Published on Jan 14, 2022 Updated 0 Hours ago

कज़ाख़स्तान की वैश्विक यूरेनियम आपूर्ति में हिस्सेदारी 40 फ़ीसद के आसपास है और उसके पास तक़रीबन 30 अरब बैरल का तेल भंडार है, जो वैश्विक भंडार का 3 फ़ीसद है.

कज़ाख़िस्तान में विरोध प्रदर्शन की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय अहमियत

कज़ाख़स्तान आहिस्ता-आहिस्ता पटरी पर लौटता दिख रहा है. तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) की क़ीमतें दुगनी होने से गुस्साये हज़ारों प्रदर्शनकारियों के सड़कों पर उतर आने के बाद क़ानून-व्यवस्था पर सरकार ने नियंत्रण कर लिया है. कज़ाख़स्तान की आज़ादी के बाद सबसे वीभत्स हिंसा में, प्रदर्शनकारियों को सशस्त्र बलों से भिड़ते, सरकारी इमारतों व पुलिस की गाड़ियों में आग लगाते और मूर्तियों को ढहाते देखा गया.  राष्ट्रपति कासिम-जोमार्त तोकायेव (Kassym-Jomart Tokayev) ने बढ़ी हुई क़ीमतों को वापस ले लिया, मंत्रिमंडल को बर्ख़ास्त कर दिया और वादा किया कि कुछ कल्याणकारी उपाय लागू किये जायेंगे, लेकिन विरोध बढ़ता गया और उसने पूर्व राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव के 30 साल लंबे शासन के ख़िलाफ़ मोहभंग के प्रदर्शन का रूप ले लिया. लोगों ने देशभर में प्रदर्शनों के दौरान ‘Shal Ket!’ (बूढ़े आदमी, जाओ!) के नारे लगाये. नज़रबायेव ने भले ही 2019 में राष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ दी थी, लेकिन वह सर्वशक्तिमान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) के मुखिया बने रहे और उनके परिवार के कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा.

नज़रबायेव ने भले ही 2019 में राष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ दी थी, लेकिन वह सर्वशक्तिमान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) के मुखिया बने रहे और उनके परिवार के कई सदस्यों ने महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा.

हिंसा फैलने के साथ ही, तोकायेव ने नज़रबायेव को NSC के मुखिया पद से और उनके परिवार के सदस्यों को सरकार से बर्ख़ास्त कर दिया. इस तरह उन्होंने उस नज़रबायेव युग को ख़त्म कर दिया, जो लगभग पश्चिमी यूरोप के आकार के इस सबसे बड़े मध्य एशियाई देश में अभी तक स्थिरता और विकास से जुड़ा हुआ था. हालांकि, व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बीच नज़रबायेव ने तोकायेव के साथ एकजुटता दिखायी है.

आश्चर्यचकित करने वाले बड़े पैमाने पर यह विरोध मुख्यत: मध्यम-वर्ग की भागीदारी से भड़का, जिस पर एलपीजी की क़ीमतें बढ़ने की सबसे ज्यादा मार पड़ी थी. एलपीजी कज़ाख़स्तान में वाहनों के लिए एक महत्वपूर्ण ईंधन है. भले ही विरोध प्रदर्शन प्रत्यक्ष तौर पर एलपीजी की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी से भड़का, लेकिन इसे मिले जन समर्थन की कई ढकी-छिपी वजहें भी थीं, जैसे- बीते कुछ सालों से प्रतिकूल आर्थिक संभावनाएं, साफ दिखने वाली बढ़ती सामाजिक असमानता, और नज़रबायेव परिवार एवं उनकी मंडली द्वारा राजनीतिक ताकत और आर्थिक दौलत जमा किये जाने के ख़िलाफ़ उपजा असंतोष.

राष्ट्रपति तोकायेव ने प्रदर्शनकारियों पर ‘विदेश में प्रशिक्षित आतंकवादी’ होने का आरोप लगाया है, जिन्हें तख्तापलट की साज़िश के लिए पैसे मिले हुए हैं. राष्ट्रपति ने 7 जनवरी को यह एलान किया कि संवैधानिक व्यवस्था मोटा-मोटी बहाल हो चुकी है, फिर भी सुरक्षा बलों को ‘बिना चेतावनी के गोली चलाने’ की इजाज़त दी गयी है. देश के आंतरिक मामलों के मंत्री अब तक 18 सुरक्षा अधिकारियों और 26 ‘हथियारबंद अपराधियों’ की मौत की पुष्टि कर चुके हैं. इसके अलावा, 353 घायल हुए.

देश की बेहद ज़रूरी संस्थापनाओं (installations) की हिफ़ाज़त के लिए तोकायेव ने रूस की अगुवाई वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (Collective Security Treaty Organisation या CSTO) के सैनिकों को बुलाया. यह हिंसा के पैमाने और इसकी वजह से मौजूदा शासन की निरंतरता को पैदा हुए ख़तरे को दिखाता है.

घरेलू अहमियत

अनिश्चतताओं से भरे रहे एक क्षेत्र में कज़ाख़स्तान को आर्थिक स्थिरता का उदाहरण माने जाने के बावजूद, इस देश में व्यापक स्तर पर आर्थिक असमानता का बोलबाला है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़, सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश में औसत वेतन 750 अमेरिकी डॉलर प्रति माह के बराबर है, लेकिन आबादी का बहुसंख्य हिस्सा इससे काफ़ी कम कमाता है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़, साल 2000 में प्रति व्यक्ति आमदनी 9000 अमेरिकी डॉलर के आसपास थी. हाइड्रोकार्बन (पेट्रोलियम पदार्थों) के निर्यात पर निर्भर एक अर्थव्यवस्था के लिए, तेल की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव और कोरोनावायरस महामारी ने नकारात्मक असर डाला है, जिससे लोगों ख़ासकर मध्यम वर्ग के जीवन स्तर में गिरावट आयी है.

कज़ाख़स्तान की वैश्विक यूरेनियम आपूर्ति में हिस्सेदारी 40 फ़ीसद के आसपास है और उसके पास तक़रीबन 30 अरब बैरल का तेल भंडार है, जो वैश्विक भंडार का 3 फ़ीसद है. 

इतना ही नहीं, कज़ाख़स्तान ने ठीकठाक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित किया है, क्योंकि उसे क्षेत्र में आर्थिक और राजनीतिक रूप से सबसे स्थिर देश माना जाता है. मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता के साथ, इस तरह का निवेश आना मुश्किल हो सकता है, जो सरकार और लोगों की मुसीबतों को और बढ़ायेगा.

कज़ाख़ शासन-व्यवस्था की प्राधिकारवादी (authoritarian) फ़ितरत और नज़रबायेव द्वारा सत्ता सौंपे जाने की बेहद अव्यवस्थित नज़र आनेवाली प्रक्रिया (जैसा बहुत से पर्यवेक्षकों ने महसूस किया) ने सत्ता के दो केंद्र बना दिये थे, जिसने नज़रबायेव और उनके परिवार के ख़िलाफ़ जनता की नाराज़गी और बढ़ायी. बिना ज्यादा राजनीतिक विरोध के निर्वाचित हुए तोकायेव को नज़रबायेव के क़रीबी सहयोगी के रूप में देखा जाता है. यह उनके लिए, कम-से-कम शुरुआत में, चीज़ों को जटिल बनायेगा. यह देखते हुए कि वह सबसे करिश्माई नेता नहीं हैं और उन्हें लेकर जनता के मन में पर्याप्त दुविधा है, उनके पास दांव-पेंच दिखा पाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं रहेगी.

इस बीच, राष्ट्रपति तोकायेव ने एक पब्लिक फोरम बनाने का वादा किया है जो आर्थिक असमानता और राजनीतिक संस्कृति से लेकर मानवाधिकार तक, विभिन्न मुद्दों पर लोगों की शिकवा-शिकायतों के निवारण के लिए काम करेगा. राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (National Security Committee) के पूर्व प्रमुख करीम मसिमोव को भी देश से गद्दारी के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया, जो प्रदर्शनकारियों को शायद यह संकेत देने की कोशिश है कि तोकायेव पुराने शासन की ज्यादतियों को दंडित करने के बारे में गभीर हैं. लेकिन अभी, सरकार की ओर से रियायतों की झड़ी लगाये जाने के बावजूद व्यापक जनता के बीच गहरे अविश्वास का भाव दिखता है. यह एक बार फिर सरकारी प्राधिकरणों (governmental authorities) को लेकर कज़ाख़ लोगों के असंतोष की ओर इशारा करता है, जिसे शांत कर पाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

इस स्थिति का दुनिया के लिए क्या मतलब है?

मुख्य असर तेल और यूरेनियम की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव के रूप में देखने को मिल सकता है. कज़ाख़स्तान की वैश्विक यूरेनियम आपूर्ति में हिस्सेदारी 40 फ़ीसद के आसपास है और उसके पास तक़रीबन 30 अरब बैरल का तेल भंडार है, जो वैश्विक भंडार का 3 फ़ीसद है. विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए, 7 जनवरी को यूरेनियम की क़ीमतें एक दिन में लगभग 8 फ़ीसद चढ़ गयीं. इसका भाव 42 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 45.25 अमेरिकी डॉलर प्रति पाउंड हो गया. इसी तरह, 6 जनवरी को तेल की क़ीमतें भी 2 फ़ीसद के क़रीब उछल गयीं, हालांकि अगले दिन इसमें कुछ नरमी आयी. बार-बार अस्थिरता की स्थिति काफ़ी हद तक आपूर्ति और क़ीमतों को प्रभावित करेगी, और आयात पर निर्भर देशों को मजबूर करेगी कि वे इन जीवाश्म ईंधनों के वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश करें.

देश की बेहद ज़रूरी संस्थापनाओं (installations) की हिफ़ाज़त के लिए तोकायेव ने रूस की अगुवाई वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के सैनिकों को बुलाया. 

ज्यादातर अन्य देशों के उलट, इस स्थिति में रूस का कुछ और भी दांव पर लगा हुआ है. वह कज़ाख़स्तान के साथ 7600 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जिस पर वस्तुत: कोई सीमा नियंत्रण नहीं है क्योंकि दोनों देश यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के सदस्य हैं. इसलिए, अगर अशांति बढ़ती है और देश में किसी तरह का सत्ता परिवर्तन होता है, तो यह आसानी से रूस के साथ रिश्तों पर असर डाल सकता है. सत्ता में राष्ट्रवादियों के आने पर कज़ाख़स्तान के 35 लाख रूसी अल्पसंख्यकों, जो कुल आबादी का 20 फ़ीसद हैं, के साथ भेदभाव देखने को मिल सकता है. अगर कट्टरपंथी तत्व (radical elements) सत्ता पर क़ाबिज़ होते हैं, तो रूस को यह सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कुछ करना पड़ेगा कि यह सब सीमा पार से उसके यहां न पहुंचे.

इन चिंताओं से CSTO की उस मुस्तैदी को समझा जा सकता है, जो उसने स्थिति को संभालने के लिए तोकायेव द्वारा सुरक्षा बलों के अनुरोध पर दिखायी. कज़ाख़स्तान में CSTO सैनिकों की मौजूदगी उसकी अब तक की बहु-उन्मुखी  (multi-vector) विदेश नीति पर भी शायद काफ़ी असर डालेगी.

इस स्थिति का भारत के लिए क्या मतलब है?

इसके रणनीतिक महत्व को स्वीकार करते हुए, पिछले कुछ सालों में, भारत द्विपक्षीय संवाद, एक-दूसरे के यहां उच्च स्तरीय यात्राओं, उधारी की पेशकश इत्यादि के ज़रिये मध्य एशिया के साथ सशक्त रिश्ते बनाने की कोशिश पर ज़ोर देता रहा है. सबसे पहले तो यह कि, सभी मध्य एशियाई गणराज्यों के राष्ट्रपतियों के 26 जनवरी, 2022 को बतौर मुख्य अतिथि भारत आने की उम्मीद है. लेकिन, देश में इस तरह की उथल-पुथल भरी स्थिति के बीच, यह साफ़ नहीं है कि कज़ाख़ राष्ट्रपति इसमें शामिल हो पायेंगे.

इसके अलावा, सामान्य परिस्थितियों में कज़ाख़स्तान की इस पूरी स्थिति में भारत का सीधे-सीधे कुछ भी दांव पर नहीं लगा होता. लेकिन, हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रम मध्य एशिया के साथ भारत के रणनीतिक रिश्तों को अफ़ग़ान स्थिति से निपटने में अत्यंत महत्वपूर्ण बना सकते हैं, और इसे देखते हुए भारत मध्य एशिया में किसी भी अस्थिरता को अपने लिए प्रतिकूल मानेगा. कज़ाख़स्तान की इस स्थिति में भारत के लिए इकलौता सकारात्मक पहलू यह है कि यह स्थिति मध्य एशिया के लिए चीनी मंसूबों को शायद जटिल बनायेगी.

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