Author : Astha Kapoor

Published on Nov 07, 2020 Updated 0 Hours ago

प्लेटफॉर्म कंपनियों से बेहतर मोल भाव के लिए डाटा के अधिकार को इकट्ठा करने से डाटा अर्थव्यवस्था में शक्ति के फिर से संतुलन में मदद मिल सकती है और व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा में बढ़ती कमी पर ध्यान दिया जा सकता है.

डाटा मैनेजमेंट: प्राइवेसी के लिए सामूहिक सौदेबाज़ी

मौजूदा महामारी ने साफ़ कर दिया है कि भविष्य ऐप आधारित है और तकनीक को अपनाने और इस्तेमाल करने की रफ़्तार बढ़ गई है. तकनीक के दख़ल वाला रिमोट काम और पढ़ाई, टेली हेल्थ सर्विस और दरवाज़े पर डिलीवरी हर जगह होने लगी है. सेवाओं के बदले उपभोक्ता महत्वपूर्ण जानकारी जैसे लोकेशन और फ़ोन नंबर देने के लिए तैयार हो जाते हैं. ये ऑनलाइन अनुभव इस्तेमाल करने वालों को आराम देता है लेकिन पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल (PDPB) में जिस व्यक्तिगत डाटा अधिकार की कल्पना की गई है, उसकी रूपरेखा के ज़रिए तकनीकी कंपनियों से बातचीत पर्याप्त नहीं है. प्राइवेसी पर चर्चा को सामूहिक अधिकार के सवाल की तरह बदलने की ज़रूरत है और सरकारी रूप-रेखा बनाने के वक़्त ऐसे टूल विकसित करने की ज़रूरत है जो लोगों को इस बात की इजाज़त दें कि वो अपने डाटा के अधिकार को इकट्ठा कर सकें.

प्राइवेसी पर चर्चा को सामूहिक अधिकार के सवाल की तरह बदलने की ज़रूरत है और सरकारी रूप-रेखा बनाने के वक़्त ऐसे टूल विकसित करने की ज़रूरत है जो लोगों को इस बात की इजाज़त दें कि वो अपने डाटा के अधिकार को इकट्ठा कर सकें.

ये कई वजहों से महत्वपूर्ण है. सबसे पहली वजह ये है कि जब कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत जानकारी को साझा करता है तो ऐप्लिकेशन दूसरों के साथ बातचीत के आधार पर दिखाई गई प्राथमिकता भी ज़ाहिर करने लगते हैं. ये डाटा सिर्फ़ एक व्यक्ति का नहीं है बल्कि ऐप पर मौजूद सभी लोगों का है. इसलिए भेदभाव या ग़लतबयानी के रूप में प्राइवेसी से जुड़े नुक़सान लोगों के एक बड़े समूह पर असर डालते हैं और इसे “सामुदायिक नुक़सान” की तरह समझा जा सकता है. पढ़े-लिखे लोग प्राइवेसी को सार्वजनिक अच्छाई की तरह समझते हैं क्योंकि एक व्यक्ति का फ़ैसला दूसरे को ख़तरे में डाल सकता है और यही वजह है कि वो प्राइवेसी से जुड़े मामलों में सामूहिक समन्वय की ज़रूरत की सलाह देते हैं. दूसरी वजह ये है कि व्यक्तिगत तौर पर लोग अपने डाटा अधिकार को लेकर तकनीकी कंपनियों या सरकार से मोल भाव करने में सक्षम नहीं हैं. व्यक्तिगत मंजूरी कष्टदायक है और जानकारी के आधार पर सही चयन लगभग नामुमकिन है. डाटा वैल्यू चेन जटिल हैं और इनमें डाटा को इकट्ठा करने और उसके इस्तेमाल को लेकर पारदर्शिता की कमी है. ऐसे में प्राइवेसी की रक्षा करना मुश्किल काम है. लोग छोटे क़दम उठा सकते हैं लेकिन किसी व्यक्ति से ये उम्मीद लगाना हद से ज़्यादा है कि वो प्राइवेसी पॉलिसी की भूल-भुलैया की तिकड़म, कुकी नोटिफिकेशन और ख़ुद की सुरक्षा कर लेगा. तीसरी वजह है कि लोगों में ये समझ बढ़ रही है कि अगर डाटा वाकई एक संपत्ति है जिसका इस्तेमाल तकनीकी कंपनियां मुनाफ़ा कमाने के लिए कर सकती हैं तो लोग भी इसका फ़ायदा सामूहिक तौर पर उत्पन्न डाटा पर ज़्यादा आर्थिक अधिकार के लिए कर सकते हैं. लोग अपने डाटा का इस्तेमाल अपने लिए और पूरे समुदाय के फ़ायदे के लिए करें.

इन मुद्दों के बावजूद डाटा सुरक्षा और प्राइवेसी को लेकर मौजूदा रूपरेखा व्यक्तिगत डाटा अधिकार पर केंद्रित है. ये ज़्यादा सामूहिक सुरक्षा की बढ़ती ज़रूरत पर ध्यान नहीं देती.

इन मुद्दों के बावजूद डाटा सुरक्षा और प्राइवेसी को लेकर मौजूदा रूपरेखा व्यक्तिगत डाटा अधिकार पर केंद्रित है. ये ज़्यादा सामूहिक सुरक्षा की बढ़ती ज़रूरत पर ध्यान नहीं देती. इसकी एक वजह है कि व्यक्ति की स्थिति पर पश्चिमी उदारवादी विचार, जिस पर प्राइवेसी की मौजूदा कल्पना आधारित है, ख़ुद के निर्धारण में सामूहिक पहचान और सामाजिक संबंध की भूमिका, संस्कृति और पर्यावरण को मान्यता नहीं देता है और सामूहिक प्राइवेसी की धारणा को भी नज़रअंदाज़ करता है. सहारा के दक्षिणी इलाक़े के दर्शन उबंतू पर हाल के लेखों का मक़सद ज़्यादा सामुदायिक दृष्टिकोण से व्यक्तिगत डाटा पर फिर से विचार करना और प्राइवेसी की फिर से कल्पना है. एक तरफ़ जहां ये जायज़ आलोचना है वहीं समूह का डाटा अस्थिर है और ये बदलता रहता है और एक समूह की प्राइवेसी या डाटा अधिकार का दूसरे समूह की प्राइवेसी या डाटा अधिकार से संघर्ष हो सकता है. समूह में एकमात्र स्थिर चीज़ है व्यक्ति और इसलिए किसी ग्रुप की प्राइवेसी उसमें शामिल व्यक्ति के डाटा अधिकार का जोड़ है.

प्लेटफॉर्म कंपनियों से बेहतर मोल भाव के लिए डाटा के अधिकार को इकट्ठा करने से डाटा अर्थव्यवस्था में शक्ति के फिर से संतुलन में मदद मिल सकती है और व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा में बढ़ती कमी पर ध्यान दिया जा सकता है. ये डाटा मैनजमेंट, शासन और तकनीकी सिद्धांतों के ज़रिए किया जा सकता है जो एक तरफ़ डाटा की क़ीमत को खोलेगा और दूसरी तरफ़ व्यक्ति और समुदायों के अधिकार की रक्षा करेगा. ये डाटा मैनेजमेंट कई तरह के रूप ले सकता है, जैसे कि  ट्रस्ट (जहां किसी समूह की तरफ़ से ट्रस्टी बोर्ड को अधिकार होता है), कोऑपरेटिव (जहां डाटा पर सदस्यों का अधिकार होता है) और यूनियन (जहां डाटा पर फ़ैसले समूह के प्रतिनिधि लेते हैं). कई मक़सदों के लिए इसका वजूद है लेकिन मूल रूप से डाटा के अधिकार के प्रयोग को फिर से संगठित करता है और प्लेटफॉर्म के साथ सामूहिक मोल भाव में मदद करता है. मैनेजमेंट की कल्पना समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर होती है और उनकी ज़िम्मेदारी उन लोगों के प्रति होती है जिनके हितों को वो आगे रखते हैं. मैनेजमेंट मक़सद आधारित होते हैं और कई रूप लेते हैं. एक आदर्श स्थिति में मैनेजमेंट की शासन संरचना वो समुदाय तय करेगा जिसकी वो नुमाइंदगी करते हैं. उदाहरण के लिए, ऐप आधारित टैक्सी प्लेटफॉर्म के ड्राइवर एक मैनेजमेंट बना सकते हैं जो कंपनी से इस बात को लेकर मोल भाव करेगा कि उनके व्यक्तिगत और सामूहिक डाटा का कैसे इस्तेमाल होता है और साझा किया जाता है. मैनेजमेंट ड्राइवर को एक गठबंधन बनाने में मदद करता है और डाटा से जुड़े मुद्दों जैसे ज़रूरत से ज़्यादा कलेक्शन, बिना मंज़ूरी के डाटा के इस्तेमाल और काम की जगह में निगरानी जैसे मुद्दों पर उनकी समस्याओं के समाधान में मदद करता है. मैनेजमेंट समुदायों के डाटा अधिकार को हासिल करने में मदद कर सकता है और लोगों को उनके डाटा के इस्तेमाल को लेकर ज़्यादा अधिकार देता है.

प्लेटफॉर्म कंपनियों से बेहतर मोल भाव के लिए डाटा के अधिकार को इकट्ठा करने से डाटा अर्थव्यवस्था में शक्ति के फिर से संतुलन में मदद मिल सकती है और व्यक्तिगत डाटा सुरक्षा में बढ़ती कमी पर ध्यान दिया जा सकता है.

हाल के ग़ैर-व्यक्तिगत डाटा (NPD) कमेटी की रिपोर्ट पहला दस्तावेज़ है जो समुदाय के डाटा अधिकार की ज़रूरत को बताता है. रिपोर्ट सलाह देती है कि ये सामूहिक डाटा अधिकार “उचित डाटा ट्रस्टी” के ज़रिए इस्तेमाल होंगे जिन्हें “समुदाय का सबसे क़रीबी और सबसे उचित प्रतिनिधिमंडल जो कि कई मामलों में उचित सामुदायिक अंग या केंद्रीय/राज्य/स्थानीय सरकार की एजेंसी” के रूप में परिभाषित किया गया है. डाटा ट्रस्टी के रूप में सरकार का होना बेहद परेशान करने वाली बात है लेकिन रिपोर्ट की मूल भावना सही है. समुदायों को अपने डाटा पर अधिकार का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए और वो ऐसा एक प्रतिनिधि, एक मैनेजमेंट के ज़रिए करें. हालांकि कमेटी की सलाह की जांच करने की ज़रूरत है ताकि ये पता चले कि मैनेजमेंट किस तरह बने कि डाटा के मुद्दे पर समुदाय एक साथ आ सके. वो ऐसी पद्धति विकसित कर सकें कि अपने हितों और प्राइवेसी की रक्षा के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ज़्यादा दबाव बना सकें.

तेज़ी से डिजीटलीकरण के इस दौर में सत्ता तकनीकी कंपनियों के हाथ में है जो हमारे ऑनलाइन अनुभवों में हमें अलग-थलग करती हैं और लोगों को अपनी प्राइवेसी की सुरक्षा करना नामुमकिन बनाती हैं.

तेज़ी से डिजीटलीकरण के इस दौर में सत्ता तकनीकी कंपनियों के हाथ में है जो हमारे ऑनलाइन अनुभवों में हमें अलग-थलग करती हैं और लोगों को अपनी प्राइवेसी की सुरक्षा करना नामुमकिन बनाती हैं. ये देखते हुए कि किस तरह डाटा को संगठित कर इस्तेमाल किया जाता है, ये तेज़ी से सामूहिक संसाधन बन रहा है जिसका संचालन सलाह-मशविरे के आधार पर करना चाहिए ताकि लोग अपने हितों को और असरदार ढंग से पेश कर मोल-भाव कर सकें. ये महामारी एक मौक़ा है फिर से जांच-पड़ताल का, सिस्टम को व्यवस्थित करने का और नया सिस्टम बनाने का जो लोगों की व्यक्तिगत और सामूहिक ज़रूरतों पर विचार कर सके.

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