Published on Oct 17, 2020 Updated 0 Hours ago

इस नयी कूटनीति के माध्यम से भारत क्वाड, लोकतांत्रिक देशों के समूह एवं अन्य तरीके से चीन पर अंकुश लगाने का कार्य कर रहा, उसको भी कहीं न कहीं मज़बूती प्रदान होगी.

जिबूती आचार संहिता के माध्यम से भारत की हिंद महासागर क्षेत्र में कूटनीतिक पहल

हिंद महासागर क्षेत्र में भारत ने अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए हाल ही में भारत ने 26 अगस्त 2020 को आयोजित की गई जिबूती आचार संहिता/जेद्दा संशोधन (DCOC/JA) की उच्च स्तरीय बैठक के बाद प्रेक्षक के रूप में शामिल होने का निर्णय किया. DCOC/JA समुद्री मामलों पर एक समूह है, जिसमें लाल सागर, अदन की खाड़ी, अफ्रीका के पूर्वी तट और हिंद महासागर क्षेत्र के लगभग 20 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं. वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका, सूडान और संयुक्त अरब अमीरात आदि भी इसके सदस्य देशों में शामिल हैं. हाल ही में भारत जापान, नॉर्वे, ब्रिटेन और अमेरिका को भी DCOC/JA के पर्यवेक्षक देशों के रूप में शामिल किया गया है, जो की हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिए DCOC/JA सदस्य राज्यों के साथ मिलकर समन्वय स्थापित कर इस क्षेत्र के टिकाऊ विकास में योगदान देंगे.

DCOC/JA को जनवरी 2009 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के तहत स्थापित गया है. जिसका प्रमुख उद्देश्य प्रारभं में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र, अदन की खाड़ी और लाल सागर में जहाज़ो के खिलाफ समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती पर केंद्रित था. जिसमें बाद में 2017 में पर्यावरणीय मुद्दों एवं मानव तस्करी, बिना लाइसेंस के अवैध रूप से मछली पकड़ने जैसे कृत्यों को समाप्त करना शामिल है.

जेद्दा संशोधन क्या है?

जनवरी 2017 में जेद्दा, सऊदी अरब में जिबूती आचार संहिता के हस्ताक्षरकर्ता देशों की एक उच्च-स्तरीय बैठक में सभी हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्रों ने संशोधित आचार संहिता अपनाने पर सहमति जताई. इसी कारण वश संशोधित आचार संहिता को DCOC 2017 में जेद्दा संशोधन के रूप में भी जाना जाता है. इस संशोधित आचार संहिता के तहत, सहभागी राष्ट्र IMO और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर काम करने के लिए सहमत हुए, ताकि समुद्री क्षेत्र के सतत विकास को सक्षम बनाने एवं व्यापक रूप से समुद्री सुरक्षा आदि से जुड़े विषयों से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय क्षमता का निर्माण किया जा सके. और साथ ही इसके माध्यम से स्थायी आर्थिक विकास, रोज़गार, खाद्य सुरक्षा, समृद्धि और स्थिरता का समर्थन करने में “नीली अर्थव्यवस्था” की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया जा सके.

हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका समेत जिबूती का सामरिक महत्व

हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका व्यापारिक, आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से बहुत महत्व है. यही कारण है कि यह क्षेत्र विश्व कि प्रमुख शक्तियों का केंद्र बना हुआ है, जिसमे जिबूती की भूमिका सबसे अहम है. जिबूती क्षेत्रफल और जनसंख्या के लिहाज से तो एक छोटा देश है, लेकिन अफ्रीका के एक छोर पर इसकी स्थिति ऐसी है कि यहां से एक ओर लाल सागर और उसके आगे स्वेज नहर होते हुए भूमध्य सागर तक जबकि दूसरी ओर अदन की खाड़ी और अरब सागर होते हुए हिंद महासागर के अत्यंत अहम जल मार्गों तक आसानी से पहुंच रखा जा सकता हैं. अपनी इसी अहम स्थिति के कारण आज जिबूती में अमेरिका, फ्रांस, इटली, चीन समेत लगभग नौ देशों के सैनिक अड्डे है. संयुक्त राज्य अमेरिका पर 9/11 के हमलों के बाद, वाशिंगटन ने कैंप लेमनीयर नामक जिबूती में अपना सबसे बड़ा स्थायी आधार स्थापित किया, जिसमें कम से कम 4,000 सैन्यकर्मी रहते हैं.

जिबूती क्षेत्रफल और जनसंख्या के लिहाज से तो एक छोटा देश है, लेकिन अफ्रीका के एक छोर पर इसकी स्थिति ऐसी है कि यहां से एक ओर लाल सागर और उसके आगे स्वेज नहर होते हुए भूमध्य सागर तक जबकि दूसरी ओर अदन की खाड़ी और अरब सागर होते हुए हिंद महासागर के अत्यंत अहम जल मार्गों तक आसानी से पहुंच रखा जा सकता हैं. 

चीन ने भी 11 जुलाई, 2017 को पहले समुद्रपारीय स्थायी सैनिक अड्डे यहां स्थापित किया. जिबूती उसकी इस नीति के केंद्र में है, क्योंकि यह हिंद महासागर के उत्तरी-पश्चिमी छोर पर स्थित है. यहां उसका नौसैनिक अड्डा चीन को पश्चिमी एशिया से जोड़ने वाले समुद्री मार्गों में ‘मोतियों के हार’ के नाम से मशहूर चीनी रणनीति के अंतर्गत मुख्य बिंदु साबित हो सकता है, क्योंकि यह अड्डा चीन के लिए उसकी महत्वाकांक्षी ‘सामुद्रिक रेशम मार्ग’ की योजना साकार करने में सहायक सिद्ध होगा.

हॉर्न ऑफ़ अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंध

हॉर्न ऑफ अफ्रीका यानी इथियोपिया, सोमालिया, इरिट्रिया, सूडान और जिबूती के साथ भारत के संबंध प्राचीनकाल से ही मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण रहें है. दोनों क्षेत्रों ने ही उपनिवेशवाद की विरासत के साथ-साथ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को साझा किया, भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी उपनिवेशवाद-विरोधी अपनी लड़ाई को जारी रखा है. उपनिवेश काल के बाद भारत ने 1963 में विशेष राष्ट्रमंडल अफ्रीका सहायक कार्यक्रम (SCAAP) की स्थापना और भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC), दक्षिण-दक्षिण सहयोग और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचो के माध्यम से भारत एवं हॉर्न अफ़्रीकी देशों के साथ में अपने संबंधों को मज़बूती प्रदान की है.

भारत के लिए हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका का सामरिक महत्व इस बात से ही जाना जा सकता है कि भारतीय राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद ने अपनी पहली विदेश यात्रा दो अफ्रीकी देशों – जिबूती और इथियोपिया से की थी. राष्ट्रपति ने कहा कि “दीर्घकाल से भारत और जिबूती के बीच ऐतिहासिक संबंध और पारस्परिक संपर्क बने हुए हैं. अब हमें इस साझा इतिहास और पहचान की फिर से तलाश करने की कोशिश करनी चाहिए. केवल पुराने समय के लिए नहीं, बल्कि एक समकालीन साझेदारी का निर्माण करने के लिए, हमारी इस साझा विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए अत्यधिक प्रयास करना आवश्यक है. समुद्री संसाधन की संभावनाओं और हिंद महासागर से जुड़ाव में एक स्थायी भविष्य का निर्माण करने की असीम क्षमताएं हैं”. राष्ट्रपति ने कहा कि “जिबूती एक रणनीतिक देश है, जो अदन की खाड़ी के पास स्थित है. भारत के लिए यह हिंद महासागर का एक महत्वपूर्ण भागीदार देश है. 2015 के, यमन संकट के दौरान, ऑपरेशन राहत के हिस्से के रूप में, भारतीय नागरिकों और अन्य देशों के लोगों को वहां से निकालने के समय, जिबूती ने भारत के प्रयासों का समर्थन किया था, और एक हवाई पट्टी का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया था.

भारत ने प्रोजेक्ट मौसम, मिशन सागर हिंद महासागर रिम समूह आदि के माध्यम से हिंद महासागर और आस-पास के क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है, लेकिन इस कदम के माध्यम से पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्र के अलावा पश्चिमी और पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक पदचिन्हों को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.

भारत का पर्यवेक्षक बनने के उपरांत सामरिक हित

भारत इसके माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को नए कूटनीतिक समीकरणों के साथ में बढ़ावा देगा.  वैसे तो भारत ने प्रोजेक्ट मौसम, मिशन सागर हिंद महासागर रिम समूह आदि के माध्यम से हिंद महासागर और आस-पास के क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत कर रहा है, लेकिन इस कदम के माध्यम से पूर्वी और पश्चिमी तटीय क्षेत्र के अलावा पश्चिमी और पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक पदचिन्हों को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसके साथ ही नीली अर्थव्यवस्था जेद्दा संशोधन के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है. इसके माध्यम से भारत आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों, और महासागर पारिस्थितिकी तंत्र महासागरीय संसाधनों का सतत उपयोग कर सकेगा साथ ही भारत ने जो हिंद महासागर रिम एसोसिएशन के माध्यम से नीली अर्थव्यवस्था के विकास पर ध्यान केंद्रित किया था, DCOC/JA के माध्यम से उसको और गति देने का मार्ग भी प्रशस्त होगा.

आज के वर्तमान परिवेश में भारत-चीन के बीच मे जो सीमा विवाद से लेकर विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष की स्थिति बनी हुई है जैसे : दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावे, पूर्वी चीन सागर में उसका दावा और बेल्ट-एंड-रोड पहल की तरह महत्वाकांक्षी रणनीतिक के माध्यम से हिंद महासागर में तेजी से आगे बढ़ना भारत के लिए ख़तरा बना हुआ है. इस नयी कूटनीति के माध्यम से भारत क्वाड, लोकतांत्रिक देशों के समूह एवं अन्य तरीके से चीन पर अंकुश लगाने का कार्य कर रहा, उसको भी कहीं न कहीं मज़बूती प्रदान होगी.


लेखक दिल्ली विशवविद्यालय के अफ्रीकी अध्ययन विभाग में शोधार्थी है और सत्यवती कॉलेज में सहायक प्रोफ़ेसर है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.