Author : Samir Saran

Published on Jul 03, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत को ऐसी शक्ति के डिजिटल और आर्थिक उत्थान में योगदान नहीं देना चाहिए जो उसे क्षति पहुंचाती है

चीन के दु:स्साहसी अतिक्रमण के ख़िलाफ भारत का डिजिटल प्रतिकार
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29 जून को भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी और क़ानून व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट किया कि, ‘भारत की सुरक्षा, संप्रभुता, रक्षा और अखंडता को संरक्षित करने के लिए और भारत के नागरिकों की निजता और उनके डेटा की सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने चीन के 59 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है.’ जब सरकार के इस फ़ैसले पर आमतौर पर होने वाला राजनीतिक वाद-विवाद ठंडा पड़ जाता है. तो, उसके बाद भारत को इस बहुत प्रभावशाली क़दम को न सिर्फ़ अमल में लाना चाहिए, बल्कि इस फ़ैसले को मज़बूती भी देनी चाहिए. भारत, इसका इलाक़ा और इसकी जनता जो तेज़ी से डिजिटल हो रही है, उसे चीन के अतिक्रमण और प्रभाव से बचाने के लिए हर संभव क़दम उठाए जाने चाहिए.

भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में चीन के हार्डवेयर और प्लेटफॉर्म यानी कंपनियों की मौजूदगी, लंबी अवधि में भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत बड़ा तर्कशास्त्री होने की ज़रूरत नहीं है

चीन से आ रहे इस डिजिटल ख़तरे से निपटने के लिए लंबी अवधि की रणनीति बनानी होगी, जो तीन विचारों पर आधारित होनी चाहिए. पहली बात तो ये है कि भारत को ऐसे डिजिटिल हथियारों के काम-काज, विस्तार और सफलता में बिल्कुल योगदान नहीं देना चाहिए, जो उसके ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो सकें. चीन की तकनीक ऐसा ही डिजिटल ख़तरा है. दूसरी बात ये है कि भारत को ख़ुद को ऐसे व्यापारिक संबंध से बिल्कुल अलग कर लेना चाहिए, जो असमानता पर आधारित हो. जो कारोबारी रिश्ता भारत को एक ऐसे देश पर निर्भर बनाता हो, जो उसे नुक़सान पहुंचाना चाहता है. और तीसरी बात, भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने वाले दायरे से बाहर निकलने की ज़रूरत है. जो उसके राजनीतिक दबदबे को कम करता है और उसकी डिजिटल महत्वाकांक्षाओं को सीमित करता है.

भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में चीन के हार्डवेयर और प्लेटफॉर्म यानी कंपनियों की मौजूदगी, लंबी अवधि में भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत बड़ा तर्कशास्त्री होने की ज़रूरत नहीं है. अगर चीन के घोषित इरादों और साफ़तौर पर दिख रही हरकतों के आधार पर तार्किक रूप से आकलन किया जाए, तो ये बात बड़ी आसानी से समझी जा सकती है. चीन ने लोकतांत्रिक तौर तरीक़ों का दुरुपयोग करके अपना प्रोपेगैंडा चलाया है. और अपनी गतिविधियों का प्रचार किया है. ताकि वो अपने लिए अच्छी बातें कहने वाली ख़बरें और सुर्ख़ियां बटोर सके. चीन ने अपने चैटिंग ऐप वीचैट का इस्तेमाल, कनाडा की अंदरूनी राजनीति में दख़लंदाज़ी करने के लिए किया है. और ऐसे कंटेंट तक पहुंच बनाने का प्रयास किया है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है. इसी तरह चीन ने सोशल मीडिया के पश्चिमी मंचों का इस्तेमाल करके विदेश में अपने विरोधियों को निशाना बनाया है. अमेरिका में नस्लवादी तनाव को बढ़ावा दिया है. और ताइवान की राजनीतिक प्रक्रिया में भी दख़लंदाज़ी की है. हाल के दिनों में चीन ने सोशल मीडिया के ज़रिए कोरोना वायरस को लेकर ग़लत जानकारियां फैलाने का व्यापक अभियान चलाया है. चीन ने अपनी तकनीकी कंपनियों की मदद से दुनिया के कई बड़े संगठनों जैसे कि संयुक्त राष्ट्र पर अपना प्रभाव अच्छे से जमा लिया है. और अब वो इसकी मदद से वो सूचना के प्रसार के नियमों को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश कर रहा है. साथ ही साथ वो नई उभरती तकनीकों जैसे कि चेहरे से पहचानने वाले सिस्टम के नैतिक उपयोग को भी अपने हक़ में मोड़ने की कोशिश की है.

चीन के महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा के ये बुनियादी उसूल हैं. ये चीन को सत्ता की परिचर्चा को नियंत्रित करने, स्वदेशी तकनीक विकसित करने, बुनियादी ढांचे के विकास और इनके पैमाने अपने हक़ में तय करने में मदद करते हैं. साथ ही इन मूलभूत सिद्धांतों की मदद से वो अपनी अर्थव्यवस्था पर अन्य देशों की निर्भरता को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है, ताकि वो तकनीक की सुपरपावर के तौर पर उभर सके. चीन जिस विश्व व्यवस्था की कल्पना करता है, उसमें उसके लिए भारत की कोई अहमियत नहीं है. भारत को अपने हितों की रक्षा ख़ुद करनी होगी. चीन की तकनीकी शक्ति से संवाद के लिए, ये नई सोच पैदा करना ही भारत का अपनी सुरक्षा के लिए उठाया गया पहला क़दम होगा.

डोकलाम में तनातनी के दौरान, भारत के सुरक्षा तंत्र ने इस बात का पता लगाया था कि चीन के मालिकाना हक़ वाला यूसी ब्राउज़र, भारत में एंड्रॉयड फ़ोन पर कुछ ख़ासतरह की ख़बरों को फिल्टर कर रहा था. इसका मक़सद इस विवाद को लेकर भारतीयों की सोच और इस विवाद के निष्कर्ष को प्रभावित करना था

चीन, भारत के नागरिकों के बारे में जानकारी जुटाता रहेगा. ज़्यादा चिंता की बात तो ये है कि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के पास भारत के राजनीति और सामाजिक क्षेत्र में दख़लंदाज़ी की बेहद घातक क्षमता है. डोकलाम में तनातनी के दौरान, भारत के सुरक्षा तंत्र ने इस बात का पता लगाया था कि चीन के मालिकाना हक़ वाला यूसी ब्राउज़र, भारत में एंड्रॉयड फ़ोन पर कुछ ख़ासतरह की ख़बरों को फिल्टर कर रहा था. इसका मक़सद इस विवाद को लेकर भारतीयों की सोच और इस विवाद के निष्कर्ष को प्रभावित करना था. ये डिजिटल युग की युद्ध कला का बेहतरीन नमूना है. हाल ही में हमने देखा है कि चीन की आलोचना करने वाले कंटेंट को भारत द्वारा प्रतिबंधित किए गए ऐप्स में से एक पर से हटा दिया जा रहा था. इसके अलावा इस ऐप पर अन्य तस्वीरों और घटनाओं के प्रसार को भी नियंत्रित किया जा रहा था.

ये सिर्फ़ चीन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की ख़ासियत नहीं है. लेकिन, दूरगामी असर डालने वाले राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े क़ानून और एक आदमी के नेतृत्व वाली पार्टी की ग़ुलामी जो भारत के लिए नुक़सानदेह है, उनके चलते चीन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का भारत में बने रहना उचित नहीं होगा. भारत के लोकतंत्र को अपनी तमाम ख़ामियों के बावजूद, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मालिकाना हक़ वाली ऐसे डिजिटल मंचों से हर हाल में दूर ही रहना चाहिए.

क्या भारत के इस फ़ैसले से चीन के सोशल मीडिया ऐप्स को नुक़सान होगा? जहां तक आमदनी की बात है, तो भारत के इस क़दम से चीन की कंपनियों पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा. लेकिन, अगर अहमियत की बात करें, तो भारत का ये फ़ैसला चीन पर गहरा असर डालेगा. डिजिटल प्लेटफॉर्म उन्हें इस्तेमाल करने वालों की संख्या और नेटवर्क के भरोसे होते हैं. हर एक नया सब्सक्राइबर, कंपनी की क़ीमत और उसके द्वारा जमा किए जाने वाले आंकड़ों को बढ़ाता है. ये आंकड़े अन्य वाणिज्यिक अनुसंधानों और विकास के काम में लाया जाता है. इस डेटा का इस्तेमाल नए डिजिटल उत्पाद के विकास में भी होता है. चीन के डिजिटल मंचों पर भारतीय ग्राहकों की गतिविधियां और डेटा का इस्तेमाल चीन की वैसी आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए क़तई नहीं होना चाहिए, जो भारत को ही नुक़सान पहुंचाएं.

इसी तरह, भारत को अपने 5G नेटवर्क से चीन की संचार कंपनियों को प्रतिबंधित कर देना चाहिए. अब समय आ गया है कि भारत हुआवेई को दूर से ही नमस्कार कर ले. सिंगापुर, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देशों ने पहले ही चीन की बढ़ती तकनीकी महत्वाकांक्षाओं पर क़ाबू पाने के लिए ऐसे इरादे अमल में लाने के संकेत दिए हैं. ऐसे में भारत के फ़ैसले से चीन की कंपनियों के बहिष्कार की प्रक्रिया तेज़ होनी चाहिए. आने वाले समय में राजनीतिक विश्वास ही ये तय करेगा कि तकनीक का प्रवाह किस दिशा में होगा. भारत को अपने सहयोगी देशों और साझेदारों के साथ नए प्रस्तावों जैसे कि ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर काम करना चाहिए. ताकि भारत, चीन का मुक़ाबला भी कर सके और उसे क़ाबू में भी रख सके.

भारत को चोट पहुंचाने के लिए चीन, भारत के साथ अपने कारोबारी संबंधों का सहारा लेगा. भारत की चीन के इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर किस कदर निर्भरता है, ये बात सबको पता है. और चीन के लिए इन्हें हथियार बनाना बहुत आसान होगा

ज़ाहिर है कि भारत के ऐसे क़दम पर चीन पलटवार भी करेगा. भारत को चोट पहुंचाने के लिए चीन, भारत के साथ अपने कारोबारी संबंधों का सहारा लेगा. भारत की चीन के इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और अन्य औद्योगिक उत्पादों पर किस कदर निर्भरता है, ये बात सबको पता है. और चीन के लिए इन्हें हथियार बनाना बहुत आसान होगा. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ के अलावा चीन, साइबर घुसपैठ का भी प्रयास करेगा. अगर, चीन ऐसे क़दमों के लिए भारत को भारी क़ीमत चुकाने पर मजबूर करता है, तो इससे चीन के ख़िलाफ़ भारत के इरादे और मज़बूत होने चाहिए.

द्विपक्षीय व्यापार तभी अच्छा होता है, जब ये संतुलित हो. चीन के साथ तो ये दुधारी तलवार है, जिसकी दोनों धारों पर भारत है. ये ज़रूरी है कि हम तीन ख़रब डॉलर की अर्थव्यवस्था के स्तर पर ही इस चुनौती से पार पा लें. वरना, भविष्य में हमारी सारी तरक़्क़ी एक ऐसे देश को मज़बूत करेगी, जो हमें कमज़ोर करना चाहती है.

भारत ने चीन के ऐप्स पर ऐसे समय में प्रतिबंध लगाया है, जब वुहान वायरस के चलते आर्थिक गतिविधियां पहले से ही ठप पड़ी हुई हैं. जब दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चीन पर अपनी निर्भरता को लेकर सवाल उठा रही हैं. आने वाले समय में विश्व की आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव आना तय है. दुनिया भर में जनता की राय इसके पक्ष में है. ऐसे में चीन से दूरी बनाने के फ़ैसले से जो तकलीफ़ होगी, वो थोड़े वक़्त के लिए होगी और जनता इसे ख़ुशी ख़ुशी मंज़ूर कर लेगी. अब जबकि भारत, महामारी के कारण ठप पड़ी अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से रफ़्तार देने में जुटा है, तो हमें ऐसी आपूर्ति श्रृंखलाओं का विकास करना चाहिए, जो चीन जैसे दोहरे चरित्र वाले देश से जुड़ी न हों.


यह लेख मूल रूप से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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