Published on Mar 14, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत द्वारा अपनाई गई नीतिगत रणनीति के बावजूद  हथियारों को दूसरे देशों से ख़रीदने के बजाय भारत अपने घरेलू उत्पादन का विस्तार करना चाहेगा.

हथियार ख़रीदने के लिए भारत की प्राथमिकताएं: एक विश्लेषण

यह आर्टिकल भारत द्वारा हथियारों के अधिग्रहण के संबंध में संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) की वरीयता की व्याख्या करने की कोशिश है. यह एक महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि 70 प्रतिशत भारतीय हथियार रूस से आयात होते हैं, जो भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग की दिशा में एक बड़ी बाधा बन सकता है. हथियार विक्रेताओं के संबंध में अमेरिका और भारतीय प्राथमिकताओं की वरीयता दो अलग-अलग भारतीय विदेश और रक्षा नीतियों के तहत आती है: सामरिक स्वायत्तता और अमेरिका के साथ साझेदारी. दोनों ही परिदृश्यों में यह नीतियां इस ओर इशारा करती हैं कि अमेरिका, भारतीय विक्रेताओं को रूस से हथियार ख़रीदने के बजाय स्वदेशी हथियार उत्पादन क्षमता विकसित करने के लिए बढ़ावा देगा और यह तर्क रूसी निर्मित सैन्य क्षमता पर निर्भरता को कम करने की प्राथमिकता की ओर इशारा करता है. अमेरिका भारत का रणनीतिक साझेदार बन जाता है फिर भी घरेलू उत्पादन क्षमता का विस्तार होता रहेगा. ऐसे में भारत में स्वदेशी हथियारों का विकास भारतीय रणनीति के बगैर भी अमेरिका और भारत के बीच आम सहमति का नतीजा हो सकता है.

अमेरिका भारत का रणनीतिक साझेदार बन जाता है फिर भी घरेलू उत्पादन क्षमता का विस्तार होता रहेगा. ऐसे में भारत में स्वदेशी हथियारों का विकास भारतीय रणनीति के बगैर भी अमेरिका और भारत के बीच आम सहमति का नतीजा हो सकता है.

कुछ धारणाएं

यह वरीयता क्रम पांच आसान धारणाओं को सामने लाता है, दो सैद्धांतिक और तीन (इम्पिरिकल) अनुभव से प्रेरित. सबसे पहला, कि सभी प्राथमिकताएं पूर्ण हैं, यानी एक मुल्क विभिन्न प्राथमिकताओं को [>] से अधिक, [<] से कम, [=] के बराबर रैंक कर सकता है. इन विकल्पों में से अगर कोई मुल्क ख से ज़्यादा क को पसंद करता है, ग को ख से ज़्यादा पसंद करता है या ग से ज़्यादा क को पसंद करता है तो यह वरीयता के क्रम में अधिक और बराबर [≥] कम और बराबर [≤] जैसे संयोजन में शामिल हो सकते हैं. दूसरा, सभी वरीयताएं सकर्मक हैं, इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई मुल्क क को ख से अधिक और ख को ग से अधिक पसंद करता है, तो वह मुल्क क को ग से ज़्यादा तवज्ज़ो देता है.

अनुभव से प्रेरित पहली धारणा तो यह है कि: दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक, चीन को अमेरिका और भारत के उपलब्ध विकल्पों से बाहर रखा गया है. इसके लिए तर्क दिया जा सकता है कि, क्योंकि चीन मौजूदा समय में अमेरिका का प्राथमिक भू-रणनीतिक प्रतियोगी है और चीन ने युद्ध भी लड़ा है और तो और भारत के साथ कई सैन्य विवादों में भी वह उलझा हुआ है. दूसरा, भारत की संपूर्ण विदेशी और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति विभिन्न मुल्कों के साथ भागीदारी पर निर्भर है तो यह क्वार्डिलैट्रल सिक्युरिटी डायलॉग (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका) के साथ करीबी साझेदारी के लिए भी रास्ता खोलती है. तीसरा,अमेरिका और भारत हर हाल में हथियारों के अपने पसंदीदा विक्रेताओं पर निर्भर हैं और यह धारणा अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के मुताबिक़ है और यह पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है. यह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अनुरूप भी है जिसके तहत ख़ुद के सैन्य-औद्योगिक परिसर को विकसित किया जाना है और इसके लिए उसने विदेशी विक्रेताओं के ऑर्डर भी रद्द कर दिए हैं, स्वदेशी हथियारों के उत्पादन और उन्हें सैन्य सेवा में शामिल करने को बढ़ावा देने के साथ घरेलू निजी क्षेत्र के लिए रक्षा निर्माण क्षेत्र को खोलना शामिल है.

अमेरिका और भारत हर हाल में हथियारों के अपने पसंदीदा विक्रेताओं पर निर्भर हैं और यह धारणा अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के मुताबिक़ है और यह पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है.

ऊपर दी गई मान्यताओं और दो संभावित भारतीय रणनीतियों को देखते हुए, अमेरिका और भारत की प्राथमिकताओं के चार विकल्प नीचे दिए जा रहे हैं.

1⦁ अगर भारत अमेरिका के साथ साझेदारी करता है तो भारतीय हथियारों के विक्रेताओं के लिए अमेरिकी प्रथामिकताएं :
यू.एस. ≥ नेटो राज्य = भारत ≥ रूस


2⦁ भारतीय हथियारों के विक्रेताओं के लिए अमेरिकी प्राथमिकताएं, अगर भारत सामरिक स्वायत्तता को बढ़ावा देता है:
अमेरिका ≥ नेटो राज्य = भारत ≥ रूस


3⦁ अगर भारत अमेरिका के साथ साझेदारी करता है तो भारतीय हथियारों के विक्रेताओं के लिए भारतीय प्राथमिकताएं:
भारत ≥ अमेरिका = नेटो राज्य ≥ रूस


4⦁ अगर भारत सामरिक स्वायत्तता का अनुसरण करता है तो भारतीय हथियारों के विक्रेताओं के लिए भारतीय प्राथमिकताएं:
भारत ≥ यू.एस. = नेटो राज्य = रूस

भारत की रणनीति की परवाह किए बिना अमेरिका, भारत और नेटो के सदस्य देशों के प्रति आश्वस्त रह सकता है. हालांकि, भारत अमेरिका और नेटो के सदस्यों के प्रति उदासीन है.

ऊपर दिए गए विकल्पों से पता चलता है कि भारत चाहे जो भी रणनीति अपनाए, अमेरिका के लिए भारत पसंदीदा विक्रेता बना रहेगा, जबकि भारत अपनी रणनीति की परवाह किए बिना अपना पसंदीदा विक्रेता बना रहेगा. इसलिए भारत की रणनीति की परवाह किए बिना अमेरिका, भारत और नेटो के सदस्य देशों के प्रति आश्वस्त रह सकता है. हालांकि, भारत अमेरिका और नेटो के सदस्यों के प्रति उदासीन है. अगर वह अमेरिका और क्वाड के साथ साझेदारी का अनुसरण करता है, जबकि भारत अमेरिका, नेटो के सदस्यों और रूस के प्रति उदासीन रहता है अगर वह रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करता है. आख़िरकार, भारतीय रणनीति की परवाह किए बिना अमेरिका का सबसे कम पसंदीदा विक्रेता रूस है, जबकि अगर भारत, अमेरिका के साथ साझेदारी बढ़ाता है तो भारत का सबसे कम पसंदीदा विक्रेता रूस हो सकता है और यह अपने सबसे कम पसंदीदा विक्रेता अमेरिका, नेटो के सदस्य और रूस के संबंध में उदासीन है अगर वह स्वायत्तता चाहता है.

निष्कर्ष 

निष्कर्ष के तौर पर, ऊपर दिए गए वरीयता क्रम से पता चलता है कि भारत कभी भी अमेरिका के लिए सबसे कम पसंदीदा विक्रेता नहीं रहा है, जबकि रूस हमेशा सबसे कम पसंद किया जाता रहा है. दूसरी ओर, भारत हमेशा ख़ुद के लिए सबसे पसंदीदा विक्रेता रहा है. इस तरह से भारतीय रणनीति के दोनों परिदृश्यों में, एक विक्रेता के तौर पर भारत, रूस के मुक़ाबले  अमेरिका और भारत के लिए ज़्यादा पसंदीदा है.

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