Author : Manoj Joshi

Published on Aug 21, 2019 Updated 0 Hours ago

प्रदर्शन के निशाने पर भले ही कैरी लिम की हांगकांग सरकार है, लेकिन इसकी जड़ में चीन की ‘एक देश, दो व्यवस्था’ को परिभाषित करने की कोशिश है.

हांगकांग प्रत्यर्पण विधेयक: प्रदर्शनकारी और चीन सरकार बीच का रास्ता निकालें

पिछले हफ्ते हांगकांग के प्रदर्शनकारियों ने अपना अब तक का सबसे आक्रामक विरोध शुरू किया. पुलिस थानों पर ईंटें फेंकी गईं और दंगा नियंत्रण करने वाली पुलिस पर पेट्रोल बम उछाले गए. चीन का राष्ट्रध्वज भी फाड़कर समुद्र में फेंक दिया गया. हांगकांग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन (एचकेएसएआर) की सीईओ कैरी लिम ने दो हफ्ते में पहली बार अपनी सरकार के अधिकारियों के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने हांगकांग को ‘बेहद खतरनाक स्थिति में ला खड़ा किया है’ और वह उनकी कोई भी मांग स्वीकार नहीं करेंगी. हांगकांग में करीब 10 हफ्तों से स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, लेकिन चीन की सख़्त चेतावनी के बावजूद अभी तक प्रदर्शनकारियों की तरफ से विरोध खत्म होने के संकेत नहीं मिले हैं.

8 अगस्त को पीपल्स डेली ने एक लेख में कहा कि हांगकांग के कई नागरिकों को लग रहा है कि हालिया घटनाओं में ‘कलर रिवॉल्यूशन’ के कई तत्व शामिल हैं. उसने यह भी लिखा कि अगर हालात हांगकांग सरकार के काबू में नहीं रहते तो केंद्रीय प्रशासन हाथ पर हाथ धरकर बैठा नहीं रहेगा. हांगकांग के हालिया आंदोलन की शुरुआत प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध से शुरू हुई थी, जिसमें कहा गया था कि हांगकांग के लोगों को मुकदमे के लिए चीन भेजा जा सकता है.

इस विधेयक का प्रस्ताव फरवरी 2019 में आया था. लेकिन 9 जून इसके विरोध में तेजी आई, जब बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे. उस रोज करीब 10 लाख लोगों ने सड़क पर उतरकर इसका विरोध किया. 16 जून को तो प्रदर्शनकारियों की संख्या 20 लाख तक पहुंच गई थी. इसके एक दिन बाद कैरी लिम ने कहा कि विधेयक को ‘टाल’ दिया गया है. इसका मतलब यह निकला कि इसे वापस नहीं लिया गया है. विरोधियों का कहना है कि विधेयक के ज़रिये हांगकांग पर चीन का कानून थोपने की कोशिश हो रही है. इसके बाद के कुछ हफ्तों में प्रदर्शनकारियों ने पांच संबंधित मुद्दों पर मांग रखी. उनकी पहली मांग है कि विधेयक को वापस लिया जाए और लिम इस्तीफ़ा दें. विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन को दंगा न कहा जाए. पुलिस के कामकाज की मुकम्मल पड़ताल हो और जिन प्रदर्शनकारियों को बिना आरोप के बंद किया गया है, उन्हें रिहा किया जाए. ध्यान देने की बात यह भी है कि प्रदर्शनकारी चीन सरकार का विरोध नहीं कर रहे हैं, उनका गुस्सा हांगकांग की स्थानीय सरकार को लेकर है.

ध्यान देने की बात यह भी है कि प्रदर्शनकारी चीन सरकार का विरोध नहीं कर रहे हैं, उनका गुस्सा हांगकांग की स्थानीय सरकार को लेकर है.

6 अगस्त को हांगकांग और मकाऊ अफेयर्स ऑफ़िस ऑफ द स्टेट काउंसिल (HKMAOSC) के प्रवक्ता यांग गुआंग ने युवा प्रदर्शनकारियों को यह कहकर चेताया कि विरोध अब एक जगह जमा होने, प्रदर्शन की हद को पार कर चुका है. उन्होंने कहा कि ‘प्रदर्शन के दौरान काफी हिंसक घटनाएं हो रही हैं.’ इसके साथ उनका विश्लेषण यह भी कहता है कि अभी तक इसमें सिर्फ कुछ ही हिंसक उग्रवादी हैं. गुआंग के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों में कई ऐसे नरमदिल नागरिक हैं, जिन्हें दबाव डालकर या बरगलाकर इसमें घसीटा गया है. उन्होंने कहा कि चीन की सरकार लिम के साथ मज़बूती के साथ खड़ी है और अगर हालात बेकाबू हुए तो चीन की सेना यानी पीएलए चुपचाप नहीं बैठेगा.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि अभी ‘हांगकांग की सरकार और पुलिस हिंसक अपराध को रोकने और कानून-व्यवस्था बहाल करने में पूरी तरह सक्षम है.’ 7 अगस्त को झांग चियाओमिंग यानी HKMAOSC के निदेशक और यांग के बॉस ने पास के शेनझेन में एक खास परिचर्चा में कहा कि फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत ‘हिंसा को रोकने, अराजकता खत्म करने और कानून-व्यवस्था की स्थिति बहाल करने की है’ ताकि हांगकांग रसातल में न जाए. झांग ने कहा कि हाल के हफ्तों में ऑर्डिनेंस अमेंडमेंट का मामला बदल गया है और अब ‘इसमें कलर रिवॉल्यूशन के तत्व दिख रहे हैं.’ इसलिए प्रदर्शनकारियों के साथ कोई समझौता मुमकिन नहीं है. HKSAR में सेंट्रल पीपल्स गवर्नमेंट के संपर्क ऑफ़िस के प्रमुख वांग झिमिन ने कहा कि सरकार झांग की बात से सहमत है और यह हांगकांग के भविष्य के लिए ‘जीवन-मरण का संघर्ष’ है.

चीन के तेवर लगातार तल्ख हो रहे हैं, लेकिन अभी तक उसने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अपनी सेना का इस्तेमाल नहीं किया है. उसका ध्यान विरोधियों के ‘उस छोटे उग्रवादी समूह’ से निपटने पर है, जिसके कारण स्थिति और बिगड़ी है और जो हांगकांग के ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को प्रदर्शन से जोड़ने की कोशिश में जुटी है. चीन आशा कर रहा है कि सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के कारण उग्र छात्रों और मध्यवर्गीय नागरिकों के बीच दरार पैदा होगी. उसका मानना है कि मध्यवर्गीय लोग हाल ही में विधेयक के विरोध के जुड़े हैं और वे मौजूदा स्थिति से खुश नहीं हैं.

हांगकांग और चीन

हांगकांग को लंबे समय दुनिया की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था में से एक होने पर गर्व रहा है. इसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सर्विस सेक्टर की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत है. इसका 57 प्रतिशत री-एक्सपोर्ट चीन को होता है और वहां ओवरसीज डायरेक्ट इनवेस्टमेंट यानी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ओडीआई) का भी यह सबसे बड़ा जरिया है. 2018 तक चीन में जितने ओडीआई की मंजूरी मिली थी, उसमें से 46.3 प्रतिशत हांगकांग के रास्ते आया था. चीन से बाहर जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हुआ है, उसका भी हांगकांग मुख्य जरिया रहा है. 2017 तक चीन से 981.3 अरब डॉलर का एफडीआई हांगकांग गया था, जो ऐसे कुल निवेश का 54.3 प्रतिशत था.

चीन की कंपनियों के लिए हांगकांग पूंजी जुटाने का ठिकाना भी है. 2018 के आखिर तक हांगकांग के स्टॉक एक्सचेंज पर चीन की 1,146 कंपनियां लिस्टेड यानी सूचीबद्ध थीं, जो दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा शेयर बाजार है. हांगकांग के स्टॉक एक्सचेंज का कुल मार्केट कैप 2.62 लाख करोड़ डॉलर है. 1993 के बाद चीन की कंपनियां हांगकांग के शेयर बाजार के ज़रिये 800 अरब डॉलर की रकम जुटा चुकी हैं. इसमें चीन से बड़े पैमाने पर निवेश भी हुआ है. यहां की कुल मार्केट वैल्यू में चीन से हुए निवेश की हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत है. हांगकांग दुनिया का महत्वपूर्ण बैंकिंग और फ़ाइनेंशियल सेंटर भी है. यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा मुद्रा बाजार है. युआन में किए जाने वाले भुगतान के लिए यह सबसे बड़ा क्लीयरिंग सेंटर भी है. चीन ने गुआंगडोंग-हांगकांग-मकाऊ ग्रेटर बे एरिया के लिए जो महत्वाकांक्षी योजना बनाई है, हांगकांग उसके केंद्र में है. चीन के भविष्य की आर्थिक योजनाओं में भी उसकी निर्णायक भूमिका होगी. शेनझेन के इनोवेशन और ग्वांगझू क्षेत्र की मैन्यूफैक्चरिंग क्षमता के साथ हांगकांग के ज़रिये चीन वित्तीय बाजार में भी अपना दखल बढ़ाना चाहता है.

प्रत्यर्पण विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से हांगकांग की अर्थव्यवस्था को पहले ही नुकसान पहुंच चुका है और हाल के महीनों में जो घटनाएं हुई हैं, उन्हें देखकर लग रहा है कि मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए यह लंबे समय तक अच्छा विकल्प नहीं रहेगा. अगर चीन इस विरोध को खत्म करने के लिए अपनी सेना का इस्तेमाल करता है तो मल्टीनेशनल कंपनियां हांगकांग से दूसरे देशों का रुख कर सकती हैं. ये कंपनियां खासतौर पर सिंगापुर जा सकती हैं. इतना ही नहीं, हांगकांग के अमीर नागरिक भी पलायन कर सकते हैं. कुल मिलाकर, इससे चीन की भविष्य की आर्थिक योजनाओं को बड़ा झटका लग सकता है.

अमेरिकी दखल?

चीन ने आरोप लगाया है कि अमेरिका और ताइवान प्रदर्शनकारियों को भड़का रहे हैं और उनकी मदद कर रहे हैं. अमेरिका ने इससे इनकार किया है और चीन ने इस आरोप को साबित करने के लिए सबूत भी पेश नहीं किए हैं. 23 जुलाई को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा था कि हांगकांग के प्रदर्शन के पीछे अमेरिकी अधिकारियों का हाथ है. उन्होंने कहा था, ‘हमने अमेरिका से कहा है कि वह इससे दूर रहे.’ 6 अगस्त को अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नेंसी पेलोसी ने हांगकांग सरकार के प्रत्यर्पण विधेयक को लेकर गहरी चिंता जताई थी. हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक नेताओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में उन्होंने कहा कि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव शहर में होने वाली घटनाओं पर नजर बनाए रखेगा. इस बयान का हांगकांग में चीन के विदेश मंत्रालय के ऑफ़िस ने विरोध किया था. उसने कहा कि पेलोसी हांगकांग में हिंसा को बढ़ावा और चीन के अंदरूनी मामलों में दखल दे रही हैं.

चीन समर्थक Wenweipao ने लोकतंत्र समर्थकों जोशुआ वोंग और नेथन लॉ की कथित तौर पर एक अमेरिकी राजनयिक जूली ई के साथ मुलाकात की फोटो अपलोड की थी. यह बैठक मंगलवार को जे डब्ल्यू मैरियट होटल में हुई थी. जूली हांगकांग में अमेरिकी कॉन्सुलेट की राजनीतिक इकाई की प्रमुख हैं. इस लेख में दावा किया गया था कि उनकी ‘ख़ुफ़िया मीटिंग’ हांगकांग के प्रदर्शनों के सिलसिले में हुई थी और इससे पता चलता है कि इसके पीछे अमेरिका का हाथ है. दिलचस्प बात यह है कि इस लेख में जिस मुलाकात को ख़ुफ़िया बताया गया है, वह होटल के सार्वजनिक क्षेत्र में हुई थी. इस मामले में बाद में चीन के विदेश मंत्रालय के कमिश्नर ऑफ़िस ने जूली की हांगकांग के कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग को लेकर अमेरिकी कॉन्सुलेट के सामने विरोध भी दर्ज कराया था.

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अगस्त की शुरुआत में हांगकांग के प्रदर्शन को ‘दंगा’ बताकर सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि इनसे चीन को खुद ही ‘डील’ करना चाहिए. इस बयान से लगता है कि शायद वह चीन के साथ अभी भी व्यापार युद्ध खत्म करने के लिए समझौते की उम्मीद कर रहे हैं.

उधर, अमेरिका में कुछ डेमोक्रेट और रिपब्लिकन सेनेटरों ने हांगकांग मानवाधिकार और लोकतंत्र कानून का प्रस्ताव रखा है. अगर यह पास हो जाता है तो स्वायत्त होने की वजह से हांगकांग को अमेरिकी कानून के तहत अभी जो खास रियायतें मिली हुई हैं, उनके इस्तेमाल के लिए हर साल मंजूरी लेनी पड़ेगी. इससे 1990 के दशक में अमेरिका से हांगकांग को मिले मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे पर भी सवालिया निशान लग सकता है. हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अगस्त की शुरुआत में हांगकांग के प्रदर्शन को ‘दंगा’ बताकर सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि इनसे चीन को खुद ही ‘डील’ करना चाहिए. इस बयान से लगता है कि शायद वह चीन के साथ अभी भी व्यापार युद्ध खत्म करने के लिए समझौते की उम्मीद कर रहे हैं.

निष्कर्ष

प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए अगर सेना या पीपल्स आर्म्ड पुलिस का इस्तेमाल होता है तो चीन और हांगकांग के लिए उसके गंभीर नतीजे होंगे. चीन का सबसे बड़ा डर यह है कि कहीं इस प्रदर्शन की आग उसके यहां न पहुंच जाए. अगर ऐसा हुआ तो यह उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा. शी जिनपिंग के कार्यकाल में अब तक राजनीतिक घटनाओं का जो ट्रेंड रहा है, उसे देखकर लगता है कि चीन प्रदर्शनकारियों के बेकाबू होने पर उन्हें कुचलने के लिए बल प्रयोग से नहीं हिचकेगा, भले ही उसके लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े. प्रदर्शन के निशाने पर भले ही कैरी लिम की हांगकांग सरकार है, लेकिन इसकी जड़ में चीन की ‘एक देश, दो व्यवस्था’ को परिभाषित करने की कोशिश है.

कानूनी नज़रिये से देखें तो प्रदर्शन के बेकाबू होने पर चीन को उसे कुचलने का अधिकार है. अगर ऐसा हुआ तो आज का हांगकांग खत्म हो जाएगा. मौजूदा प्रदर्शन और उसमें हर वर्ग के नागरिकों की भागीदारी को देखते हुए लगता है कि चीन के लिए प्रोपगेंडा और साइकोलॉजिकल ऑपरेशंस के ज़रिये उनके दिल और दिमाग को जीतना मुश्किल है. चीन की मुश्किल इससे भी बढ़ी है कि इस आंदोलन का कोई एक या कुछ नेता नहीं हैं. शहर के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं और इसी वजह से प्रदर्शनकारियों को काबू में करने में दिक्कत हो रही है. उन्हें अपार समर्थन भी मिल रहा है. प्रत्यर्पण विधेयक के खिलाफ हालिया प्रदर्शनों में हांगकांग के नौकरशाह और वकील भी शामिल हुए थे.

क्या वाकई इन प्रदर्शनों के पीछे विदेशी ताक़तों का हाथ है? अमेरिका के काम करने का जो तरीका रहा है, उसे देखते हुए इसमें उसकी मामूली भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. वैसे भी अमेरिका ने चीन को रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी घोषित किया हुआ है. ऐसे में वह चीन को नीचा दिखाने का कोई मौका हाथ से क्यों जाने देगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हांगकांग के मीडिया में अमेरिकी राजनयिकों पर जो अनापशनाप आरोप लगाए गए हैं, वे सही हैं. अभी तक की स्थिति से प्रदर्शनकारियों और चीन की सरकार के बीच टकराव तय दिख रहा है. अगर ऐसा होगा तो दोनों पक्षों को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. अच्छा होगा कि दोनों पक्ष बातचीत करके कोई बीच का रास्ता निकालें. हो सकता है कि इससे दोनों ही पक्ष असंतुष्ट हों, लेकिन वह मौजूदा स्थिति से तो बेहतर ही होगा.

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