सन एंड टुब्रो, नेल्को (टाटा ग्रुप) जैसी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को इस क़वायद के साथ जोड़े जाने से अंतरिक्ष क्षेत्र को लेकर मोदी सरकार के इरादों का पता चलता है. भारत के पास सस्ती टेक्नोलॉजी, तेज़ी से बढ़ती स्टार्ट-अप संस्कृति, युवाओं की विशाल आबादी और ज़रूरी तकनीकी जानकारी और कौशल मौजूद है. इसके साथ ही अंतरिक्ष से जुड़ी गतिविधियों की अगुवाई करने के लिए इसरो जैसी मज़बूत संस्था भी देश  में मौजूद है. इसरो अपनी भूमिका बख़ूबी निभा भी रहा है. साफ़ ज़ाहिर है कि भारत के पास वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का अगुवा बनने की तमाम संभावनाएं और काबिलियत है. बहरहाल मोदी सरकार को घरेलू अंतरिक्ष क़ानून तैयार करते वक़्त बेहद सतर्क रहना होगा क्योंकि इसमें भारत का भविष्य संवारने या बिगाड़ने की क्षमता मौजूद है.

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