Published on Oct 10, 2019 Updated 0 Hours ago

जिस रफ़्तार से तकनीक नई नई छलांगें लगा रही है, जल्द ही हवाई उड़ानें भी बिना पायलट के चलेंगी, सभी मुसाफ़िर और मालवाहक उड़ानों को ऑटोमैटिक तरीक़े से उड़ाया जाएगा.

स्मार्ट शहरों में ड्रोन

भारत जल्द ही ड्रोन के ज़रिए सामान पहुंचाने और एयर टैक्सी सुविधा शुरू करने की दिशा में शुरुआती क़दम बढ़ाएगा. इस बात के संकेत हाल ही में नागरिक उड्डयन के महानिदेशक ने संकेत दिए थे. नागरिक उड्डय महानिदेशालय ने इस बारे में प्रस्ताव मंगाए थे कि ऐसी सुविधाओं को प्रयोगात्मक तौर पर शुरू किया जाए. ताकि, जानकार इस बात की समीक्षा कर सकें कि भारत में ऐसी सुविधाएं शुरू करने में क्या दिक़्क़तें आ सकती हैं. भारत के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की ये सोच क़ाबिल ए तारीफ़ है. क्योंकि अब तक ये सरकारी संस्थान गुज़रे हुए वक़्त की सोच और नज़रिए की क़ैद में ही मालूम होता था. इसकी सोच परंपरागत थी और सुरक्षा पर कुछ ज़्यादा ही जोर था, जो नई तकनीक और नए प्रस्तावों को आज़माने की राह में बाधा बन जाता था. भारत के यूएवी यानी ड्रोन निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं और इस उद्योग से जुड़े लोगों और इस तकनीक के उत्साही लोगों के लगातार अभियान चलाने के बाद जा कर दो बरस पहले इस दिशा में पहले क़दम तब बढ़े, जब इस बारे में कुछ नियम कायदे बनाए गए. हालांकि इस बारे में इजाज़त देने के सिंगल विंडो क्लियरेंस सिस्टम ने अब तक काम करना नहीं शुरू किया है.

भारत में ड्रोन का सफ़र क़रीब दो दशक पहले शुरू हुआ था. भारत दुनिया के उन बड़े देशों में शामिल है, जहां सैन्य मक़सद से बड़ी तादाद में ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन, कारोबारी और नागरिक क्षेत्र में ड्रोन का सफ़र बस हाल ही में शुरू हुआ है. वो भी तब से जब से भारत में स्मार्ट सिटी योजना की शुरुआत हुई है. पूरे देश में फैले स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, ड्रोन के कारोबारी इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी प्रयोगशालाएं हैं. जैसा कि हम पूरी दुनिया में देख रहे हैं कि तमाम देश पुराने शहरों को स्मार्ट सिटी में तब्दील कर रहे हैं. तो, भारत ने भी 100 ऐसे शहरों की पहचान की है, जो स्मार्ट सिटी बनाए जाएंगे.

आज राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के शस्त्रागार में ड्रोन बहुत अहम अस्त्र बन गए हैं. यूएवी बहुत कम समय में सटीक जानकारी मुहैया करा सकते हैं. ये शहरों की नागरिक सुरक्षा और और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए काफ़ी मददगार साबित हो रहे हैं.

ड्रोन की नागरिक मक़सद से तैनाती और इस्तेमाल से पहले हमें मानव रहित विमान यानी अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) बारे में कुछ बातें समझ लेनी चाहिए. पहली बात तो ये है कि यूएवी ऐसा प्लेटफॉर्म होता है, जिस में सेंसर लगे होते हैं. जिनकी मदद से दूर बैठ कर इससे निर्धारित काम कराया जाता है. बिना सेंसर ये बस एक अच्छा खिलौना ही रह जाता है. सेंसर तकनीक के लगातार सूक्ष्मीकरण से ड्रोन की मदद से तमाम तरह की चुनौतियों का समाधान निकाला जा रहा है. अब कम ख़र्च वाली 3डी तकनीक और टुकड़ों में उपलब्ध सामान जोड़ कर ड्रोन तैयार करने की तकनीक के आ जाने से ड्रोन का डिज़ाइन और इसके विकास का ख़र्च बहुत कम हो गया है. अब ड्रोन को कई तरह के मक़सद के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है. आज के ड्रोन में बहुत उच्च तकनीक वाले सेंसर लगे होते हैं. जैसे कि हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजर, एसएआर (SAR यानी सर्च ऐंड रेस्क्यू) और लिडार (LIDAR-लाइट डिटेक्शन ऐंड रेंजिंग). इनकी मदद से कृषि क्षेत्र, खोज और बचाव अभियानों, शहरों की प्लानिंग जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है. ड्रोन की मदद से आज खेतों में छिड़काव, डस्टिंग और निगरानी के अलावा फ़सल बीमा जैसे काम लिए जा रहे हैं. भारत की टेरा ड्रोन कंपनी का कहना कि इसे महाराष्ट्र में कृषि योग्य ज़मीन के लिए जल संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए क़रीब 4200 वर्ग किलोमीटर ज़मीन का हवाई सर्वेक्षण पूरा कर लिया है. ये काम कंपनी ने महाराष्ट्र के कृष्णा घाटी विकास निगम के लिए किया है. इस सर्वे से सरकारी अधिकारियों को इस पूरे इलाक़े में बोई जाने वाली फ़सल और उनकी सिंचाई की ज़रूरतों को समझने में काफ़ी मदद मिली है. इसकी वजह से महाराष्ट्र कृष्णा घाटी विकास निगम को पुराने नक़्शों को परंपरागत तरीक़ों से आधे से भी कम समय में अपडेट करने की सहूलत मिली है. सेंसर के अलावा सेंस ऐंड अवाइड तकनीकों के जुड़ जाने से आज यूएवी की मदद से बहुत सारे काम करने की दिशा में लंबी छलांग लगाई जाने वाली है. देश के आसमान पर जल्द ही ड्रोन एक से एक पेचीदा मिशन को अंजाम देते दिखाई देंगे.

भौगोलिक जानकारी जुटाने और जियो स्पैटियल सर्वे के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर के स्मार्ट सिटी को चलाने का ख़र्च काफ़ी कम किया जा सकेगा. किसी ज़मीन के सर्वे को अगर कोई इंसान हफ़्तों या महीनों में करता है, तो ड्रोन की मदद से उसे एक घंटे से भी कम समय में पूरा किया जा सकेगा. क़ुदरती आपदा के बाद खोज और बचाव अभियान में ड्रोन से काफ़ी मदद मिल रही है. आज राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के शस्त्रागार में ड्रोन बहुत अहम अस्त्र बन गए हैं. यूएवी बहुत कम समय में सटीक जानकारी मुहैया करा सकते हैं. ये शहरों की नागरिक सुरक्षा और और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए काफ़ी मददगार साबित हो रहे हैं. जिससे समय रहते संसाधनों को ऐसी जगह पहुंचाया जा सकता है, जहां आने वाले समय में चुनौती खड़ी होने का अंदेशा हो. जबकि पहले ये होता था कि घटना के बाद उससे निपटने के संसाधन पहुंचाए जाते थे. स्मार्ट सिटी की परिकल्पना की ये बुनियादी चीज़ है. भारत में बड़े आयोजनों के दौरान भीड़ नियंत्रण में पुलिस की मदद करने में ड्रोन अहम भूमिका निभा रहे हैं. ख़ास तौर से धार्मिक आयोजनों के दौरान यूएवी सटीक जानकारी से पुलिस का बोझ निश्चित रूप से कम कर सकते हैं. आज मोबाइल ऐप, फोरेंसिक सॉफ्टवेयर, सुरक्षित और भरोसेमंद वायरलेस नेटवर्क के साथ ड्रोन को जोड़ कर स्मार्ट शहरों को सुरक्षित बनाया जा सकता है. चीन में ड्रोन को प्रयोगात्मक तौर पर आग लगने की घटनाओं से निपटने के दौरान मददगार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को ये आदेश दिया था कि वो अवैध बालू खनन वाले इलाक़ों में यूएवी की तैनाती में तेज़ी लाए. इससे इस बात का साफ़ संकेत मिलता है कि भारत की न्यायपालिका ने ड्रोन तकनीक के असरदार होने के फ़ायदों को अच्छे से समझ लिया है.

यूएवी तभी विकास के असरदार माध्यम बन सकते हैं, जब ये ज़मीनी स्तर पर उपलब्ध कराए जाएं. जैसे कि सरकारी अधिकारियों को और नागरिक समुदाय को, जो तय नियम कायदों के दायरे में रह कर ड्रोन का बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल करें.

तकनीकी कंपनी सिस्को के मुताबिक़, स्मार्ट शहरों में, “डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल लोगों को जोड़ने, उनकी सुरक्षा करने और आम नागरिकों की ज़िंदगियां बेहतर करने में किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि 2050 तक दुनिया की 68 प्रतिशत आबादी शहरों में रह रही होगी.” ऐसे हालात में शहरों के बेहतर मैनेजमेंट की चुनौतियों से निपटने में ड्रोन की भूमिका और भी अहम हो जाती है.

अगर भारत को नए स्मार्ट सिटी बसाने हैं, या पुराने शहरों को स्मार्ट नगर बनाना है, तो इस लक्ष्य को हासिल करने में यूएवी की तैनाती और भी अहम हो जाती है. यूएवी की मदद से तेज़ी से सटीक आंकड़े जुटाए जा सकते हैं. वो ताज़ातरीन सॉफ्टवेयर की मदद से आंकड़े जुटाकर उनका विश्लेषण कर के बिल्कुल सही जानकारी योजना बनाने वालों को पहुंचा सकते हैं. यूएवी की मदद से संसाधनों का प्रबंधन बेहतर ढंग से किया जा सकता है. इससे कार्यकुशल तरीक़े से सामान पहुंचाने के सस्ते रास्ते तलाशे जा सकते हैं. खाना पहुंचाने वाली कंपनी ज़ोमाटो ने पिछले ही साल लखनऊ की स्टार्ट अप कंपनी टेक ईगल को ख़रीदा है. ये ड्रोन कंपनी ज़ोमाटो को ड्रोन की मदद से खाना पहुंचाने के बेहतर रास्तों के बारे में सर्वे कर के देगी. इस काम में नई तकनीक से लैस मल्टी रोटर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा. यूएवी तभी विकास के असरदार माध्यम बन सकते हैं, जब ये ज़मीनी स्तर पर उपलब्ध कराए जाएं. जैसे कि सरकारी अधिकारियों को और नागरिक समुदाय को, जो तय नियम कायदों के दायरे में रह कर ड्रोन का बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल करें. क्लाउड कंप्यूटिंग, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, वायरलेस सेंसर, नेटवर्क अनमैन्ड सिस्टम, बिग डेटा और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स जैसी तकनीकों में नई नई खोज की वजह से आज अरबों यंत्र एक दूसरे से जोड़े जा रहे हैं. इन से स्मार्ट सिटी की योजनाओं में यूएवी के इस्तेमाल की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं. भारत में आज ड्रोन का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़े प्रोजेक्ट के सर्वे में हो रहा है. जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा के प्रोजेक्ट, हाइवे निर्माण, पुल निर्माण के काम के सर्वे में ड्रोन का प्रयोग हो रहा है. आईआईटी रुड़की अब ऐसे ड्रोन विकसित कर रही है, जो आप की रेल यात्रा को सुरक्षित बनाएंगे. कोलकाता स्थित नई कंपनी मेसर्स कैडेट डिफेंस सिस्टम ने इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी आईएल ऐंड एफएस के लिए क़रीब 350 किलोमीटर के इलाक़े का सर्वे किया है. इस ज़मीन को आईएल ऐंड एफएस कंपनी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए हाइवे बनाने के लिए इस्तेमाल करेगी. कैडेट डिफेंस सिस्टम के संस्थापक और सीईओ अवदेश खेतान का कहना है कि, “लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाने की लंबी छलांग में ड्रोन एक छोटा सा क़दम हैं.” हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टॉक्सिकोलॉजी ने ड्रोन की मदद से पानी के नमूने इकट्ठे किए थे, ताकि जल प्रदूषण का अध्ययन कर सकें.

अगर हम भारत के मौजूदा माहौल और विश्व स्तर पर हो रहे बदलावों पर गौर करें, तो हम यक़ीन से कह सकते हैं कि ड्रोन तकनीक स्मार्ट सिटी की कल्पना का अटूट हिस्सा हैं.

कहा जाता है कि जिस रफ़्तार से तकनीक नई नई छलांगें लगा रही है, जल्द ही हवाई उड़ानें भी बिना पायलट के चलेंगी, सभी मुसाफ़िर और मालवाहक उड़ानों को ऑटोमैटिक तरीक़े से उड़ाया जाएगा. केवल इमरजंसी की सूरत में उन्हें नियंत्रित करने के लिए पायलट उपलब्ध होंगे. आज एयरोस्पेस की बड़ी कंपनियां जैसे कि एयरबस, थेल्स और बोइंग इस दिशा में बड़े पैमाने पर रिसर्च कर रही हैं, ताकि अगली पीढ़ी के यूएवी विकसित किये जा सकें. इनका इस्तेमाल एयर टैक्सी के लिए भी किया जा सकेगा. संयुक्त अरब अमीरात जैसे देसों ने तो शहरी विकास के लिए ऐसी तकनीक का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है. इसी तरह अमेरिकी सेना, ज़ख़्मी सैनिकों को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करने की योजना पर काम कर रहे हैं. वो दिन दूर नहीं है जब बिना पायलट वाली एयरटैक्सी सेवाएं आम हो जाएंगी. नीदरलैंड में मुश्किल में पड़े मरीज़ों की फ़ौरी मदद के लिए ड्रोन की मदद से डिफाइब्रिलेटर्स पहुंचाने का प्रयोग कामयाब रहा है. अब भारत भी प्रत्यर्पण के लिए अंगों को ड्रोन के ज़रिए एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने का काम शुरू करने पर विचार कर रहा है. इस योजना के रूट तय करने की स्टडी जारी है. ताकि अस्पतालों की छत पर इस योजना के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा विकसित किया जा सके. अस्पताल की छतों को ड्रोन उतरने के अड्डों के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि मेडिकल कार्गो वहां उतारा जा सके.

वर्ष 2021 तक भारत का यूएवी बाज़ार क़रीब 88.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का होने की संभावना है. जबकि उस वक़्त तक ड्रोन का वैश्विक बाज़ार क़रीब 21 अरब डॉलर का होगा. इस क्षेत्र में सबसे बड़े गेम चेंजर होंगे, वो ड्रोन ऐप, जिनका कारोबार 100 अरब डॉलर होने की संभावना जताई जा रही है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, भारत में इस समय क़रीब 50 हज़ार ड्रोन अवैध रूप से संचालित किए जा रहे हैं. ये बड़ी फ़िक्र की बात है. भारत का ड्रोन बाज़ार, सालाना क़रीब 18 फ़ीसद की दर से बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. जैसे ही नागरिक उड्डयन महानिदेशालय इस बारे में नए नियम कायदे तय करेगा, तो उसके बाद निवेशकों की लंबी क़तार लगने की संभावना जताई जा रही है, जो ड्रोन तकनीक में निवेश की इच्छुक है और डीजीसीए के नियम जारी करने की बाट जोह रही है. ताकि ड्रोन से डिलिवरी और दूसरे प्रयोग के नियम कायदे तय हो जाने से उन्हें कारोबार करने में आसानी हो. अगर हम भारत के मौजूदा माहौल और विश्व स्तर पर हो रहे बदलावों पर गौर करें, तो हम यक़ीन से कह सकते हैं कि ड्रोन तकनीक स्मार्ट सिटी की कल्पना का अटूट हिस्सा हैं. जो कार्यकुशलता बढ़ाकर भारत जैसे देश के नागरिकों का जीवन स्तर कई गुना बेहतर कर सकेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज़न 2024 में ड्रोन उद्योग का विकास भी बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस मामले में रक्षा मंत्रालय ने इस उद्योग से जुड़े लोगों से प्रस्ताव मंगाए हैं ताकि देश भर में ड्रोन टेस्टिंग के केंद्र स्थापित किए जा सकें. ऐसे केंद्र ड्रोन सेक्टर के सभी खिलाड़ियों के लिए बहुत काम के साबित होंगे. फिर चाहे वो ड्रोन के निर्माता हों, सेवा प्रदाता हों, सॉफ्टवेयर डेवेलपर हों या फिर सेंसर निर्माता हों. ये सभी अपने उत्पाद बाज़ार में उतारनेसे पहले ऐसे केंद्रों में अपनी ड्रोन तकनीक का परीक्षण कर सकेंगे और उन्हें प्रमाणित करा सकेंगे. ड्रोन के पूरे इकोसिस्टम की ये टूटी हुई कड़ी थी, जिसे जोड़ने की दिशा में सरकार ने बड़ा क़दम बढ़ाया है. अब वो दिन दूर नहीं जब मानव रहित सिस्टम हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा होंगे.

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