-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
जब हम फेसबुक और ट्विटर के जाल में फंसे हुए हैं, उस वक़्त प्रदर्शनकारियों के लिए गूगल डॉक्स सोशल मीडिया की सहयोगपूर्ण जगह बनी हुई है. ऐसा किसने सोचा होगा
ट्रंप बनाम ट्विटर जितना दिखता है, उससे कहीं ज़्यादा है. ये एक संघर्ष का ज़रूरी तौर पर बढ़ना है जो समाज में एक प्लेटफॉर्म की भूमिका से आगे है. हम ये सवाल पूछ रहे हैं कि कैसे अमेरिका का प्लेटफॉर्म वॉर हमारी डिजिटल दुनिया में वैश्विक शासन पर असर डालेगा. ORF की राउंडटेबल सीरीज़ के तहत स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के साइबर पॉलिसी सेंटर की इंटरनेशनल पॉलिसी डायरेक्टर मेरीट्जे शाके और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रवक्ता बैजयंत पांडा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के डॉ. समीर सरन के साथ 60 मिनट की बातचीत में शामिल हुए. इस बातचीत के दौरान तकनीकी विशेषता, प्लेटफॉर्म वॉर, 5जी और लोगों के भरोसे पर चर्चा हुई.
डिजिटल वॉर सामने आ रहे हैं और ऑनलाइन बंटवारा गहरा हो रहा है. एक समय में महामारी और ज़बरदस्त ग़लत सूचनाओं का प्रकोप है. हुक़ूमत खोखला कर रहा है और चीज़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है. ट्विटर ने डॉनल्ड ट्रंप के ट्वीट पर आपत्ति जताई, फेसबुक ने ट्रंप के पोस्ट को छुआ तक नहीं. कौन सही था? जब आप इस ख़ास कहानी की ख़ास बातों से पीछे हटते हैं तो ये डिजिटल दुनिया में बनने वाली कम्युनिटी स्टैंडर्ड की नई इमारत के लिए क्या मायने रखती है? हम अभी कहां पर हैं, हम जिस तरफ़ जा रहे हैं उसकी सामान्य दिशा क्या है? हमें इस पल के बारे में कैसे सोचना चाहिए?
मेरीट्जे शाके ने कहा कि वो ट्रंप के ट्वीट को ट्विटर की तरफ़ से टैग करने के मामले में शक्ति के अधिकार का स्वागत करती हैं. उन्हें लगता है कि इससे नया स्टैंडर्ड कायम हो सकेगा जिसकी वजह से जीवन की क्वालिटी बेहतर होगी और ये लोकतांत्रिक मूल्यों के मुताबिक़ है. ट्विटर की सीमा से आगे बढ़ते हुए शाके चाहती हैं कि नागरिकों और उपभोक्ताओं के लिए और ज़्यादा विकल्प हो और सार्वजनिक हित का मज़बूत संरक्षण होना चाहिए.
फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसी टेक कंपनियां जानकारी के पूरी तरह स्वतंत्र प्रवाह में दख़ल के लिए पहले से क्या कर रही हैं या व्यावसायिक हितों के आधार पर पहले से उनकी रैंकिंग और प्राथमिकता है
“इस सवाल को इन मायनों में समझना चाहिए कि फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसी टेक कंपनियां जानकारी के पूरी तरह स्वतंत्र प्रवाह में दख़ल के लिए पहले से क्या कर रही हैं या व्यावसायिक हितों के आधार पर पहले से उनकी रैंकिंग और प्राथमिकता है. जैसा कि श्री पांडा ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसी चरमपंथी श्रेणियां भी हैं जिनकी इजाज़त नहीं है. ये पूरी तरह से कमर्शियल प्लेटफॉर्म की समझदारी है कि कुछ श्रेणियों को बढ़ाएं. उदाहरण के तौर पर, स्तनपान दिखाना स्वीकार्य नहीं माना जाता लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि बच्चों को स्तनपान कराना चाहिए. ये सिर्फ़ एक उदाहरण है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें यथास्थिति के बारे में सोचना चाहिए जिसके तहत ये सोशल मीडिया और टेक प्लेटफॉर्म बिल्कुल दख़ल नहीं देते जब तक कि लोकतांत्रिक या अलोकतांत्रिक सरकारें उन्हें ऐसा करने के लिए निर्देश नहीं देतीं या मजबूर नहीं करतीं. वास्तव में मुझे लगता है कि अगर आप सही तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भरोसा रखते हैं तो हमें ख़बरों की शर्तों और कॉरपोरेट पॉलिसी के पक्ष में दलील देनी चाहिए. हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क़ानून से नज़दीकी तौर पर जुड़ी हों. ऐसे में मुझे ये लगता है कि चुनौती ये है कि कंपनियां सिर्फ़ सरकार की तरफ़ से आने वाली नीतियों को ही मानेंगी जबकि वास्तव में कॉरपोरेट पॉलिसी का पहले से ही बड़ा असर है. साथ ही क़ानूनी तौर पर लेने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सीमित प्रभाव है.”
जय पांडा को लगता है कि ख़ुद को उदार दिखाने के लिए ट्विटर का कुछ ही कंटेंट को छांटना एक समस्या है. टेक प्लेटफॉर्म जैसे भी बात घुमाएं, पांडा सवाल करते हैं कि क्या इन स्टैंडर्ड को अलग-अलग सांस्कृतिक संदर्भों पर लागू किया जा सकता है.
ट्विटर ने ये कहना शुरू कर दिया है कि वो विश्व के नेताओं के लिए सामान्य लोगों से अलग दृष्टिकोण अपनाएगा. क्या ये लागू करने के लिए निष्पक्ष स्टैंडर्ड है?
“भारत या ब्राज़ील में अलग-अलग समुदायों के अलग-अलग स्टैंडर्ड हो सकते हैं या तटीय अमेरिका और मिडवेस्ट अमेरिका के बीच भी ये दूरी हो सकती है. इसलिए सवाल ये है कि कौन सा स्टैंडर्ड लागू करना चाहिए. इस तरह वास्तव में ये लड़ाई ताक़त और वर्चस्व को लेकर है. ध्रुवीकरण की वजह से ये होना तय था. ट्विटर जो कर रहा है, उसको लेकर दो समस्याओं की तरफ़ मैं ध्यान दिलाना चाहूंगा. उन्होंने दूसरे लोगों के लिए एक समान स्टैंडर्ड लागू नहीं किया है. उदाहरण के तौर पर, उन्होंने आतंकी संगठनों के सरगनाओं पर रोक नहीं लगाई है. उन्होंने कुछ ख़ास तानाशाही हस्तियों पर रोक नहीं लगाई है. इसकी वजह से ये सवाल खड़ा होता है कि क्या ये स्टैंडर्ड निष्पक्ष हैं, क्या ये एक समान हैं और क्या इन्हें सब पर लागू किया जा सकता है. ट्विटर ने ये कहना शुरू कर दिया है कि वो विश्व के नेताओं के लिए सामान्य लोगों से अलग दृष्टिकोण अपनाएगा. क्या ये लागू करने के लिए निष्पक्ष स्टैंडर्ड है? मैं निश्चित हूं कि इससे कई लोगों को दिक़्क़त होगी. जब कोई संस्था बड़ी हो जाती है तो नियम बदल जाते हैं. छोटी कंपनियों के ऑनलाइन प्रोत्साहन के लिए धारा 230 बनाई गई थी. जैसा कि आपने अतीत में देखा है, जब आप वाकई बड़े बन जाते हैं तो अलग-अलग देशों में क़ानून लागू हो जाते हैं ताकि उन कंपनियों के पास ज़्यादा ताक़त न हो. चाहे वो बड़ी कंपनियों को अलग-अलग हिस्सों में बांटना हो या उदाहरण के तौर पर नेट न्यूट्रैलिटी को ले लीजिए. इसके पीछे विचार ये था कि प्राथमिकता पाने के लिए कंपनियां अपनी मर्ज़ी ना चलाने लगें. इसलिए हमें सवालों का जवाब तलाशना होगा.”
ये कोई पहली बार नहीं है जब डिजिटल प्लेटफॉर्म सत्ता से टकराया हो, ये आखिरी भी नहीं है. जैसा कि हम देख रहे हैं बिना किसी नियंत्रण के इंटरनेट ख़राब होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी हो सकता है.
ये कोई पहली बार नहीं है जब डिजिटल प्लेटफॉर्म सत्ता से टकराया हो, ये आखिरी भी नहीं है. जैसा कि हम देख रहे हैं बिना किसी नियंत्रण के इंटरनेट ख़राब होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी हो सकता है. व्यापक तौर पर चर्चा दो बिल्कुल अलग मुद्दों की तरफ़ बढ़ रही है: कंटेंट पर नियंत्रण के साथ ज़्यादा मज़बूत कैलकुलेशन जो इन बड़ी कंपनियों के यूज़र इंटरफेस को ताक़त देता है. कम-से-कम एक डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनी साइट पर डाली गई कंटेंट को लेकर मज़बूत जवाब की तरफ़ बढ़ रहा है. बाक़ी जगह दुष्प्रचार तहस-नहस कर रहा है. इस बीच यूरोप डिजिटल युग में एंटीट्रस्ट क़ानून के बारे में सोच रहा है. कई चीज़ें हो रही हैं और एक व्यक्तिगत यूज़र के तौर पर हम इन चीज़ों के बीच में हैं. हालांकि, एक अच्छी चीज़ ये है कि जब हम फेसबुक और ट्विटर के जाल में फंसे हुए हैं, उस वक़्त प्रदर्शनकारियों के लिए गूगल डॉक्स सोशल मीडिया की सहयोगपूर्ण जगह बनी हुई है. ऐसा किसने सोचा होगा?
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Nikhila Natarajan is Senior Programme Manager for Media and Digital Content with ORF America. Her work focuses on the future of jobs current research in ...
Read More +