Author : Niranjan Sahoo

Published on Sep 02, 2020 Updated 0 Hours ago

शैक्षिक क्षेत्र के लिए लगातार अधिक बजट राशि का आबंटन मुख्यत: मूलभूत क्षेत्रों की आवश्यकता पूरी करने के लिए किया गया है. इसमें ज़्यादा ज़ोर स्कूलों का बुनियादी ढांचा मज़बूत करने और शिक्षक प्रशिक्षण तथा विद्यार्थियों की अध्ययन प्रणाली में सुधार पर दिया गया है.

दिल्ली की शैक्षिक क्रांति की ईमानदार पड़ताल

दिल्ली के सरकारी स्कूल फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में छाए हुए हैं. सीबीएसई द्वारा 13 जुलाई को जारी परीक्षा परिणाम के अनुसार दिल्ली में सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों में कक्षा 12 के परीक्षा परिणाम में 98 प्रतिशत विद्यार्थी पास हुए हैं अर्थात यह अब तक सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड है. ऐसा लगातार पांचवें साल हुआ है कि दिल्ली में निजी विद्यालयों के मुकाबले सरकारी स्कूलों में उत्तीर्ण विद्यार्थियों का प्रतिशत बेहतर रहा है. पास हुए छात्र—छात्राओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले इस बार छह प्रतिशत अधिक है. विद्यार्थियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बधाई देते हुए आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के शैक्षिक नमूने ने इतिहास रच दिया. उन्हीं के शब्दों में,”दिल्ली में निजी स्कूलों ने 92.2 प्रतिशत परिणाम हासिल किया है और सरकारी विद्यालयों ने 97.92 प्रतिशत हासिल किया जो समूचे देश के सरकारी स्कूलों में सबसे अ​धिक है. दिल्ली सरकार के कुल 916 विद्यालयों में  परीक्षा आयोजित की गई थी जिनमें से 396 स्कूलों ने 100 प्रतिशत परिणाम हासिल किया है.” आप की 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से लगातार जबरदस्त जीत में सरकारी विद्यालय प्रणाली में सिरे से सुधार में उसकी ज़बरदस्त कामयाबी का भी बड़ा हाथ है.

सरकारी विद्यालय प्रणाली का कायापलट स्पष्ट दिखाई देने से कोई इंकार नहीं कर सकता जबकि कभी राष्ट्रीय राजधानी में यह क्षेत्र एकदम उपेक्षित रहा था. सच तो यह है कि आप की 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर से लगातार जबरदस्त जीत में सरकारी विद्यालय प्रणाली में सिरे से सुधार में उसकी ज़बरदस्त कामयाबी का भी बड़ा हाथ है. हमने जैसा पहले विश्लेषण किया था कि आप नीत सरकार ने साल 2015 से साल 2020 के बीच ‘शिक्षा सबसे पहले या एजूकेशन फ़र्स्ट’ जैसाआकर्षक नारा देकर दिल्ली सरकार द्वारा संचालित स्कूलों पर ध्यान देकर सिरे से बंद शिक्षा प्रणाली में नई जान फूंकी. आप सरकार ने अरविंद केजरीवाल और साल 2015 से शिक्षा मंत्रालय संभाले उनके नायब/उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में शिक्षा के लिए अधिकतम राशि का आवंटन किया, शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की नई तकनीक और विद्यार्थियों के वास्ते नए पाठ्यक्रम लागू किए तथा स्कूलों का दम तोड़ता बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए जी खोल कर संसाधन मुहैया कराए. राजधानी के कभी सिरे से पिछड़े सरकारी विद्यालयों का स्पष्ट कायाकल्प करने के लिए आप द्वारा किए गए प्रमुख सुधारात्मक उपायों का संक्षिप्त लेखाजोखा इस प्रकार है:—

सरकारी विद्यालय प्रणाली का कायापलट स्पष्ट दिखाई देने से कोई इंकार नहीं कर सकता जबकि कभी राष्ट्रीय राजधानी में यह क्षेत्र एकदम उपेक्षित रहा था.

पैसे की हमेशा किल्लत का निदान

साल 2015 के चुनाव में प्रचंड जीत दर्ज करने के बाद आप सरकार ने अपने वायदे पूरे करने में सबसे अधिक महत्व शिक्षा प्रणाली और सरकारी स्कूलों का कायापलट करने को दिया. आप सरकार ने राज्य के बजट में से अच्छी खासी राशि विद्यालयी शिक्षा प्रणाली बदलने के लिए आवंटित की. उदाहरण के लिए साल 2015—16 में सरकार ने 6208 करोड़ रूपए की मोटी रकम विद्यालय एवं उच्च शिक्षा क्षेत्र को दी. साल 2016—17 के बजट में आप सरकार ने शिक्षा के लिए आवंटन बढ़ाकर 8462 करोड़ रूपए कर दिया. साल 2017—18 में आप सरकार ने शिक्षा पर 9888 करोड़ रूपए ख़र्च किए और 2018—19 में यह राशि बढ़ाकर 11,201 करोड़ रूपए कर दी. इसके मुकाबले साल 2020—21 में बजट आवंटन कहीं अधिक 15,815 करोड़ रूपए कर दिया. इससे पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले यह राशि 24 प्रतिशत अधिक है.

स्रोत: पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च एवं दिल्ली सरकार

शिक्षा क्षेत्र के लिए बजट में लगातार आवंटित अधिक राशि का सदुपयोग अधिकतर उसकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया गया. इसे मुख्यत: विद्यालयों के खस्ताहाल बुनियादी ढांचे को बनाने, शिक्ष​क प्रशिक्षण प्रणाली और विद्यार्थियों के अध्ययन कार्यक्रमों में नई जान फूंकने पर ख़र्च किया गया. ये ध्यान दिया गया है कि आप सरकार ने जब 2015 में सत्ता संभाली तब दिल्ली में अधिकतर सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खस्ता थी. इस वजह से विशेषकर सामाजिक तथा आर्थिक रूप में पिछड़े मां-बाप सहित अधिकतर अभिभावकों को अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने भेजना पड़ रहा था. इसका उन पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था. आप सरकार ने नब्ज़ पकड़ ली और जल्द से जल्द शिक्षा संबंधी संरचना का कायाकल्प करने पर ध्यान लगा दिया. रोड्स स्कॉलर आतिशी मरलेना ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहकार बन कर दिल्ली में स्कूली शिक्षा प्रणाली के कायापलट में निर्णायक भूमिका निभाई. आतिशी अब विधान सभा सदस्य हैं.

ये ध्यान दिया गया है कि आप सरकार ने जब 2015 में सत्ता संभाली तब दिल्ली में अधिकतर सरकारी स्कूलों की हालत बेहद खस्ता थी. इस वजह से विशेषकर सामाजिक तथा आर्थिक रूप में पिछड़े मां-बाप सहित अधिकतर अभिभावकों को अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने भेजना पड़ रहा था.

विद्यार्थियों के मन पर पढ़ाई का बोझ घटाने के लिए आप सरकार ने हैपीनैस अर्थात खुशहाली पाठ्यक्रम शुरू किया. इसके लिए कक्षा में अध्ययन के अनेक नए तौर-तरीके अपनाए गए. कायाकल्प करने के लिए आप सरकार ने फटाफट अनेक महत्वपूर्ण निर्णय करके उन पर अमल किया. उदाहरण के लिए भरपूर वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के साथ ही दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने आधुनिक सुविधायुक्त कम से कम 21 नई स्कूली इमारतों का निर्माण किया. इसके साथ-साथ कक्षाओं के लिए 8000 नए सुसज्जित कमरों का निर्माण भी किया गया. इसके अलावा सरकारी स्कूलों को प्रयोगशाला यानी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित लैब, स्मार्ट कक्षाएं तथा ई-मॉड्यूल बनाने के लिए भी उपयुक्त धनराशि दी गई ताकि अध्ययन आकर्षक बन सके.

उल्लेखनीय है कि विद्यार्थियों के मन पर पढ़ाई का बोझ घटाने के लिए आप सरकार ने हैपीनैस अर्थात खुशहाली पाठ्यक्रम शुरू किया. इसके लिए कक्षा में अध्ययन के अनेक नए तौर-तरीके अपनाए गए. महत्वपूर्ण यह है कि आप सरकार ने विद्यालयों में तीन स्तरीय पुस्तकालय ढांचा बनाने का अत्यंत उपयोगी निर्णय किया. इसके साथ ही सरकारी विद्यालयों में पीने के पानी तथा लड़की—लड़कों के अलग-अलग पेशाब घर, बिजली के कनेक्शन तथा कम से कम 90 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर की सुविधा भी प्रदान की गई.

इसके अलावा आप सरकार ने शिक्षकों के प्रशिक्षण में सुधार की महत्वपूर्ण पहल भी की. दिल्ली सरकार ने साल 2017 में राजधानी के सभी सरकारी स्कूलों में अनूठा शिक्षक प्रशिक्षण शुरू किया. प्रादेशिक शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने दिल्ली सरकार संचालित विद्यालयों में पढ़ाने वाले 36000 से अधिक शिक्षकों के लिए सघन क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाया. इनमें से 26000 शिक्षक ट्रेंड ग्रैजुएट एवं 10000 शिक्षक पोस्ट ग्रैजुएट थे.

ट्रेंड ग्रैजुएट शिक्षकों को कक्षाओं में पढ़ाई आदि के मूल्यांकन के लिए करीब पांच से छह विद्यालयों की ज़िम्मेदारी देकर शिक्षकों को वांछित अध्ययन सहायता हाथों-हाथ उपलब्ध कराई गई. आप सरकार द्वारा दिल्ली सरकार के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और एक महत्वपूर्ण पहल शिक्षक पशिक्षण कार्यक्रम शुरू करके की. इस कार्यक्रम का उद्देश्य शिक्षकों को उनके विषय से संबंधित ताजा जानकारी से अद्यतन कराना है. साल 2018 में 200 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान अर्थात एनआईई में दुनिया के मंजे हुए शिक्षाविदों से प्रशिक्षित कराया गया. इन 200 शिक्षकों द्वारा अपना प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद इन्हें ‘मेंटोर टीचर्स’ अर्थात मार्गदर्शक शिक्षकों का दर्जा दिया गया. प्रशिक्षित शिक्षकों को कक्षाओं में पढ़ाई के तौर-तरीकों का मूल्यांकन करके शिक्षकों द्वारा वांछित सहायता हाथोंहाथ उपलब्ध कराने के लिए पांच से छह विद्यालयों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.

इसके अतिरिक्त आप सरकार ने विद्यार्थियों के अध्ययन के परिणाम सुधारने को भी उनके लिए छिटपुट मगर लाभदायक श्रृंखलाबद्ध उपाय किए. सर्वेक्षण में विभिन्न कक्षाओं तथा आयु वर्गों के विद्याार्थियों के अच्छी-खासी संख्या में पाठों की बुनियादी अवधारणा ही समझ पाने में असमर्थ पाए जाने पर सरकार ने साल 2016 में महत्वाकांक्षी परियोजना ‘चुनौती’ शुरू की. इसका उद्देश्य पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाले विद्यार्थियों को पढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करना तथा सबसे कमज़ोर विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान देकर शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना था. लक्ष्य यह भी था कि उच्च प्राथमिक कक्षाओं के सभी विद्यार्थी पढ़ने—लिखने लायक होकर गणित के प्रारंभिक सवाल हल करना भी सीख जाएं. समाचारों के अनुसार चुनौती की बदौलत कक्षा नौ के विद्यार्थियों के पास होने की संख्या खासी बढ़ी है. इसी प्रकार कक्षा 11 के विद्यार्थियों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत भी काफी बढ़ा है. साल 2017—18 में जहां 71 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए वहीं साल 2018—19 में उनकी संख्या बढ़कर 80 फीसदी हो गई. प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 में आम आदमी पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बाद से कक्षा 12 के परीक्षा परिणाम में भी लगातार सुधार हुआ है. कुल मिलाकर आप सरकार के सुनियोजित प्रयासों से स्कूली शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है और सरकारी स्कूलों में कक्षा 12 के ताजा परीक्षा परिणाम ने यह सिद्ध भी कर दिया है. 

इतिहास बनाने से अब भी कोसों दूर

बेशक आप सरकार ने सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों के प्रति आम धारणा बदलने के लिए अपने बस में मौजूद हरेक उपाय आजमाया है. लेकिन उसने ऐसा अधिकतर अतिरिक्त राशि के ख़र्च से और स्कूल बुनियादी ढांचा तथा कक्षा के भीतर का माहौल सुधारने जैसे अन्य आसान उपायों के बलबूते कर लिया है. अनेक लंबे समय से अटकी तथा ढांचागत चुनौतियां अब भी बाकी हैं. उदाहरण के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली राज्य के स्कूलों में नए दाखिलों की दर घट गई है. मार्च 2019 में प्रकाशित प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट ‘दिल्ली में सार्वजनिक —विद्यालय— शिक्षा की स्थिति’ के अनुसार साल 2013—14 से 2017—18 के बीच दिल्ली सरकार के स्कूलों में नए दाखिले की दर आठ प्रतिशत घट गई है. सरकारी स्कूलों में साल 2017—18 में पहली कक्षा में दाखिले की दर में 4.8 प्रतिशत कमी आई है. प्रजा फाउंडेशन के ही अन्य सर्वेक्षण से पता चला है कि साल 2014—15 में जिन 2,59,705 विद्यार्थियों ने दिल्ली में 10वीं कक्षा में दाखिला लिया था उनमें से साल 2017—18 में 56 प्रतिशत छात्र—छात्राएं 12वीं कक्षा में पहुंचे ही नहीं. इससे सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को पढ़ाई में लगाए रखने की दर अत्यंत कम प्रतीत होती है.

स्कूली शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण आयामों में भी कमियां जताने वाली अन्य रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के विद्यालयों का गुज़ारा वांछित संख्या के सिर्फ 57 प्रतिशत नियमित शिक्षकों से पढ़वा कर ही किया जा रहा है. बाकी शिक्षकों की ज़िम्मेदारी गेस्ट फेकल्टी उठा रहे हैं. दिल्ली सरकार के विद्यालयों में शैक्षिक एवं अशैक्षिक स्टाफ दोनों के ही स्वीकृत पदों एवं कुल नियुक्तियों में भारी अंतर है. आरटीआई अर्जियों के माध्यम से जनता को सरकार से मिली सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में फैले कुल 1029 सरकारी विद्यालयों में से मात्र 301 स्कूलों में ही विज्ञान विषय की पढ़ाई की व्यवस्था है. दिल्ली सरकार के स्कूलों में शैक्षिक एवं अशैक्षिक स्वीकृत पदों एवं उन पर हुई नियुक्तियों की संख्या में भारी अंतर है.

स्कूली शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण आयामों में भी कमियां जताने वाली अन्य रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के विद्यालयों का गुज़ारा वांछित संख्या के सिर्फ 57 प्रतिशत नियमित शिक्षकों से पढ़वा कर ही किया जा रहा है. बाकी शिक्षकों की ज़िम्मेदारी गेस्ट फेकल्टी उठा रहे हैं.

प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट में ही यह भी खुलासा हुआ कि राज्य सरकार के विद्यालयों में सतत एवं एकीकृत मूल्यांकन बताता है कि कक्षा छह, सात एवं आठ के विद्यार्थियों में से अधिकतम प्रतिशत उनका है जो सी ग्रेड एवं उससे निचली श्रेणी — क्रमश: 78फीसद, 80 फीसद एवं 78 फीसद— में आते हैं. यह अध्ययन के कमज़ोर परिणामों का परिणाम है जो कक्षा 11 में फेल/अनुत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों के अधिक प्रतिशत से भी झलकता है. हालिया कक्षा 12 के परिणाम के लिए भी लगभग यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है. उनका पास होने का प्रतिशत भले ही अत्यधिक एवं काबिले तारीफ है मगर अध्ययन संबंधी उनकी उपलब्धि एवं श्रेष्ठता के आंकलन के लिए विद्यार्थियों के ग्रेड तथा समाजार्थिक पृष्ठभूमि संबंधी जानकारी का इंतजार करके देखना होगा.

इन कमियों के बावजूद आप सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में अरसे से उपेक्षित सरकार संचालित विद्यालय प्रणाली के कायाकल्प के लिए किए जा रहे सतत प्रयास एवं प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है. इसका सबसे बड़ा सबूत राज्य के ताजा बजट में शिक्षा के लिए आबंटित राशि में बहुत अधिक बढ़ोतरी किया जाना है जिसमें सुधार की गति तेज करने के लिए अनेक नए उपादान शामिल हैं. इससे भी अधिक उल्लेखनीय यह है कि दिल्ली की शिक्षा प्रणाली को भारत के अन्य राज्य भी लगातार अपना रहे हैं. हालांकि, बड़ी चुनौतियों से पार पाना अभी बाकी है. सरकार ने विद्यालयों का बुनियादी ढांचा तो बड़े पैमाने पर सुधारा है मगर अभी  शिक्षकों की समुचित संख्या में स्थाई नियुक्ति करने में वह नाकाम रही है. उसने नए कार्यक्रम आरंभ किए मगर दाखिले की दर में गिरावट आ गई. उम्मीद है कि सीबीएसई के ताजा परिणाम एवं आप सरकार के केंद्र सरकार से नए कामकाजी रिश्ते सरकारी स्कूल शिक्षा में नई लकीर खींचने में मददगार साबित होंगे. संक्षेप में कहें तो स्कूली शिक्षा में ‘क्रांति’ लाने के आप के दावे को फिलहाल ‘प्रयास जारी रहने’ की श्रेणी में ही गिना जाएगा.

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