Published on Feb 01, 2017 Updated 0 Hours ago

भारत और पूर्वी तथा दक्षिण अफ्रीका के बीच व्यापार, निवेश एवं विकास को लेकर कई संभावनाएं हैं।

पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के रिश्‍तों के समकालीन पहलू

केप टाउन शहर, दक्षिण अफ्रीका

इस शोध पत्र में दो पूर्वी अफ्रीकी देशों तंजानिया एवं केन्या, और दो दक्षिण अफ्रीकी देशों मोजाम्बिक एवं दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों का गहन अध्ययन करके अफ्रीका के साथ भारत के रिश्‍तों को तेज रोशनी से प्रदीप्‍ किया गया है। भारत और इन चारों देशों के बीच व्यापार, निवेश एवं विकासात्‍मक सहयोग से जुड़े संपर्कों का ब्‍यौरा पेश करते हुए इस शोध पत्र का आगाज किया गया है। इन द्विपक्षीय रिश्तों के अंतर्गत तीन प्रमुख क्षेत्रों ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, और समुद्री सुरक्षा पर फोकस करते हुए आकलन भी पेश किया गया है। इस लेख में यह दलील पेश की गई है कि भारत और अफ्रीका एक-दूसरे की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से खास मायने रखते हैं। जहां एक ओर भारत रिफाइंड पेट्रोलियम का आपूर्तिकर्ता होने के साथ-साथ सौर विद्युतीकरण में अग्रणी भी है, वहीं दूसरी ओर अफ्रीकी देश कोयला और तेल के बड़े स्रोत हैं। इसी तरह मोजाम्बिक एवं तंजानिया जैसे देश दालों के क्षेत्र में अपनी विशेष अहमियत के बल पर भारत की खाद्य सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्‍वपूर्ण माने जाते हैं, क्‍योंकि भारत में दालों की किल्‍लत है। भारत अपनी तरफ से अफ्रीका में कृषि के लिए आधुनिक तकनीक पेश कर रहा है। इसी तरह, व्यापार काफिले का संरक्षण हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सुरक्षा नीति का एकमात्र पहलू नहीं है। उधर, समुद्री विकास के महत्व के साथ-साथ ‘ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था)’ भी काफी तेजी से बढ़ी है।

परिचय

वैसे तो अफ्रीका के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्‍ते लंबे समय से चले आ रहे हैं, लेकिन इनका आपसी संबंध पिछले दो दशकों में काफी तेजी से विकसित हुआ है। नब्‍बे के दशक के आरंभ से ही अफ्रीका के प्रति भारत की नीति में साफ तौर पर बदलाव देखा जा रहा है। साझा प्रतिबद्धताओं के आधार पर राजनीतिक एकजुटता से शुरुआत होने के उपरांत दोनों देशों के बीच आपसी रिश्‍ते ने पहले उपनिवेशवाद रोधी, नस्लवाद का विरोध, गुटनिरपेक्षता और एफ्रो-एशियाई एकजुटता का स्‍वरूप अख्तियार किया और अब यह व्यापार एवं निवेश प्रवाह के फैलाव की ओर उन्‍मुख हो गया है। वर्ष 2008 में भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलनों का सूत्रपात होने के साथ ही अफ्रीका के साथ भारत की भागीदारी और अधिक संरचित बन गई। अक्टूबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित किए गए तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन में सभी 54 अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था। यह भारत की मेजबानी में सबसे बड़ा राजनयिक आयोजन था। भारत सरकार ने शिखर सम्मेलन के दौरान अनेक महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं: 10 अरब अमेरिकी डॉलर की एक अतिरिक्त ऋण रेखा; 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता; 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य कोष; भारत में अफ्रीकी छात्रों के लिए 50,000 छात्रवृत्तियां; और 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारत-अफ्रीका विकास कोष। शिखर सम्मेलन के बाद अनेक भारतीय राजनेता अफ्रीका के उच्चस्तरीय दौरे पर गए। भारत के उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने मई 2016 में दो उत्तर अफ्रीकी देशों मोरक्को एवं ट्यूनीशिया का दौरा किया और भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जून 2016 में तीन पश्चिम अफ्रीकी देशों घाना, आइवरी कोस्ट एवं नामीबिया का दौरा किया। अफ्रीकी महाद्वीप के साथ रिश्‍तों की डोर को मजबूत बनाने के लिए भारत की ओर से किए जा रहे प्रयासों के अनुरूप ही भारत के प्रधानमंत्री ने जुलाई 2016 में मोजाम्बिक, केन्या, तंजानिया और दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की थी। वैसे तो पारंपरिक रूप से पूर्वी अफ्रीका के साथ भारत के संबंध बड़े ही घनिष्ठ रहे हैं, लेकिन यह क्षेत्र आर्थिक, राजनीतिक और भू-सामरिक कारणों से अब पहले के मुकाबले कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इस क्षेत्र के साथ भारत की वर्तमान भागीदारी को आगे बढ़ाने में अर्थनीति भी विशेष योगदान दे रही है। आखिरकार, यह क्षेत्र कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा स्रोतों के मामले में काफी समृद्ध है। अफ्रीका राजनीतिक दृष्टि से भारत के लिए विशेष अहमियत रखता है क्‍योंकि इस क्षेत्र के वोट संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने के लिहाज से अत्‍यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सुरक्षा और सामरिक दृष्टिकोण के अलावा, अफ्रीका का पूर्वी तट (सोमालिया से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक) भारत के समुद्री सामरिक पड़ोस के अंतर्गत भी आता है। इस लेख में चुनिंदा पूर्वी और दक्षिण अफ्रीकी देशों की आर्थिक अहमियत को रेखांकित किया गया है और उनके साथ भारत की भागीदारी के महत्वपूर्ण आयामों का आकलन किया गया है। खंड-I में उन चार देशों मोजाम्बिक, केन्या, तंजानिया, और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के आर्थिक संबंधों पर चर्चा की गई है जहां का दौरा प्रधानमंत्री ने जुलाई 2016 में किया था। इसके बाद खंड-II में अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों के तीन प्रमुख आयामों को परखा गया है, जिनमें ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, और समुद्री सुरक्षा शामिल हैं। इस लेख का समापन खंड-III के साथ हुआ है।

मोजाम्बिक, केन्या, तंजानिया, और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के आर्थिक रिश्‍ते

नब्‍बे के दशक की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का भारत की विदेश नीति पर व्‍यापक असर पड़ा, जिसमें अफ्रीका से जुड़ी विदेश नीति भी शामिल है। आमूलचूल बदलाव के तहत वैचारिक दायरे से कुछ अलग हटकर आर्थिक कूटनीति पर ध्‍यान केंद्रित किया गया। आर्थिक हितों ने अफ्रीकी देशों के प्रति और अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। इस खंड में इन देशों के आर्थिक प्रोफाइल के साथ-साथ व्यापार, निवेश, और विकासात्‍मक सहयोग के क्षेत्रों में भारत के साथ इनके आर्थिक संबंधों पर चर्चा की गई है।

मोजाम्बिक

दक्षिणी अफ्रीका में अवस्थित मोजाम्बिक एक खनिज निर्यातक देश है। वर्ष 2010 से ही मोजाम्बिक कोयला और प्राकृतिक गैस क्षेत्रों के व्‍यापक विस्तार की बदौलत आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल करने में कामयाब हो रहा है। हालांकि, यह अब भी गरीब देश ही बना हुआ है और इसकी आबादी का लगभग तीन-चौथाई हिस्‍सा 1.90 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन (वर्ष 2011 की पीपीपी कीमतों के आधार पर) की वैश्विक गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन करने पर विवश है। भारत के साथ मोजाम्बिक का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2000 के दशक के मध्‍य तक कमोबेश नगण्य था (रेखा-चित्र 1) । वर्ष 2006 से मोजाम्बिक को भारतीय निर्यात तेजी से बढ़ा और वर्ष 2014 में 1,957.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर के शिखर पर पहुंच गया। यह तीव्र विकास मुख्‍यत: रिफाइंड पेट्रोलियम तेलों के निर्यात में वृद्धि की बदौलत ही संभव हो पाया, जो 231 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाते हुए वर्ष 2005 के 0.007 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 में 1,073.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया। वर्ष 2015 में मोजाम्बिक को भारतीय निर्यात में पेट्रोलियम तेलों का योगदान लगभग 72.7 प्रतिशत रहा। वहीं दूसरी ओर, भारत में मोजाम्बिक से आयात काफी धीमी गति (रेखा-चित्र 1) से बढ़ा। भारत में मोजाम्बिक से आयात में सूखी फलियों (दाल) और कोयले का योगदान लगभग 87 प्रतिशत रहा। भारत का दाल आयात 15 गुना वृद्धि दर्शाते हुए वर्ष 2008 के 6.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 में 99.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर को छू गया। कोयला आयात में भी वर्ष 2012 से उल्‍लेखनीय वृद्धि दर्ज की जा रही है और वर्ष  2015  तक भारत के आयात में कोयले की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत (तालिका 1) हो गई। मोजाम्बिक भी भारतीय एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) का एक प्रमुख गंतव्य है, जो केवल मॉरीशस से ही पीछे है। भारत मोजाम्बिक में आठवां सबसे बड़ा निवेशक है। वर्ष 2014 में यह निवेश 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया था। भारतीय कंपनियों ने देश के ऊर्जा क्षेत्र में भी काफी हिस्‍सेदारी हासिल कर रखी है। वर्ष 2014 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड और ऑयल इंडिया लिमिटेड ने 5.07 अरब अमेरिकी डॉलर में रोवुमा गैस ब्लॉक के क्षेत्र 1 में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली, जो वर्ष 2008 से ही भारत पेट्रो रिसोर्सेज लिमिटेड के पास पड़ी 10 प्रतिशत हिस्‍सेदारी के अलावा है।  इसके अलावा भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड, राष्‍ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, कोल इंडिया लिमिटेड और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड के एक कंसोर्टियम इंटरनेशनल कोल वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड ने वर्ष 2014 में बेंगा, जामबेजे, और टेटे खदानों में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली। विकासात्‍मक सहयोग भी मोजाम्बिक के साथ भारत के आर्थिक संबंधों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। उदाहरण के लिए, भारत ने मोजाम्बिक को 639.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती ऋण रेखा मुहैया कराई है (तालिका 2)। इनमें से दो परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं और इन्‍हें मोजाम्बिक सरकार को सौंप दिया गया है। ये हैं मलूऐन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पार्क में प्रौद्योगिकी विकास एवं नवाचार केंद्र (टीडीआईसी) की स्थापना और मापुटो के निकट एक सोलर फोटोवोल्टिक पैनल असेम्बली प्लांट की स्‍थापना, जिन पर क्रमश: 25 एवं 13 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत आई है। वर्ष 2015 में भारत ने 30 मोजाम्बिक नागरिकों को भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग कार्यक्रम (आईटीईसी) के तहत प्रशिक्षित किया। भारत इसके अलावा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) और हिंद महासागर रिम संघ (आईओआरए) की अफ्रीका छात्रवृत्ति योजना के तहत स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध अध्ययनों के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करता है। इसके साथ ही अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और सीवी रमन फेलोशिप भी मोजाम्बिक नागरिकों को प्रदान की जाती हैं।

केन्या

केन्या द्वारा मुख्य रूप से कृषि की बदौलत हासिल की गई उच्च विकास दर को देखते हुए इस देश को अक्सर अफ्रीका की सफलता की एक गाथा के रूप में जाना जाता है। केन्याई कृषि को भी अफ्रीका की सर्वाधिक परिष्कृत में शुमार किया जाता है। केन्या के विकास में अहम योगदान करने वाले अन्य क्षेत्रों में वानिकी एवं मत्स्य पालन, परिवहन और भंडारण, अचल संपत्ति, और थोक एवं खुदरा व्यापार शामिल हैं। बागवानी का केन्या के कृषि सकल घरेलू उत्पाद में सर्वाधिक योगदान (33 प्रतिशत) है। इसके बाद खाद्य फसलों (32 प्रतिशत) और औद्योगिक फसलों (17 प्रतिशत) का नंबर आता है। देश में एक जीवंत निजी क्षेत्र भी है जो पूर्वी अफ्रीका में व्यापार और वित्त के लिए एक क्षेत्रीय केंद्र (हब) के रूप में कार्य करता है। ‘पूर्वी अफ्रीकी समुदाय’ और ‘पूर्वी एवं दक्षिणी अफ्रीका के लिए साझा बाजार’ दोनों ही में अपनी सदस्यता की बदौलत केन्या उन निवेशकों के लिए एक आकर्षक आधार है, जो पूर्वी एवं मध्य अफ्रीकी बाजारों में आसान पहुंच को तलाश रहे हैं। भारत से केन्‍या को निर्यात 25.2 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ वर्ष 2003 के 213.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 के 3,183.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया (रेखा-चित्र 2). मोजाम्बिक की ही भांति केन्‍या को भी भारतीय निर्यात में अधिक योगदान पेट्रोलियम तेलों (54.1 प्रतिशत) और दवा उत्पादों (9.3 प्रतिशत) का ही रहा। इस बीच, भारत में केन्‍या से आयात मामूली वृद्धि को दर्शाते हुए वर्ष 2003 के 36.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 111.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। भारत में केन्‍या से होने वाले आयात में मुख्य रूप से खाद्य सब्जियां एवं कुछ विशेष जड़ें (33.7 प्रतिशत), कीमती धातुओं के अकार्बनिक रासायनिक यौगिक (18.5 प्रतिशत), और कॉफी (14.9 प्रतिशत) शामिल हैं।

केन्या निरंतर एफडीआई का अपेक्षाकृत उच्च स्तर आकर्षित करने में कामयाब रहा है। वास्तव में, यह 1960 के दशक के उत्‍तरार्द्ध में भी भारतीय निवेश का एक पसंदीदा गंतव्य था , जबकि उस समय अफ्रीका को देश से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मामूली ही होता था। बिड़ला ग्रुप उस दौरान सर्वाधिक सक्रिय भारतीय कंपनी समूह था। वर्ष 1969 में बिड़ला ने एक स्थानीय सहायक कंपनी ओरिएंट पेपर के जरिए केन्याई सरकार और विश्व बैंक के अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम के साथ मिलकर ‘पैनपेपर’ नामक एक संयुक्त उद्यम बनाया था। संयुक्त उद्यम अंततः पूर्वी अफ्रीका का सबसे बड़ा कागज निर्माता बन जाएगा। हालांकि, केन्या में भारतीय निवेश अगले दो दशकों में धीरे-धीरे घट गया। वर्तमान में, कई भारतीय कंपनियां जैसे कि एस्सार एनर्जी, मगदी सोडा कंपनी, भारती एयरटेल, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, पावरग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, करुतुरी ग्लोबल लिमिटेड और जैन एरिगेशन सिस्टम लिमिटेड केन्या में निवेश कर रही हैं। वर्ष 2010 में भारत सरकार ने केन्या के विद्युत क्षेत्र के लिए भी 61.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती ऋण रेखा उपलब्‍ध कराई। केन्या भी अखिल अफ्रीकी ई-नेटवर्क परियोजना का एक हिस्सा है, जो वर्ष 2007 में शुरू की गई थी।

तंजानिया

तंजानिया पिछले दशक में अपेक्षाकृत स्थिर और उच्च विकास दर दर्ज करने में कामयाब रहा (प्रति वर्ष 6.5 प्रतिशत)। पर्यटन देश के लिए विदेशी मुद्रा का शीर्ष स्रोत है, लेकिन कृषि ही लगभग 70 प्रतिशत परिवारों की आजीविका का मुख्य स्रोत है। वैसे तो गरीबी की दर में हाल के वर्षों में गिरावट आई है, लेकिन गरीबों की कुल संख्या मुख्य रूप से उच्च जनसंख्या वृद्धि दर के कारण नहीं बदली है। यह देश तेल, गैस, और यूरेनियम जैसे प्राकृतिक संसाधनों में भी समृद्ध है। इसके अलावा, हिंद महासागर पर सबसे लंबी तटरेखा इसी देश की है, जिसकी बदौलत यह इस क्षेत्र की सुरक्षा और भू-सामरिक परिवेश के लिहाज से अत्‍यंत महत्वपूर्ण बन गया है। जैसा कि रेखा-चित्र 3 में दर्शाया गया है, भारत से तंजानिया को निर्यात वर्ष 2006 से ही बढ़ता चला गया और वर्ष 2014 में 3,713.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर के शीर्ष स्‍तर पर पहुंच गया। निर्यात का स्‍वरूप वैसा ही है : तंजानिया को भारतीय निर्यात में मुख्‍य योगदान पेट्रोलियम तेलों (45.7 प्रतिशत) और फार्मास्यूटिकल्स (9.8 प्रतिशत) का है। तंजानिया द्वारा आयात की जाने वाली सभी दवाओं और अन्य दवा उत्पादों में से लगभग 36 प्रतिशत भारत से ही हासिल किया जाता है। मुख्‍य रूप से सोने के आयात में तेजी से वृद्धि होने के कारण वर्ष 2012 से ही भारत में तंजानिया से आयात में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2015 में तंजानिया से भारत में सोने का आयात कुल मिलाकर 539.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ, जो इस देश से भारत में हुए कुल आयात का 53.7 प्रतिशत आंका गया। अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं में काजू और दालें शामिल हैं।

ब्रिटेन एवं चीन के बाद भारत ही तंजानिया में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है और वर्ष 1990 से लेकर वर्ष 2014 तक इसका कुल निवेश 2,000.04 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया। इस व्‍यापक निवेश से 426 परियोजनाओं में 54,176 से भी अधिक लोगों को रोजगार मिला है। भारतीय कंपनियों ने देश भर में फैले निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों में भी 2,497 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है और एक्जिम बैंक ने जल परियोजनाओं और ट्रैक्टरों एवं अन्य वाहनों की खरीद के लिए 523 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण रेखा मुहैया कराई है (तालिका 3)। तंजानिया आईटीईसी कार्यक्रमों के तहत आवंटित प्रशिक्षण स्लॉट्स के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है, और यह भारत अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के तहत पेशकश किए गए इसी तरह के अनेक प्रशिक्षण स्लॉट्स से भी लाभ उठाता है। वर्ष 2014-15 में तंजानिया को आईटीईसी कार्यक्रम के तहत 330 स्लॉट्स मिले थे जिनमें से 285 स्लॉट्स असैन्य अधिकारियों और 39 स्लॉट्स रक्षा अधिकारियों के लिए थे।

दक्षिण अफ्रीका

इस लेख में उल्लिखित उपर्युक्‍त अन्‍य तीनों अफ्रीकी देशों के विपरीत दक्षिण अफ्रीका अपने आप में एक क्षेत्रीय शक्ति है। भारत अनेक फोरम जैसे कि भारत ब्राजील दक्षिण अफ्रीका (इब्सा) और ब्राजील रूस भारत चीन दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) में दक्षिण अफ्रीका के साथ सहयोग करता है। हालांकि, सर्वाधिक विषमता दर वाले दुनिया भर के देशों में आज भी दक्षिण अफ्रीका की गिनती होती है। यहां कमाई के लिहाज से कुल आबादी के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों (दशमक) के पास देश की आय का 58 प्रतिशत है, जबकि कुल जनसंख्‍या के निचले 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की आय का महज 0.5 प्रतिशत ही है और इसी तरह देश की निचली आधी आबादी के पास आठ प्रतिशत से भी कम आय है। भारत और दक्षिण अफ्रीका बीच वाणिज्यिक रिश्‍ता पिछले एक दशक में काफी तेजी से फला-फूला है। भारत से दक्षिण अफ्रीका को निर्यात वर्ष 2003 के 464.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी तेजी से बढ़कर वर्ष 2013 में 5,730.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया (रेखा-चित्र 4)। इस निर्यात में मुख्‍य रूप से पेट्रोलियम तेल (20.4 फीसदी), वाहन (20.1 प्रतिशत), और फार्मास्यूटिकल्स (12.5 प्रतिशत) शामिल हैं। इस बीच, भारत में दक्षिण अफ्रीका से आयात भी वर्ष 2003 के 1,945.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2011 में 9,306.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर के स्‍तर पर जा पहुंचा। सोना आयात में भारी कमी की वजह से इसमें अंततः गिरावट आएगी (रेखा-चित्र 4 और 5)। भारत में दक्षिण अफ्रीका से होने वाले आयात में मुख्‍य रूप से कोयला और सोना शामिल हैं। वर्ष 2015 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में हुए कुल आयात में इन दोनों की हिस्‍सेदारी क्रमश: लगभग 35.2 और 27.6 प्रतिशत रही। भारत में दक्षिण अफ्रीका से सोने के आयात में भारी कमी दर्ज की गई क्‍योंकि भारत ज्‍यादातर सोने का आयात स्विट्जरलैंड से करने लगा। स्विट्जरलैंड में ही बेहतरीन गुणवत्ता वाले स्‍वर्ण परिशोधक (रिफाइनर) होने की वजह से ही ऐसा हुआ। दक्षिण अफ्रीका मुख्‍य रूप से सोने का खनन करने वाला देश है, जबकि वह सोने का परिशोधन करने वाला देश अथवा स्‍वर्ण रिफाइनर नहीं है।

दक्षिण अफ्रीका में प्रमुख भारतीय निवेशकों में टाटा (ऑटोमोबाइल, सूचना प्रौद्योगिकी, आतिथ्य, और फेरोक्रोम संयंत्र), महिंद्रा (ऑटोमोबाइल), और रैनबैक्सी एवं सिप्ला (फार्मास्यूटिकल्स) शामिल हैं। दक्षिण अफ्रीका के लिए भारत सस्ती आवश्यक दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। दवाओं तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने वाली यह साझेदारी वर्ष 2001 से ही चली आ रही है जब भारतीय जेनेरिक दवा निर्माता कंपनी सिप्ला ने एक दिन में एक डॉलर से भी कम मूल्‍य पर एंटीरेट्रोवाइरल (एआरवी) दवाओं का जेनेरिक संस्करण बेचने के लिए स्वेच्छा से कदम उठाया था। आज, दक्षिण अफ्रीकी सरकार अपने राष्ट्रीय उपचार कार्यक्रमों के लिए भारत में विनिर्मित एआरवी पर बहुत ज्‍यादा निर्भर है और दक्षिण अफ्रीका के लिए भारत फार्मास्यूटिकल दवाओं का प्रमुख स्रोत (मात्रा के आधार पर) है। इस लेख में उल्लिखित अन्‍य अफ्रीकी देशों के विपरीत दक्षिण अफ्रीका में अनेक प्रमुख कंपनियां हैं जिन्‍होंने भारत में अच्‍छा-खासा निवेश किया है। इनमें एसएबी मिलर (ब्रेवरीज), एसीएसए (मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में बेहतरी के लिए), सनलाम एवं ओल्ड म्युचुअल (बीमा), अल्‍टेक (टीवी सेट टॉप बॉक्स), एडकॉक इनग्राम (फार्मास्यूटिकल्‍स), और रैंड मर्चेंट बैंक (बैंकिंग) शामिल हैं।

पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के रिश्‍तों के महत्वपूर्ण आयाम 

निम्नलिखित खंड में पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के रिश्‍तों के तीन महत्वपूर्ण आयामों अर्थात ऊर्जा, खाद्य, और समुद्री सुरक्षा पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है।

ऊर्जा सुरक्षा 

अफ्रीका के साथ ऊर्जा सहयोग नब्‍बे के दशक से ही भागीदारी का एक अहम अंग बन गया। उदारीकरण के युग में उच्‍च विकास दर हासिल करने के साथ ही भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में उल्‍लेखनीय वृद्धि दर्ज की जाने लगी और इसके परिणामस्वरूप आयात पर इसकी निर्भरता कई गुना बढ़ गई। वर्ष 2010-11 में कच्चे तेल, कोयला और प्राकृतिक गैस के लिए आयात पर निर्भरता क्रमश: लगभग 79, 18 और 15 प्रतिशत थी। उसी दौरान पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अस्थिरता का दौर शुरू हो गया जिसने भारत को अपने ऊर्जा आयात में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार, भारत के साथ अपनी निकटता और प्रचुर मात्रा में अपने ऊर्जा भंडार के बल पर अफ्रीका विशेष रूप से एक आकर्षक स्रोत बन गया। जैसा कि इस लेख के प्रथम खंड में पाया गया, भारत बड़े पैमाने पर कोयले का आयात मोजाम्बिक और दक्षिण अफ्रीका से करता है जो इसके विद्युत क्षेत्र के लिए अत्‍यंत महत्वपूर्ण है। मोजाम्बिक के साथ भारत का जुड़ाव विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्‍योंकि उसके पास लगभग 100 ट्रिलियन घन फुट का प्रमाणित प्राकृतिक गैस भंडार है। भारत सरकार के स्वामित्व वाली तेल एवं गैस कंपनियां ओएनजीसी विदेश लिमिटेड और ऑयल इंडिया लिमिटेड पहले ही मोजाम्बिक के रोवुमा गैस क्षेत्र में व्‍यापक निवेश कर चुकी हैं। भारत भी अफ्रीकी देशों को रिफाइंड पेट्रोलियम तेलों का एक प्रमुख निर्यातक है। जैसा कि खंड 1 में पाया गया, भारत से क्रमश: मोजाम्बिक, केन्या, तंजानिया एवं दक्षिण अफ्रीका को होने वाले कुल निर्यात में मुख्‍य हिस्‍सा पेट्रोलियम तेल के निर्यात का है। सीआईआई और विश्व व्यापार संगठन के एक संयुक्त अध्ययन में भी यह पाया गया है कि भारत से पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका को मुख्‍यत: पेट्रोलियम उत्पादों का ही निर्यात किया जाता है। ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों की गहरी समझ सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्‍यक है कि ऊर्जा सुरक्षा को मांग और आपूर्ति के संकीर्ण नजरिए से परे देखा जाए। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ‘किफायती मूल्य पर ऊर्जा स्रोतों की निर्बाध उपलब्धता’ के रूप में ‘ऊर्जा सुरक्षा’ को परिभाषित करती है। हालांकि, इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि विकासशील देशों जैसे भारत के साथ-साथ अफ्रीकी देशों के लिए भी ऊर्जा सुरक्षा का मुद्दा स्थूल चिंताओं से परे है। दरअसल, इसकी शुरुआत वितरण नेटवर्कों की स्‍थापना करने, आपूर्ति सुनिश्चित करने, और आबादी के उस बड़े वर्ग को किफायती ऊर्जा मुहैया करने की क्षमता से होती है, जो स्वच्छ ऊर्जा के खपत नेटवर्क के बाहर रहते हैं। भारत और अफ्रीका में करोड़ों लोगों की पहुंच आधुनिक ऊर्जा प्रौद्योगिकियों तक संभव नहीं हो पाई है (तालिका 4)। इन देशों में विद्युतीकरण की रफ्तार धीमी है। खाना पकाने की स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के मामले में तो तस्‍वीर और भी ज्‍यादा भयावह है। खाना पकाने के लिए जैव ईंधन (बायोमास) के पारंपरिक उपयोग पर निर्भर आबादी का अनुपात मोजाम्बिक एवं तंजानिया में 96 प्रतिशत और केन्‍या में 84 प्रतिशत है। इसी तरह भारत में 754 मिलियन लोग अथवा आबादी का लगभग 67 प्रतिशत हिस्‍सा आज भी खाना पकाने के लिए जैव ईंधन (बायोमास) के पारंपरिक उपयोग पर निर्भर है। अत: समेकित ऊर्जा नीति में उल्लिखित ऊर्जा सुरक्षा की यह परिभाषा विकासशील देशों के लिए कहीं अधिक उपयुक्त है: ‘हम ऊर्जा के लिहाज से तब सुरक्षित हैं जब हम देश के सभी नागरिकों को जीवन रेखा ऊर्जा की आपूर्ति उनके पास भुगतान करने की क्षमता की परवाह किए बगैर कर सकें और इसके साथ ही हम संभावित झटकों एवं अवरोधों को ध्‍यान में रखते हुए दृढ़ आत्मविश्वास के साथ उनकी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुरक्षित एवं सुविधाजनक ऊर्जा मुहैया कराने की उनकी वास्‍तविक मांग को हर समय प्रतिस्पर्धी दरों पर पूरा कर सकें।’

अत: भारत और अफ्रीका के बीच ऊर्जा साझेदारी स्वच्छ ऊर्जा के वैश्विक चैंपियन के रूप में भारत के बढ़ते प्रोफाइल के संदर्भ में ही स्‍थापित होनी चाहिए। ‘कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज 21’ में भारत ने वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा को सस्ता और सार्वभौमिक रूप से सुलभ कराने के उद्देश्य के साथ अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का शुभारंभ करने की घोषणा की। इसके अलावा, भारत अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के जरिए ऊर्जा पहुंच कार्यक्रमों का भरपूर समर्थन करके अफ्रीका की ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत ने केन्या में विद्युत पारेषण लाइनों के निर्माण, ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजनाओं, और मोजाम्बिक में सोलर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल के निर्माण संयंत्रों की स्‍थापना में सहूलियत के लिए ऋण मुहैया कराए हैं। वर्ष 2016 में तंजानिया में ‘सोलर मामा’ के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत के दौरान भारत और अफ्रीका के बीच ऊर्जा सहयोग के विकासात्‍मक आयाम पर प्रकाश डाला गया। अब तक 1,60,000 से भी अधिक लोगों को ‘बेयरफुट दृष्टिकोण’ के जरिए सौर विद्युतीकरण प्राप्त हुआ है। ‘सोलर इंजीनियर’ बनाने के लिए अनपढ़ और अर्द्ध साक्षर अफ्रीकी महिलाओं को प्रशिक्षि‍त करने से भी अफ्रीका के निर्धनतम समुदायों के जीवन पर आश्‍चर्यजनक सकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। संक्षेप में, भारत और अफ्रीका दोनों ही एक-दूसरे की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अत्‍यंत महत्वपूर्ण हैं।

खाद्य सुरक्षा

पिछले दशक के दौरान खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भारत और अफ्रीकी देशों के बीच सहयोग में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिली। जहां तक खाद्य वस्तुओं के व्यापार का सवाल है, इसमें वर्ष 2000 से ही निरंतर वृद्धि दर्ज की जा रही है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वर्ष 2008, 2011, और वर्ष 2015 में आयोजित किए गए सभी तीनों भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलनों में खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण थीम थी। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी की अफ्रीका यात्रा के दौरान मोजाम्बिक से दालों की खरीद के लिए एक दीर्घ‍कालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने से भारत-अफ्रीका भागीदारी के इस महत्वपूर्ण आयाम की ओर सभी का ध्‍यान आकृष्‍ट हुआ। जैसा कि खंड-I में पाया गया, मोजाम्बिक और तंजानिया पहले से ही भारत के लिए दालों के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। लेकिन मोजाम्बिक से दालों की खरीद के लिए किया गया दीर्घ‍कालिक समझौता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रोटीन के मुख्य स्रोत के रूप में बड़ी संख्‍या में लोगों द्वारा पसंद की जाने वाली दालों की किल्‍लत भारत में शुरू से ही रही है। दालों की घरेलू मांग और आपूर्ति के बीच की खाई के भविष्य में और ज्‍यादा बढ़ने का अंदेशा है क्‍योंकि अल्पावधि में इनके उत्‍पादन में व्‍यापक वृद्धि के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। यह समझौता मोजाम्बिक के किसानों के लिए भी अनुकूल है क्योंकि यह सहकारी मॉडल पर आधारित है जिसके तहत भारत मोजाम्बिक के किसानों के एक नेटवर्क की पहचान करेगा और फि‍र उन्नत बीजों एवं प्रौद्योगिकी को उपलब्ध कराने में उनकी मदद करने के साथ-साथ दालों की उन किस्मों का उत्पादन करने के लिए भी उनकी सहायता करेगा जो भारतीय स्वाद के अनुरूप मानी जाती हैं। इसके अलावा, भारत जिस दर पर दालों की खरीद करेगा वह भारतीय किसानों को पेशकश किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं होगी। इसके परिणामस्वरूप मोजाम्बिक के किसानों को न्यूनतम जोखिमों का ही सामना करना पड़ेगा क्योंकि इसकी कीमत के साथ-साथ उसकी आयात मात्रा के बारे में भी आश्वासन दिया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में दालें पूर्वी अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी का एक महत्वपूर्ण आयाम हैं। भारत अपनी ओर से उन्हें कृषि प्रौद्योगिकी को और अधिक आसानी से सुलभ कराते हुए इन देशों में खाद्य सुरक्षा में बेहतरी लाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है। दो संस्थानों, अर्द्ध शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) और अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आईएलआरआई) ने कृषि एवं खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भारत-अफ्रीका सहयोग की अगुवाई की। उदाहरण के लिए, आईएलआरआई पशुओं के सतत उपयोग के जरिए गरीबी कम करने और खाद्य सुरक्षा में बेहतरी लाने से जुड़े कार्यक्रमों को नियमित रूप से मोजाम्बिक, तंजानिया और केन्या में आयोजित करता है। इस बीच, आईएलआरआई की ‘आईएम बकरी’ परियोजना के तहत उन ग्रामीण गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं की आय बढ़ाने के लिए भारत और मोजाम्बिक में बकरी मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत बनाने पर ध्‍यान केंद्रित किया जाता है, जो अपनी आजीविका के लिए बकरी पालन पर निर्भर हैं। खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में तंजानिया और केन्या के साथ भारत के सहयोग के तहत मुख्य रूप से डेयरी क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया गया है। उदाहरण के लिए, आईएलआरआई की दूध आईटी परियोजना का उद्देश्‍य छोटी जोत वाले धारकों अथवा छोटे किसानों के उत्पादन में वृद्धि के जरिए डेयरी आधारित आजीविका में बढ़ोतरी करना है। विश्व बैंक की वित्‍तीय मदद से भारत और तंजानिया के बीच चलाए गए ज्ञान आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत तंजानिया के अधिकारियों को भारत की ‘श्वेत क्रांति’ के बारे में भी प्रत्‍यक्ष जानकारी मिली और उन्‍होंने ज्ञान आदान-प्रदान कार्यक्रम के दौरान अर्जित नवीन ज्ञान एवं कौशल पर आधारित डेयरी संबंधी सुधारों को तंजानिया में लागू किया। भारत इसके अलावा तंजानिया के किसानों को ट्रैक्टर उपलब्‍ध कराते हुए वहां कृषि यंत्रीकरण की दिशा में भी योगदान दे रहा है । इसके तहत 288 भारतीय ट्रैक्टरों की पहली खेप वर्ष 2010 में तंजानिया भेजी गई थी। केन्याई सरकार ने भी डेयरी क्षेत्र में भारतीय अनुभव से प्रेरणा ली है और वह अपने यहां दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत के साथ साझेदारी कर रही है। उदाहरण के लिए, भारत-केन्या डेयरी अभिनव संपर्क (ब्रिज) कार्यक्रम का उद्देश्‍य भारत के डेयरी क्षेत्र में अपनाए गए प्रमुख नवाचारों पर अमल करके केन्या के डेयरी उद्योग में भी व्‍यापक बदलाव लाना है। परियोजना का लक्ष्‍य छोटे किसानों की आय बढ़ाने और पोषण सुरक्षा की प्राप्ति पर विशेष जोर देते हुए केन्या में समूची डेयरी मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना है। एक्जिम बैंक के रियायती ऋण भी पूर्वी अफ्रीका में खाद्य असुरक्षा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उदाहरण के लिए, एक्जिम बैंक ने मोजाम्बिक में चावल, गेहूं, और मक्के की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण दिया है। एक्जिम बैंक ने भारत से तंजानिया को ट्रैक्टरों, पंपों, और उपकरणों का निर्यात करने के लिए भी 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण दिया है।

समुद्री सुरक्षा सहयोग

वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री की अफ्रीका यात्रा के दौरान समुद्री सुरक्षा के लिए आपसी सहयोग को और ज्‍यादा बढ़ाने पर प्रमुखता से चर्चा हुई। आखिरकार, यह क्षेत्र भारत की सामरिक समुद्री सीमा का एक हिस्सा है और भारत के लिए ऊर्जा एवं व्यापार की मुख्य आपूर्ति लाइन है। भारत के कुल तेल आयात के लगभग 89 प्रतिशत की ढुलाई हिंद महासागर क्षेत्र के जरिए ही होती है। इसी तरह, भारत कोयले का भी व्‍यापक आयात मोजाम्बिक और दक्षिण अफ्रीका से करता है। अत: आवागमन वाले समुद्री मार्गों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। समुद्री डकैती के साथ-साथ सोमालिया के समुद्री डाकुओं की सशस्त्र डकैती हिंद महासागर में सुरक्षा से जुड़ी मुख्य चिंताएं हैं। समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिए भारत ने वर्ष 2008 से ही अदन की खाड़ी के समुद्री डकैती की आशंका वाले क्षेत्रों में नौसैनिकों की मौजूदगी सुनिश्चित कर दी है। विगत वर्षों के दौरान पूर्वी एवं दक्षिण अफ्रीकी देशों के साथ भारत के समुद्री संबंध और भी ज्‍यादा मजबूत हुए हैं। वर्ष 2004 में भारत के राष्ट्रपति के तंजानिया दौरे से इस देश के साथ भारत के संबंध बेहतर होने का मार्ग प्रशस्‍त हुआ, जिसके परिणामस्‍वरूप भारत में तंजानिया के सैन्य कर्मियों को अपेक्षाकृत ज्‍यादा प्रशिक्षण देने के लिए समझौता हुआ। भारत ने वर्ष 2003 में मापुटो में अफ्रीकी संघ शिखर सम्मेलन के दौरान और फि‍र वर्ष 2004 में विश्व आर्थिक फोरम की बैठक के लिए मोजाम्बिक तट पर संयुक्त गश्त भी प्रदान की। भारत ने वर्ष 2006 में मोजाम्बिक के साथ एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और उसके बाद से ही भारतीय नौसेना मोजाम्बिक के तट पर नियमित रूप से गश्त लगाती आ रही है और इसके साथ ही यह उसे हथियारों एवं सेवाओं की आपूर्ति भी करती है। भारत केन्या के नौसेना अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ केन्या को सीमित रक्षा सहायता भी सुलभ कराता है, लेकिन यह अतीत में एक महत्वपूर्ण समुद्री भागीदार के रूप में खुद को पेश करने में काफी हद तक नाकाम रहा है। वर्ष 2016 में केन्या की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारत एवं केन्या के बीच अधिक से अधिक समुद्री सहयोग की जरूरत को रेखांकित किया और ज्‍यादा से ज्‍यादा कर्मचारियों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने, विशेषज्ञता एवं अनुभवों को साझा करने, प्रशिक्षण एवं संस्था निर्माण, जल विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग करने, और उपकरणों की आपूर्ति के लिए एक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। सुरक्षा अध्ययन संस्थान द्वारा वर्ष 2012 में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री डकैती के कारण केन्या के शिपिंग उद्योग को हर साल 300 मिलियन से लेकर 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अत: दोनों देशों के बीच घनिष्ठ सुरक्षा सहयोग केन्याई अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित होगा। भारत एवं दक्षिण अफ्रीका ने भी वर्ष 2005, 2008, और वर्ष 2010 में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास का आयोजन किया। हालांकि, एक क्षेत्रीय नेता के रूप में दक्षिण अफ्रीका की अहम स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए भारत को उप-सहारा अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका के प्रभाव का उपयोग करने का लक्ष्य तय करना चाहिए, ताकि हिंद महासागर में भारत की अगुवाई के लिए आम सहमति कायम की जा सके। इसके अलावा, ब्‍लू इकोनॉमी के क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका द्वारा हाल ही में किए गए ठोस प्रयासों से भी भारत काफी कुछ सीख सकता है। आवागमन वाले समुद्री मार्गों की सुरक्षा नि:संदेह भारत के लिए अत्‍यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यापार काफिले का संरक्षण हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सुरक्षा नीति का एकमात्र पहलू नहीं है। हाल के वर्षों में समुद्री विकास और ‘ब्लू इकोनॉमी’ पर विशेष जोर देने का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। दक्षिण अफ्रीका इस मामले में भारत के लिए एक अच्छा उदाहरण साबित हो सकता है। दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने वर्ष 2014 में अपनी समुद्री अर्थव्यवस्था के विकास के उद्देश्य से ‘ऑपरेशन फाकिसा’ नामक परियोजना का शुभारंभ किया था। दक्षिण अफ्रीकी सरकार के अनुमानों के अनुसार, महासागरों में वर्ष 2033 तक दक्षिण अफ्रीका के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 177 अरब रैंड (लगभग 12.8 अरब अमेरिकी डॉलर) का योगदान करने और लगभग 1 मिलियन रोजगारों को सृजित करने की क्षमता है। देश के विशाल समुद्र तट की क्षमता का दोहन करने के लिए दक्षिण अफ्रीकी सरकार प्रयोगात्मक प्रयोगशालाओं में एक साथ काम करने के लिए सरकारी हलकों, कारोबारी जगत, श्रम, और शिक्षा क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एकजुट कर रही है। इन चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की गई है: समुद्री परिवहन एवं विनिर्माण, अपतटीय तेल एवं गैस खोज, एक्वाकल्चर से जुड़े अनगिनत कार्य, समुद्री सुरक्षा सेवाएं, और महासागर से जुड़ा गवर्नेंस। भारत को इनमें से प्रत्‍येक क्षेत्र में दक्षिण अफ्रीका के साथ साझेदारी के लिए पुरजोर प्रयास करना चाहिए। हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के एक सफल सुरक्षा प्रदाता बनने के लिए उसे एक ऐसा व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्‍यकता है जिसके तहत सुरक्षा के साथ-साथ विकास पर भी पर्याप्त जोर हो। अभिजीत सिंह जैसे विश्लेषकों के मुताबिक, समय की मांग यही है कि एक समग्र मॉडल को अपनाया जाए जिसमें सुरक्षा, बुनियादी ढांचे का निर्माण, औद्योगिक क्षमता का निर्माण, समुद्री विकास, अफ्रीका में कानूनी व्यवस्थाओं एवं संस्थानों का सुदृढ़ीकरण, और समुद्री संसाधनों का सतत प्रबंधन शामिल हों।

निष्कर्ष

इस लेख से पता चला है कि विगत दशक में भारत और उपर्युक्‍त चारों अफ्रीकी देशों के बीच आर्थिक रिश्‍तों की डोर काफी मजबूत हुई है। उदाहरण के लिए, आपसी व्यापार काफी तेजी से फल-फूल रहा है। हालांकि, इन देशों के साथ आपसी व्‍यापार में महज कुछ वस्तुओं (कोयला, सोना, और रिफाइंड पेट्रोलियम तेल) का ही वर्चस्‍व रहा है। इसके साथ ही कई भारतीय कंपनियों ने इन देशों में मुख्य रूप से संसाधन क्षेत्र में भारी-भरकम निवेश भी किया है। पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत की साझेदारी के केंद्र में नि:संदेह ऊर्जा सुरक्षा ही है। हालांकि, इस लेख में अफ्रीकी देशों से महज संसाधन आयात से परे देखने की अहमियत को रेखांकित किया गया है। अफ्रीकी देश न केवल ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, बल्कि भारत से रिफाइंड पेट्रोलियम तेलों के निर्यात के प्रमुख गंतव्य भी हैं। इसके अलावा, भारत इन देशों की गरीब आबादी को स्‍वच्‍छ ऊर्जा की उपलब्‍धता सुनिश्चित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसी तरह, दालों का आयात भारत की खाद्य सुरक्षा के लिहाज से अत्‍यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही भारत भी ज्ञान को साझा करके एवं अफ्रीकी किसानों को और अधिक आसानी से नई तकनीक सुलभ कराके अफ्रीका की खाद्य असुरक्षा को दूर करने में अहम भूमिका निभा रहा है। यहां तक कि समुद्री सहयोग के मामले में भी इस लेख में यह दलील दी गई है कि भारत के हित सिर्फ ऊर्जा को हासिल करने और संसाधनों की ढुलाई तक ही सीमित नहीं हैं। ‘ब्लू इकोनॉमी (समुद्र की बदौलत आर्थिक विकास)’ पर विशेष जोर देने का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है। चूंकि मुख्‍य रूप से अर्थनीति ही पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के साथ भारत के रिश्‍तों को नया आयाम दे रही है, इसलिए भारत और इन देशों के बीच घनिष्ठ आर्थिक एवं सुरक्षा संबंध निश्चित रूप से इन सभी के हित में होंगे।

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