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भारत अमेरिका ही नहीं, अन्य किसी भी निर्यात बाजार में चीन का स्थानापन्न बनने की स्थिति में नहीं है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जून 2018 में, जी7 देशों के शिखर सम्मेलन के अवसर पर एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, ‘अमेरिका की बचत में हर कोई सेंध लगा रहा है।’ 2016 के अपने चुनावी मुहिम के दौरान ट्रंप ने अमेरिकी जॉब के ‘संरक्षण’ के वादे करते हुए पूरी दुनिया के विभिन्न देशों के साथ अमेरिकी व्यापार व्यवस्था की शर्तों के संबंध में ‘फिर से बातचीत’ कर अमेरिकी व्यापार घाटे को समाप्त कर देने की बात की। पर वास्तव में यह बातचीत की बजाय चीन सहित विभिन्न देशों से आयातों पर सीमा शुल्क में की गयी एकतरफा वृद्धि ही सिद्ध हुआ, जिसके प्रत्युत्तर में उन देशों ने भी अमेरिका से आयातित माल पर शुल्क बढ़ा डाले।
इस दिशा में कार्रवाइयों की शुरुआत करते हुए, मार्च 2018 के आरंभ में अमेरिका ने 92 अरब डॉलर मूल्य के आयातों पर शुल्क बढ़ाये, जिनमें स्टील एवं एल्युमीनियम उत्पाद, वाशिंग मशीनें, सोलर पैनेल तथा कई तरह के दूसरे सामान शामिल थे, अमेरिका को जिनके निर्यात का मुख्य हिस्सा चीन से जाता था। इस शुल्क वृद्धि से प्रभावित अन्य देशों में ब्राजील, कोरिया, अर्जेंटीना, भारत तथा यूरोपीय संघ के देश शामिल थे।
इसके बाद के घटनाक्रम में, अगस्त 2018 में अमेरिका ने अपने यहां आयातित 16 अरब डॉलर के अन्य उत्पादों पर 25 प्रतिशत की शुल्क वृद्धि थोप दी, जिनमें मोटर साइकिलें तथा एरियल एवं ऑप्टिकल फाइबर शामिल थे।
अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, इस वृद्धि से प्रभावित सभी देशों ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिये। यूरोपीय संघ ने 340 किस्मों के अमेरिकी सामानों पर शुल्क बढ़ा दिये, जिनकी कीमत लगभग यूरोप से अमेरिका भेजे जानेवाले स्टील एवं एल्युमीनियम माल की कीमत जितनी यानी 7.2 अरब डॉलर ही थी। यूरोपीय संघ ने अपनी इस कार्रवाई को ‘प्रतिसंतुलन के कदम’ का नाम दिया।
इसी भांति, कनाडा ने भी अमेरिका से अपने यहां आयातित 16।6 अरब कनाडियन डॉलर मूल्य के स्टील, एल्युमीनियम, नारंगी रस, व्हिस्की तथा अन्य खाद्य उत्पादों पर 25 प्रतिशत तक की शुल्क वृद्धि कर दी। ज्ञातव्य है कि अमेरिकी कदम से प्रभावित कनाडा से अमेरिका को निर्यात किये जानेवाले स्टील की कीमत भी लगभग इतनी ही ठहरती है। मेक्सिको ने भी डेयरी, बागबानी तथा मांस से संबद्ध अपने कई आयातित उत्पादों पर लगभग उतनी ही शुल्क वृद्धि कर डाली, जितनी क्षति उसे अमेरिकी शुल्क वृद्धि से पहुंची थी।
अमेरिका द्वारा चीन से आयातित उत्पादों पर शुल्कवृद्धि के जवाब में शुरुआती अप्रैल में, चीन ने भी अमेरिका से चीन में आयातित 3 अरब डॉलर के 128 उत्पादों पर जवाबी शुल्क वृद्धि की घोषणा की।
उसने प्रथम कोटि में ताजे फल, सूखे मेवे एवं गिरियां, शराब, परिवर्तित एथेनॉल, अमेरिकी जिनसेंग और जोड़रहित स्टील पाइपों सहित कई वस्तुओं पर 15 प्रतिशत शुल्क वृद्धि की, जबकि दूसरी कोटि में सूअर का मांस तथा उसके उत्पादों तथा पुनर्चक्रित एल्युमीनियम पर यह वृद्धि 25 प्रतिशत की थी। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए चीन ने अमेरिका से आयातित रसायन उत्पादों, चिकित्सकीय उपकरणों तथा ऊर्जा पर पुनः 25 प्रतिशत शुल्क वृद्धि थोप दी।
चीनी सरकार ने 8 अगस्त को चीन में आयातित अमेरिकी उत्पादों की अतिरिक्त किस्मों पर सीमा शुल्क बढ़ाने के इरादे की घोषणा तब की, जब चीन का शीर्ष नेतृत्व अपनी सालाना बैठक करने जा रहा था। बाद में, उसका यह इरादा अमेरिका से 60 अरब डॉलर के आयातित सामानों पर लागू कर दिया गया। चीन की राज्य परिषद के सीमा शुल्क आयोग ने 5,207 अमेरिकी उत्पादों की सूची जारी की, जिन पर 5 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक के अतिरिक्त शुल्क लाद दिये गये, निकट भविष्य में जिसके नतीजे खासे अहम होंगे।
मगर कार्रवाई तथा जवाबी कार्रवाई का यह सिलसिला तब अविराम-सा चलता दिखा, जब अगले चक्र में अमेरिका ने 200 अरब डॉलर की चीनी वस्तुओं पर शुल्क की नयी दरें चस्पा कर दीं, जो मध्य सितंबर से लागू हो गयीं। पिछली किस्त के शुल्कों के विपरीत, जिनके निशाने पर मुख्यतः पूंजीगत वस्तुएं थीं, इस बार हजारों उपभोक्ता वस्तुओं को लक्ष्य किया गया, जिनमें लगेज और इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर घरेलू बर्तन तथा खाद्य तक शामिल थे।
इन पर आयात शुल्क की वृद्धि से निस्संदेह इनकी लागतें और कीमतें भी बढ़ जाएंगी। ये कदम उठाते हुए अमेरिका ने चीन की उन ‘अनुचित नीतियों तथा व्यवहारों’ को जिम्मेवार ठहराया, जिन्हें संबोधित करने की दिशा में वह ‘उदासीन’ रहा है। उत्तर में चीन ने अमेरिका के इस निर्णय पर खेद जताते हुए यह कहा कि उसके पास ‘प्रत्युत्तर में जवाबी कदम उठाने के सिवाय कोई चारा नहीं’ है।
शायद अनिच्छा से ही, मगर भारत भी इस व्यापार युद्ध में सना जा रहा है। भारत सरकार ने 18 सितंबर से 29 मुख्य अमेरिकी आयातों पर उच्चतर शुल्क लगा दिये, जिनमें वास्तविक आयात की कीमत 2017-18 में 1.5 अरब डॉलर थी। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि इस वर्ष मई में अमेरिका द्वारा स्टील तथा एल्युमीनियम पर आयात शुल्क बढ़ाये जाने के नतीजे में भारत को उनसे हुई हानि की भरपाई की जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि यह शुल्क युद्ध चलता रहता है, तो भारत द्वारा और भी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाये ही जाएंगे।
यदि चीनी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाते जाने की अमेरिकी सरकार की इच्छा जारी रहती है, तो चीन को बड़ा नुकसान पहुंचना तय है, क्योंकि वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच, चीन से अमेरिका का आयात 481.52 अरब डॉलर की ऊंचाई का स्पर्श कर रहा था। जबकि दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान अमेरिका से चीन का आयात 115.60 अरब डॉलर का ही था। इस तरह, इस युद्ध से अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी अछूती नहीं रह सकेगी, जैसी उम्मीद कुछ अर्थशास्त्रियों ने की थी।
कई एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन को मध्यवर्ती सामानों का निर्यात करती हैं और फिर चीन उन हिस्सों को जोड़कर उनसे तैयार वस्तुओं का निर्माण कर, उन्हें कई देशों को निर्यात करता है, जिनमें अमेरिका मुख्य है। इसलिए, ताइवान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर तथा मलयेशिया जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को भी गंभीर क्षति पहुंच सकती है, जो चीन को काफी मात्रा में मध्यवर्ती सामानों का निर्यात करती हैं।
यदि एक ‘पूर्ण व्यापार युद्ध’ (जिसका अर्थ समस्त व्यापारिक वस्तुओं पर 15 प्रतिशत से 25 प्रतिशत सीमा शुल्क वृद्धि है) छिड़ जाता है, तो कुछ अनुमानों के अनुसार, सिंगापुर की अपेक्षित विकास दर में जहां 0.8 प्रतिशत की कमी आ जाएगी, वहीं ताइवान एवं मलयेशिया की प्रत्याशित विकास दर 0.6 प्रतिशत और तथा दक्षिण कोरिया की अपेक्षित विकास दर 0.4 प्रतिशत की कमी का सामना करेंगी। पर चीन और अमेरिका की विकास दरों में तो इसका असर 0.25 प्रतिशत की ऊंचाई को भी छू सकता है।
शुरुआत में भारत के कई आर्थिक टिप्पणीकार इस विचार से उत्साहित दिखे कि कुछ निर्यात बाजारों में भारत चीन की जगह ले सकेगा, पर दोनों देशों के निर्यातों पर गौर करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे अनुमान दिवास्वप्नों से अधिक और कुछ नहीं हैं। चीन के निर्यातों में अधिक उन्नत विनिर्माण उत्पाद शामिल हैं, जबकि अमेरिका को चीनी निर्यातों में भारत से कहीं अधिक विविधता है।
भारत अमेरिका ही नहीं, अन्य किसी भी निर्यात बाजार में चीन का स्थानापन्न बनने की स्थिति में नहीं है। दूसरी बात यह है कि अमेरिका अथवा अन्य किसी भी देश द्वारा व्यापारिक वस्तुओं पर शुल्क वृद्धि से भारत पर नकारात्मक असर पड़नेवाला है, भले ही वह चीन पर पड़नेवाले असर से कम हो। कुछ दूसरे अनुमानों के अनुसार, भारत की प्रत्याशित विकास दर में इस व्यापार युद्ध से 0.2 प्रतिशत की कमी आ जाएगी। भारत समेत किसी भी देश को इस युद्ध से कोई लाभ नहीं पहुंचने वाला, इतना तो तय है।
वर्ष 2016 में विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों का कुल निर्यात 15.71 लाख करोड़ डॉलर मूल्य का था, जबकि इसी अवधि में उनके द्वारा सेवाओं के निर्यातों की कीमत 4.73 लाख करोड़ डॉलर थी। व्यापार की इन समग्र संख्याओं पर गौर करने से यह पता चलता है कि शुल्क वृद्धि अभी भी किसी चिंताजनक स्तर तक नहीं पहुंच पायी है।
पर यदि यह युद्ध बेरोकटोक जारी रहा, तो इसकी चक्रवृद्धि शीघ्र ही बड़े आयामों में पहुंच कर विश्व को भीषण नुकसान का भुक्तभोगी बना सकती है। आपसी समस्याओं को बहुपक्षीय मंचों पर सलटा लेना सबसे सीधा और सरल समाधान हो सकता था, पर अभी की परिस्थितियों में कोई भी देश संवाद और समाधान में दिलचस्पी रखता नहीं दिखता। और यह विश्व की प्रत्येक अर्थव्यवस्था के लिए एक बुरी खबर है।
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Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...
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