Author : B. Rahul Kamath

Published on Dec 22, 2021 Updated 0 Hours ago

रूस, पश्चिमी देशों को चिड़ाते हुए यूक्रेन के मसले पर लगातार आक्रामक रवैया अख़्तियार किए हुए है. क्या ये संकट, यूरोप और यूक्रेन के रिश्तों को और क़रीबी बनाने का मौक़ा दे रहा है?

रूस और यूक्रेन का सीमा संकट: यूरोप के लिए फ़ैसले की घड़ी

Source Image: Getty

क्या है मामला

यूरोपीय संघ (EU) और रूस के रिश्तों में लगातार टकराव बना हुआ है. हमने इसकी एक मिसाल अक्टूबर और नवंबर महीनों में देखी थी, जब पूरे यूरोप में गैस का संकट पैदा हो गया था. अब रूस द्वारा यूक्रेन की सीमा पर अपनी सेनाओं का जमावड़ा करने से एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई है. पश्चिमी देशों ने रूस के सेना तैनात करने को उसका आक्रामक क़दम क़रार दिया है; हालांकि, रूस ने ऐसे सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा है कि उसके सैनिक अपनी सीमा के भीतर ही आवाजाही कर रहे हैं. पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों का मानना है कि रूस ने यूक्रेन से लगी हुई सीमा पर क़रीब एक लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं. लेकिन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले की आशंकाओं को महज़ अफ़वाह कहकर ख़ारिज कर दिया है. इसके अलावा, रूस ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया है कि यूक्रेन ने ही अपनी पूर्वी सीमा पर सवा लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं.

यूरोपीय संघ, अपनी तमाम हालिया समस्याओं के लिए अक्सर रूस पर ही आरोप लगाता रहा है. फिर चाहे वो रूस और यूक्रेन के बीच का मुद्दा हो या फिर बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर अप्रवासियों के जमा होने का संकट. 

यूरोपीय संघ, अपनी तमाम हालिया समस्याओं के लिए अक्सर रूस पर ही आरोप लगाता रहा है. फिर चाहे वो रूस और यूक्रेन के बीच का मुद्दा हो या फिर बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर अप्रवासियों के जमा होने का संकट. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने रूस को चेतावनी दी है कि वो यूक्रेन या पोलैंड में किसी तरह का सैन्य दुस्साहस करने से बाज़ आए; हालांकि, रूस के अधिकारियों ने इस पर पलटवार करने में ज़रा भी देर नहीं कि और कहा कि यूरोप अपनी हर परेशानी के लिए रूस पर इल्ज़ाम न थोपा करे. रूस और पश्चिमी देशों के बीच इस बढ़ते तनाव से क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा हो सकती है. क्योंकि, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया कि अमेरिका की अगुवाई में काला सागर में जो सैनिक युद्धाभ्यास किया गया वो एक उकसावे वाली कार्रवाई था, और इससे रूस और नैटो देशों के बीच तनाव बढ़ गया है.

रूस के ख़िलाफ़ आम राय क़ायम

30 नवंबर को नैटो (NATO) देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक, लैटविया की राजधानी रीगा में हुई थी. इसमें नैटो के विदेश मंत्रियों ने तीन मुख्य मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया था- यूक्रेन के आस-पास रूस के सैनिकों की तैनाती, पोलैंड की सीमा पर अप्रवासी संकट को लेकर बेलारूस की सरकार द्वारा उठाए गए क़दम और हथियारों की होड़ पर क़ाबू पाने में नैटो की भूमिका. नैटो देशों के विदेश मंत्रियों ने रूस के ख़िलाफ़ आम राय क़ायम करते हुए कहा कि रूस की सरकार को अधिक पारदर्शी होना चाहिए और तनाव बढ़ाने के लिए अपने सैनिकों को पीछे कर लेना चाहिए. अगर रूस ऐसा नहीं करता है तो उसे आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका और ब्रिटेन ने भी रूस को चेतावनी दी है कि वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ कोई नई सैनिक कार्रवाई से बाज़ आए. दोनों देश मिलकर नैटो की रक्षात्मक और मुक़ाबला कर सकने वाली क्षमताएं मज़बूत बनाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की जीत के बाद, नैटो देशों की क्षमता को लेकर जो सवाल उठे थे, उसके बाद रूस-यूक्रेन के संकट ने एक बार फिर से, यूरोप के मामलों में नैटो की लड़खड़ाती भूमिका में नई जान डालने का काम किया है. क्योंकि, अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के पीछे हटने के बाद, यूरोप की सामरिक स्वायत्तता का सवाल ज़ोर-शोर से उठा था. अपनी सामरिक स्वायत्तता हासिल करने और अमेरिका के ऊपर निर्भरता कम करने के लिए, यूरोपीय संघ कई नए विकल्पों पर ग़ौर कर रहा है. इनमें से एक रास्ता यूरोप की वास्तविक सेना के गठन का भी है. लेकिन, मौजूदा संकट ने ये दिखाया है कि यूरोप में नैटो की अहमियत और प्रासंगिकता, दोनों ही अभी बनी हुई है. इसीलिए, नैटो संधि की धारा पांच, जिसमें ‘सामूहिक रक्षा’ का ज़िक्र किया गया है, वो यूक्रेन पर लागू नहीं होती है. फिर भी नैटो के सदस्य देश यूक्रेन को एक बहुमूल्य साझीदार के रूप में देखते हैं. नैटो के सदस्य देश, यूक्रेन को राजनीतिक और व्यवहारिक समर्थन उपलब्ध कराते आए हैं. जर्मनी के पूर्व विदेश मंत्री हीको मास ने ज़ोर देकर दोहराया था कि रूस की सरकार को सख़्त संदेश देने के लिए नैटो देशों को यूक्रेन का खुलकर मज़बूती से समर्थन करना चाहिए.

नैटो देशों के विदेश मंत्रियों ने रूस के ख़िलाफ़ आम राय क़ायम करते हुए कहा कि रूस की सरकार को अधिक पारदर्शी होना चाहिए और तनाव बढ़ाने के लिए अपने सैनिकों को पीछे कर लेना चाहिए. अगर रूस ऐसा नहीं करता है तो उसे आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका और ब्रिटेन ने भी रूस को चेतावनी दी है कि वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ कोई नई सैनिक  

इसी तरह, 11 दिसंबर को जब लिवरपूल में G-7 देशों की बैठक हुई, तो सभी नेतों ने रूस को चेतावनी दी थी कि अगर वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ अपनी सैनिक आक्रामकता जारी रखता है, तो रूस को इसके ‘गंभीर नतीजे’ भुगतने होंगे. हालांकि, रूस ने एक ऐसे बाध्यकारी समझौते की मांग की है कि नैटो का विस्तार पूरब की तरफ़ नहीं होगा और न ही नैटो देश, रूस की सीमा के पास हथियारों की तैनाती करेंगे. G-7 देशों के नेताओं ने रूस से यूरोपीय देशों को गैस की आपूर्ति करने वाली नई पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम 2 के बारे में भी विचार विमर्श किया, क्योंकि जर्मनी की नई विदेश मंत्री एनालीना बेयरबोक ने संकेत दिया था कि अगर रूस तनाव को और अधिक बढ़ाता है तो ये गैस पाइपलाइन चालू नहीं कि जाएगी. यूरोपीय संघ ने पहले ही रूस की निजी सैनिक ठेकेदार कंपनी वैगनर समूह पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. वैगनर ग्रुप पर आरोप है कि उसने यूक्रेन, लीबिया और सीरिया में लड़ाकों के गिरोहों को मदद देने जैसे ख़ुफ़िया अभियान चलाए हैं.

यूरोप की स्थिति

यूरोप की स्थिति काफ़ी कमज़ोर है, क्योंकि ऊर्जा के बढ़ते दामों और मांग के बीच वो भयंकर ठंड का सामना कर रहा है. इसी दौरान कोविड-19 की चौथी लहर भी आ गई है और पूरे यूरोप में लॉकडाउन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इसके अलावा बेलारूस और पोलैंड की सीमा पर अप्रवासियों का नया संकट पैदा होने का ख़तरा भी मंडरा रहा है. यूरोप की इस कमज़ोर स्थिति के बीच रूस ने अपने आक्रामक रवैये से यूरोपीय संघ को चौंका दिया है. पुतिन ने यूरोप के ऊर्जा संकट का बख़ूबी इस्तेमाल किया है. वहीं, बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको ने अपने यहां लोकतंत्रक समर्थकों के विरोध को कुचलकर यूरोपीय संघ की चुनौतियों को और बढ़ा दिया है. बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको ने यूरोपीय संघ को धमकी दी है कि वो रूस से यूरोप तक गैस पहुंचाने वाली एक अहम पाइपलाइन (यमल-यूरोप पाइपलाइन) को ठप कर देंगे. लुकाशेंको की इस धमकी पर न तो रूस की सरकार ने कुछ कहा, और रूस की गैस कंपनी गैज़प्रॉम ने भी इस पर कोई टिप्पणी करने से साफ़ इंकार कर दिया. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने तो यूरोपीय संघ से कहा कि वो इस मसले पर रूस को मध्यस्थ बनाने से बचे और सीधे बेलारूस से बात करे. रूस से यूरोपीय संघ को जाने वाली कुल गैस का 20 प्रतिशत हिस्सा बेलारूस से होकर गुज़रने वाली यमल- यूरोप पाइपलाइन से होकर जाता है. अगर बेलारूस इस मामले में कोई इकतरफ़ा क़दम उठाते हैं, तो इससे पूरे यूरोप में ऊर्जा का संकट और गहरा जाएगा. ख़ास तौर से कोविड-19 की चौथी लहर और सर्दियों की शुरुआत के कारण ये चुनौती और बढ़ जाएगी.

यूरोप की स्थिति काफ़ी कमज़ोर है, क्योंकि ऊर्जा के बढ़ते दामों और मांग के बीच वो भयंकर ठंड का सामना कर रहा है. इसी दौरान कोविड-19 की चौथी लहर भी आ गई है और पूरे यूरोप में लॉकडाउन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं

अप्रवासियों का संकट

अमेरिका ने भी रूस पर पोलैंड-बेलारूस और बेलारूस-बाल्टिक गणराज्यों के बीच अप्रवासियों का संकट पैदा करने का आरोप लगाया है. हालांकि, रूस ने इन दावों का खंडन किया है और नैटो के आगाह किया है कि वो अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघने से बाज़ आएं, वरना अंजाम बुरा होगा. क्राइमिया पर रूस के क़ब्ज़ा कर लेने के बाद से ही, यूक्रेन ने अपने आप को पश्चिमी देशों के क़रीब ले जाने और यूरोपीय संघ के साथ नैटो का सदस्य बनने की महत्वाकांक्षा ज़ाहिर की है. रूस इसी बात पर भड़का हुआ है, क्योंकि इससे नैटो बिल्कुल उसकी सीमा तक पहुंच जाएगा. चूंकि, यूक्रेन, यूरोपीय संघ और रूस के बीच में पड़ता है, तो वो दोनों ही पक्षों से सहयोग का प्रस्ताव रख सकता है. ख़ास तौर से रूस के साथ तो यूक्रेन के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. हालांकि, 2014 में जब रूस ने क्राइमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया, तो यूक्रेन ने यूरोपीय संघ के साथ और क़रीबी संबंधों की ख़्वाहिश जताई. 2017 में हुए यूक्रेन और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के समझौते ने दोनों के बीच रिश्तों को गहरा किया है. इस समझौते के बाद यूक्रेन और यूरोपीय संघ के बीच व्यापक मुक्त व्यापार क्षेत्र भी स्थापित हुआ है. यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने की दिशा में उठा ये बड़ा क़दम है. हालांकि अब तक यूक्रेन को यूरोपीय संघ में शामिल होने का अभ्यर्थी देश नहीं घोषित किया गया है. अब चूंकि यूक्रेन में क्षेत्रीय अस्थिरता के कई संकट पैदा हो गए हैं, तो ऐसे में यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने की संभावनाएं और भी धूमिल हो गई हैं. इसके बावजूद, यूक्रेन ये उम्मीद कर रहा है कि नैटो के सहयोग से यूरोपीय संघ उसके समर्थन में खड़ा होगा और रूस की सेना के ख़िलाफ़ उसकी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में मदद करेगा.

अमेरिका ने भी रूस पर पोलैंड-बेलारूस और बेलारूस-बाल्टिक गणराज्यों के बीच अप्रवासियों का संकट पैदा करने का आरोप लगाया है. हालांकि, रूस ने इन दावों का खंडन किया है और नैटो के आगाह किया है कि वो अपनी ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघने से बाज़ आएं, वरना अंजाम बुरा होगा. 

जर्मनी में नई सरकार ने काम-काज संभाल लिया है और G-7 देशों की बैठक में जर्मनी की नई विदेशमंत्री एनालीना बेयरबोक ने लिवरपूल फुटबॉल क्लब के गीत ‘यू विल नेवर वाक अलोन’ का ज़िक्र किया. 2022 में जब जर्मनी G-7 का अध्यक्ष बनेगा, तो यही उसका भी सूत्र वाक्य होगा. अब यूक्रेन को यूरोपीय आयोग से पूरा समर्थन मिलेगा या नहीं, ये तो वक़्त ही बताएगा. 15 दिसंबर को ब्रसेल्स में हुए ईस्टर्न पार्टनरशिप शिखर सम्मेलन ने यूरोपीय संघ को एक मौक़ा दिया था कि वो यूक्रेन के प्रति अपनी वादे को और मज़बूती से ज़ाहिर करे. इस सम्मेलन ने पूर्वी यूरोप में यूरोपीय संघ की पहलक़दमी का एक अच्छा मौक़ा मुहैया कराया था. ख़ास तौर से तब और जब यूरोपीय संघ ने पिछले साल नगोर्नो काराबाख़ संघर्ष (अज़रबैजान और आर्मेनिया, दोनों ही ईस्टर्न पार्टनरशिप के सदस्य हैं) को लेकर ख़ामोशी अख़्तियार कर ली थी. इसके अलावा यूरोपीय संघ अपने नए बने ग्लोबल गेटवे इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड का कछ हिस्सा यूक्रेन में परिवहन और ऊर्जा के गलियारे विकसित करने के लिए भी दे सकता है. यूरोप की सामरिक स्वायत्तता और यूरोप की संप्रभुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच, ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूरोपीय संघ अपने आपसी मतभेदों को किनारे रखकर, यूक्रेन की मदद के लिए एक टिकाऊ और साझा एक्शन प्लान पर काम कर सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.