Author : Saaransh Mishra

Published on Mar 22, 2022 Updated 0 Hours ago

रूस पर लगातार लगाए जा रहे आर्थिक प्रतिबंधों और ख़ुद की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की वजह से मध्य एशिया के गणराज्य आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. 

मध्य एशिया: चुनौतियों से भरी है आगे की राह!

यूक्रेन में संकट के बाद पश्चिमी देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों में और बढ़ोतरी कर रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि ये आने वाले समय में भी जारी रहेगा. वैसे तो इन आर्थिक प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को सज़ा देना है लेकिन इन पाबंदियों की वजह से मध्य एशियाई गणराज्यों पर भी भारी सामाजिक-आर्थिक असर पड़ सकता है क्योंकि मध्य एशिया के गणराज्य आर्थिक रूप से रूस पर निर्भर हैं. 

मध्य एशिया ऐसे देशों से घिरा है जिन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं जैसे कि ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और रूस. लेकिन रूस की आर्थिक मुश्किल मध्य एशिया पर काफ़ी असर डालती है क्योंकि ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देश विदेश से भेजे गए पैसे, ज़्यादातर रूस से भेजे गए पैसे, पर निर्भर देश हैं.

हाल के दिनों में कई भू-राजनीतिक और घरेलू घटनाक्रम ने मध्य एशिया में आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता हासिल करने में मुश्किलें बढ़ाई हैं और मौजूदा स्थिति उसमें और इज़ाफ़ा करती है. जहां पश्चिमी देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों को पूरी तरह जारी रखना चाहते हैं, वहीं मध्य एशिया के देश पहले से सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, ऐसे में मध्य एशिया को आगे आने वाले दिनों में कांटों से भरे मुश्किल रास्ते पर चलने के लिए ख़ुद को तैयार रखना चाहिए. 

मध्य एशियाई मुल्कों के जीडीपी पर पड़ता असर

मध्य एशिया ऐसे देशों से घिरा है जिन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं जैसे कि ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और रूस. लेकिन रूस की आर्थिक मुश्किल मध्य एशिया पर काफ़ी असर डालती है क्योंकि ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देश विदेश से भेजे गए पैसे, ज़्यादातर रूस से भेजे गए पैसे, पर निर्भर देश हैं. ख़बरों के मुताबिक़ क्रीमिया संकट और रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के बाद मध्य एशिया में विदेश से पैसे भेजने में 40 प्रतिशत की कमी आई है और कोविड-19 की वजह से रूस की सीमाएं बंद होने से भी विदेश से पैसे भेजने में कुल मिलाकर 22 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है. 

विश्व बैंक के आंकड़े संकेत देते हैं कि विदेशों से भेजा गया पैसा ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान की जीडीपी में क्रमश: 30 प्रतिशत, 28 प्रतिशत और 12 प्रतिशत योगदान देता है.

लेकिन इसके बाद भी रूस से भेजा जाने वाला पैसा मध्य एशिया के देशों की जीडीपी में एक बड़ा योगदान देता है, ख़ास तौर पर वहां की अर्थव्यवस्थाओं को चलाने में. जनवरी और सितंबर 2021 के बीच ताजिकिस्तान के 16 लाख लोग रूस में दाखिल हुए (अब तक के इतिहास में सबसे ज़्यादा) जबकि इसी दौरान उज़्बेकिस्तान के 33 लाख और किर्गिस्तान के 6,20,000 नागरिकों ने भी रूस में प्रवेश किया. विश्व बैंक के आंकड़े संकेत देते हैं कि विदेशों से भेजा गया पैसा ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज़्बेकिस्तान की जीडीपी में क्रमश: 30 प्रतिशत, 28 प्रतिशत और 12 प्रतिशत योगदान देता है. 

हालांकि कज़ाकिस्तान रूस से भेजे गए पैसे पर निर्भर नहीं है लेकिन इसके बावजूद मौजूदा स्थिति को लेकर उसका भी बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है क्योंकि रूस मध्य एशिया के इस सबसे अमीर देश का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है. पिछले क़रीब तीन दशकों में रूस ने कज़ाकिस्तान में लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है लेकिन अब हो सकता है कि वो निकट भविष्य में निवेश को जारी नहीं रख पाए. इसकी वजह से कज़ाकिस्तान में विकास की परियोजनाओं पर काफ़ी असर पड़ेगा. लेखक ओवेन शाल्क के मुताबिक़ कज़ाकिस्तान में रूस के कारोबारी निवेश का धीमा पड़ना पहले ही शुरू हो चुका है. रूस के केंद्रीय बैंक के द्वारा ब्याज दर 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने के फ़ैसले की वजह से रूस के निवेश पर रोक लग गई है.

इसके अलावा कज़ाकिस्तान के लोग रूस के बैंकों को प्रभावित करने वाले आर्थिक प्रतिबंधों के परिणाम स्वरूप ऑनलाइन लेन-देन नहीं कर पा रहे हैं. स्विफ्ट सिस्टम से रूस के बैंकों का संपर्क हटाने के कारण कज़ाकिस्तान के निर्यात के लिए रूस की तरफ़ से भुगतान की क्षमता भी कम हो जाएगी. इन कारणों से आख़िरकार दोनों देशों के बीच व्यापार में कमी आएगी. 

ऊपर की बातों पर विचार करते हुए ये मानना नादानी होगी कि रूस पर मौजूदा आर्थिक प्रतिबंधों से मध्य एशिया बच जाएगा. कज़ाकिस्तान के लिए स्थिति इस वजह से और भी ख़राब होती है कि वो अभी जनवरी 2022 की राजनीतिक अस्थिरता, जब कज़ाकिस्तान के लोग सरकार के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे, से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है. वैसे तो ईंधन के बढ़ते दाम की वजह से लोगों ने प्रदर्शन शुरू किया था लेकिन व्यापक संदर्भ ये है कि लोग अपने लिए अच्छा जीवन स्तर मांगने के साथ-साथ पूर्व राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव से अपना बचा-खुचा राजनीतिक असर, 2019 में राष्ट्रपति के पद से इस्तीफ़ा देने के बाद भी, छोड़ने की मांग भी कर रहे थे. इस तरह देशव्यापी राजनीतिक अस्थिरता और आम लोगों एवं सरकार के बीच संघर्ष, जिसकी वजह से 150 की मौत की ख़बर है, के बाद जिस समय कज़ाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था, उसी समय रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए. 

तालिबान समीकरण

निश्चित रूप से जनवरी में कज़ाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से मध्य एशिया के लिए संभावित चुनौतियों से पहले ही अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने कब्ज़ा जमाया था. इसकी वजह से मध्य एशियाई देशों के लिए गंभीर सुरक्षा और आर्थिक नतीजे हो सकते हैं. 

अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान की वापसी ने पहले ही देश में बढ़ती इस्लामिक कट्टरता की चिंताओं में इज़ाफ़ा कर दिया है. ये इस्लामिक कट्टरता मध्य एशियाई गणराज्यों जैसे कि ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान तक फैल सकती है जो अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2,387 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं. मध्य एशियाई गणराज्यों में सुरक्षा चिंताएं  आतंकवादी संगठनों जैसे कि इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान (आईएमयू), इस्लामिक जिहाद यूनियन (आईजेयू) और जमात अंसारुल्लाह की वजह से और बढ़ती हैं. इसके साथ-साथ मध्य एशिया के कट्टर आईएसआईएस लड़ाके भी हैं जिनके बारे में ख़बर है कि वो अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग आतंकवादी समूहों के साथ जुड़ गए हैं. 

मध्य एशियाई गणराज्यों में सुरक्षा चिंताएं  आतंकवादी संगठनों जैसे कि इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान (आईएमयू), इस्लामिक जिहाद यूनियन (आईजेयू) और जमात अंसारुल्लाह की वजह से और बढ़ती हैं. 

इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति भारत के बड़े बाज़ार से जुड़ने के हिसाब से मध्य एशिया के आर्थिक हितों के प्रतिकूल है. आयात पर निर्भर भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को मध्य एशिया के आर्थिक संसाधनों की प्रचुरता से अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है लेकिन कई दशकों से तैयार हो रही   तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-इंडिया (टीएपीआई) पाइपलाइन जैसी संपर्क परियोजना भू-राजनीतिक समस्याओं की वजह से अब तक पूरी नहीं हो सकी है. इस परियोजना के अलावा तालिबान के शासन वाले अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया में ज़्यादा अस्थिरता मध्य एशिया से जुड़ी किसी भी संपर्क परियोजना के लिए एक संतोषजनक गति से आगे बढ़ने में और भी कठिनाई पैदा करेगी. पहले भी अलग-अलग भू-राजनीतिक कारणों से कोई भी परियोजना ठीक-ठाक रफ़्तार से आगे नहीं बढ़ सकी है. 

मध्य एशिया के गणराज्यों में लंबे समय तक आर्थिक संकट इस क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाने का काम करेगा. मध्य एशिया में अस्थिरता के साथ-साथ चरमपंथी संगठनों की मौजूदगी, जो मध्य एशिया और उसके नज़दीक अफ़ग़ानिस्तान में भी है, बढ़ती कट्टरता के ज़रिए सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाने का काम करेगी. 

रूस से आगे देखने की ज़रूरत 

मध्य एशिया के देशों को रूस पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अब अलग-अलग देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को जोड़ने में मेहनत करनी होगी. 100 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ पिछले कुछ दशकों से चीन इस क्षेत्र में एक बड़ा आर्थिक किरदार रहा है. निकट भविष्य में मध्य एशिया जिस तरह की आर्थिक परीक्षा का सामना कर सकता है, उसकी वजह से चीन को अपनी उस बुनियाद पर काम करने का एक अतिरिक्त अवसर मिलता है जिसकी नींव उसने पहले ही रख दी है. सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को और मज़बूत करने के लिए भी ये ज़रूरी है.

ये स्वाभाविक रूप से भारत के लिए बुरी ख़बर होगी क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से ही भारत नियमित कूटनीतिक बातचीत के ज़रिए मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने की कोशिश कर रहा है. संपर्क में रुकावट की वजह से पहले ही भारत-मध्य एशिया के बीच संबंधों को अपनी पूरी संभावना तक पहुंचने में दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा था. लेकिन अगर इस परिस्थिति के कारण मध्य एशिया में चीन का असर और बढ़ जाता है तो भारत के लिए यहां दाख़िल होना ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा.

इन चुनौतियों से निपटते समय मध्य एशिया के गणराज्यों को रूस पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने की रणनीति पर भी काम करना चाहिए क्योंकि अभी ये पता नहीं है कि लंबे समय में आर्थिक प्रतिबंध रूस पर कितना ख़राब असर डालेंगे.

   

मध्य एशिया के देशों की सरकारों को इस समय बहुत ज़्यादा सोच-विचार के बाद आगे बढ़ना होगा. रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से लंबे समय तक संभावित आर्थिक कठिनाई से मध्य एशिया में राजनीतिक अस्थिरता की आशंका में बढ़ोतरी होगी क्योंकि लोग नाराज़ होंगे और ये घरेलू अस्थिरता कट्टरता के पनपने की वजह बन जाएगी जो पहले से ही मध्य एशिया में मौजूद है. इसके साथ-साथ अफ़ग़ानिस्तान से कट्टरपंथ के मध्य एशिया तक फैलने की भी आशंका है. 

इन चुनौतियों से निपटते समय मध्य एशिया के गणराज्यों को रूस पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने की रणनीति पर भी काम करना चाहिए क्योंकि अभी ये पता नहीं है कि लंबे समय में आर्थिक प्रतिबंध रूस पर कितना ख़राब असर डालेंगे. मध्य एशिया के गणराज्यों को या तो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन जाना चाहिए, जो कम समय में मुश्किल लक्ष्य है, नहीं तो अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करना चाहिए. हालांकि आर्थिक संबंधों का विस्तार करना भी पेचीदा काम होगा क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार अस्थिरता दूसरे देशों को मध्य एशिया की तरफ़ देखने से रोकेगी. इस बात को देखा जाना बाक़ी है कि मौजूदा स्थिति लंबे वक़्त में मध्य एशिया को कितनी बुरी तरह प्रभावित करती है लेकिन सामाजिक-आर्थिक स्थिरता की तरफ़ जाने वाला रास्ता निश्चित रूप से बेहद कठिनाइयों से भरा होगा. 

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