Author : Harsh V. Pant

Published on Dec 28, 2020 Updated 0 Hours ago

अपने संसाधनों के सापेक्ष भारत ने कोरोना आपदा का कहीं बेहतर तरीके से सामना करके भी दुनिया में एक मिसाल कायम की है. ऐसे में यदि भारतीय नेतृत्व अपनी नीतियों पर इसी प्रकार आगे बढ़ता रहा तो चीन का उतार भारत के उभार का पड़ाव बन सकता है.

चीन का उतार, भारत के लिए उभार का पड़ाव

बीते कुछ दशकों में किसी एक साल ने अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को शायद ही इतना प्रभावित किया हो जितना 2020 ने. इस साल की शुरुआत ही चीन के वुहान से निकले उस कोरोना वायरस से हुई जिसने जल्द ही पूरी दुनिया को अपनी ज़द में ले लिया. इसका प्रकोप इतना बढ़ गया कि कोरोना से उपजी कोविड-19 बीमारी को वैश्विक महामारी घोषित करना पड़ा. चूंकि इसका कोई उपचार नहीं था तो उसके संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प था. भारत सहित दुनिया के तमाम देशों ने ऐसा ही किया. इसकी वजह से सब कुछ थम गया और वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा. परिणामस्वरूप सेहत पर मंडराए इस संकट ने सामान्य जनजीवन से लेकर रोज़गार तक पर घातक प्रहार किया. ऐसे में यह साल इस आपदा से जुड़ी तमाम त्रासद तस्वीरों के लिए भी याद रखा जाएगा.

जानलेवा कोरोना वायरस के लिए दुनिया ने चीन को माना दोषी

दुनिया के अधिकांश देशों ने चीन को ही इस आपदा का असल दोषी माना. इसकी वजह भी स्पष्ट है कि नवंबर 2019 में ही चीन में इस जानलेवा वायरस की व्यापक मौजूदगी के बावजूद बीजिंग ने वैश्विक समुदाय को समय से इसकी सूचना ही नहीं दी. इतना ही नहीं जब दुनिया को इसकी भनक लगी तब भी चीन इसे छिपाकर उस पर पर्दा डालने का प्रयास करता रहा. यहां तक कि उसने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था पर भी अपने प्रभाव से शिकंजा कसा. इसी कारण डब्ल्यूएचओ ने न केवल कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित करने में विलंब किया, बल्कि उसके लिए चीन को जिम्मेदार मानने से ही इन्कार कर दिया. इस वैश्विक संस्था पर चीन के अंकुश का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब इस महामारी की पड़ताल के लिए उसे अपनी जांच टीम चीन भेजनी थी तो यह काम भी उसे र्बींजग की शर्तों पर ही करना पड़ा. वहीं जब ऑस्ट्रेलिया जैसे देश ने कोरोना को लेकर जवाबदेही तय करने और व्यापक जांच का मुद्दा उठाया तो चीन ने अपने आर्थिक दबदबे से उलटे उसी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चीन के प्रति नकारात्मक धारणा बनने के साथ वह और मजबूत होती गई.

जब पूरी दुनिया उसके यहां से निकले वायरस से जूझने में जुटी थी तो उसने इस आपदा में अपने भौगोलिक विस्तार का अवसर तलाशने का दुस्साहस किया. उसने जापान के सेनकाकू द्वीप से लेकर दक्षिणी चीन सागर में अपने पड़ोसियों को परेशान करना शुरू कर दिया.

जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही थी, चीन विस्तारवादी नीति पर कर रहा था काम

इतने पर भी चीन नहीं माना. जब पूरी दुनिया उसके यहां से निकले वायरस से जूझने में जुटी थी तो उसने इस आपदा में अपने भौगोलिक विस्तार का अवसर तलाशने का दुस्साहस किया. उसने जापान के सेनकाकू द्वीप से लेकर दक्षिणी चीन सागर में अपने पड़ोसियों को परेशान करना शुरू कर दिया. हालांकि जब उसने हिमालयी क्षेत्र में भारत को चुनौती दी तो भारत ने न केवल उसका कड़ाई से प्रतिकार किया, बल्कि उसने चीन की किसी भी धौंस-धमकी को कोई तवज्जो नहीं दी. दुनिया के सबसे ऊंचे और दुर्गम रण क्षेत्रों में से एक लद्दाख में भारतीय सेना के शौर्य ने चीनी सैनिकों को करारा और माकूल जवाब दिया. इस तरह भारत ने चीन द्वारा बनाए जा रहे दबाव की हवा निकालकर रख दी. इससे पूरी दुनिया और खासकर चीन से भयाक्रांत देशों में यह भरोसा जगा कि भारत चीनी वार का पलटवार करने में सक्षम है. इसका ही नतीजा रहा कि जिस ऑस्ट्रेलिया को चीन ने धमकाया वह भारत के साथ मिलकर मालाबार युद्ध अभ्यास के लिए आगे आया. इस दौरान भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ ही अमेरिका और जापान को साधकर क्वॉड जैसे उस मंच को मज़बूती दी जो भविष्य में चीन की चुनौती को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है.

सामरिक मोर्चे के अलावा कूटनीतिक अखाड़े में भी चीन को मुंह की खानी पड़ी

सामरिक मोर्चे के अलावा कूटनीतिक अखाड़े में भी चीन को मुंह की खानी पड़ी. उदाहरण के तौर पर चीन अब तक जिस हिंद-प्रशांत रणनीति’ को खारिज़ करता आया है उसे इस साल व्यापक मान्यता हासिल हुई. अमेरिका के अलावा यूरोपीय देशों और यहां तक कि आसियान राष्ट्रों द्वारा इस क्षेत्र का महत्व स्वीकारने और उसके अनुरूप नीतियां बनाने से स्पष्ट है कि अब इस अवधारणा को स्वीकृति मिल रही है जो चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं. श्रीलंका में राजपक्षे बंधुओं की सत्ता के बावजूद चीन को वहां उनके पहले कार्यकाल जैसा भाव नहीं मिल रहा. इसके विपरीत श्रीलंका भारत के साथ गलबहियां कर रहा है. मालदीव भी उसी नक्शेकदम पर भारत से प्रगाढ़ता बढ़ा रहा है. यहां तक कि म्यांमार जैसे देश र्बींजग को आईना दिखा रहे हैं. नेपाल में हालिया राजनीतिक उठापटक में भी चीनी दखल को जिम्मेदार माना जा रहा है जिससे वहां की राजनीतिक बिरादरी में गहरा असंतोष है. और तो और अफग़ानिस्तान ने चंद रोज पहले हुए जासूसी कांड में चीन से जवाब मांगा है.

सामरिक मोर्चे के अलावा कूटनीतिक अखाड़े में भी चीन को मुंह की खानी पड़ी. उदाहरण के तौर पर चीन अब तक जिस हिंद-प्रशांत रणनीति’ को खारिज़ करता आया है उसे इस साल व्यापक मान्यता हासिल हुई.

आर्थिक मोर्चे पर चीन को तपिश झेलनी पड़ी, 70 देशों ने 5जी की होड़ से हुआवेई को बाहर कर दिया

आर्थिक मोर्चे पर भी इस साल चीन को खासी तपिश झेलनी पड़ी है. दुनिया के करीब 70 देशों ने अपने यहां 5जी की होड़ से उस हुआवेई कंपनी को बाहर कर दिया है जिसे चीन अपने राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखता आया है. दुनिया की तमाम कंपनियां चीन से अपनी विनिर्माण इकाइयां ले जा रही हैं. अमेरिका इस मामले में खासा सक्रिय हुआ है. वहीं जापान ने तो चीन छोड़कर जाने वाली अपनी कंपनियों के लिए विशेष पैकेज तक का एलान किया है. भारत भी इससे बन रहे अवसरों को भुनाने में जुट गया है. ऐसे प्रयास रंग लाते भी दिख रहे हैं. बीते दिनों देश में कई उद्योगों विशेषकर स्मार्टफोन निर्माण के लिए कई कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है. उनमें से कुछ संयंत्र तो काम भी करने लगे हैं.

आर्थिक मोर्चे पर भी इस साल चीन को खासी तपिश झेलनी पड़ी है. दुनिया के करीब 70 देशों ने अपने यहां 5जी की होड़ से उस हुआवेई कंपनी को बाहर कर दिया है जिसे चीन अपने राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखता आया है.

चीन के प्रति दुनिया में दुर्भावना बढ़ी, दुनिया चीन पर अपनी निर्भरता घटाने में जुटी

एक ऐसे समय में यह सब चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं जब वह स्वयं को वैश्विक नेतृत्व के दावेदार के तौर पर आगे बढ़ाने में जुटा था. इस साल चीन के प्रति दुनिया में दुर्भावना बढ़ी है और इसी कारण दुनिया चीन पर अपनी निर्भरता घटाने में जुट गई है. परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति शृंखला के समीकरण बदल रहे हैं. इस प्रकार देखा जाए तो यह साल वैश्विक विनिर्माण ढांचे के पुनर्गठन का भी साल रहा है और इस मामले में चीन की ज़मीन खिसक रही है. उसके द्वारा रिक्त किए जा रहे इस स्थान की पूर्ति में भारत जैसे देश बखूबी उभरे हैं. अपने संसाधनों के सापेक्ष भारत ने कोरोना आपदा का कहीं बेहतर तरीके से सामना करके भी दुनिया में एक मिसाल कायम की है. ऐसे में यदि भारतीय नेतृत्व अपनी नीतियों पर इसी प्रकार आगे बढ़ता रहा तो चीन का उतार भारत के उभार का पड़ाव बन सकता है.


यह लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.