Published on Nov 17, 2020 Updated 0 Hours ago

भूजल के टिकाऊ प्रबंधन के लिए भारत के शहर क्या क़दम उठा रहे हैं.

भारत के शहरों में भूजल को बहाल करने का लक्ष्य: बेंगलुरु से सीखें

जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की कमी में तेज़ी आ रही है, OECD के पूर्वानुमानों के मुताबिक़ 2030 तक दुनिया भर में 3.9 अरब लोग गंभीर पानी संकट से जूझेंगे. मौजूदा महामारी प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से जुड़ी कई खामियां सामने लेकर आई है, ख़ासतौर से पानी को लेकर. पानी का सही इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालीन विकास लक्ष्य 2030 के अलग-अलग मक़सदों को हासिल करने के लिए बेहद ज़रूरी है.

पिछले सात दशकों के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में 72% की चौंकाने वाली कमी आई है. गौर से देखने पर पता चलता है कि प्रति व्यक्ति सालाना पानी की निकासी (1975-2010) में 18,500 लीटर की बढ़ोतरी हुई है, यानी पानी के दो बड़े टैंकर के बराबर. पीने के पानी और ग्रामीण भारत में सिंचाई के मुख्य स्रोत के अलावा भूजल शहरों में घरेलू पानी सप्लाई की 80% मांग पूरी करता है. एक अनुमान के मुताबिक़ 2030 तक कुल राष्ट्रीय जनसंख्या का 39% हिस्सा शहरों में रहेगा और देश में पानी की मांग आपूर्ति के मुक़ाबले दोगुनी हो जाएगी. ऐसे में समझदारी से भूजल का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है.

एक अनुमान के मुताबिक़ 2030 तक कुल राष्ट्रीय जनसंख्या का 39% हिस्सा शहरों में रहेगा और देश में पानी की मांग आपूर्ति के मुक़ाबले दोगुनी हो जाएगी. ऐसे में समझदारी से भूजल का इस्तेमाल बेहद ज़रूरी है. 

पानी की मांग को देखते हुए ये चुनौतीपूर्ण सवाल है: भूजल के दीर्घकालीन प्रबंधन के लिए भारत के शहर क्या क़दम उठा रहे हैं ? इसका जवाब कुछ हद तक कर्नाटक के शहर बेंगलुरु से मिल सकता है.

बेंगलुरु में पानी के बारे में अक्सर बेलांदुर और वार्थुर जैसी झीलों के खराब हालात से पता लगाया जाता है लेकिन ये पूरे शहर में जल प्रबंधन रणनीति को लेकर की जा रही कोशिशों के बारे में नहीं बताता. 1200 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले इस शहर में 2001-2011 के दौरान एक दशक में जनसंख्या में 47.25% की बढ़ोतरी हुई है. यहां हर साल औसतन 970 मिलीमीटर बारिश होती है जो भूजल में आई कमी को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है. भारत में राष्ट्रीय भूजल संसाधन संग्रह, 2017 के मुताबिक़ कर्नाटक में एक तिहाई कुल भूजल का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल होता है. राज्य स्तर पर जहां 70% पानी निकाला जाता है वहीं बेंगलुरु शहर में 143.81%. इसका ये मतलब है कि बेंगलुरु में जितना भूजल उपलब्ध है, उससे कहीं ज़्यादा निकाला जाता है. ऐसे में इस अंतर के समाधान की ज़रूरत है. भूजल के आदर्श इस्तेमाल के लिए ज़िम्मेदार भागीदार हैं: नागरिक, समुदाय और सामाजिक समूह.

शहर में मौजूद पानी के संसाधनों जैसे जक्कूर झील का स्तर सुधारने के लिए जो तौर-तरीक़े हैं, उनमें न सिर्फ़ तकनीक (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और निर्मित वेटलैंड जो गंदे पानी को ट्रीट करता है) को जोड़ने की ज़रूरत है बल्कि संस्थानों को भी साथ लेना होगा (जलपोषण ट्रस्ट सिटीज़न कलेक्टिव, सत्या फाउंडेशन NGO, IISC, बैंगलोर विकास प्राधिकरण और बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका). जिस तरह धरातल पर मौजूद पानी के संसाधनों के प्रबंधन के लिए लोगों को जोड़ने की कई संभावनाएं हैं, भूजल के साथ भी वैसे ही है. ख़ास तौर पर शहर के उन इलाक़ों में जहां नगरपालिका के ज़रिए पानी की सप्लाई नहीं होती. इसका एक अच्छा उदाहरण है सर्जापुर रोड में स्थित रेनबो ड्राइव लेआउट. यहां ज़मीन के नीचे काफ़ी गहराई में बोरवेल के ज़रिए भी पानी नहीं आया लेकिन तकनीक के इस्तेमाल से लोगों की सामूहिक कोशिशों के ज़रिए भूजल को रिचार्ज किया गया. रेनवाटर हार्वेस्टिंग के उपाय (2007 में), कुंओं की संख्य़ा में बढ़ोतरी और कम रख-रखाव, कम ऊर्जा वाली ट्रीटमेंट सुविधा ने गंदे पानी के फिर से इस्तेमाल को संभव बनाया.

25 किलो लीटर तक पानी के इस्तेमाल की मामूली क़ीमत के अलावा कुछ जुर्माने के ज़रिए अलग-अलग उपभोग के स्तर को सुनिश्चित किया गया. इन उपायों से अंत में भूजल के स्तर में बढ़ोतरी हुई और दो बोरवेल के ज़रिए लेआउट में रहने वाले लोगों को रोज़ाना 1.30 लाख लीटर पानी मिलने लगा. इससे टैंकर के पानी पर लोगों को निर्भरता ख़त्म हो गई. वास्तव में रेनबो ड्राइव लेआउट की पहल ‘एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन’ (IWRM) को इस्तेमाल में लाने की अहमियत बताती है और पानी की कमी से दूर समाज की संभावना में मदद करती है.

पिछले वर्षों में पानी के प्रबंधन का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है कब्बन पार्क में सात पुराने कुंओं को फिर से इस्तेमाल में लाना. इसके लिए 65 कम गहरी रिचार्ज यूनिट का निर्माण किया गया. ये शहर के बागवानी विभाग, प्राइवेट कंपनियों और NGO की साझा कोशिश थी. 

पिछले वर्षों में पानी के प्रबंधन का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है कब्बन पार्क में सात पुराने कुंओं को फिर से इस्तेमाल में लाना. इसके लिए 65 कम गहरी रिचार्ज यूनिट का निर्माण किया गया. ये शहर के बागवानी विभाग, प्राइवेट कंपनियों और NGO की साझा कोशिश थी. परंपरागत जल संसाधनों को फिर से इस्तेमाल में लाने का रुझान देश में बढ़ रहा है. इसके लिए शहर में पानी के इतिहास पर नज़र डाली जाती है ताकि ये समझा जा सके कि एकीकृत संसाधान नेटवर्क में उनकी भूमिका क्या होगी. इसके लिए अतिरिक्त पानी को शहर की झीलों तक ले जाने वाले नेटवर्क को अतिक्रमण और सॉलिड वेस्ट से दूर रखने की ज़रूरत है. ऐसा होने पर आसपास के इलाक़ों में भूजल का स्तर बहाल हो जाएगा. भूजल की संस्थागत रूपरेखा में परंपरागत समुदायों जैसे ‘मन्नूवाडार’ की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने से पूरे शहर भर में भूजल के रिचार्ज की प्रक्रिया तेज़ हो जाएगी.

2018 में ‘मिलियन रिचार्ज वेल’ जैसा अभियान शहर में चलाया गया था जिसका मक़सद भूजल के स्तर को बढ़ाना था. इसके तहत कुंओं के निर्माण को बढ़ावा दिया गया ताकि कावेरी नदी के पानी, बोरवेल और ट्यूब वेल की ज़रूरत को कम किया जा सके. पानी के कनेक्शन के लिए मीटर लगाने के अलावा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भूजल के इस्तेमाल को लेकर नियम बनाए. इन नियमों के तहत सरकारी विभाग नियमों का कड़ाई से पालन करने पर ही परमिट दे सकते थे. भूजल के इस्तेमाल को दुरुस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने हाल में नये दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इसमें उद्योगों, हाउसिंग सोसायटी और पानी की सप्लाई करने वाले टैंकर के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी है. नियम का पालन नहीं करने पर जुर्माना देना होगा.

भूजल प्रबंधन के लिए बेंगलुरु के उदाहरण से कई सबक़ सीखे जा सकते हैं. जहां तक बात भूजल की पहल को लेकर स्थानीयकरण की है तो पैसे की ज़रूरत को लेकर शर्तों का निर्धारण करना होगा और इसका फ़ैसला मांग के मुताबिक़ समुदायों को लेना होगा

केंद्रीय भूजल बोर्ड ने जिन कार्यक्रमों पर ज़ोर डाला है जैसे सहभागी भूजल प्रबंधन, उसके लिए पानी के स्रोतों का पता लगाना होगा. असरदार प्रबंधन के लिए संस्थागत मेल जोल और क्षमता निर्माण की काफ़ी ज़रूरत है और इससे पारदर्शिता, जवाबदेही और सबको शामिल करने में मदद मिल सकती है

नगरपालिका के कनेक्शन की गैर-मौजूदगी में बोरवेल और टैंकर के पानी की सप्लाई पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता को रेनवाटर हार्वेस्टिंग और भूजल रिचार्ज की पद्धतियों में निवेश के ज़रिए बदला जा सकता है. केंद्रीय भूजल बोर्ड ने जिन कार्यक्रमों पर ज़ोर डाला है जैसे सहभागी भूजल प्रबंधन, उसके लिए पानी के स्रोतों का पता लगाना होगा. असरदार प्रबंधन के लिए संस्थागत मेल जोल और क्षमता निर्माण की काफ़ी ज़रूरत है और इससे पारदर्शिता, जवाबदेही और सबको शामिल करने में मदद मिल सकती है. इससे भूजल और धरातल के जल संसाधनों को एकजुट करने में मदद मिल सकती है जो कि एक उचित चिंता है और आदर्श भूजल विधेयक, 2016 के हिस्से के रूप में ज़मीनी स्तर पर जिसको लागू करना मुश्किल है.

पानी की आपूर्ति के स्रोत की क़ीमत को लेकर एकरूपता के स्तर का इंतज़ार है और भूजल को लेकर मौजूदा विधेयकों और राष्ट्रीय जल रूपरेखा के बीच कमी को देखते हुए बेंगलुरु शहर के तौर-तरीक़ों से काफ़ी कुछ सीखने की ज़रूरत है: ये ऐसा मॉडल है जो शहरों में पानी की कमी को पूरा करने में नागरिकों के महत्व और मूल्य को सबसे अच्छे ढंग से दिखाता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.