Author : Harsh V. Pant

Published on Jan 10, 2020 Updated 0 Hours ago

दुनिया को चीन के उत्थान को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. मगर चीन को भी ये समझ लेना चाहिए कि बाक़ी दुनिया उसकी ज़ोर ज़बरदस्ती और सारे नियम, सिद्धांत व सीमाएं बदल डालने की चालों को यूं ही बर्दाश्त नहीं करेगी.

अभी इस दुनिया पर चीन का साम्राज्य क़ायम नहीं हुआ है!

भारत और चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी सेनाओं के बीच तनातनी कम करने को राज़ी हो गए हैं. इसकी शुरुआत तब हुई, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और चीन के विदेश मंत्री और स्टेट काउंसलर वैंग यी ने इस हफ़्ते की शुरुआत में आपस में बात की. डोवाल और वैंग यी के बीच इस वार्ता के दौरान दोनों देश इस बात पर ‘सहमत’ हुए कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच सीधा टकराव जल्द से जल्द ख़त्म होना चाहिए. डोवाल और वैंग यी ने माना कि ‘भारत और चीन की सीमा पर शांति और स्थिरता के लिए दोनों देशों के सैनिकों का टकराव की स्थिति से पीछे हटना आवश्यक है.’ दोनों ही पक्षों ने एक बार फिर ये दोहराया है कि वो, ‘आपसी मतभेदों को विवाद में तब्दील नहीं होने देंगे.’

अब इसमें भी कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि चीन भी अपने समीकरण तैयार कर रहा होगा. हालांकि, एक साथ तमाम मोर्चों पर भारत का आक्रामकता दिखाना चीन के नीति निर्माताओं के लिए भी एक नई बात है, जिसके लिए उन्हें ख़ुद को तैयार करना होगा

ये सहमति बनने के बाद दोनों देशों के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा में कई स्थानों से पीछे हट गए हैं. लेकिन, अभी भी भारत और चीन के संबंध कुछ हद तक सामान्य होने का सफर बहुत ही लंबा है. हम ये बात बड़े भरोसे के साथ कह सकते हैं कि गलवान में संघर्ष के बाद भारत और चीन के संबंध अब कभी वैसे नहीं हो सकेंगे, जैसे इस संघर्ष के पहले के दिनों में थे. हालांकि, दोनों ही पक्ष इस बात का यक़ीन दिलाने की कोशिश करेंगे कि संबंध अब ठीक हो गए हैं. भारत के लिए अब चीन के किसी भी वादे पर भरोसा कर पाना बेहद मुश्किल होगा. इसलिए अब चीन के ख़िलाफ़ मज़बूत क़िलेबंदी करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता बन जाएगा. भारत ने इस बात के भी पर्याप्त संकेत दे दिए हैं कि वो चीन की कंपनियों को सरकारी ठेकों, मूलभूत ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट और संवेदनशील सामरिक सेक्टर से बाहर ही रखेगा. भले ही इससे उसे आर्थिक झटका लगे. मगर, भारत अब अपनी सामरिक सुरक्षा के लिए ये घाटा उठाने के लिए भी तैयार है. पिछले हफ़्ते भारत सरकार ने चीन के 59 ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया. ये एक प्रतीकात्मक क़दम भले रहा हो. लेकिन, इस क़दम के ज़रिए भारत ने चीन को ये संदेश दिया है कि बिना सीमा विवाद को स्थायी रूप से हल किए हुए, अब दोनों देशों के बीच सामान्य आर्थिक और व्यापारिक संबंध वैसे जारी नहीं रहेंगे, जैसे अब से पहले थे. इसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख की चोटियों से भी चीन को स्पष्ट रूप से ये संदेश दे दिया कि अब भारत, उसके ख़िलाफ़ लंड़ी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहा है.

अब इसमें भी कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि चीन भी अपने समीकरण तैयार कर रहा होगा. हालांकि, एक साथ तमाम मोर्चों पर भारत का आक्रामकता दिखाना चीन के नीति निर्माताओं के लिए भी एक नई बात है, जिसके लिए उन्हें ख़ुद को तैयार करना होगा. लेकिन, चीन के ख़िलाफ़ सिर्फ़ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देश ऐसा ही कड़ा रुख़ अपना रहे हैं. ऐसा पहली बार हो राह है, जब पूरी दुनिया चीन को सीधे चुनौती देने के लिए ख़ुद को तैयार कर रही है. ऐसा लगता है कि, पश्चिम से पूरब तक एक आम सहमति बन रही है कि चीन द्वारा मौजूदा विश्व व्यवस्था के बुनियादी नियमों को जिस तरह चुनौती दी जा रही है, उसका उचित प्रतिउत्तर देना बहुत ज़रूरी हो गया है. क्योंकि अगर चीन की हरकतों के प्रति दुनिया चुप्पी साधे रही, तो पूरे विश्व को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. आज से कुछ महीनों पहले तक, चीन के प्रति दुनिया में आम तौर पर नरमी भरा रवैया देखने को मिलता था. लेकिन, अब तस्वीर पूरी तरह बदली हुई नज़र आती है. आज लगभग पूरी दुनिया ही चीन के ख़िलाफ़ खड़ी दिखाई देती है. अब चीन के विरोध में ऐसा माहौल बन गया है,  जिसकी अनदेखी करने का जोखिम चीन के नीति नियंता अब मोल नहीं ले सकते.

चीन और बाक़ी दुनिया के बीच खाई के गहरी होते जाने के संकेत तब भी मिले, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और G-20 जैसी संस्थाएं, हमारे दौर में मानवता की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर सामने आई कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए मिल जुलकर प्रयास करने में भी असफल रहे

वैसे तो इसकी शुरुआत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नए कोरोना वायरस की महामारी से शुरुआती तौर पर निपटने में गड़बड़ी के साथ हो गई थी. लेकिन, अब पूरी दुनिया इस बात को लेकर चिंतित है कि चीन, वैश्विक व्यवस्था के बुनियादी मानकों पर भी चलने को तैयार नहीं है. अब जबकि चीन एक के बाद एक, अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर रहा है. तो, अपनी इन करतूतों के ज़रिए वो उन देशों को मुंह चिढ़ा रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय संधियों और नियमों को एक महत्ता देते हैं. ताकि विश्व व्यवस्था क़ायम रहे. और दुनिया में स्थिरता और अमन का राज हो. लेकिन, चीन द्वारा हर नियम को नए सिरे से तय करने की ज़िद को अब उदार और आदर्शवादी नियमों, मूल्यों और संस्थाओं के ज़रिए साधा नहीं जा सकता है.

वैश्विक संस्थाओं का किस तरह से पतन हो रहा है, इसकी मिसाल हमने तब देखी थी, जब चीन ने कोविड-19 महामारी के शुरुआती चरण में विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने हाथों का खिलौना बना लिया था. चीन और बाक़ी दुनिया के बीच खाई के गहरी होते जाने के संकेत तब भी मिले, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और G-20 जैसी संस्थाएं, हमारे दौर में मानवता की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर सामने आई कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए मिल जुलकर प्रयास करने में भी असफल रहे. वहीं, चीन ने इस महामारी को अपने लिए एक ऐसे अवसर के रूप में देखा, जिसका फ़ायदा उठाकर वो अपने भौगोलिक राजनीतिक हित साध सके. इसके लिए चीन ने उन कमज़ोर देशों को निशाना बनाना शुरू किया, जो उसका जवाब देने लायक़ नहीं थे. दक्षिणी चीन सागर की समुद्री सीमा से लेकर, हिमालय पर्वत की चोटियों तक चीन ने अपनी दादागीरी दिखानी शुरू की. उसने यूरोपीय संघ के अंदरूनी टकराव का भी लाभ उठाने की कोशिश की. और हॉन्गकॉन्ग को अपने क़ानून के शिकंजे में भी कस लिया. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ये सभी क़दम उचित थे. ताकि वो अपने देश के नागरिकों पर अपना शिकंजा और कस सके. चीन के लिए प्रभुत्व जमाने की ये चाल चलनी ज़रूरी हो गई थी. क्योंकि, अर्थव्यवस्था में गिरावट और एक महामारी के कुप्रबंधन के कारण चीन की जनता की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति नाख़ुशी खुलकर उजागर होने लगी थी.

लेकिन, चीन के लिए दुनिया की सियासी हक़ीक़तें बदल गईं. और वो भी देखते ही देखते कुछ महीनों के भीतर ऐसा हुआ. आज चीन के आक्रामक रवैये का पूरी दुनिया में जैसा विरोध हो रहा है, वैसा पहले कभी देखने को नहीं मिला. ऑस्ट्रेलिया की स्कॉट मॉरिसन सरकार ने चीन के ख़तरे से निपटने के लिए बेहद आक्रामक रक्षा नीति का एलान कर दिया है. इसके सीधे निशाने पर चीन ही है. मॉरिसन ने चेतावनी दी कि ज़बरदस्ती और मुक़ाबले वाली हरकतें अब बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. जहां पर भी ऑस्ट्रेलिया के हितों को चोट पहुंचाने की कोशिश की जाएगी, उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा. एक तरफ़ तो हाल के दिनों में चीन, जापान की समुद्री सीमा में पहले के मुक़ाबले नियमित रूप से सेंध लगा रहा है. वहीं, नई चुनौती को देखते हुए जापान की समुद्री आत्म रक्षा बलों और उनके जहाज़ों ने हिंद महासागर में भारत की नौसेना के साथ युद्धाभ्यास किया है. जापान के रक्षा मंत्री तारो कोनो ने स्पष्ट रूप से कहा कि, ‘चीन, भारत के साथ लगने वाली अपनी सीमा पर, हॉन्गकॉन्ग में, पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के इलाक़ों में यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा है.’ और, पिछले महीने आसियान देशों (ASEAN) ने भी चीन की घुसपैठ को लेकर ज़्यादा सख़्त रुख़ दिखाया था. आसियान ने ऐसा बयान दिया, जो उसने पहले कभी नहीं दिया. अपने बयान में आसियान देशों ने कहा कि समुद्री सीमाएं केवल संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संबंधी कन्वेंशन (UNCLOS) के आधार पर तय की जाएंगी. और इन्हीं के आधार पर समुद्री क्षेत्र के संप्रभु अधिकार, न्यायिक क्षेत्र और वाजिब हितों के इलाक़े तय होंगे. आसियान ने कहा कि, ‘1982 का UNCLOS समुद्र और सागरों हर तरह की गतिविधि चलाने की क़ानूनी तौर पर व्याख्या करता है और हर देश की सीमाएं तय करता है.’

अगर चीन को ये लगता है कि विश्व पटल पर उसके उत्थान का मतलब अन्य देशों व अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर उसका दबाव बढ़ाना है. तो, चीन के उत्थान के ख़िलाफ़ दुनिया का एकजुट होकर विरोध जताना भी अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत बिल्कुल वाजिब है

वहीं, अमेरिका लगातार चीन पर दबाव बढ़ाता जा रहा है. वो ऐसा कूटनीतिक माध्यमों से भी कर रहा है. और साथ ही साथ चीन के ख़िलाफ़ अपनी सामरिक शक्ति का भी अभूतपूर्व प्रदर्शन कर रहा है. 2014 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि अमेरिका के दो एयरक्राफ्ट कैरियर दक्षिणी चीन सागर में गश्त लगा रहे हैं. अमेरिका ने ये जंगी बेड़े, दक्षिणी चीन सागर के विवादित पारासेल द्वीपों के क़रीब चीन की नौसेना (PLAN) द्वारा पांच दिनों के युद्धाभ्यास के फ़ौरन बाद भेजे थे.

हालांकि, इन सभी बातों का ये अर्थ बिल्कुल नहीं है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी हरकतों में कोई बदलाव करेगी. ठीक वैसे ही, जैसे सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनातनी को सीमित स्तर पर कम किया गया है. पर, इसका ये मतलब नहीं है कि चीन, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ा चढ़ाकर अपने दावे करना बंद करने जा रहा है. लेकिन, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर दबाव बढ़ रहा है. और चीन के लिए दुनिया का संदेश बिल्कुल साफ़ है. चीन की सत्ता के लिए भूख और उसकी दादागीरी के ख़िलाफ़ तमाम देश खड़े होंगे. अगर चीन को ये लगता है कि विश्व पटल पर उसके उत्थान का मतलब अन्य देशों व अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर उसका दबाव बढ़ाना है. तो, चीन के उत्थान के ख़िलाफ़ दुनिया का एकजुट होकर विरोध जताना भी अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत बिल्कुल वाजिब है. दुनिया को चीन के उत्थान को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. मगर चीन को भी ये समझ लेना चाहिए कि बाक़ी दुनिया उसकी ज़ोर ज़बरदस्ती और सारे नियम, सिद्धांत व सीमाएं बदल डालने की चालों को यूं ही बर्दाश्त नहीं करेगी.

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