चीन की विश्वव्यापी मौजूदगी और पिछले कुछ दशकों में नाटकीय तरक़्क़ी के बावजूद, इसकी इंटेलिजेंस सेवाएं दुनिया की निगाहों से छिपी रहने में कामयाब रही हैं. युद्ध संचालन के मौजूदा आयाम को देखते हुए चीनी ख़ुफ़िया अभियानों पर जानकारी की कमी आज की दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई है. इस तरह चाइनीज़ इंटेलिजेंस सर्विसेज (सीआईएस) अब तक वैश्विक समुदाय को चकमा देने में सफल रही है और ख़ास पहचान या अपनी ख़ुफ़िया सेवाओं के लिए संक्षिप्त नाम देने के आम चलन को न अपनाकर सर्वोच्च गोपनीयता के आख्यान का प्रचार करती रही है. इसी के मद्देनज़र विश्लेषकों ने सीआईएस को बेहतर ढंग से समझने और उनके कार्यों का ख़ाका बनाने की कोशिश की है, ताकि उनके नए दांव और हितों का आकलन किया जा सके.
पारंपरिक दृष्टिकोण ऐसा मानता है कि सीआईएस किसी दूसरी इंटेलिजेंस सर्विस जैसी नहीं है क्योंकि इसकी रणनीति ‘रेत के हज़ार कण’ पर आधारित है. इस विचारधारा के तहत सीआईएस पेशेवर जासूसों की मदद से जासूसी के परंपरागत और महंगे तरीकों पर निर्भर होने के बजाय, बाहरी लोगों के माध्यम से डेटा संग्रह के कई रास्ते अपनाती है जिसमें चीनी कारोबारी, नागरिक, शिक्षाविद समेत दूसरे लोगों द्वारा ढेर सारी निम्न-गुणवत्ता वाली सूचनाएं इकट्ठा करना शामिल है, जिन्हें एक साथ मिलाकर ‘इंटेलिजेंस’ का निर्माण किया जा सकता है. इस धारणा की आलोचना इसके व्यापक सामान्यीकरण और अन्य काउंटर-इंटेलिजेंस गतिविधियों में दूसरे राष्ट्रों के ख़िलाफ गलत तरीके से दुष्प्रचार गतिविधियां चलाने के लिए की जाती है. ये आलोचक सीआईएस को इसके बजाय ‘मल्टीपल प्रोफेशनल सिस्टम’ ढांचे के रूप में देखते हैं, जो आंतरिक और बाह्य दोनों तरीकों से आईएसआर यानी इंटेलिजेंस, रिकानसेंस और सर्विलांस ( ख़ुफ़िया, टोही और निगरानी) संचालन को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं. हालांकि, मौटे तौर पर इंटेलिजेंस को देश के लिए फ़ैसले लेने वालों को सूचना देने वाले के तौर पर वर्णित किया गया है, लेकिन रूपक ‘रेत के हज़ार कण’ की पूरी तरह उपेक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि एकत्र की गई सूचना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चीनी निर्णय लेने में मदद कर सकती है.
सीआईएस पेशेवर जासूसों की मदद से जासूसी के परंपरागत और महंगे तरीकों पर निर्भर होने के बजाय, बाहरी लोगों के माध्यम से डेटा संग्रह के कई रास्ते अपनाती है जिसमें चीनी कारोबारी, नागरिक, शिक्षाविद समेत दूसरे लोगों द्वारा ढेर सारी निम्न-गुणवत्ता वाली सूचनाएं इकट्ठा करना शामिल है,
इन तर्क-वितर्कों के बावजूद, जबकि सीआईएस निश्चित रूप से अपनी बढ़ती व्यावसायिक भूमिका और रूढ़िवादी जासूसी गतिविधियों के साथ परंपरागत इंटेलिजेंस सेवाओं के तरीकों का पालन करती है, चीन का एकाधिकारवादी शासन वास्तव में लगभग सभी क्षेत्रों में सरकार के प्रभाव के कारण एक अनोखे पहलू के साथ अपनी इंटिजेंस सेवाएं प्रदान करती है. सीआईएस की गतिविधियों को, ‘संचालन के महत्व के संकेंद्रित दायरे’ में काम करने वाली संस्था के तौर पर समझा जा सकता है, जिसके केंद्र में इसकी विभिन्न व्यावसायिक प्रणालियां और दायरे में इसके अन्य संभावित प्रभाव और रुचियां हैं. यह अवधारणा सीआईएस के कामकाज की झलक देती है जो काउंटर-इंटेलिजेंस में कई व्यावसायिक प्रणालियों को प्राथमिकता देती है जबकि एकाधिकारवादी देश की गतिविधियों के संभावित असर की नीतिगत गणना में भी शामिल होती है.
चीनी इंटेलिजेंस सर्विसेज (सीआईएस) और इसके ऑपरेशनल महत्व के कार्यक्षेत्र
सीआईएस के मुख्य कार्यों में नागरिक और सैन्य दोनों एजेंसियां शामिल हैं. सबसे महत्वपूर्ण नागरिक एजेंसी केंद्रीय सुरक्षा मंत्रालय (एमएसएस) है, जिसके तहत केंद्रीय मंत्रालय, प्रांतीय डिवीजन और कई स्थानीय स्तर की एजेंसियां हैं. एमएसएस मुख्य रूप से देश की सुरक्षा के लिए बाहरी और आंतरिक ख़तरों का पता लगाने और भविष्य में भर्ती के वास्ते संभावित प्रोफाइल तैयार करने के लिए विदेशियों की जासूसी करने पर केंद्रित है. सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय (एमपीएस- मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी) के पास आंतरिक और बाहरी सहायक-शाखाएं हैं लेकिन मुख्य रूप से यह घरेलू इंटेलिजेंस पर केंद्रित है. यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के पास भी कई तरह के काम हैं और बाहरी व आंतरिक दोनों तरह की जिम्मेदारियां निभाता है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की मिलिट्री इंटेलिजेंस एजेंसियों में प्रमुख ख़ुफ़िया इकाई पीएलए स्ट्रेटजिक सपोर्ट फ़ोर्स है जो ख़ुफ़िया, तकनीकी टोही, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, साइबर अपराध और रक्षा व मनोवैज्ञानिक युद्ध के लिए ज़िम्मेदार है, और जनरल स्टाफ डिपार्टमेंट व जनरल पोलिटिकल डिपार्टमेंट भी संभालती है.
सीआईएस के कार्यक्षेत्र की परिधि में कई तरह के काम हैं जिनसे सीआईएस ख़ुफ़िया जानकारी जुटाता है. अन्य संस्थाओं में शिन्हुआ, न्यू चाइना न्यूज एजेंसी जैसे सरकारी मीडिया संस्थान शामिल हैं जो अपने चार्टर में ख़ुफ़िया जानकारी को छिपे तौर पर दर्ज करते हैं. विदेशों में चीनी मामलों के कार्यालय और शिक्षा मंत्रालय जैसे अन्य विभाग भी विदेशी चीनी नागरिकों के साथ संपर्क बनाए रखकर ख़ुफ़िया गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं. चीन के वैज्ञानिक और तकनीकी सूचना संस्थान ने चीन के भीतर इंटेलिजेंस के प्रसार को सुगम बनाने के लिए विदेशी टेक्नोलॉजिकल प्रकाशनों को जमा करने की एक औपचारिक प्रणाली को बरकरार रखा है. दिलचस्प बात यह है कि बताया जाता है कि चीनी सरकार विदेशों में आर्थिक जासूसी करने के लिए अपने देसी कारोबारियों को प्रोत्साहन राशि देती है. चीनी कंपनियों की यह रणनीतिक गतिशीलता शुरू में इंटेलिजेंस के काम से नहीं जुड़ी थी, लेकिन 2017 में नेशनल इंटेलिजेंस लॉ द्वारा ऐसा करने के लिए उन्हें मजबूर किया गया, जिसमें अनुच्छेद 7 और 14 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि चीनी संस्थाओं और नागरिकों को जब भी ज़रूरत होगी, उन्हें देश की इंटेलिजेंस सेवा का साथ देना होगा. इस क़ानून की व्यापकता की प्रकृति चीनी टेलीकम्युनिकेशन दिग्गज कंपनी हुआवेई के विरोध के पीछे मुख्य कारण रही है.
सीआईएस के कार्यक्षेत्र की परिधि में कई तरह के काम हैं जिनसे सीआईएस ख़ुफ़िया जानकारी जुटाता है. अन्य संस्थाओं में शिन्हुआ, न्यू चाइना न्यूज एजेंसी जैसे सरकारी मीडिया संस्थान शामिल हैं जो अपने चार्टर में ख़ुफ़िया जानकारी को छिपे तौर पर दर्ज करते हैं
अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टें भी सीआईएस की गतिविधियों के विस्तार पर काफी रौशनी डालती हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई चीनी जासूसों को पकड़ा और दोषी ठहराया है, जिन्हें माइक्रोस़ॉफ्ट द्वारा पेश गए ऑनलाइन प्रोफेशनल नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म लिंक्डइन के माध्यम से जोड़ा गया था. दिलचस्प बात यह है कि ‘ग्रेट फ़ायरवॉल’ के काम को आगे बढ़ाते हुए, जो चीन में आने वाले डेटा को सेंसर करता है, चीन ने एक नया सिस्टम बनाया है जिसे ‘ग्रेट कैनन’ कहा जाता है, जो रणनीतिक रूप से चीन से निश्चित स्थानों पर डेटा के बाहर प्रवाह को प्रसारित करता है जिसे मालवेयर के हमलों और डिनायल-ऑफ-सर्विस (सामान्य कामकाज को बाधित करना और दूसरे यूज़र्स को इसका इस्तेमाल करने से रोकना) के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. अन्य उदाहरणों में ऑस्ट्रेलियाई मीडिया द्वारा 2019 में चीनी सरकार द्वारा उनकी राजनीतिक प्रणाली में कथित हस्तक्षेप शामिल है, जिसमें एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को पार्लियामेंट चुनाव लड़ने के लिए बड़ी मात्रा में धन की मदद देकर फांसा गया था, और जो बाद में मृत पाया गया था.
सीआईएस का भारत के भीतर व्यापक हित है, जो परमाणु हथियारों, मिसाइल प्रणालियों, आईटी क्षमताओं, अंतरिक्ष और उपग्रह अनुसंधान कार्यक्रमों के विकास और तैनाती पर नज़र रखने से लेकर, अन्य रणनीतिक संबंधों तक तमाम मामलों में है. सीआईएस स्वाभाविक रूप से न केवल अपनी क्षमताओं और रुचि के क्षेत्रों में निर्णय लेने की सूचना देता है, बल्कि इस पर विरोधियों के निर्णय लेने, इंटेलिजेंस, आक्रामक काउंटर-इंटेलिजेंस, और विरोधियों के मानव व टेक्निकल सेंसर को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करने का भी आरोप लगाया जाता है. इस मायाजाल को समझते हुए, यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि सीआईएस असल में भारत पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जहां भले ही कुछ ऑपरेशन जिनमें रुकावट आई और बाद में भारतीय मीडिया में छाए रहे, लेकिन यह तो हक़ीक़त का ट्रेलर मात्र हैं. भारतीय समाचार रिपोर्टों ने 2013 और 2018 में पकड़ी गई परंपरागत जासूसी गतिविधियों को दर्शाने वाले कथित चीनी एजेंटों के साथ ही भारत के भीतर कई बिंदुओं पर सीआईएस की केंद्रीय पेशेवर प्रणालियों की मौजूदगी का ज़िक्र किया है. इसके अलावा 2013 और 2019 में अंडमान द्वीप के नज़दीक भारतीय संपत्ति पर और 2018 में मालाबार त्रिपक्षीय अभ्यास के दौरान चीनी टोही जहाज़ जासूसी करते हुए पाया गया है. 2019 में पीएलए के टेक्नोलॉजिकल रूप से तैयार किए गुब्बारे कथित रूप से तिब्बत से भारत में जासूसी करते पाए गए.
कहा जाता है कि इसके दूरस्थ हस्तक्षेप से अधिक अप्रत्यक्ष संबंध के साथ भारत में होने वाले सभी साइबर हमलों का एक तिहाई चीन से पैदा होता है. दूसरी रिपोर्टों ने आगाह किया है कि 42 लोकप्रिय चीनी मोबाइल एप्स सक्रिय रूप से भारतीय सुरक्षा संस्थानों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी जुटा रहे हैं. 2010 में पता चला था कि चीनी हैकरों ने भारतीय मिसाइल प्रणाली के साथ ही दलाई लामा कार्यालय के ईमेल और अन्य निजी जानकारी पर रिपोर्ट चुराई थी. इसके अलावा 2009 में इस बात को लेकर चिंता जताई गई थी कि इंटेलिजेंस जुटाने और नेपाल में भारतीय सीमा के नज़दीक 24 चीनी अध्ययन केंद्रों और क़रीब 30 फर्मों की स्थापना संभवत: नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ाने के लिए की गई थी
सीआईएस का बुनियादी काम उसकी समन्वित गतिविधियों का दायरा है और इसे काउंटर-इंटेलिजेंस ऑपरेशन के लिए केंद्र बिंदु होना भी चाहिए. हालांकि, कोर सिस्टम की दायरे से बाहर मदद जुटाने की क्षमता खुले लोकतांत्रिक समाजों के लिए चुनौतीपूर्ण सच्चाई है. इस विस्तारित क्षमता को सीमित करने के लिए, भारत सरकार द्वारा चीनी मोबाइल एप्स पर पाबंदी लगाने और अमेरिका में चीनी मीडिया फर्मों की स्थिति विदेशी मिशन पदनाम से संबोधित करना शायद ऐसे कदम थे, जो बहुत पहले उठाए जाने चाहिए थे. ये कार्रवाई चीन के एकाधिकारवादी संस्थागत ढांचे से पैदा हुई है क्योंकि 1970 के दशक से धीरे-धीरे जो भरोसा बनाया जा रहा था, चीन की ग़ैर-खुफ़िया तरीकों का इस्तेमाल करने की हाल में बलवती हुई इच्छा के बाद, एकदम से टूट गया है. समान व्यवहार की कमी की वजह से, जिसने बीजिंग को अनुचित लाभ दिया है, लोकतांत्रिक समाजों ने चीन के साथ अपने संबंधों को पुनः परिभाषित करने की कोशिश की है.
चीन की एकाधिकारवादी संस्कृति किसी और के मुकाबले ज़्यादा बेहतर तरीके से इंटेलिजेंस जुटाने का तरीका बनाने में सक्षम बना रही है, और बराबरी के खेल मैदान की कमी इसके विरोधियों के लिए चिंताजनक परिदृश्य है. चीन को एक देश के रूप में दी जाने वाली ‘पैनोपॉटिक (एक जगह से सबकुछ दिखना)’ या ‘सर्विलांस’ (निगरानी करना) जैसी पिछली उपमाएं तेजी से सटीक साबित हो रही हैं. उदार, खुले और लोकतांत्रिक समाजों के लिए अब चीन की ख़ुफ़िया प्रणाली को और ये कैसे काम करती है, यह समझना ज़रूरी हो गया है ताकि प्रभावी जवाबी तरीकों को अपनाया जा सके. जैसा कि चीन की अति-आक्रामकता दुनिया भर में कड़ा प्रतिरोध पैदा कर रही है, बीजिंग की राज्य शक्ति की गुप्त उपकरणों पर निर्भरता अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए गंभीर नतीजों के साथ और बढ़ने की संभावना है.
अनंत सिंह मान ओआरएफ़ में रिसर्च इंटर्न है.
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