Published on Jan 14, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद के इतिहास को समझने के लिए तिब्बत के इतिहास को समझना ज़रूरी है. 

चीन का आख़िरी शांगरी-ला पर दावा?

हाल की ख़बरें और सैटेलाइट तस्वीरें बताती हैं कि चीन ने भूटान की सीमा के दो किलोमीटर भीतर एक नया गांव बसाया है. ये गांव विवादित डोकलाम पठार के पूर्व में बाहरी इलाक़े में स्थित है जहां 2017 में भारत और चीन के बीच गतिरोध की स्थिति बनी थी.

भूटान और चीन के बीच मौजूदा 470 किलोमीटर लंबी सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है और कई दशकों से इस सीमा का 25 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा विवादित है. उत्तरी सेक्टर में विवादित क्षेत्र में वांगडु फोडरांग ज़िले में स्थित 495 वर्ग किलोमीटर में फैला जकुरलंग और पासमलंग घाटी शामिल हैं. दूसरे विवादित क्षेत्रों में भूटान के उत्तरी-पश्चिम हिस्से में स्थित समस्ते, हा और पारो ज़िले में 269 वर्ग किलोमीटर में फैला डोकलाम, सिनचुलंग, ड्रमाना और शाखाटोई शामिल हैं. भूटान के इन इलाक़ों पर चीन का दावा पूरी तरह तिब्बत के दावों पर निर्भर है और इसलिए चीन और भूटान के बीच मौजूदा सीमा विवाद को समझने के लिए तिब्बत और भूटान के बीच ऐतिहासिक संबंधों को समझना ज़रूरी है.

चीन और भूटान के बीच मौजूदा सीमा विवाद को समझने के लिए तिब्बत और भूटान के बीच ऐतिहासिक संबंधों को समझना ज़रूरी है.

आठवीं सदी की शुरुआत में जब तिब्बत एक सैन्य ताक़त था तो उसने भूटान पर आक्रमण किया. लामा दक्षिणी घाटी में बस गए (जब भूटान एकीकृत नहीं था तो उसका नाम दक्षिणी घाटी था और ये तिब्बत के ठीक दक्षिण में स्थित था) और स्थानीय लोगों से उन्होंने शादी  की. नौवीं शताब्दी में तिब्बत की सेना भले ही भूटान से चली गई लेकिन लामा अक्सर भूटान के दौरे पर आते रहे जहां वो आध्यात्मिक और लौकिक शक्ति का अभ्यास करते थे. 17वीं सदी के मध्य में तिब्बत के शासकों द्वारा निर्वासित एक शरणार्थी गवांग नामग्याल ने भूटान को एकीकृत किया.

19वीं सदी की शुरुआत में भारत के ब्रिटिश शासकों ने तिब्बत के साथ व्यापार के रास्तों की तलाश शुरू की. कूच बिहार को लेकर एंग्लो-भूटान युद्ध हारने के बाद भूटान को मजबूर होकर तिब्बत के लिए पहली ब्रिटिश यात्रा का इंतज़ाम करना पड़ा. तिब्बत को जब इस यात्रा के बारे में पता चला तो उसने चुंबी घाटी में एक सैन्य चौकी की स्थापना की जिसे ब्रिटेन ने आसानी से पार कर लिया. ब्रिटेन को चिंग राजवंश की कमज़ोरी का पता चल गया और उसने सिक्किम और तिब्बत के शासकों को 1890 के एंग्लो-चीन समझौते के द्वारा डोकलाम पठार पर सीमा को तय करने का ज़िम्मा सौंप दिया. त्रिकोणीय जंक्शन के एक महत्वपूर्ण हिस्से भूटान को इस समझौते में शामिल होने का मौक़ा 20 साल के बाद मिला.

तीस्ता नदी के पानी पर विवाद

डोकलाम पठार पर समस्या की शुरुआत इस समझौते के साथ हुई जिसमें सिक्किम और तिब्बत की सीमा का साफ़ तौर पर ज़िक्र नहीं था. इसमें कहा गया कि सिक्किम और तिब्बत के बीच सीमा पर्वत श्रृंखला की चोटी होगी जो सिक्किम की तीस्ता और उसकी सहायक नदियों के पानी को तिब्बत की मोचू और उसके उत्तर में बहने वाली दूसरी नदियों के पानी से अलग करती है.

चीन दावा करता है कि सीमा रेखा की शुरुआत माउंट गिपमोची से होती है और सीमा में चुंबी घाटी के भीतर डोकलाम का पूरा क्षेत्र शामिल है जो दक्षिण में जंफेरी रिज पर ख़त्म होता है और पूर्व में डोकलाम नदी को जोड़ने वाला बिंदु हैf

इस समझौते की व्याख्या के ज़रिए चीन दावा करता है कि सीमा रेखा की शुरुआत माउंट गिपमोची से होती है और सीमा में चुंबी घाटी के भीतर डोकलाम का पूरा क्षेत्र शामिल है जो दक्षिण में जंफेरी रिज पर ख़त्म होता है और पूर्व में डोकलाम नदी को जोड़ने वाला बिंदु है. लेकिन आधुनिक मानचित्र का अध्ययन दिखाता है कि पर्वत श्रृंखला की वास्तविक चोटी गिपमोची (14,518 फीट) के मुक़ाबले मेरुंग ला (15,266 फीट) है. इसलिए त्रिकोणीय जंक्शन बाटुंग ला पर होगा और भूटान की सीमा डोकलाम के उत्तरी रिज से होकर चलेगी और इसमें महत्वपूर्ण जंफेरी रिज शामिल है. चीन ने अक्सर इस क्षेत्र पर दावा किया है और ये माओ की फाइव फिंगर नीति थी जिसके तहत भूटान के इस क्षेत्र पर चीन अपना दावा करता है. चीन सीमा के उत्तरी क्षेत्र पर भी आक्रामक रूप से अपना दावा करता है और इसके लिए वो चरवाहों को वहां भेजता है और भूटान की सीमा के भीतर जाकर सैन्य गश्ती करता है. चीन ने ऐसे नक्शे प्रकाशित किए हैं जो डोकलाम पठार और भूटान के उत्तरी क्षेत्र के कुछ हिस्से को चीन के नियंत्रण में दिखाते 

चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर बातचीत के अब तक के सफ़र को तीन चरणों में बांटा जा सकता है. पहला चरण 1984 में शुरू हुआ जिसके तहत औपचारिक सीमा वार्ता और दोनों देशों के बीच आपसी विवाद के मुद्दों पर चर्चा हुई. 70 के दशक के अंत तक चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद को चीन-भारत के बीच सीमा विवाद का विस्तारित हिस्सा समझा जाता था और औपचारिक तौर पर भूटान ने कभी चीन के साथ बात नहीं की.

सिलिगुड़ी कॉरिडोर का सामरिक महत्व

दूसरा चरण पुनर्विभाजन का है जब 1996 में भूटान को एक पैकेज डील की पेशकश की गई. चीन ने भूटान को उत्तरी सेक्टर में दूरदराज के जकुरलंग और पासमलंग घाटी में 495 वर्ग किलोमीटर इलाक़े की पेशकश की जहां कोई रहता नहीं था और पूरा इलाक़ा बर्फ़ से ढंका था. इसके बदले चीन ने डोकलाम पठार पर सामरिक इलाक़े सिनचुलंग और शाखाटोई की मांग की. ये इलाक़े संकीर्ण चुंबी घाटी को अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करा सकते थे और यहां से सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नज़र रखा जा सकता है. सिलिगुड़ी कॉरिडोर सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि ये भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्यों को देश के बाक़ी हिस्सों से जोड़ता है. लेकिन चीन के पैकेज डील पर सहमति नहीं बन पाई क्योंकि भारत के कहने पर भूटान ने इसे ख़ारिज कर दिया. दो साल बाद 1998 में चीन और भूटान ने एक शांति समझौते पर दस्तख़त किए और वादा किया कि भूटान-चीन सीमा इलाक़ों में शांति और स्थिरता बरकरार रखेंगे. ये समझौता महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार चीन ने भूटान को स्वतंत्र और संप्रभु देश के तौर पर मान्यता दी थी.

चीन ने डोकलाम पठार पर सामरिक इलाक़े सिनचुलंग और शाखाटोई की मांग की. ये इलाक़े संकीर्ण चुंबी घाटी को अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करा सकते थे और यहां से सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नज़र रखा जा सकता है. 

तीसरा और आख़िरी चरण संबंधों को सामान्य करने वाला चरण है. इसके तहत दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर कई बार बातचीत हुई और चीन ने भूटान पर दबाव देकर भूटान की सबसे ऊंची पर्वत चोटी कुला कांगरी उसे सौंपने की मांग की. चीन की सरकार ने भूटान में आर्थिक भागीदारी का वादा किया और पिछले कुछ वर्षों में चीन ने दूरसंचार और कृषि के उत्पादों का निर्यात शुरू किया है लेकिन सीमा को लेकर बातचीत एक बिंदु से आगे नहीं बढ़ी है. 

2017 में भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच डोकलाम में सैन्य गतिरोध के हालात बने. ये इलाक़ा डोंगलांग के त्रिकोणीय जंक्शन के नज़दीक है. डोकलाम के विवादित इलाक़े में चीन को सड़क बनाते हुए पाया गया. जून में वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ़) की बैठक में चीन ने भूटान के पूर्व में स्थित सकतेंग वाइल्ड लाइफ़ सेंचुरी की एक परियोजना के लिए फंड देने पर ये कहकर आपत्ति जताई कि ये इलाक़ा विवादित क्षेत्र हैं.

740 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाक़े पर पहली बार चीन ने दावा किया है. सीमा को लेकर किसी भी बातचीत में इसका ज़िक्र नहीं किया गया था. 24 बार सीमा को लेकर बातचीत हुई है लेकिन 2017 के डोकलाम गतिरोध के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत अचानक थम गई. हाल में अरुणाचल प्रदेश (जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है) में तवांग के नज़दीक एक इलाक़े पर चीन का दावा दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है ताकि भारत सरकार डोकलाम संकट को निपटाएं और भूटान को बातचीत के लिए तैयार करे.

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