हमेशा से भूटान का डोकलाम पठार वहां के गड़ेरियों का एक शांत चारागाह हुआ करता था लेकिन पहली बार यह संकरा सा पठार विवाद के केंद्र में तब आया जब चीन इस इलाके में चौड़ी सड़कों का एक व्यापक जाल बनाने में लगा हुआ था जिनसे होकर तोपों, हल्के टैंको और भारी वाहनों की आवाजाही आसानी से हो सके और इस तरह से वह इस क्षेत्र में अपनी रणनीति पकड़ को मजबूत कर सके।
जब चीन ने डोकलाम के विवादित क्षेत्र में सड़क बनाने शुरू कर दिया, तो भूटान ने भारत से मदद मांगी और तब भारत ने अपने सेना भेजकर वहां का निर्माण कार्य रुकवाया। विवादित क्षेत्र में सैन्य गतिरोध लगभग दो महीने से अधिक समय तक चला। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच राजनयिक बातचीत के बाद, इस क्षेत्र से सैनिकों को वापस लेने पर सहमत हुए। इसके बाद भी कई बार इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की खबर आती रही है।
भू-सामरिक महत्त्व
डोकलाम चीन और भूटान के बीच एक विवादित क्षेत्र है। यह पठारीय और घाटियों वाला एक ऐसा त्रिकोणीय क्षेत्र है जो भारतीय क्षेत्र सिक्किम के निकट भूटान-चीन सीमा पर स्थित है जिसकी भारत के नाथुला दर्रा से महज 15 किलोमीटर की दूरी स्थित है।
डोकलाम की भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र बना देती है क्योंकि यह उत्तर में तिब्बत की चुंबी घाटी, पूर्व में भूटान की हा घाटी और पश्चिम में भारत के सिक्किम राज्य के बीच स्थित है।
भारत इस बात से काफी चिंतित है कि अगर चीन डोकलाम इलाके में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हो गया तो वो ‘चिकन नेक’ वाले इलाके में रणनीतिक रूप से लाभकारी स्थिति में रहेगा, जो भारत के लिए नुकसानदायक होगा और युद्ध की स्थिति में डोकलाम में कब्जा होने का लाभ चीन को मिलेगा जिसकी जद में भारत का चिकन नेक वाला इलाका आएगा, जिससे पूर्वोत्तर से शेष भारत के कटने का खतरा बना रहेगा।
भारत ने चीन-भूटान मामले में क्यों हस्तक्षेप किया?
भारत और भूटान ने 1949 में एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार भूटान को भारत के मार्गदर्शन के साथ शेष दुनिया के साथ राजनयिक संबंध रखना था। इस संधि को 2007 में संशोधित किया गया और नए नियमों के तहत, विदेशी मामलों पर भारत के साथ अनिवार्य परामर्श भूटान पर अब बाध्यकारी नहीं है। लेकिन संधि के अनुसार भारत किसी भी आक्रामकता के खिलाफ़ भूटान की रक्षा करता है और जब चीन विवादित क्षेत्र में सड़क बनाने का निर्माण कार्य शुरू किया, तो भारत का संधि के अनुसार यह दायित्व बनता है कि वह भूटान के हितों की रक्षा करने के लिए आगे आये।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय
जापान का कहना है कि यथास्थिति बदलने के लिये ताकत का इस्तेमाल नहीं होना चाहिये। इस मुद्दे को बल से नहीं, बातचीत से सुलझाने की ज़रूरत है। अमेरिका ने भी यथास्थिति का समर्थन करते हुए कहा कि हम संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुपालन को लेकर चिंतित हैं और अमेरिका ने इस बात की उम्मीद जताई की भारत और चीन को बातचीत के माध्यम से हल ढूंढना चाहिए। भारत के भूटानी राजदूत ने सार्वजनिक रूप से 20 जून 2017 को चीनी सरकार के खिलाफ नई दिल्ली में अपने दूतावास के माध्यम से विरोध प्रदर्शन किया था। 29 जून को, भूटान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया कि भूटानी क्षेत्र के अंदर सड़क का निर्माण भूटान और चीन के बीच 1988 और 1998 के समझौतों का उल्लंघन है। उन्होंने 16 जून 2017 से पहले की स्थिति में वापसी की भी मांग किया।
राजनयिक जीत
डोकलाम गतिरोध के दौरान नयी दिल्ली स्थित चीन के राजदूत राजनयिक समर्थन जुटाने के लिए अन्य देशों के राजदूतों को बुलाया लेकिन उनमें से कोई भी राजदूत उनके समर्थन में आगे नहीं आया था। अमेरिका ब्रिटेन और जापान विश्व के तीन प्रमुख एक्टर्स यह बताने के लिए आगे आए हैं गतिरोध को बातचीत और द्विपक्षीय माध्यमों से सुलझाया जाना चाहिए।
डोकलाम गतिरोध से भारत के पड़ोसी देशों को एक मजबूत संदेश जाता है नई दिल्ली संकट के समय उनके लिए खड़ा हो सकता है। भारत अपने अन्य पड़ोसियों को इस गतिरोध के बाद यह बता सकता है कि अपने संप्रभुता से समझौता करके दबाव में आकर चीन से सैनिक और आर्थिक संबंधों का निर्माण करने की जरूरत नहीं है। श्रीलंका और बांग्लादेश अपने चीनी नीतियों के प्रति पुनर्विचार कर सकते हैं।
हालांकि कूटनीतिक रुप से दोनों पक्षों के मध्य इस विवाद का समाधान हो गया, लेकिन भारत ने चीन को स्पष्ट रूप से यह संकेत दे दिया कि अगर भारत को इसके समाधान के लिए संघर्ष की स्थिति तक जाना पड़ा तो वह पीछे नहीं हटेगा।
प्रमुख पहल
भारत और चीन 12 साल के रक्षा समझौते को अद्यतन करने और विश्वास बहाली के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने, तनाव को रोकने और डोकलाम जैसे गतिरोध से बचने के लिए संचार को सशक्त करना चाहते है।
दोनों देश पिछले साल की घटना के बाद से संबंधों को फिरसे सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी पिछले साल तीन बार चीन गए हैं, ज़ियामेन और चिंगदाओ के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के साथ ही वुहान में अनौपचारिक रूप से शी के साथ बैठक भी किये है। इस साल के अंत तक दोनों देश के नेताओ को अर्जेंटीना में एपेक (APEC) में फिर से मिलने की उम्मीद की जा रही है।
चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू कियान ने कहा कि यदि ड्रैगन और हाथी एक साथ शांतिपूर्वक रहते हैं तो यह दोनों देशों के लिए लाभप्रद होगा और एशिया को समृद्धि की ओर ले जाएगा। यदि प्रतिस्पर्धा करते हैं और एक-दूसरे से लड़ते हैं तो इससे किसी का भी फायदा नहीं होगा।
निष्कर्ष
चीन की आक्रामक नीतियाँ वास्तव में बड़ी लुभावनी है। चीन अपने सीमावर्ती देशों को निकट लाकर उन्हें आपस में जोड़ने का काम बड़ा ही चालाकी और एक सोची समझी रणनीति के तहत कर रहा है। पाकिस्तान-चीन गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है तथा नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश और मालदीव को भी चीन अपने ‘मोतियों की माला’ की निति में गूंथ चुका है। ऐसे में भारत के लिये इस समय भूटान के साथ खड़े रहना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि निकट पड़ोस में वही एक ऐसा देश है जो हमारे साथ दृढ़ता से खड़ा है।
चीन जिस तरह से हिंद महासागर के क्षेत्रीय देशों, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और मध्य पूर्व देशों के साथ अपने हितों एवं संबंधों को बढ़ा रहा है वह निश्चित रूप से भारतीय हितों एवं संबंधों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में भारतीय नीति-निर्माताओं को इस बात पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत हैं कि भारत कैसे अपने हितों को सुरक्षित, संरक्षित एवं संवर्धित कर सके।
लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।
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