Author : Sukrit Kumar

Published on Sep 29, 2018 Updated 0 Hours ago

राष्ट्रपति सोलिह की जीत से भारत और मालदीव के संबंध फिर से मजबूत स्थिति में पहुंच सकेंगे।

मालदीव में बदलाव: भारत के लिये इसके मायने

मालदीव के मतदाताओं ने अब्दुल्ला यामीन को एक ऐसे नेता होने का असाधारण दंड दिया जिसने अपने शासनकाल के दौरान राजनीतिक विरोधियों और न्यायाधीशों को न केवल जेल भिजवाया था बल्कि अपने देश को जरूरत से ज्यादा चीन के करीब ले गये थे। मालदीव के चुनाव आयोग में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने 134,616 मत पाकर जीत हासिल की जबकि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को मात्र 96,132 मत मिले ।

मोहम्मद सोलिह ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि, “संदेश बिल्कुल साफ है। मालदीव के लोग एक बदलाव, शांति और न्याय चाहते हैं। यह खुशी और उम्मीद का पल है। यह ऐतिहासिक भी है। इसलिए मैं उन सबको धन्यवाद देता हूं जिन्होंने लोकतंत्र की लड़ाई में साथ दिया है।”

यामीन ने सोमवार को एक टेलीविजन इंटरव्यू में औपचारिक रूप से अपनी हार स्वीकार कर ली है, यामीन ने कहा कि, “रविवार को मालदीव के लोगों ने फैसला किया कि वह क्या चाहते हैं। मैंने परिणाम स्वीकार कर लिया है। इससे पहले मैंने इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से मुलाकात किया है, जिसे मालदीव के लोगों ने अपना अगला राष्ट्रपति चुना है और मैंने उन्हें इसके लिए बधाई भी दी है ।”

मालदीव अरब सागर को हिंद महासागर से अलग करता है जो विश्व के महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के निकट स्थित है जहां चीन अपनी नौसैनिक और वाणिज्यिक गतिविधियों का विस्तार करने में लगा हुआ है। मालदीव में चीन ने बुनियादी ढांचे और अन्य परियोजनाओं पर लगभग दो अरब डॉलर खर्च किये है। विपक्ष की सरकारों, पश्चिम के देश और भारतीय राजनेताओं ने स्पष्ट रूप से और बार-बार इस बात की चेतावनी दी है कि चीन पर बढ़ती निर्भरता मालदीव की संप्रभुता के लिए महंगी साबित हो सकती है। पर शायद इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की जीत चीन के प्रभाव को वापस न लाए। दक्षिण एशिया में चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव शुरू से ही विवादास्पद रही है क्योंकि बीजिंग कहता है कि यह वाणिज्यिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए बनाया जा रहा है लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि चीन इस तरह की गतिविधियों से धीरे-धीरे अपने वैश्विक सैन्य पदचिन्ह का विस्तार कर रहा है।

इसके अलावा श्री सोलिह ने इस बात का भी संकेत दिया कि वह वैश्विक शक्तियों से बीच-बचाव करने की कोशिश करेंगे और भारत के साथ अपने संबंधों को फिर से बहाल करेंगे जिसने इस क्षेत्र में चीन की बढती गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की है। विपक्ष के नेताओं ने हिंद महासागर क्षेत्र की शांति और स्थायित्व के लिए पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने का वादा भी किया है।

एक 53 वर्षीय गोताखोर हुसैन रशीद ने कहा, “मुझे लगता है कि हम अभी भी स्वतंत्रता पाने के लिए स्वतंत्रता के लिए मत दे रहे हैं, हम स्वतंत्रता के बिना न्याय नहीं प्राप्त कर सकते हैं। सैकड़ों वर्षों के बाद भी हमें वास्तव में न्याय नहीं मिला है।”

वर्ष 2013 में सत्ता में आने के बाद से यामीन ने ऐसे कानून बनाए जिससे विपक्ष के नेता या तो जेल में डाल दिए गए थे या उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसी वर्ष फरवरी माह में सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों को गिरफ्तार कर लिया गया था। मुहम्मद सोलिह जिन चार पार्टियों के नेता हैं उनमें से ज्यादातर नेता या तो जेल में कैद है या निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

अब्दुल्ला यामीन के लिए दूसरे कार्यकाल की लड़ाई पहले से ही काफी मुश्किल लग रही थी क्योंकि इस बात की आशंका थी कि यामीन ने जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट, निर्वाचन आयोग और मीडिया पर अपना नियंत्रण कर रखा था उससे चुनावी नतीजे भी प्रभावित होंगे। अब्दुल्ला यामीन को चीन का समर्थक माना जाता है। यामीन के सत्ता में आने के बाद से भारत की मालदीव में मौजूदगी लगातार कम होती गई। यहां तक की मालदीव ने भारत के दिए गए दो हेलिकॉप्टरों को वापस ले जाने के लिए कह दिया है। इसके साथ ही यामीन ने भारतीय कंपनियों को कई प्रोजेक्टों के दिए गए अनुबंध को भी वापस ले लिया था।

राष्ट्रपति सोलिह की जीत से भारत और मालदीव के संबंध फिर से मजबूत स्थिति में पहुंच सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीत की बधाई दी और दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने के लिए काम करने पर सहमति भी व्यक्त की है । चुनाव से पहले सोलिह ने कहा था कि वह चीनी निवेश की समीक्षा करेंगे। 2008 से 2012 के दौरान देश का नेतृत्व करने वाले पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने बार-बार कहा था कि वह इस सौदे पर फिर से बातचीत करना चाहते हैं। मोहम्मद नशीद ने सोमवार को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में रायटर्स से बातचीत करते हुए कहा कि, “हमारे पास एक संयुक्त घोषणापत्र है। हमारे पास इस समस्याओं के निराकरण करने के लिए एक आम सहमति है। मुझे लगता है कि हमें चीन के साथ सभी समझौतों की समीक्षा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि आगे इस पर और क्या हो सकता है।”

मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत और विश्व के अन्य देश काफी चिंतित थे। इसके अलावा यामीन ने अपने शासनकाल के दौरान धार्मिक मुद्दों पर काफी कठोर रुख अपनाया था। चीन ने मालदीव में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तारीकरण और माले-हुलहुले द्वीप को जोड़ने वाले पुल को बनाने में मदद भी की है। मालदीव में चीन के निवेश को उसके ‘मोतियों की माला’ की रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को मालदीव में चुने गए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित होने की संभावना है। सोलिह की जीत के बाद इस बात की उम्मीद है कि भारत और मालदीव की साझेदारी और गहरी हो सकती है। मालदीव के इस एक दशक पुराने इतिहास को इस बात के लिए भी महत्वपूर्ण जनमत संग्रह माना जा रहा है कि क्या मालदीव को चीनकी गिरफ्त में जाना चाहिए या फिर भारत और दुसरे महत्वपूर्ण परंपरागत हितैषी देशों के साथ संतुलन बना कर चलना चाहिए।


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न हैं।

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