Author : Khalid Shah

Published on Nov 26, 2018 Updated 0 Hours ago

कारगिल से 26/11 तक और अब हाल ही में सेना के शिविरों पर हुए आतंकवादी हमलों में हम एक गतिशील बदलाव देख रहे हैं। पाकिस्तान को जब भी अनुकूल लगेगा वह कश्मीर को एक कारण और बहाने के तौर पर इस्तेमाल करेगा।

कश्मीर के बहाने

दशकों से पाकिस्तानी शासन में गहरी पैठ रखने वाले भारत के खिलाफ जिहादी समूहों को संरक्षण और बढ़ावा देते आ रहे हैं। भारत में कई सुरक्षा विशेषज्ञ इसे विषम युद्ध नीति (एसिमिट्रीकल वॉर स्ट्रेटजी) का नाम देते हैं, लेकिन इसके मूल में जिहाद है। पाकिस्तान में सक्रिय जिहादी समूहों में से प्रमुख रूप से लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और हरकत उल जिहाद इस्लामी (हूजी) वे जिहादी समूह हैं जो भारत में जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमा लांघ कर यहां सफलतापूर्वक आतंकवादी हमलों को अंजाम देते रहे हैं।

ये जिहादी समूह कश्मीर को बहाना बना रहे हैं पर इना असली एजेंडा कुछ और है। कश्मीर को बहाना बनाकर इस प्रकार के कारनामों को अंजाम देना, जिनमें कई असफल कार्रवाईयां भी हैं, इन आतंकी समूहों की विशिष्टता है और यही पाकिस्तान की अघोषित नीति भी है।

इस नीति का एक प्रमुख उदाहरण 1999 की गर्मियों में पाकिस्तानी सेना द्वारा कारगिल में की गई दुस्साहसी कार्रवाई भी है जिसमें उसे मुंह की खानी पड़ी पर उसकी धोखाधड़ी की नीति भी इसमें साफ हो गई।

कारगिल युद्ध जब चरम पर था तो पाकिस्तान की आधिकारिक स्थिति यही थी कि वहां जो भी हो रहा है वह कश्मीर के मुजाहिदीन कर रहे हैं। जिन पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों ने इस कार्रवई की योजना बनाई थी उनकी हिम्मत इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने तत्कालीन नागरिक प्रशासन को भी यही जानकारी दी थी।

कश्मीर को बहाना बनाकर इस प्रकार के कारनामों को अंजाम देना, जिनमें कई असफल कार्रवाईयां भी हैं, इन आतंकी समूहों की विशिष्टता है और यही पाकिस्तान की अघोषित नीति भी है।इस नीति का एक प्रमुख उदाहरण 1999 की गर्मियों में पाकिस्तानी सेना द्वारा कारगिल में की गई दुस्साहसी कार्रवाई भी है।

पाक मीडिया में अलग-अलग समय पर आई जानकारी के अनुसार पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को कारगिल में हमला करने की रणनीति की जानकारी नहीं दी गई थी। जनरल परवेज़ मुशर्रफ (जिन्होंने कारगिल युद्ध के चार महीने बाद अक्टूबर 1999 में सैन्य विद्रोह में तख्तापलट कर सत्ता संभाली थी) ने इस कार्रवाई की योजना बनाई थी पर उनकी टीम ने नवाज़ शरीफ को यही बताया कि इसके पीछे कश्मीरी आतंकवादी हैं। यही चर्चा मई 1999 तक चलती रही जब सैन्य टकराव चरम पर पहुंच गया था। पाकिस्तानी टिप्पणीकार नज़म सेठी के अनुसार पाक सेना के जनरलों ने शरीफ से कहा कि अगर भारत की ओर से सख्त प्रतिक्रिया यां अंतर्राष्ट्रीय नाराज़गी झेलने की संभावना बनी तो उनके पास इसमें हाथ न होने के पर्याप्त तर्क हैं। भारत सरकार के लिए कारगिल इस बात का निर्णायक सबूत था कि कैसे पाकिस्तान और उसके लिए काम करने वाले कश्मीर के बहाने कुतर्क कर भारत के खिलाफ आक्रमण को न्यायोचित ठहराने का काम कर रहे हैं। [1]

अगर हम भारत में हुए बड़े आतंकवादी हमलों का विश्लेषण करें तो उनमें से अधिकतर के जिम्मेदार यां तो लश्कर-ए-तैयबा(एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद(जेईएम) और हरकत उल जिहाद (हूजी) हैं यां उन्होंने इसकी जिम्मेदारी ली है। मुंबई में 26/11 के हमलों ने दुनिया के सामने वह साफ कर दिया जो भारत लंबे समय से कहा रहा था। इस हमले के बाद एलईटी आतंकवाद से लड़ रहे पश्चिमी देशों के राडार पर आ बया। मुंबई में विदेशियों को चुन-चुनकर जिस तरहं निशाना बनाया गया उससे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, अकादमिकों और विशेषज्ञों ने यह भांपना आरंभ कर दिया कि किस तरहं एलईटी, दुनिया के लिए संभावित खतरा है।

एलईटी, जेईएम और हूजी की खासियत यह है कि भौगोलिक तौर पर उनकी गतिविधियां जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित हैं। उनके कॉडर में बहुत थोड़े कश्मीरी भी हैं। अमेरिका में वेस्ट पॉईंट एकेडमी के आतंकवाद विरोधी केंद्र ने एलईटी के 900 सदस्यों की जीवन-गाथा का अध्ययन किया तो पाया गया कि उनमें से 89 प्रतिशत की भर्ती पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से की गई थी और मात्र दो प्रतिशत ही जम्मू-कश्मीर से थे। [2]

एलईटी, जेईएम और हूजी की खासियत यह है कि भौगोलिक तौर पर उनकी गतिविधियां जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित हैं।

अपने कई भाषणों में एलईटी के संरक्षक और मुख्य विचारक हाफिज़ सईद ने भारत के खिलाफ जिहाद के लिए भड़काने में कश्मीर का इस्तेमाल किया है। पर यह कुतर्क है और आंतकवादियों को स्वतंत्रता सेनानियों जैसे दिखाने की खोखली कवायद। अगर एलईटी कश्मीर के लिए लड़ रहा है तो कश्मीर से इमने कम लोग क्यों उसके साथ जुड़ रहे हैं? और भला कश्मीर की तथाकथित ‘मुक्ति’ में पंजाबी युवाओं और पुरुषों का क्या काम?

एलईटी, जेईएम जैसे समूहों की गतिविधियां केवल कश्मीर तक सीमित नहीं हैं, यही आतंकी समूह भारत के अन्य हिस्सों में भी आतंकवादी हमलों में लिप्त हैं। लश्कर साल 2000 में लाल किले में हुए हमले, दिल्ली के प्रमुख बाज़ारों में 2005 में हुए बम धमाकों, गुरदासपुर में 2015 में हुए हमलों और संभवत: मुबई में 2008 में हुए हमलों के पीछे भी था। मसूद अजहर की अगुआई में जैश ने भारतीय संसद पर 2001 में हुए हमले को अंजाम दिया। ये हमले इस बात का प्रमाण हैं कि एलईटी व जेईएम न केवल कश्मीर में सक्रिय हैं बल्कि राज्य के अंदर व बाहर भी बड़े आतंकवादी हमले करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन हमला करने वालों और उन्हें नियंत्रित करने वालों ने कुछ और ही बहस खड़ी करने की कोशिश की है जो तर्क संगत नहीं हैं।

मुंबई में आतंकवादी हमले में जीवित पकड़े गए अकेले आतंकवादी अजमल कसाब ने पूछताछ में बताया था कि वह ‘मिशन कश्मीर’ पर है। अन्य पंजाबी युवाओं की तरहं कसाब को भी एलईटी ने कश्मीर के नाम पर भर्ती किया था। इस हमले में शामिल अन्य आतंकवादियों को भी कश्मीर के नाम पर ही भर्ती किया गया था। कसाब की लंबी पूछताछ में ये तथ्य सामने आए लेकिन इन्हें नियंत्रित करने वालों ने दुनिया और भारत के लोगों के लिए कुछ और ही कहानी गढ़ने की कोशिश की। [3]

मुंबई हमले में आतंकवादियों और उन्हें नियंत्रित करने वालों के बीच हुई बातचीत से पता चलता है कि जानबूझकर इस हमले को घरेलु कारणों से जोड़ने का प्रयास किया गया। एक टीवी एंकर के साथ बातचीत में एक आतंकवादी ने खुद को हैदराबाद मुजाहिदीन से जुड़ा बताया था जो दक्षिण भारत का एक समूह है। “इतने मुस्लिमों को मौत के घाट उतारा गया। हमारी मस्जिदों को गिराया गया और हमें चैन से सोने नहीं दिया गया। हमारी माओं और बहनों की हत्या कर दी गई, तब किसी ने आत्मसमर्पण की बात क्यों नहीं की? कमांडो को आने दो, हम उनके बच्चों को अनाथ कर देंगे।” और जब उससे उसकी मांगों के बारे में पूछा गया तो जवाब था कि मुजाहिदीन को छोड़ा जाए और हां, भारत में भी मुस्लिमों को परेशान न किया जाए। उन्होंने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया और मुस्लिमों को परेशान किया। [4] इस बातचीत ने स्पष्ट कर दिया कि इन आतंकवादियों को इस तरहं के दावे करने के लिए पीछे से पट्टी पढ़ाई जा रही थी। [5]

मुंबई में आतंकवादी हमले में जीवित पकड़े गए अकेले आतंकवादी अजमल कसाब ने पूछताछ में बताया था कि वह ‘मिशन कश्मीर’ पर है।

अब इस बात के दस्तावेजी सबूत हैं कि एलईटी और जेईएम विश्वव्यापी इस्लाम की विचारधारा से जुड़े हैं और उनके अल-कायदा जैसे वैश्विक जेहादी संगठनों से तार जुड़े हैं। इन्हीं समूहों ने अफगानिस्तान में अमेरिका की तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ लड़ाई का विरोध करने के लिए अपने काडर वहां भेजे जब 9/11 के बाद अमेरिका ने दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ जंग की शुरूआत की। लेकिन ये समूह मानते हैं कि ‘कश्मीर’ पर कब्जा किया गया है और इसलिए जेहाद के लिए सबसे नज़दीकी मोर्चा यही है। न्यू अमेरिका फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार एलईटी नेताओं का मानना है कि कश्मीर को आजाद करवाने के बाद भारत के अन्य हिस्सों पर कब्ज़ा करने के लिए कश्मीर ही आधार बनेगा। न्यू अमेरिका फाउंडेशन के स्टीफन टैंकर के अनुसार:

हालांकि यह कहना गलत होगा कि समूह के नेता इसे केवल जमीन की लड़ाई मानते हैं। बल्कि उनका दावा (जिसका ऐतिहासिक तथ्यों से कोई लेनादेना नहीं) है कि कश्मीर में चल रहा संघर्ष हिंदू-मुस्लिम संघर्ष का नवीनतम अध्याय है और यह संघर्ष पैगम्बर मुहम्मद के समय से चल रहा है। उनका तर्क है कि एक बार कश्मीर उनके कब्जे में आ जाए तो बाकी भारत को जीतने के लिए यह उनका आधार केंद्र बन जाएगा जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी शासन को फिर कायम किया जा सकेगा।[6]

तो सवाल ये है कि जिहाद की इस योजना में कश्मीर की क्या भूमिका है?

पाकिस्तान के भीतर कश्मीर को लेकर जो विचार है उसे एक वाक्य में बयान किया जा सकता है: कश्मीर में पाकिस्तान की जान बसती है। इस विचार को आतंकवादी समूह प्रचार और नई भर्तियों के लिए इस्तेमाल करते हैं पर उन्हें हमेशा इसका लाभ नहीं मिलता है। 26/11 के दौरान भारतीय मुस्लिमों के शोषण और उससे जुड़े घरेलु कारणों पर जमकर प्रापेगैंडा किया गया। इस तरहं के कुप्रचार को व्यापक बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर इस्लामोफोबिया का इस्तेमाल भी किया जाता है। 26/11 के बाद बहुत थोड़े समय के लिए यह दिखाने का प्रयास हुआ कि कश्मीर में आतंकवाद को मुंबई हमलों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, लेकिन कुछ समय बाद फिर यह रुख पलट गया। हाल ही के दिनों में फिर से पठानकोट हमले को कश्मीर मसले से जोड़ने का दुस्साहस किया गया और ऐसा दिखाया गया कि पुराने आतंकवादी समूह बदला लेने के लिए फिर से उभर आए हैं।

26/11 के दौरान भारतीय मुस्लिमों के शोषण और उससे जुड़े घरेलु कारणों पर जमकर प्रापेगैंडा किया गया। इस तरहं के कुप्रचार को व्यापक बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर इस्लामोफोबिया का इस्तेमाल भी किया जाता है।

संजुवान और नगरोटा में हुए हमले तथा श्रीनगर में 2017 में सीमा सुरक्षा बल के कैंप पर हमले के बाद ‘अफज़ल गुरु स्क्वॉड,’ जो जेईएम का ही दूसरा रूप है, का गठन पुन: आ रहे उभार की ओर संकेत देता है। [7]

अगर 26/11 के बाद जेईएम का प्रभाव कम हुआ था तो अब वह अफजल गुरू को हुई फांसी को भुनाकर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास कर रहा है। अफजल गुरू को 2001 में भारत में संसद पर हुए हमले के लिए सजा हुई थी और तय समय से पहले ही उसे फांसी दे दी गई थी।

26/11 के हमले के बाद मीडिया का पूरा फोकस हाफिज़ सईद और एलईटी पर चला गया। यहां तक कि पाकिस्तान पर कोई चर्चा बिना सईद के बारे में बात किए पूरी नहीं होती थी। पर सईद को मुंबई हमले के मास्टरमाइंड के तौर पर सजा देने के लिए जो बहस चली उसके चलते मसूद अज़हर पर ध्यान पृष्ठभूमि में चला गया जिसका भारत को नुकसान हुआ।

मसूद और जैश-ए-मोहम्मद एक नए अवतार में सामने आकर सुरक्षा व सैन्य ठिकानों को ठिकाना बना रहे हैं। साल 2018 में ही पाकिस्तान के एक और संगठन अल बद्र ने कश्मीर में कम गहनता वाले ग्रेनेड हमले शुरू कर दिए हैं। यह समूह कश्मीर पर फोकस करने से पहले 1990 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा ले चुका है।

कारगिल से 26/11 तक और अब हाल ही में सेना के शिविरों पर हुए आतंकवादी हमलों में हम एक गतिशील बदलाव देख रहे हैं। पाकिस्तान को जब भी अनुकूल लगेगा वह कश्मीर को एक कारण और बहाने के तौर पर इस्तेमाल करेगा। जब बातचीत के लिए माहौल ठीक हेाता है, पाकिस्तान में भीतर तक पैठ रखने वाले खिलाड़ी बातचीत का विरोध नहीं करते हैं; 26/11 और आतंकवाद पर चर्चा में कश्मीर को महत्व नहीं दिया जाता है। [8]

लेकिन ऐसे समय में जब भारत-पाकिस्तानी संबंध पूरी तरहं से ठंडे हैं, कश्मीर फिर एक बार चर्चा में है और पाकिस्तान को उत्तेजित करने वाला मुद्दा बनकर उभर रहा है। इसलिए भले ही पाकिस्तान अपनी प्रतिक्रियाओं को बदलता रहे, भारत द्वारा पाकिस्तान को दुनिया भर में आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देश के रूप में चिन्हित करते हुए भी इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।


[1] Nasim Zehra, “The Making of the Kargil Disaster”, Dawn, 2 July 2018. (accessed on 17 October 2018)

[2] Don Rassler, C. Christine Fair, Anirban Ghosh, Arif Jamal and Nadia Shoeb, “The Fighters of Lashkar-e-Taiba: Recruitment, Training, Deployment and Death”, Combatting Terrorism Center at West Point (2013). (accessed on 20 October 2018)

[3] C. Unnikrishnan, “Kasab Thought He Was on Mission Kashmir”, Economic Times, 5 January 2009. (accessed on 17 October 2018)

[4] 26/11 Tape: Terrorist Talks to TV”, The Hindu, 25 June 2012. (accessed on 17 October 2018)

[5] 26/11 Tape: Zabiuddin Ansari Briefs Terrorists”, The Hindu, 25 June 2012. (accessed on 17 October 2018)

[6] Stephen Tankel, “Lashkar-e-Taiba: Past Operations and Future Prospects”, New America Foundation, 27 April 2011. (accessed on 20 October 2018)

[7] Azhar Qadri, “JeM’s Afzal Guru Squad Strikes Again”, The Tribune, 11 February 2018. (accessed on 18 October 2018)

[8] Manan Dwivedi, “Cross Border Terrorism: Irritants in Indo-Pakistan Relations”, Indian Journal of Asian Affairs 21, no. 1/2 (2008) pp 31-53. (accessed on 18 October 2018)

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.