चीन की सुरक्षा को लेकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) ने जो आकलन किया है, उसके मुताबिक़ ख़तरे की आशंका में बढ़ोतरी हुई है. “दो सत्रों (सेशन्स)”- चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस और राजनीतिक सलाहकार संस्था चाइनीज़ पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस की सालाना संसदीय बैठक, जो कि चीन की नीतिगत दिशा को समझने के लिए एक बैरोमीटर के तौर पर काम करती है- के दौरान चीन के सत्ताधारी वर्ग से जुड़े लोगों ने अपनी चिंता को सबके सामने ज़ाहिर किया. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों के गठबंधन की वजह से मिली गंभीर चुनौतियों के बारे में बात की. उनके मुताबिक़ पश्चिमी देश चीन को घेरना और उसे कुचलना चाहते हैं. चीन के विदेश मंत्री चिन गांग ने एक बार फिर ज़िम्मेदारी अमेरिका पर डालते हुए सावधान किया कि अगर अमेरिका अपने मौजूदा तौर-तरीक़े से बाज़ नहीं आता है तो इससे विरोध और संघर्ष में बढ़ोतरी हो सकती है. चीन के सामने इन “जोखिमों” को देखते हुए पार्टी के लिए शी का मंत्र रहा है: पक्के इरादे वाला बनना, स्थिरता के ज़रिए मज़बूत बनना, कामयाबी के लिए कोशिश करना और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि संघर्ष के लिए हिम्मत होना.
पार्टी के 20वें सम्मेलन के दौरान शी का भाषण 2027 तक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के आधुनिकीकरण और इसका कायापलट करके विश्व स्तरीय सेना में बदलने की ज़रूरत को उजागर करता है. हाल के वर्षों में PLA के आधुनिकीकरण ने रफ़्तार पकड़ी है और इसके साथ-साथ चीन-भारत सीमा, पूर्वी चीन सागर और दक्षिणी चीन सागर में इसकी आक्रामकता में भी बढ़ोतरी हुई है. PLA ने ताइवान स्ट्रेट में बार-बार अभ्यास किया है. इन अभ्यासों के ज़रिए ताइवान की सरकार को चीन संदेश देना चाहता है और डर दिखाकर आज़ादी की मांग से उसे रोकना चाहता है. वैसे तो अमेरिका ने चीन की चुनौती के जवाब में पूर्वी एशिया में अपने गठबंधन को फिर से मज़बूत किया है लेकिन चीन इस परिस्थिति को अलग ढंग से और अपने राष्ट्रवाद के चश्मे से देखता है. साथ ही वो इस स्थिति को ‘अपमान की सदी’ की सोच (नैरेटिव) से भी देखता है. ‘अपमान की सदी’ का संदर्भ 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 19वीं सदी के मध्य तक है जिस दौरान कई पश्चिमी देशों और जापान ने चीन में सैन्य दखल दिया.
सेना को युद्ध के लिए तैयार करना
सेना के अख़बार PLA डेली के एक लेख में कहा गया है कि दक्षिण कोरिया और जापान के बीच एक दशक के अंतराल के बाद घनिष्ठता के पीछे अमेरिका का हाथ है. इसके लिए जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल के इस साल के दौरों का ज़िक्र किया गया है. इसके अलावा यून ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से भी मुलाक़ात की. यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले झांग युआन कोंग और चेन यू का कहना है कि PLA को ‘बेहद सतर्क’ रहना चाहिए. वो सावधान करते हैं कि अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच बार-बार सैन्य अभ्यास और ड्रिल क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है. दोनों रिसर्चर्स एशिया में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सैन्य सहयोग को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा और न्यूज़ीलैंड के बीच खुफ़िया जानकारी साझा करने की ‘फाइव-आइज़’ व्यवस्था से मिलते-जुलते गठबंधन के लक्षण के तौर पर देखते हैं. इस तरह चीन के रणनीतिकार मानते हैं कि अमेरिका नेटो की तरह एशिया में एक त्रिपक्षीय सैन्य गुट और एंग्लोस्फेयर (अंग्रेज़ी बोलने वाले देश) की तरह खुफिया जानकारी साझा करने की व्यवस्था तैयार करेगा.
चीन के सामने इन “जोखिमों” को देखते हुए पार्टी के लिए शी का मंत्र रहा है: पक्के इरादे वाला बनना, स्थिरता के ज़रिए मज़बूत बनना, कामयाबी के लिए कोशिश करना और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि संघर्ष के लिए हिम्मत होना.
रिसर्चर्स के पेपर में चीन के पड़ोस में “ख़तरनाक” परमाणु हथियारों की रेस की भविष्यवाणी भी की गई है. इसके समर्थन में हाल के समझौते का हवाला दिया गया है जिसके तहत अमेरिका दक्षिण कोरिया के समुद्र में परमाणु पनडुब्बियों को तैनात कर सकता है. शी जिनपिंग के शासन में चीन की घरेलू राजनीति के संवाद में ऐतिहासिक ग़लतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की गई है, ख़ास तौर पर युद्ध के दौरान चीन में जापान की भूमिका को. इस पृष्ठभूमि को देखते हुए CPC को लगता है कि जापान ने अपनी सैन्यवादी महत्वाकांक्षा पाल रखी है जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद “युद्धविरोधी संविधान” ने दबा रखा था. अब चीन को जापान से काफ़ी ख़तरा दिख रहा है क्योंकि वो कथित तौर पर परमाणु हथियार विकसित कर रहा है. ये याद किया जा सकता है कि 2022 में अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के जवाब में ताइवान स्ट्रेट में चीन के युद्ध अभ्यास के दौरान मिसाइल जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन) में गिर गई थी. जापान में ये सोच है कि ताइवान पर चीन के आक्रमण की स्थिति में जापान को भी ख़तरा हो सकता है. इसकी वजह से अमेरिका और जापान के बीच सुरक्षा सहयोग में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन अपने पड़ोस में इस तरह की हलचल का इस्तेमाल चीन अपने लोगों के बीच इस तरह से कर रहा है कि उसकी सुरक्षा ख़तरे में है.
रक्षा रणनीति के केंद्र में लोग
इसके साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि नागरिक-सैन्य (सिविल-मिलिट्री) मेलजोल की चीन की धारणा में नागरिकों को किस प्रकार मज़बूत बनाया जा रहा है. चीन के रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से पिछले दिनों जारी एक आदेश में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय रक्षा की शिक्षा’ की धारणा पार्टी के लिए रणनीतिक महत्व की है. इसमें इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि राष्ट्रीय रक्षा की शिक्षा को मज़बूत करने के लिए शी जिनपिंग के शासन में शहीद दिवस और राष्ट्रीय बलिदान दिवस, इत्यादि जैसे सार्वजनिक समारोहों के ज़रिए क़दम उठाए गए हैं जिन्होंने राष्ट्रीय संकल्प को बढ़ावा दिया है और रक्षा जागरूकता में बढ़ोतरी की है. ये चीन में सर्वोच्च स्तर से की गई पहल नहीं है जिसका सबूत हेबेई प्रांत के बझाऊ सिटी की स्थानीय नगरपालिका की वेबसाइट पर ‘नये युग में राष्ट्रीय रक्षा शिक्षा नीति में सुधार’ की थीम पर प्रकाशित एक लेख से मिलता है. निर्देश में ये कहा गया है कि राष्ट्रीय रक्षा शिक्षा की धारणा को सुधारने की ज़िम्मेदारी शैक्षणिक संस्थानों पर है और इस धारणा को हर हाल में परीक्षा की प्रणाली से जोड़ना है. निर्देश में ये भी कहा गया है कि इस बात की संभावना तलाश करनी चाहिए कि क्या रिटायर्ड सैन्य कर्मी राष्ट्रीय रक्षा शिक्षा में युवाओं के शिक्षक बन सकते हैं. ये PLA में शामिल करने से पहले अगली पीढ़ी (जेन नेक्स्ट) को देश की रक्षा से जोड़ने की CCP की एक पहल है. इशारा मिलते ही सेना में भर्ती के लिए संशोधित नियमों, जिसे मई में लागू किया गया, में स्थानीय सरकारों के लिए ये तय किया गया कि वो भर्ती के अभियानों का व्यापक प्रचार करें और जो संगठन इसका प्रचार करेंगे उन्हें “ज़्यादा क्षमता वाले सैनिकों” को शामिल कराने के लिए इनाम मिलेगा.
शी जिनपिंग के शासन में चीन की घरेलू राजनीति के संवाद में ऐतिहासिक ग़लतियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की गई है, ख़ास तौर पर युद्ध के दौरान चीन में जापान की भूमिका को. इस पृष्ठभूमि को देखते हुए CPC को लगता है कि जापान ने अपनी सैन्यवादी महत्वाकांक्षा पाल रखी है.
ऐसा देश जहां सरकार यह फ़ैसला लेती है कि किस तरह की फ़िल्म उसके लोग देख सकते हैं, वहां सिनेमा CCP के द्वारा युवाओं को अपने सांचे में ढालने और उन्हें इकट्ठा करने के मक़सद से एक ताक़तवर ज़रिया है. हाल ही में रिलीज़ चाइनीज़ मूवी “बॉर्न टू फ्लाई” CPC के राजनीतिक विषय को दोहराती है. इन राजनीतिक विषयों में दूसरी बातों के अलावा चीन की घेराबंदी, तकनीकी पाबंदी और विदेशी ताक़तों के साथ सैन्य संघर्ष शामिल हैं. इस सिनेमा का मुख्य विषय है कि चीन पांचवीं पीढ़ी के एयरक्राफ्ट को टेस्ट करने के लिए बेहद हुनरमंद पायलट, जिन्हें कई तरह के सहनशक्ति वाले अभ्यासों के ज़रिए चुना गया है, की टीम को इकट्ठा करता है. इस तरह शी जिनपिंग चीन के समाज को सख़्त बनाने के लिए देशभक्ति, एकता और अनुशासन जैसे सैन्य मूल्यों को लोगों में डालना चाहते हैं.
सेना के लिए भी कई नई चीज़ें हैं. शी जिनपिंग ने PLA के दक्षिणी थिएटर कमांड का निरीक्षण करने के बाद अपने जनरल को निर्देश दिया कि असली युद्ध जैसे हालात की तरह सैनिकों की ट्रेनिंग में सुधार लाएं. इस तरह उन्होंने ट्रेनिंग में कमी को दूर करने के साथ युद्ध पर रिसर्च में बेहतरी की ज़रूरत को उजागर किया. उन्होंने ये भी कहा कि PLA और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स (चीन का अर्धसैनिक बल) एकीकृत रणनीति तैयार करें और देश की सुरक्षा के लिए एक रिज़र्व फोर्स बनाएं.
अंत में, सबसे पहले हमें इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि चीन घेराबंदी का एक मंडराता संकट लोगों के दिमाग़ में भर रहा है और उसी दलील का इस्तेमाल कर रहा है जो रूस ने यूक्रेन पर हमले को सही ठहराने के लिए किया था यानी नेटो का विस्तार. इस तरह चीन सैन्य आक्रमण की ज़मीन तैयार कर रहा है. ये अलग बात है कि रूस अपने लोगों के बीच युद्ध को “बेचने” में शायद कामयाब नहीं हो पाया जिसकी वजह से बहुत से लोग अपना देश छोड़कर भाग गए. लेकिन इसके बावजूद चीन युद्ध के लिए तैयारी कर रहा है. एक देश के तौर पर चीन ने दूसरे देशों के संघर्ष का अध्ययन करने में समय दिया है क्योंकि उसके सैनिकों के पास युद्ध का अनुभव नहीं है और इस तरह वो रूस की तरफ़ से की गई ग़लतियों को ठीक करना और अपने लोगों को सख़्त बनाना चाहता है.
Kalpit A Mankikar, ORF के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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